क्या हिंदी में संभव होगा चिकित्सा शिक्षा का भविष्य?

ध्वनि II - भाषाएँ
10-07-2023 09:43 PM
Post Viewership from Post Date to 04- Aug-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
4207 669 0 4876
* Please see metrics definition on bottom of this page.
क्या हिंदी में संभव होगा चिकित्सा शिक्षा का भविष्य?

ऐसा माना जाता है, कि हम जो कुछ भी अपनी मातृभाषा में सीखते हैं, उसे सीखना अपेक्षाकृत बहुत आसान होता है। किंतु हमारे देश में कुछ शिक्षा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां की अध्ययन सामग्री या शिक्षा का माध्यम केवल अंग्रेजी है।ऐसी अध्ययन सामग्री को पढ़ना या सीखना उन छात्रों के लिए थोड़ा कठिन हो जाता है, जो अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपनी मातृभाषा में ग्रहण करते हैं।अभी कुछ समय पूर्व मेरठ में लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (Lala Lajpat Rai Memorial) में पहली बार यह देखने को मिला की वहां के प्रोफेसरों ने एमबीबीएस छात्रों के नए बैच की कक्षाओं में 'हिंग्लिश' (Hinglish) में अर्थात हिंदी और अंग्रेजी भाषा को मिश्रित करके व्याख्यान देना शुरू किया। उनके व्याख्यानों में “लैग का पिछला भाग”(Leg ka pichla bhag) जैसे 'हिंग्लिश' के शब्द सामने आए। हालांकि किसी भाषा को समृद्ध बनाने का यह एक उल्लेखनीय कदम नहीं है, लेकिन प्रोफेसर जो संदेश या सूचना छात्रों को देना चाहते थे, वह उन्हें उचित रूप से प्राप्त हुआ । जैसा कि हम सभी जानते हैं कि चिकित्सा जगत की अध्ययन सामग्री केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध है, इसलिए इन घटनाओं से यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में एमबीबीएस या चिकित्सा क्षेत्र की पाठ्य पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध हो सकती हैं। इस प्रकार का पाठ्य-पुस्तकों का एक सेट 16 अक्टूबर, 2022 को भोपाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पेश किया गया। इसमें सामान्य से जटिल चिकित्सा शब्दावली को देवनागरी लिपि में लिखा गया है तथा इसका उच्चारण अंग्रेजी में किया जा सकता है।
भारत के दूसरे सबसे बड़े राज्य, मध्य प्रदेश ने उच्च शिक्षा को अंग्रेजी का अधिक ज्ञान न रखने वाले लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाने हेतु हिंदी में देश की पहली मेडिकल पाठ्य पुस्तकें लॉन्च की हैं। नए सत्र से शुरू होने वाले सभी 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में नए प्रवेशकों को एनाटॉमी (Anatomy), फिजियोलॉजी (Physiology) और बायोकैमिस्ट्री (Biochemistry) का पाठ्यक्रम हिंदी में पेश किया गया। इस पाठ्यक्रम को मध्य प्रदेश में भी शुरू किया गया, जहां 73 मिलियन निवासियों में से 90 प्रतिशत निवासी हिंदी बोलते हैं।हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह कदम भारतीय डॉक्टरों को वैश्विक चिकित्सा समुदाय से दूर कर सकता है।आलोचकों का कहना है कि 3,410 पृष्ठ की पाठ्य पुस्तकों में चिकित्सा वाक्यांशों का उपयोग अंग्रेजी में किया गया है, लेकिन सभी को हिंदी लिपि में लिखा गया है तथा यह एक उचित अभ्यास नहीं है। दूसरी ओर परिवर्तन करने वालों का कहना है कि हमने किताबें केवल हिंदी लिपि में लिखी हैं और शब्दावली का अनुवाद नहीं किया है। शब्दावली का अनुवाद करके वे छात्रों के लिए चीजों को जटिल नहीं बनाना चाहते हैं। भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश ने भी अगले साल से स्थानीय चिकित्सा स्कूलों में हिंदी पाठ्यपुस्तकें शुरू करने की योजना की घोषणा की है। अधिकारियों का कहना है कि शिक्षा की भाषा में बदलाव से दोनों राज्यों में 86 मिलियन गरीब लोगों को उच्च शिक्षा मिल सकेगी,क्यों कि अंग्रेजी में शिक्षा महंगी है और इसे अभिजात्य वर्ग की शिक्षा के रूप में देखा जाता है।
मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में यह शुरुआत देश में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव लाने जा रही है। इस कदम की मदद से लाखों छात्र अपनी भाषा में पढ़ाई कर सकेंगे और उनके लिए अवसरों के कई द्वार भी खुलेंगे। मेरठ के लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसरों ने बताया कि चूंकि नई शिक्षा नीति मूल भाषा में शिक्षा पर जोर देती है, इसलिए हमने एमबीबीएस पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों के लिए हिंदी में पाठ्य सामग्री तैयार की है। इसे किताबों में संकलित किया जा रहा है। इसके लिए “मेडिकल कॉन्सेप्ट इन हिंदी” (Medical concepts in Hindi) नामक पहल चलायी गई है, जिसके तहत एमबीबीएस पाठ्यक्रम के विभिन्न विषयों के विभिन्न प्रकरणों को “मेडिकल कॉन्सेप्ट इन हिंदी” वेबसाइट पर निःशुल्क उपलब्ध करवाया गया है। इस वेबसाइट पर करीब सम्बंधित 300 वीडियो और लगभग 1,000 लेख हैं। चिकित्सा क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण कदम है लेकिन आलोचकों का कहना है कि भारत में चिकित्सा शिक्षा में अभी बदलाव लाने के साथ बुनियादी स्कूली शिक्षा में सुधार करने की आवश्यकता है।आजादी के 75 साल बाद भी हमारी बुनियादी स्कूल प्रणाली में अंग्रेजी ठीक से नहीं पढ़ाई जाती है। आलोचकों का कहना है कि स्कूलों की व्यवस्था में सुधार करने के बजाय वास्तव में एक बहुत अच्छी तरह से स्थापित प्रणाली को खराब किया जा रहा है।चिकित्सक संघ के अनुसार विशेष रूप से हिंदी शब्दावली का उपयोग करने से भारतीय डॉक्टर अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा समुदाय से दूर हो जाएंगे। हमारा मुख्य ध्यान शिक्षा के बदलते माध्यम पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार पर होना चाहिए।
चिकित्सीय विश्वविद्यालय में प्रति वर्ष 90,000 छात्रों का नामांकन होता है तथा यह चेतावनी दी गई है कि, हिंदी भाषी महत्वाकांक्षी डॉक्टरों से चिकित्सीय विश्वविद्यालय में नामांकन बहुत अधिक बढ़ सकता है। साथ ही अगर पाठ्यक्रम को हिंदी में लॉन्च किया जा रहा है, तो पूरे पाठ्यक्रम का अनुवाद करने के साथ-साथ शिक्षकों को भी प्रशिक्षित करना होगा तथा यह एक कठिन प्रक्रिया होगी। इस योजना के विरोधियों को चिंता है कि नव विकसित पाठ्यपुस्तकें अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं हैं और इससे भारत में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को नुकसान पहुंच सकता है।

संदर्भ:

https://rb.gy/x0v70
https://rb.gy/h5uip
https://rb.gy/cwlbf

चित्र संदर्भ

1. एक पुस्तकालय को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. कम्प्यूटर पर पढाई करते छात्रों को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
3. विविध देशों के छात्रों को दर्शाता चित्रण (Pxfuel)
4. इंडिया इंटरनेशनल मेडिकल इक्विपमेंट एक्सपो को दर्शाता चित्रण (wikimedia)