मेरठ की बेगम समरू के पुत्र डाइस सोम्ब्रे का जीवन क्यों था विरोधाभासों का संग्रह?

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
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मेरठ की बेगम समरू के पुत्र डाइस सोम्ब्रे का जीवन क्यों था विरोधाभासों का संग्रह?

बेगम समरू को हमारा शहर मेरठ तो पहचानता ही हैं। लेकिन, आज हम उनके पुत्र डाइस सोम्ब्रे (Dyce Sombre) के जीवन पर चर्चा करेंगे। दरअसल, उनकी जिंदगी के निर्णायक मोड़ पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें नॉन कंपोज़ मेंटिस(non compos mentis) या ‘पागल’ घोषित कर दिया था।
कर्नल, डेविड ऑक्टरलोनी डाइस सोम्ब्रे(David Ochterlony Dyce Sombre) एक बहुभाषी और संस्कृति-विरोधी युवा भारतीय राजकुमार था। जबकि, लंदन डेली न्यूज(London Daily News) ने उसे “हाफ–कास्ट क्रोएसस (Half-caste Croesus)” अर्थात, ‘मिश्रित जाति का अमीर’ कहा था। डाइस पहले ही, दिल्ली के उत्तर में स्थित अपने समृद्ध साम्राज्य को संदिग्ध आधार पर जब्त कर लेने का अपमान झेल चुका था। यह जब्ती दरअसल, ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी। उनका जीवन विरोधाभासों का एक संग्रह था। उनका पालन-पोषण, एक पूर्व मुस्लिम वैश्या अर्थात बेगम समरू द्वारा किया गया था। लेकिन, वह एक धर्मनिष्ठ रोमन कैथोलिक (Roman Catholic) था। लंदन में निर्वासित होने के बाद, उन्हें सज्जनों के क्लबों(Clubs) से बहिष्कृत कर दिया गया। साथ ही, सड़कों पर उन्हें एक “बदमाश” के रूप में अपमानित किया गया। लेकिन, वह फिर भी ‘संसदों की जननी’ अर्थात, ब्रिटेन(Britain) की संसद में चुने जाने वाले पहले एशियाई और केवल दूसरे गैर–श्वेत नेता थे।
फिर भी, जैसे ही ऐसा महसूस हुआ कि, वह उच्च विक्टोरियन नस्लीय पूर्वाग्रह (Victorian racial prejudice) की सीमा को तोड़ने में सफल हो गए हैं, डायस सोम्ब्रे का चुनाव ‘भ्रष्टाचार’ का झूठा आरोप लगाते हुए, रद्द कर दिया गया। इससे उनकी शादी भी टूट गई और उनकी पत्नी के परिवार ने उन्हें पागल कह दिया। साथ ही, उन्होंने इनकी संपत्ति पर भी नियंत्रण कर लिया। इसके पश्चात, पेरिस (Paris) में अपने निर्वासन के दौरान, उन्होंने यह दलील दी थी कि, उनकी बेवफा पत्नी ने उन्हें पागल घोषित करने हेतु, डॉक्टरों को रिश्वत दी थी, ताकि वह उसके पैसे जब्त कर सके। परंतु, फिर भी वह इसका अधिकांश हिस्सा वापस पाने में हर बार असफल रहा।
उन्होंने मिस्टर डाइस सोम्ब्रे रिफ्यूटेशन ऑफ द चार्ज ऑफ लूनेसी (Mr Dyce Sombre’s Refutation of the Charge of Lunacy) नामक एक किताब भी प्रकाशित की थी। क्योंकि, उन्हें लगा था कि, यह किताब पढ़कर शायद कोई उनकी मदद करेगा। वह अपने भाग्य एवं संपत्ति को वापस पाने के प्रयास में, अगले आठ वर्षों तक असफल रूप से मुकदमेबाजी करता रहा। हालांकि, इस मामले को उनके सनकी और अनैतिक व्यवहार, वैश्याओं के उत्तराधिकार और खुद को सार्वजनिक रूप से उजागर करने के आरोप से, कभी मदद नहीं मिली। अंततः वह लंदन के एक सस्ते होटल में रहते हुए, निराश और अकेलेपन का सामना करते हुए सन 1851 में मृत्यु को प्राप्त हो गये । अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को बचाने के लिए वह अपनी मृत्यु से पहले भी, आखिरी बार प्रयास कर रहा था। हालांकि, उनकी मृत्यु के पश्चात ही डायस सोम्ब्रे के वकीलों ने कई मामले जीते। इससे साबित हुआ कि, उनके साथ वास्तव में अन्याय हुआ था, और उनके वसीयत प्रबंधकों को उनकी अधिकांश संपत्ति वापस लौटा दी गई।
वास्तव में, अक्तूबर 1836 में उन्होंने सरधना छोड़ दिया, और वहां वे कभी भी वापस नहीं लौटे। 1837 में वे चीन(China) में गये और फरवरी 1838 में कलकत्ता वापस आ गए। इसके बाद, वे इंग्लैंड(England) के लिए रवाना हुए और उसी वर्ष अगस्त में ब्रिस्टल(Bristol) भी गए थे। कलकत्ता में उनके आगमन ने बहुत लोगों का ध्यान आकर्षित किया। क्योंकि, वह अपने साथ व्यापक धन और शिक्षा तथा जीवन के रीति-रिवाजों और विचार के तौर-तरीकों में पूरी तरह से पारंगत होने की प्रतिष्ठा लेकर आए थे। और जल्द ही वह उस समय के सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति बन गए। परंतु,वर्ष 1836 में बेगम समरू की मृत्यु पर, ईस्ट इंडिया कंपनी ने डायस सोम्ब्रे को उनका ‘वैध उत्तराधिकारी’ के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया। और, अंग्रेजों ने सरधना राज्य पर कब्ज़ा कर लिया। एक बेदखल भारतीय राजकुमार होने के नाते, उनके पास अदालतों या, असफल होने पर, संसद से न्याय पाने के लिए, इंग्लैंड जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
डाइस सोम्ब्रे की त्रासदी यह थी कि, संस्कृति और प्रथाओं की तरलता, एवं विश्वासों की बहुलता जो कि मुगल काल के अंत तक, भारत में संभव थी, लंदन में पूरी तरह से असंभव थी। क्योंकि, प्रारंभिक-विक्टोरियन(रानी विक्टोरिया[Queen Victoria(1837-1901)] का समयकाल) लंदन की पदानुक्रम-जुनूनी दुनिया में, अपने दृढ़ सामाजिक निश्चितताओं और बढ़ती कठोर नस्लीयता और धार्मिक सीमाओं के साथ यह बातें मायने नहीं रखती थी।
जबकि, जिन विचारों के लिए डायस सोम्ब्रे को नीचा दिखाया गया था, उनमें से कई विचार हमारे देश भारत में अपेक्षाकृत अचूक प्रतीत होते थे।

संदर्भ
http://tinyurl.com/2sj4wza2
http://tinyurl.com/mutwdx8s
http://tinyurl.com/38wrrpws

चित्र संदर्भ

1. मेरठ की बेगम समरू और पुत्र डाइस सोम्ब्रे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. डाइस सोम्ब्रे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मिस्टर डाइस सोम्ब्रे रिफ्यूटेशन ऑफ द चार्ज ऑफ लूनेसी को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
4. बेगम समरू को अपने पुत्र डाइस सोम्ब्रे के साथ संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)