सौभाग्य और शुभ कार्य के आरंभ के प्रतीक – शंख ने कैसे पाई कपड़ों पर अभिव्यक्ति?

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सौभाग्य और शुभ कार्य के आरंभ के प्रतीक – शंख ने कैसे पाई कपड़ों पर अभिव्यक्ति?

सदियों से, हमारे देश में कपड़ा कारीगरों ने विभिन्न तकनीकों से कपड़ों पर प्रस्तुत किए गए रूपांकनों से सुशोभित, सुंदर वस्त्रों की एक विशेष दुनिया को रूप दिया है। ये रूपांकन प्रकृति, विभिन्न किंवदंतियों, मान्यताओं, कारीगरों के आस-पास के जीवन और उनकी अपनी रचनात्मकता से प्रेरित होते हैं। ये धार्मिक तथा शुभ एवं सजावटी तथा रचनात्मक अभिव्यक्ति की एक विशेष दुनिया का विस्तार हमारे सामने पेश करते हैं। इनमें से कई रूपांकनों का संदर्भ भारतीय संस्कृति से जुड़ा होता है, जबकि उन्हें अलग-अलग रूपों या विवरणों में व्यक्त किया जाता है। इसके साथ ही, कुछ रूपांकन क्षेत्र या स्थान, समुदाय और यहां तक कि पहनने वाले व्यक्ति के लिए विशिष्ट रूप से तैयार किए जाते हैं। वर्तमान समय में, विश्व भर के कपड़ा कारीगर और डिजाइनर (Designer), पारंपरिक भारतीय कपड़ा रूपांकनों से प्रेरित होकर, सुंदर वस्त्र बनाते हैं। इस प्रकार, वे रूपांकनों की क़ीमती शब्दावली को जीवित और विकसित करते रहते हैं। प्रकृति से प्रेरित कपड़े पर उकेरा जाने वाला ऐसा ही एक रूपांकन शंख है। खूबसूरत शंख हमें समुद्र से प्राप्त होते हैं। सृष्टि के जल से निकला शंख एक शुभ प्रतीक माना जाता है। एक तरफ जहां, शंख आभूषण और सजावटी वस्तुओं में भी लोकप्रिय है, वही दूसरी तरफ यह कई संस्कृतियों और धर्मों में भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। शंख की सतह चीनी मिट्टी की तरह कठोर, चमकदार और पारभासी होती है। इसके शैल का आकार आयताकार या शंकु के समान होता है, जिसके बीच में एक उभार होता है और यह सिरों पर पतला होता है। शंख का आंतरिक भाग खोखला होता है। नुकीले सिरों वाला चमकदार, मुलायम और सफेद शंख अन्य शंखों की तुलना में भारी होता है और इसकी मांग भी सबसे अधिक होती है।
शंखों का इतिहास लगभग 65 मिलियन वर्ष पुराना है। इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि 3,000 साल पहले दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लोग इनका उपयोग खाना पकाने के बर्तन, चाकू और आभूषणों के रूप में करते थे। भारत में, शंख का प्रथम उल्लेख 1000 ईसा पूर्व के आसपास अथर्ववेद में मिलता है। महाभारत के युद्ध के दौरान, भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध की शुरुआत और समाप्ति की घोषणा करते समय शंख बजाया था। इसके बाद, शंख आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली पवित्र वस्तु बन गया। आज भी इसका उपयोग लगभग सभी हिंदू अनुष्ठानों को शुरू करने के लिए किया जाता है। बौद्ध संस्कृति में भी शंख महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शंख प्रशांत द्वीप देशों के साथ-साथ दक्षिणी एशिया (South Asia) और दक्षिण अमेरिका (South America) में भी कुछ अनुष्ठानों और विवाह समारोहों में देखा जा सकता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंख भगवान श्रीविष्णु का एक पूजनीय और पवित्र प्रतीक है। इसे एक दिव्य रत्न माना जाता है, जिसे भगवान श्री विष्णु हमेशा अपने दाहिने हाथ पर धारण करते हैं। शंख से सुनाई देने वाली ध्वनि को सृष्टि की सबसे पहली पवित्र ‘ओम’ ध्वनि का प्रतीक माना जाता है और श्रीविष्णु को ध्वनि के देवता माना जाता हैं। शंख श्री विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी के निवास का भी प्रतिनिधित्व करता है। इसी कारण, किसी भी अनुष्ठान या समारोह से पहले शंख बजाया जाता है, क्योंकि यह सौभाग्य और सकारात्मक या शुभ कार्य की शुरुआत का प्रतीक है। यह माना जाता है कि जब शंख बजाया जाता है तो आसपास का वातावरण सभी बुराइयों से शुद्ध हो जाता है। माना तो ऐसा भी जाता है कि यदि शंख को कुशलता से बजाया जाए, तो यह बुरी आत्माओं को दूर भगा सकता है। इसे कीटाणुओं और शत्रुओं का संहारक बताया गया है। पौराणिक काल से ही शंख को हिंदू सामाजिक एवं धार्मिक दर्शन का अभिन्न अंग माना जाता है।
