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लोहा, मजबूती का दूसरा नाम बन गया है। आज कई साक्ष्यों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि “भारत, विश्व की उन सबसे पहली संस्कृतियों में से एक है, जिन्होंने सबसे पहले लोहे की खोज की थी और लोहे से बने औजारों तथा हथियारों का प्रयोग करना शुरू किया था।” आपको जानकर हैरानी होगी कि सनातन संस्कृति के प्राचीनतम ग्रंथ “ऋग्वेद” में भी लोहे का संदर्भ मिलता है।
भारत में लोहे का प्रयोग कब और कैसे शुरू हुआ, यह आज भी एक बड़ी बहस का विषय बना हुआ है। कई जानकार मानते हैं कि भारत में लोहे को दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में भारत आने वाले पश्चिमी आप्रवासियों द्वारा लाया गया था। प्राचीन भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद में भी इससे जुड़ी व्याख्यायें मिलती हैं। हालाँकि, हर कोई इस विचार से सहमत नहीं है कि भारत में लोहे को अप्रवासी लेकर आये थे।
20वीं सदी के मध्य में, शोधकर्ताओं ने कहा है कि भारत में लोहे का प्रयोग 700-600 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ था। लेकिन बाद में, नई पुरातात्विक खोजों और रेडियोकार्बन डेटिंग (radiocarbon dating) के उपयोग के आधार पर कुछ शोधकर्ताओं ने यह मानना शुरू कर दिया कि "भारत में लोहे का प्रयोग इससे भी पहले, यानी दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के आसपास शुरू हो गया था।"
शोधकर्ताओं ने विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में अतरंजीखेड़ा और कर्नाटक में हल्लूर जैसे स्थानों में बड़े पैमाने पर लोहे के भंडार को देखा। साथ ही उन्होंने इलाहाबाद के पास कौशांबी, गंगा घाटी में जखेरा और मध्य भारत में नागदा तथा एरण जैसे स्थानों में भी लोहे के प्रयोग के प्रमाणों को दर्ज किया। इन निष्कर्षों के आधार पर शोधकर्ताओं ने यह माना कि भारत में लोहे का इस्तेमाल लगभग 1000 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हो गया होगा। इन सभी साक्ष्यों के आधार पर कई जानकार यह दावे के साथ कहते हैं कि “भारत, शुरू से ही लौह विनिर्माण के क्षेत्र में एक अलग और संभवतः स्वतंत्र केंद्र रहा होगा।”
कर्नाटक में कोमरनाहली नामक एक पुरातात्विक स्थल पर लगभग 1000 ईसा पूर्व की सामग्रियों के तकनीकी अध्ययन से पता चला है कि वहां के लोहार बड़े पैमाने पर लौह कलाकृतियों का निर्माण कर सकते थे। इससे पता चलता है कि वे इससे भी सदियों पहले से लोहे काप्रयोग कर रहे थे।
पुरातत्वविद् राकेश तिवारी द्वारा मध्य गंगा घाटी में की गई हालिया खुदाई से पता चलता है कि भारत में लोहे का काम 1800 ईसा पूर्व में शुरू हुआ होगा। उनके अनुसार मध्य भारतीय क्षेत्र, लोहे का सबसे पहला उपयोग करने वाला क्षेत्र प्रतीत होता है। तिवारी के अनुसार, लोहे का उपयोग और लोहा "मध्य गंगा के मैदान और पूर्वी विंध्य में दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से प्रचलित था।" भारत में गलाए गए लोहे का सबसे पहला प्रमाण 1300 से 1000 ईसा पूर्व का है।
राजस्थान के आहड़ भी में ताम्र पाषाण काल (bronze age) के भण्डारों में लोहे के प्रमाण मिले हैं। इसके आधार पर, कुछ शोधकर्ताओं का सुझाव है कि भारत में लोहे को गलाना 16वीं शताब्दी ईसा पूर्व में शुरू हो गया होगा। गुफकराल, जम्मू और कश्मीर में मेगालिथिक काल (लोहे के उपयोग से एक समय पहले) के रेडियो कार्बन माप, लोहे के प्रयोग की अवधि को 1550-1300 ईसा पूर्व के बीच दिनांकित करते हैं।
इन सभी सबूतों के आधार पर, शोधकर्ताओं का सुझाव है कि भारत में लोहे का उपयोग लगभग 1300/1200 ईसा पूर्व और लगभग 800 ईसा पूर्व में मध्य गंगा घाटी में शुरू हुआ था। हालाँकि, आहड़ में लोहे की ये प्रारंभिक तिथियाँ स्ट्रेटीग्राफी “stratigraphy” (चट्टान और मिट्टी की परतों) की अनिश्चितताओं के कारण विवादित रही हैं। थर्मोलुमिनसेंस डेटिंग पद्धति (thermoluminescence dating method) में बड़ी त्रुटियों के कारण कोमरनाहली की तारीखें भी अनिश्चित हैं।
