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 हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में बागपत जिले के रटौल गांव में एक सदी से भी अधिक पुराना आम का पेड़ खड़ा है। हालाँकि, यह पेड़ अब फल नहीं देता है, लेकिन ग्रामीण लोग इसे ‘प्रसिद्ध रटौल आम’ के जनक के रूप में वर्णित करते हैं। अनवर रटौल, आम की एक छोटी एवं पीली किस्म है, जो अपनी मिठास और तंतु या फाइबर (Fibre) रहित गूदे के लिए जानी जाती है। इसे कभी-कभी ‘छोटा उर्जा स्त्रोत’ भी कहा जाता है। आम के इस किस्म की खेती पाकिस्तान के पंजाब और सिंध क्षेत्रों और भारत में हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के रटौल गांव के पास की जाती है। 
अनवर रटौल की खेती सबसे पहले, मेरठ से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित रटौल गाँव के पास ही की गई थी। एक मुस्लिम किसान, शेख मोहम्मद अफ़ाक फ़रीदी, वर्ष 1905 में इंटर कॉलेज पूरा करने के बाद रटौल गाँव लौटे थे; तब उन्होंने एक खेत के पास आम का एक पौधा देखा। उन्होंने एक माली की मदद से उस पौधे की कलम लगाई और एक साल की अवधि में ही वहां आम के चार पेड़ उग आए। कुछ वर्षों बाद, अफ़ाक फ़रीदी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपना जीवन इस ‘मीठे उद्देश्य’ के लिए समर्पित कर दिया। अपनी शादी के बाद, उन्होंने आम के पेड़ों की एक नर्सरी भी स्थापित की, जिसे वर्ष 1928 में उन्होंने शोहरा-ए-अफ़ाक, यह नाम दिया। फिर वर्ष 1935 में इस नर्सरी को उन्होंने पंजीकृत भी करवा लिया। इसके साथ ही, उन्होंने तब आम की इस किस्म का नाम “अनवर रटौल” रखा, जो आज रटौल आम के नाम से लोकप्रिय है। 1947 में, देश के विभाजन के समय कोई व्यक्ति इस पौधे के नमूने को पाकिस्तान ले गया था। बाद में, उन्होंने मुल्तान क्षेत्र में इस आम के पौधे को लगाया, और तब से यह किस्म वहां प्रसिद्ध हो गई और पाकिस्तान के लिए गौरव का प्रतीक बन गई। 
कहा जाता है कि, अफ़ाक फ़रीदी को आम का बहुत शौक था और वह आम के पेड़ों की पत्तियों को सूंघकर या चबाकर ही इसकी किस्म के बारे में बता सकते थे। रटौल गांव को भारत के आम मानचित्र पर लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। आज, यह गाँव दूर-दूर तक इस किस्म के आम के लिए जाना जाता है। हालाँकि,यहाँ आम की कई अन्य किस्में भी उगाई जाती हैं। रटौल के आम उत्पादकों ने भारत और विदेश में कई पुरस्कार जीते हैं, और यहां तक कि, यहां कई आम उत्सव भी आयोजित किए जा चुके हैं।परंतु फिर भी, रटौल आम आज तक बाजार में प्रमुख स्थान प्राप्त करने में असफल है। विडंबना यह है कि, एक समय इंदिरा गांधी जी को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जिया उल हक ने उपहार के रुप में अनवर रटौल आम प्रस्तुत किये थे,जो वास्तव में भारत में ही उत्पन्न हुआ था । वर्तमान समय में भी, आम की इस किस्म को बढ़ावा देने के लिए अधिकारियों से कोई मदद नहीं मिल रही है। 
वर्ष 1935 में लंदन (London) में आमों का महोत्सव हुआ था। तब हमारे देश की तरफ से छतारी के नवाब अहमद सईद खान वहां रटौल आम लेकर गए थे। और क्या आप जानते है तब वहां पर हमारे रटौल आम को प्रथम पुरस्कार मिला और इसे दुनिया का सबसे अच्छा आम माना गया था!