बौद्ध धर्म में, शंख को आठ शुभ प्रतीकों, जिन्हें अष्टमंगल के नाम से जाना जाता है, में से एक माना जाता है। यह बुद्ध की मधुर आवाज का प्रतिनिधित्व भी करता है। आज भी, तिब्बत (Tibet) में इसका उपयोग धार्मिक समारोहों में अनुष्ठानों के दौरान पवित्र जल रखने के लिए एक पात्र के रुप में और एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में किया जाता है। भक्तों का मानना है कि इसे बजाने से मन के सकारात्मक भावनाओं जैसे आशा, इच्छाशक्ति और साहस में वृद्धि होती है।
दूसरी ओर, आयुर्वेद में पेट की समस्याओं के उपचार के तौर पर शंख का चूर्ण के रूप में उपयोग किया जाता है। शंख को लगभग 10–12 बार उच्च तापमान पर गर्म करके, नींबू के रस में भिगोया जाता है और फिर इसका चूर्ण बनाया जाता है। इस चूर्ण को संस्कृत में ‘शंख भस्म’ के नाम से जाना जाता है। यह चूर्ण लौह (Iron), कैल्शियम (Calcium) और मैग्नीशियम (Magnesium) से भरपूर होता है। इसमें पाचन और अम्लनाशक गुण भी होते हैं। इसके अलावा, शंख उद्योग की प्राचीनता के कई पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं। कच्छ की खाड़ी में बेट द्वारका द्वीप पर की गई खुदाई से प्राचीन शैल उद्योग के अवशेषों का पता चला है, जिसमें दक्षिणपूर्वी छोर पर बिखरे हुए लगभग 3,000 सीपियों का संग्रह मिला है, जिससे पता चलता है कि लगभग 3800 साल पुरानी हड़प्पा सभ्यता के दौरान इस द्वीप पर एक बड़ा शैल उद्योग था। इससे पहले लोथल, मोहनजोदड़ो, सुरकोटदा आदि हड़प्पा स्थलों पर की गई खुदाई में चूड़ियाँ, मोती, करछुल, दूध पिलाने के कप आदि सहित विभिन्न शंख-आधारित कलाकृतियाँ पहले ही मिल चुकी हैं। बौद्ध साहित्य में भी शंख से निर्मित उत्पादों का उल्लेख मिलता है। इन सभी से, यह स्पष्ट रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शंख सबसे प्राचीन हस्तशिल्पों में से एक है जो प्रागैतिहासिक युग का है।
वर्तमान में भारत में शंख हस्तशिल्प और व्यापार में आशा की किरण के रूप में भी उभरा है। भारत में इससे संबंधित एक सफल उदाहरण भी हमें देखने को मिलता है। शंख कारीगरों को पश्चिम बंगाल सरकार की एक पहल ‘बिस्वा बांग्ला’ के तहत नियमित ऑर्डर मिल रहे हैं। यह पहल देश और विदेश के ग्राहकों और विशेषज्ञों को बंगाल के हस्तनिर्मित विरासत उत्पादों से जोड़ने के लिए कार्यरत है। आज, युवाओं में इस सबसे प्राचीन शिल्प को लेकर उत्साह निर्माण हो रहा है। सरकारी कार्यालयों के तत्वावधान में प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित किए जा रहे हैं। अतः यह उम्मीद है, कि कपड़ा कारीगरों को भी शंख के रूपांकनों को लोकप्रिय बनाने में यह पहल मदद करेगी।
शंख एक आकार या रूप और लय का प्रतीक है, जो वेदों में आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति के समय से संबंधित है। इस प्रकार, शंख प्राचीन काल से ही, मूर्तिकारों, कपड़ा कारीगरों और कलाकारों द्वारा बनाई गई नक्काशियों और स्थायी रूपांकनों के रूप में, हिंदू सौंदर्यशास्त्र एवं कपड़े की सुंदरता तथा सजावट का हिस्सा रहा है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/5n6t6esf
https://tinyurl.com/2p8v4hux
https://tinyurl.com/2unm2h6p
https://tinyurl.com/2wv6wrhw

चित्र संदर्भ
1. शंख को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
2. फ्लोरिडा क्राउन शंख के खोल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. प्राचीन भारत, (11वीं-12वीं शताब्दी) लक्ष्मी-नारायण के चित्रों के साथ नक्काशीदार शंख को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. शंख बजाती भारतीय महिला को दर्शाता चित्रण (pixahive)