आज पूरी दुनियां का निर्माण उद्योग पूरी तरह से लौह उत्पादन पर निर्भर है। विश्व के शीर्ष लौह उत्पादक देशों में ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील और चीन का स्थान है, लेकिन कई अन्य देश वैश्विक उत्पादन में भूमिका निभाते हैं।
चलिये अब एक नज़र विश्व के शीर्ष 5 लौह उत्पादक देशों की सूची पर भी डाल देते हैं:
1. ऑस्ट्रेलिया (Australia): ऑस्ट्रेलिया पूरी दुनियाँ में सबसे बड़ा लौह अयस्क खनन करने वाला देश है। 2022 में, इसने 880 मिलियन मीट्रिक टन, प्रयोग योग्य लौह अयस्क का उत्पादन किया था। पिलबरा क्षेत्र (Pilbara region) ऑस्ट्रेलिया और शायद दुनिया में सबसे प्रसिद्ध लौह अयस्क क्षेत्र है।
2. ब्राजील (ब्राजील): 2022 में ब्राजील ने 410 मिलियन मीट्रिक टन, उपयोगी लौह अयस्क का उत्पादन किया था। पारा और मिनस गेरैस (Pará and Minas Gerais) राज्य ब्राजील में मुख्य लौह अयस्क क्षेत्र हैं, जो देश के वार्षिक उत्पादन का 98% लोहा उत्पादन करते हैं।
3. चीन: चीन दुनिया में लौह अयस्क का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, लेकिन यह तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है। 2022 में, उपयोग योग्य अयस्क का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 14 मिलियन मीट्रिक टन कम हो गया। चूँकि चीन बहुत अधिक स्टेनलेस स्टील (Stainless Steel) का उत्पादन करता है, इसलिए उसे दुनिया के 70% से अधिक समुद्री लौह अयस्क का आयात करना पड़ता है।
4. भारत: 2021 में भारत में उपयोगी लौह अयस्क का उत्पादन 273 मिलियन मीट्रिक टन था, जो 2022 में बढ़कर 290 मिलियन मीट्रिक टन हो गया। भारत की सबसे बड़ी लौह अयस्क खनन कंपनी एनएमडीसी (NMDC) का लक्ष्य 2030 तक सालाना 100 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन करना है।
5. रूस: रूस विश्व का पांचवां सबसे बड़ा लौह उत्पादक देश है। हालाँकि इसके उपयोग योग्य लौह अयस्क का उत्पादन 2022 में 6 मिलियन मीट्रिक टन तक गिर गया, जबकि इसकी लौह सामग्री 66.7 मिलियन मीट्रिक टन से घटकर 63 मिलियन मीट्रिक टन हो गई। 2022 में, यूक्रेन के खिलाफ युद्ध से संबंधित वैश्विक प्रतिबंधों के कारण रूस के लौह अयस्क निर्यात में काफी गिरावट आई।
आपको जानकर हैरानी होगी कि कई आपसी सीमा विवादों और तनावों के बीच भी चीन, भारत के लौह अयस्क का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। पिछले साल अप्रैल से नवंबर (आठ महीने की अवधि) तक, भारत ने चीन को लगभग 24.75 मिलियन टन लौह अयस्क का निर्यात किया। यह पिछले वर्ष की तुलना में 400% की वृद्धि है।
लौह अयस्क का उपयोग मुख्य रूप से स्टील बनाने के लिए किया जाता है और चीन इसका एक बड़ा उपभोक्ता है। दिलचस्प बात यह है कि भारत और चीन दोनों हॉट रोल्ड कॉइल्स (hot rolled coils) जैसे तैयार स्टील उत्पादों के लिए वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा करते हैं। इस वित्तीय वर्ष में अब तक, भारत का लगभग 95% लौह अयस्क निर्यात चीन को ही हुआ है, जबकि बहुत थोड़ी मात्रा में इंडोनेशिया (Indonesia), मलेशिया (Malaysia) और दक्षिण कोरिया (South Korea) को भेजा गया है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/vw89ephc
http://tinyurl.com/6yswj5xt
http://tinyurl.com/2p9yty5h
http://tinyurl.com/52spua9t
चित्र संदर्भ
1. पिघलते लोहे और जंग लगे औजारों को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr, wikimedia)
2. प्रारंभिक भारत में युद्ध के दौरान प्रयोग होते औजारों को संदर्भित करता एक चित्रण (World History)
3. पिघलते लोहे को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
4. हजारा विश्वविद्यालय के पुरातत्वविदो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. लौह अयस्क निर्यात के आधार पर देशों की सूची को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)