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                                            हस्तशिल्प उद्योग, रामपुर के महत्वपूर्ण कुटीर उद्योगों में से एक है, जो कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में समाज के कमजोर वर्ग के लिए रोजगार को उत्पन्न करता है। तो चलिए चर्चा करते हैं रामपुर के हस्तशिल्प से जुड़े रोज़गार, अर्थव्यवस्था, आय आदि जैसे कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर।
शुरुआत से ही कारीगरों द्वारा केवल उत्पादन प्रक्रिया को महत्व दिया गया और बड़े पैमाने पर उत्पादन किया गया। वे हमेशा विपणन की गतिविधियों के लिए बिचौलियों पर निर्भर रहते हैं, तथा व्यापारियों और बिचौलियों द्वारा शोषण के कारण वे आर्थिक रूप से कमजोर रह जाते हैं। आर्थिक विकास और इससे जुड़ी गतिविधियां, ज्ञान वृद्धि की क्रिया से शुरू होती हैं क्योंकि रचनात्मक उत्पादन के साथ प्रभावी विपणन करने की कला को सीखा जा सकता है। ज्ञान एकमात्र ऐसा स्रोत है जो गरीबी से लोगों को मुक्त करता है और उनके जीवन में समृद्धि लाकर उन्हें सशक्त बनाता है।
बात की जाए मृद्भांड की तो देखा गया है कि मृद्भांड से आमदनी चलाने वाले परिवार मिलकर इसके निर्माण का कार्य करते हैं। महिला सदस्य उत्पादन की प्रक्रिया देखती हैं, जबकि पुरुष सदस्य मुख्यतः वित्त, विपणन और बाहर की गतिविधियों का ध्यान रखते हैं। महिला सदस्य सबसे पहले परिवार के पोषण तथा बच्चों के पालन का ख्याल रखती हैं और अपने खाली समय में वे उत्पादन का कार्य पूरा करती हैं। रामपुर के क्षेत्र में संसाधन उपलब्ध होने के कारण उत्पादन के लिए लागत भी कम है। यह उद्योग दोनों घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार से कमाता है। शिल्प बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जाता है, ताकि कारीगरों का पूर्णकालिक काम हो। इस उद्योग के लिए पूंजी निवेश कम है, इसलिए कारीगर छोटे पैमाने पर अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
नौकरी से प्राप्त आय कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे – नौकरी का स्थान, समय, मौसम की स्थिति, समूह जिसमें वे कार्यरत हैं, उत्पादन की प्रक्रिया में प्रयुक्त तकनीक, नौकरी में शामिल जोखिम आदि। मृद्भांड से जुड़ी आय भी मौसम और त्योहारों आदि पर निर्भर करती है। मृद्भांड निर्माण में शामिल 305 व्यक्तियों पर किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार एक-तिहाई लोगों की मासिक आय 5,000 रूपए या उससे कम पायी गई, एक तिहाई की मासिक आय 5,000 से 10,000 रूपए की बीच पाई गयी, वहीँ 6% लोगों की मासिक आय 20,000 या उससे ज़्यादा पाई गयी। कारीगरों द्वारा दिया गया यह आंकड़ा त्यौहार के समय की बिक्री का है। लेकिन नियमित रूप से वे नहीं जानते कि वे कितना कमाते हैं। दैनिक या साप्ताहिक बेचे जाने वाले बर्तनों की कमाई वे अपने घर के व्यय के लिए खर्च करते हैं। मिट्टी के बर्तनों के उत्पाद बाजार में अच्छे मूल्य नहीं ला रहे हैं चूंकि मिट्टी के बर्तन मौसमी हैं और विशेष अवधि के दौरान इस्तेमाल किये जाते हैं।
कारीगरों की यह स्थिति आज इसलिए है क्योंकि वे बदलते युग के साथ विपणन की नई तकनीकों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। इस कारण उन्हें न चाहते हुए भी बिक्री के लिए बिचौलियों का साथ लेना पड़ता है जो इन तकनीकों से परिचित हैं। कई कारीगरों को नए आधुनिक मोबाइल चलाने भी नहीं आते और कुछ ने कभी इन्टरनेट का नाम भी नहीं सुना। व्यावसायिक प्रशिक्षण सत्र, प्रौद्योगिकी तक आसान पहुँच, डिजिटल प्रचार आदि के माध्यम से इन कारीगरों के जीवन में एक नया बदलाव लाया जा सकता है। अतः इन कारीगरों की स्थिति में तभी सुधार आ पाएगा जब इन्हें प्रचार एवं विपणन की नई तकनीकों से अवगत कराया जाये।
1. http://granthaalayah.com/Articles/Vol4Iss4/02_IJRG16_SE04_02.pdf