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हमारे रामपुर समेत देश के कई शहरों में महाशिवरात्रि का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रामपुर में “श्री पातालेश्वर महादेव मंदिर” विशेष रूप से अपने उत्सवों के लिए जाना जाता है। हालाँकि, भारत में केवल कुछ ही मंदिरों में “भस्म आरती” नामक एक अनोखी रस्म पूरी की जाती है, जिसमें उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। इस अनुष्ठान में चिता की राख का उपयोग किया जाता है। चलिए आज महाशिवरात्री के अवसर पर, भस्म आरती के महत्व और महाशिवरात्री के उत्सव के पीछे के गहरे अर्थों को समझने का प्रयास करते हैं।
भारत के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत प्रतिष्ठित और प्राचीन मंदिर है। यह केवल एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि इसका इतिहास और संस्कृति भी समृद्ध रही है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर, महादेव को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसे भगवान शिव का सबसे पवित्र घर माना जाता है। "महाकाल" शब्द का अनुवाद "महान समय" होता है, जो भगवान शिव की शाश्वत प्रकृति का प्रतीक है। महाकालेश्वर मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां लिंग का मुख दक्षिण की ओर है, जिसे मृत्यु के देवता यमराज की दिशा के रूप में जाना जाता है।
यह मंदिर हिंदुओं के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखता है। मान्यता है कि यहां तीर्थयात्रा करने से किसी भी व्यक्ति के सभी पाप धुल सकते हैं और उसे मोक्ष (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) मिल जाती है। ऐतिहासिक रूप से, मंदिर का उल्लेख पुराणों सहित विभिन्न ग्रंथों में मिलता है। सदियों से, मंदिर का कई बार नवीकरण और विस्तार किया गया हैं, जिसके परिणामस्वरूप मंदिर में आपको कई स्थापत्य शैलियों का मिश्रण भी देखने को मिल जायेगा।
यह मंदिर उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक उल्लेखनीय उदाहरण माना जाता है, जिसमें पांच-स्तरीय शिखर, विस्तृत नक्काशी और एक बड़ा प्रवेश द्वार है। सबसे भीतरी गर्भगृह में भगवान शिव का लिंग है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण, भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए एक शांत वातावरण प्रदान करता है। यहां भस्म आरती नामक एक अनोखा अनुष्ठान किया जाता है, जो दुनिया भर के भक्तों को आकर्षित करती है।
महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती के दौरान शिव लिंगम पर पवित्र राख, या "भस्म" का लेप लगाया जाता है। अनुष्ठान के दौरान, महिलाओं को अपनी आंखें ढकने के लिए कहा जाता है, क्योंकि ज्योतिर्लिंग राख से ढंका होता है, जो भगवान के नग्न रूप का प्रतीक है। भस्म आरती में गाय के गोबर और विभिन्न पेड़ों की शाखाओं से जलाई गई पवित्र अग्नि से बनाई गई राख का उपयोग मृत्यु के देवता “महाकाल” को जगाने के लिए किया जाता है। इस अवर्णनीय घटना को देखने के लिए भक्त बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं।
नीचे भस्म आरती का एक विस्तृत अवलोकन दिया गया है:
➦ समय: भस्म आरती प्रतिदिन सुबह 4:00 बजे शुरू होती है। इस पवित्र समारोह में भाग लेने के लिए भक्त भोर से पहले उठ जाते हैं।
➦ तैयारी: अनुष्ठान की शुरुआत मंदिर के पुजारी और परिचारकों द्वारा आरती की तैयारी के साथ होती है। इसके बाद धुनी से पवित्र राख, या "विभूति" इकट्ठा की जाती है। धुनी एक पवित्र अग्नि होती है, जो मंदिर के भीतर लगातार जलती रहती है।
➦ वस्त्र: भस्म आरती में भाग लेने के इच्छुक लोगों को अनुष्ठान की पवित्रता बनाए रखने के लिए एक विशिष्ट ड्रेस कोड का पालन करना पड़ता है, जिसमें आमतौर पर पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनने की सलाह दी जाती है।
➦ प्रवेश और सुरक्षा: उच्च मांग और सीमित स्थान के कारण भस्म आरती में सीमित लोगों को ही प्रवेश करने दिया जाता है। भक्तों को आरती में शामिल होने के लिए विशेष पास लेना जरूरी है।
➦ आरती प्रक्रिया: भस्म आरती में कई अनुष्ठान किये जाते हैं, जिनमें वैदिक मंत्रों का जाप, पवित्र जल (अभिषेक) और शिव लिंगम पर विभूति का लेपन करना शामिल है। इस दौरान वातावरण भक्ति से भर जाता है क्योंकि पुजारी इन अनुष्ठानों को अत्यंत समर्पण के साथ करते हैं।
➦ भक्तों की भागीदारी: मुख्य अनुष्ठान पुजारियों द्वारा आयोजित किया जाता है, और भक्तों को निरीक्षण करने और प्रार्थना करने की अनुमति होती है। इस दौरान भस्म आरती देखना और भगवान शिव का आशीर्वाद लेना बेहद शुभ माना जाता है।