आकार में छोटा होते हुए भी, अनवर रटौल बेहद स्वादिष्ट होता है, और इस क्षेत्र में यह फल सबसे लोकप्रिय और मीठा माना जाता है। शुरुआती ऋतु में पकने वाली इस आम की किस्म नाजुक होती है और जलवायु तत्वों के प्रति संवेदनशील होती है, बल्कि तेज़ हवा और भारी बारिश से इसकी अधिकांश फसल नष्ट भी हो जाती है। यह केवल मई और जून के महीनों में केवल कुछ सप्ताह के लिए ही उगता है। दूसरी तरफ, इस संवेदनशील किस्म से थोड़ी देर के बाद आने वाली किस्म अधिक स्थिर, मोटे छिलके वाली और कम मीठी होती है, और जुलाई-अगस्त में उपलब्ध हो जाती है। अतः आप अभी भी इस सुंदर स्वादिष्ट आम का मजा ले सकते हैं। 
आज के बुलंदशहर में कभी ‘बारहबस्ती’ नामक 12 गाँवों का एक समूह हुआ करता था। बाद में यह समूह बढ़ गया और अब वे हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, अमरोहा और हापुड़ जिलों में स्थित हैं। ये गाँव अन्य मुसलमानों और हिंदूओं के अलावा, पठानों की एक बड़ी आबादी के लिए जाने जाते हैं। “बाराबस्ती” नाम “बारहबस्ती” शब्द से लिया गया है, जो कि पठानों के 12 गांव और शहर हैं। हिंदी में इस शब्द का अर्थ “बारह बस्तियां” है। ये बारहगाँव– बसी, गिरौरा, बुगरासी, जलालपुर, चंदियाना, गेसूपुर, बरवाला, अमरपुर, शेरपुर, बहादुरगढ़, हसनपुर, बुकलाना, मोहम्मदपुर और पूठ आदि है।हमारे उत्तर प्रदेश राज्य में पश्तूनों या पठानों का एक बड़ा समुदाय है, जो राज्य में सबसे बड़े मुस्लिम समुदायों में से एक है। उन्हें खान के रूप में भी जाना जाता है, जो उनके बीच आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला उपनाम है। इस क्षेत्र की मूल अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। पठान लोग दूसरों के साथ व्यवहार में सरल और ईमानदार होते हैं।
बारहबस्ती में आम के कई बगीचे हैं तथा यहां आम की कई किस्में उगाई जाती हैं। इनमें दशहरी, बॉम्बे, चौसा, लंगड़ा, गुलाब-जामुन, रटौल और फजरी शामिल हैं । बारहबस्ती में हम आमों की 100 से अधिक किस्में पा सकते हैं।यह क्षेत्र देश में बड़ी संख्या में आमों की आपूर्ति करता है, और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इसे ‘फल क्षेत्र’ भी घोषित किया गया है। आमों से लदे कई ट्रक दिल्ली की आज़ादपुर मंडी (फल बाज़ार) सहित विभिन्न स्थानों पर जाते हैं, और कुछ बेहतरीन आम खाड़ी और यूरोपीय बाजारों में निर्यात किए जाते हैं। 
अफ़ाक फ़रीदी के पोते जुनैद अब यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ‘रटौल आम’ का जन्मदाता मूल पेड़ सड़ न जाए या उखड़ न जाए। वह रिकॉर्ड के लिए इस पेड़ की डीएनए प्रोफाइलिंग (DNA Profiling) करने की योजना बना रहे हैं।उन्होंने ज्ञान उद्यान विकसित करने के लिए पेड़ के आसपास की जमीन भी खरीदी है, जहां पेड़ का इतिहास अंकित किया जाएगा। वे चाहते हैं कि, हर राहगीर इस आम के पेड़ को देखे, जिसने रटौल की अर्थव्यवस्था को बदल दिया है और अनवर रटौल आम की विरासत को संरक्षित किया है।
    
  
संदर्भ   
https://bit.ly/3XPRJkV   
https://bit.ly/3PYZbbA   
https://bit.ly/3XQITDn   
https://bit.ly/3pJvtwv    
  
चित्र संदर्भ    
1. अनवर रटौल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)   
2. अनवर रटौल आम की पेटी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)   
3. कटे हुए अनवर रटौल आम को दर्शाता एक चित्रण (youtube)  
4. अनवर रटौल आमों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)