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                                             जैन धर्म के एक प्रमुख उपदेशक “हेमाचार्य” द्वारा "कुमारपाल प्रतिबोध" नामक एक पुस्तक में गुजरात के प्रसिद्ध चालुक्य राजा “कुमारपाल” को दी गई जैन धर्म की शिक्षाओं का वर्णन मिलता है। इसमें वर्णित है कि इन शिक्षाओं को प्राप्त करने के बाद कुमारपाल धीरे-धीरे जैन धर्म में परिवर्तित हो गए। यह पुस्तक प्रसिद्ध जैन विद्वान सोमप्रभ आचार्य द्वारा विक्रम संवत 1241 (1195 ईस्वी) में लिखी गई थी। इसे गुजरात की प्राचीन राजधानी पाटन में एक जैन भंडार (पुस्तकालय) में पाए गए ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों पर लिखा गया है। यह पांडुलिपियाँ देवमगति लिपि में काली स्याही से लिखी गई थीं।
यह पुस्तक जैन धर्म और कुमारपाल के जीवन से जुड़ी बहुमूल्य जानकारियां प्रदान करती है।
कुमारपाल (जन्म 1143-1172 ई.) गुजरात के चालुक्य (सोलंकी) राजवंश के एक भारतीय राजा थे;  वह चालुक्य राजा भीम प्रथम के वंशज थे। उन्होंने अपनी राजधानी अनाहिलापताका से वर्तमान गुजरात और आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया। उन्हें कला और वास्तुकला के उदार संरक्षक के रूप में याद किया जाता है। हालांकि, उनकी धार्मिक मान्यताओं को लेकर अलग-अलग टिप्पणियां सामने आती हैं। कुमारपाल के बारे में जानकारी के प्राथमिक स्रोत संस्कृत एवं अपभ्रंश-प्राकृत अभिलेख तथा जैन ग्रंथों को माना जाता है। 
अपभ्रंश छठी और 13वीं शताब्दी ईस्वी के बीच उत्तर भारत में बोली जाने वाली भाषाओं का एक समूह था। इन भाषाओं को भारत की शास्त्रीय भाषा संस्कृत का "भ्रष्ट" या "गैर-व्याकरणिक" संस्करण माना जाता था। भाषावैज्ञानिक, अपभ्रंश को भारतीय आर्यभाषा के मध्यकाल की अंतिम अवस्था मानते हैं, जो कि प्राकृत और आधुनिक भाषाओं के बीच की स्थिति है। चौथी से आठवीं शताब्दी तक उत्तर भारत में बोली जाने वाली स्थानीय भाषाओं के एक समूह को "प्राकृत" नाम से जाना जाता था। आगे चलकर यही भाषाएँ अपभ्रंश बोलियों में विकसित हुईं, जिनका उपयोग लगभग 13वीं शताब्दी तक किया जाता था। अंततः यही अपभ्रंश बोलियाँ, हिंदी, उर्दू और मराठी जैसी आधुनिक इंडो-आर्यन भाषाओं में बदल गईं।  
संस्कृत तथा अपभ्रंश-प्राकृत भाषा के शिलालेख और जैन ग्रंथों में कुमारपाल की एक मिश्रित तस्वीर प्रदान की गई हैं, जो उनके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों गुणों को उजागर करती है।
एक ओर, कुमारपाल की कला और वास्तुकला के समर्थन के लिए प्रशंसा की जाती है। साथ ही कई हिंदू और जैन मंदिरों के निर्माण के साथ-साथ अन्य सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। लेकिन वहीँ दूसरी ओर, कुमारपाल की उनकी धार्मिक नीतियों के लिए आलोचना भी की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अन्य धर्मों की तुलना में जैन धर्म को अधिक प्राथमिकता दी, जिसके कारण विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच संघर्ष हुआ। 
हालांकि हिंदू शिलालेखों में यह भी वर्णन मिलता है, कि कुमारपाल भगवान शिव के कट्टर अनुयायी थे। उन्होंने ही सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया था, जिसे अपने समय की सबसे भव्य और सुंदर संरचना माना जाता था। हालांकि बाद में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया था! कुमारपाल कई अन्य हिंदू अनुष्ठानों में भी बराबरी से प्रतिभाग करते थे। 
हालाँकि, जैन ग्रंथ उनके धर्म को लेकर अलग ही कहानी कहते हैं।  जैन ग्रंथों की माने तो कुमारपाल जैन धर्म के समर्पित अनुयायी थे। इन ग्रंथों के अनुसार उन्होंने अपने शासनकाल के अंत में जैन धर्म अपना लिया और अपने राज्य में सभी जानवरों की हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने पार्श्वनाथ को समर्पित कुमार-विहार मंदिर भी बनवाया, जिसमें 24 मंदिर थे। मध्यकाल के कई जैन विद्वानों ने भी उनके जीवन के बारे में लिखा भी है! इन विद्वानों में हेमाचंद्र (द्वयाश्रय और महावीरचरित), प्रभाचंद्र, सोमप्रभा (कुमारपाल-प्रतिबोध), मेरुतुंगा (प्रबंध चिंतामणि), जयसिम्हा सूरी, राजशेखर और जीना-मंदाना सूरी शामिल हैं। हालांकि किसी भी अन्य भारतीय राजा की तुलना में कुमारपाल के बारे में अधिक इतिहास लिखे गए हैं।
हालांकि यह निश्चित रूप से कहना कठिन है कि कौन सा विवरण सटीक है। एक तरफ कुमारपाल के बाद आये उत्तराधिकारी शासकों के शिलालेख और साक्ष्य उनके हिंदू होने का समर्थन करते प्रतीत होते हैं, वहीं दूसरी ओर जैन ग्रंथों को भी बहुत विस्तृत और सुसंगत माना जाता है। ऐसा भी संभव हो सकता कि कुमारपाल एक समन्वयवादी शासक थे, जिसने हिंदू और जैन धर्म दोनों को अपनाया। हालांकि उनकी धार्मिक मान्यता कुछ भी हो लेकिन कुमारपाल निसंदेह एक कुशल और शक्तिशाली राजा थे जिन्होंने गुजरात में  एक स्थायी विरासत छोड़ी। वह कला और वास्तुकला के प्रबल संरक्षक थे और उन्होंने सैन्य विजय के माध्यम से अपने राज्य का विस्तार किया। उन्हें आज भी एक महान शासक के रूप में याद किया जाता है।
संदर्भ 
https://tinyurl.com/wm7ctec4
https://tinyurl.com/8rcasbpm
https://tinyurl.com/3kfd9r43
https://tinyurl.com/2nh6mxf9
चित्र संदर्भ 
1. कुमारपाल प्रतिबोध और कुमारपाल को दर्शाता एक चित्रण (ePustakalay, amazon) 
2. सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र जैन धर्म का एक ग्रन्थ है। श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय इसकी शिक्षाओं का अनुसरण करता है। इसको सूर्य पन्नति भी कहते हैं। इसे प्राकृत भाषा में लिखा गया है! को दर्शाता एक चित्रण (Collections - GetArchive) 
3. सोमनाथ मंदिर के खंडहर (1869) को दर्शाता एक चित्रण (Flipkart) 
4. कुमारपाल को दर्शाता एक चित्रण (ePustakalay)