➦ राख वितरण: आरती के बाद, भक्तों को प्रसाद के रूप में पवित्र राख की एक छोटी मात्रा दी जाती है। कई लोग मानते हैं कि इस राख को अपने माथे या शरीर पर लगाने से आध्यात्मिक शुद्धि और सुरक्षा मिलती है। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती सुबह, दोपहर और शाम सहित पूरे दिन में विभिन्न समय पर की जाती है, जिससे भक्तों को इसमें शामिल होने के कई अवसर मिलते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर परिसर तीन मंजिलों में फैला हुआ है, जिनमे से प्रत्येक में एक अलग देवता ( महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर महादेव और नागचंद्रेश्वर) विराजमान हैं।
महाकाल मंदिर में एक अखंड ज्योति भी है, जिसे “अखंड धूना” के नाम से जाना जाता है। ओंकारेश्वर मंदिर के पीछे दूसरी मंजिल पर स्थित इस ज्योति को वैदिक मंत्रों के साथ प्रज्वलित रखा जाता है। सबसे ऊपरी मंजिल पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर साल में केवल एक बार नाग पंचमी पर खुलता है। महा शिवरात्रि के अवसर पर भस्म आरती को देख पाना वाकई में सबसे सौभाग्यशाली व्यक्ति के ही नसीब में होता है। महा शिवरात्रि अपने आप में ही गहरे अर्थ रखती है। हमारी सांस्कृतिक प्रथाएँ और त्यौहार विशिष्ट दैवीय ऊर्जाओं से गहराई से जुड़े हुए हैं। शिव एक ऐसी अधिष्ठात्री शक्ति हैं।
शिव, शब्द को श (शरीर), ई (जीवन देने वाली ऊर्जा), और व (गति) में विभाजित किया जा सकता है। 'ई' के बिना, शिव “शव” रह जाते हैं, जो एक निर्जीव शरीर का प्रतीक है। इस प्रकार, शिव नाम ही अपने आप में जीवन और क्षमता का प्रतिनिधित्व करता हैं, और सार्वभौमिक आत्मा या चेतना का प्रतीक हैं।
सदियों से, भगवान शिव के रूप ने इतिहासकारों और भक्तों को समान रूप से मंत्रमुग्ध किया हुआ है। राख से सजी, बाघ की खाल, अर्धचंद्र, उलझे बाल और उसमें से बहती गंगा, एक हाथ में त्रिशूल और दूसरा शास्त्रीय मुद्रा में भगवान् शिव की छवि किसी को भी आश्चर्यचकित कर सकती है। उनकी तीसरी आँख और गले में साँप उनके रहस्य को और भी बढ़ा देते हैं।
भगवान शिव को न केवल एक देवता माना जाता है, बल्कि ब्रह्मांड को बनाए रखने वाली ऊर्जा, यानी शिव तत्व के रूप में भी जाना जाता है। 'रात्रि' शब्द, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक समस्याओं से आराम और राहत का प्रतीक है। यह एक ऐसा समय होता है जब सभी गतिविधियां बंद हो जाती हैं और शांति बनी रहती है, जिससे दैनिक चिंताओं से राहत मिलती है। इसलिए, शिवरात्रि पारलौकिक दिव्य चेतना की रात का प्रतीक है जो चेतना की सभी परतों को शांत कर देती है। यह वही समय होता है जब शिव और शक्ति के प्रतीकात्मक विलय के कारण वातावरण अधिक जीवंत हो जाता है।
यह रात गहरी शांति पाने के लिए जानी जाती है, जिससे इस दौरान किया गया कोई भी ध्यान बेहद प्रभावशाली हो जाता है। यह ज्योतिषीय रूप से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सूर्य और चंद्रमा का एक सीध में आना मन को शांत कर देता है। महा शिवरात्रि भौतिक और आध्यात्मिक के मिलन का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिन, शिव तत्व, जो आमतौर पर ऊंचा होता है, नीचे उतरता है और पृथ्वी तत्व को छूता है, जिससे यह हमारे शरीर के भीतर हमारी आंतरिक चेतना को जागृत करने का एक उपयुक्त समय बन जाता है। पृथ्वी के साथ सूक्ष्म सर्वव्यापी ऊर्जा का यह मिलन एक गहन और समृद्ध ध्यान अनुभव प्राप्त करने में सहायता करता है।
महा शिवरात्रि के दौरान भक्त उपवास करते हैं, ध्यान करते हैं और शिव ऊर्जा का आनंद लेते हैं। इस समय के दौरान ध्यान मन और बुद्धि से परे एक क्षेत्र तक पहुंच की अनुमति देता है, जिससे शून्यता और प्रेम से भरे स्थान का अनुभव होता है। यह अनुभव हमें चेतना के चौथे स्तर तक ले जाता है, जिसे शिव भी कहा जाता है।
हमारे रामपुर के भमरौआ में श्री पातालेश्वर महादेव शिव मंदिर में महाशिवरात्रि के शुभवसर पर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल देखने को मिलती है। जहां केवल हिंदू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भी शिव के दर्शन करने आते हैं, प्रसाद चढ़वाते हैं और भंडारा ग्रहण करते हैं। मुस्लिम आबादी के बीच बने इस मंदिर का निर्माण करीब 200 साल पहले रामपुर के तत्कालीन नवाब द्वारा करवाया था। रामपुर के ग्राम भमरौआ में स्थित इस मंदिर के स्थान पर पहले बंजर भूमि थी। सन 1788 में लोगों को महादेव शिवलिंग का पता चला। 1822 में रामपुर के तत्कालीन नवाब अहमद अली खां ने यहां पर मंदिर बनवाने की योजना तैयार की।
संदर्भ
http://tinyurl.com/mwk27vw4
http://tinyurl.com/4prkk7c7
http://tinyurl.com/yc26wwz7
http://tinyurl.com/3vj6kb75
चित्र संदर्भ
1. महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती के दौरान शिव लिंगम पर दूध चढ़ाते पुजारियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में शिव लिंगम को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
5. भस्म स्नान को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
6. रामपुर के भमरौआ में श्री पातालेश्वर महादेव शिव मंदिर को दर्शाता चित्रण (facebook "Pataleshwar Mahadev")