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रामपुर में पधारने वाला कोई भी पर्यटक रामपुर की शान मानी जाने वाली 'जामा मस्जिद' के दीदार किए बिना वापस नहीं लौटना चाहता। कहा जाता है कि इस मस्जिद के निर्माण की शुरुआत 1766 में, रामपुर राज्य के पहले शासक ‘नवाब फैजुल्लाह खान’ के द्वारा की गई थी, जिन्हें रामपुर शहर का संस्थापक भी माना जाता है। इसके लगभग एक सौ आठ वर्ष, यानी लगभग पूरी एक सदी से भी अधिक समय के बाद, नवाब ‘कल्ब अली खान’ ने इस मस्जिद के बगल में एक और अधिक भव्य मस्जिद का निर्माण कराया था। उन्होंने अपने पिता, नवाब यूसुफ अली खान बहादुर के बाद अपना पदभार संभाला और अपने पिता के नेक कामों को जारी रखा। उन्होंने रामपुर में पुस्तकालय का विस्तार किया, जामा मस्जिद का निर्माण किया और शिक्षा, सिंचाई, वास्तुकला, साहित्य तथा कला को भी बढ़ावा दिया।
हाजी नवाब कल्ब अली खान बहादुर (1832 - 23 मार्च 1887) 1865 से 1887 तक रामपुर रियासत के नवाब रहे थे। वह अरबी और फ़ारसी भाषा पढ़ और लिख सकते थे। जब लॉर्ड जॉन लॉरेंस (Lord John Lawrence) भारत के वायसराय थे, तब वह एक काउंसिल सदस्य भी थे। उन्होंने 300,000 रुपयों की लागत लगाकर रामपुर में जामा मस्जिद का निर्माण या यूँ कहें कि पुनर्निर्माण कराया था। धीरे-धीरे जामा मस्जिद के आसपास का क्षेत्र, एक पर्यटन के केंद्र के रूप में विकसित हो गया और इसके चारों ओर एक बड़ा बाजार विकसित किया गया, जिसे आज शादाब मार्केट के नाम से जाना जाता है। मस्जिद के पास सर्राफा नामक एक बड़ा आभूषण बाजार भी स्थित है। मस्जिद की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए व्यापारिक वर्ग को इन बाज़ारों में दुकानें किराए पर दी गईं। इन दुकानों के मालिक हिंदू और मुस्लिम दोनों हैं। यह इस क्षेत्र में मौजूद सांप्रदायिक सौहार्द को दर्शाता है।
रामपुर की जामा मस्जिद वास्तुकला का एक बेहद शानदार नमूना है। यह कुछ हद तक दिल्ली की जामा मस्जिद जैसी दिखाई देती है और इसे अनूठी मुगल शैली में बनाया गया है। इस मस्जिद में लोगों के प्रवेश और निकास के लिए कई दरवाजे हैं। इसमें तीन बड़े गुंबद और स्वर्णिम शीर्ष वाली चार ऊंची मीनारें हैं, जो इसे शाही और भव्यता प्रदान करती हैं। नवाब फैजुल्लाह खान ने शहर के चारों ओर कई अन्य द्वार भी बनवाये। ये द्वार, जैसे शाहबाद गेट, नवाब गेट और बिलासपुर गेट, लोगों के शहर के अंदर और बाहर आने के मुख्य रास्ते हैं।
मस्जिद का अंतिम समापन कार्य और उद्घाटन सन 1874 में किया गया। मस्जिद के मुख्य बुलंद प्रवेश द्वार पर एक अंतर्निर्मित घंटाघर (Clock Tower) भी है। इस घंटाघर में लगी घड़ी को ब्रिटेन (Britain) से भारत लाया गया था। आज यह भारत में औपनिवेशिक काल की सूचक हैं। इस घड़ी को प्रवेश द्वार के दोनों तरफ से देखा जा सकता है। माना जाता है कि इस घड़ी को लगाने का मूल उद्येश्य नमाज अदा करने का समय देखना था। हालांकि अंग्रेज़ी घड़ी के प्रचलन से पहले भी भारत की अनेक मस्जिदों में समयानुसार सभी नमाज़ अदा करते थे, जिसके लिए सौर घड़ी का प्रयोग किया जाता था। भारत में दिल्ली की जामा मस्जिद और फतेहपुरी मस्जिद सहित कई मस्जिदों में सौर घडि़यां लगायी गई हैं।
रामपुर की जामा मस्जिद के परिसर में एक इमामबाड़ा भी है, जहां शहीद इमाम हुसैन की याद में मुहर्रम के संस्कार आयोजित किए जाते हैं। पहली नजर में इस मस्जिद का गुंबद, राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह के गुंबद जैसा प्रतीत होता है। मस्जिद के प्रवेश द्वार पर सुंदर नक्काशी की गई है। इस पूरी मस्जिद की डिजाइन को पूरे सब्र और बारीकी से तराशा गया है।
हालांकि सन 1913 में नवाब हामिद अली खान द्वारा इस मस्जिद का पुनः निर्माण, सौंदर्यीकरण और नवीकरण कराया गया था। वर्तमान समय में इसका संचालन रामपुर की धर्मार्थ समिति द्वारा किया जाता है। इसी समिति के द्वारा आज भी इसका संरक्षण और सौंदर्यीकरण किया जाता है। पहले के समय में यहां पर मुस्लिम समुदाय द्वारा मस्जिद के अंदर और बाहर सड़कों पर नमाज अदा की जाती थी। लेकिन हालिया वर्षों में सरकार के फरमान और समुदाय के नेताओं के आग्रह के बाद नमाज़ को मस्जिदों के अंदर ही अदा किया जाने लगा है। यह मस्जिद सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी कायम करती है। इसके अलावा रामपुर की प्रसिद्ध रज़ा लाइब्रेरी भी जामा मस्जिद से केवल 200 मीटर की दूरी पर स्थित है। रामपुर में जामा मस्जिद के समान ही एक और मस्जिद है, जिसे मोती मस्जिद के नाम से जाना जाता है। दोनों मस्जिदें आपस में काफी हद तक मिलती-जुलती हैं। मोती मस्जिद सफेद संगमरमर से बनी है, तथा बिल्कुल मोती की तरह दिखाई देती है, इसलिए इसे मोती मस्जिद कहा जाता है। मोती मस्जिद का निर्माण वर्ष 1711 में नवाब फैज़ुल्लाह खान द्वारा करवाया गया था, हालांकि इसका निर्माण कार्य नवाब हामिद अली खां ने पूरा करवाया था।
जामा मस्जिद की भांति मोती मस्जिद के मुख्य द्वार पर भी उत्कृष्ट नक्काशी की गई है। इस मस्जिद की वास्तुकला पर मुगलिया वास्तुकला का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। मोती मस्जिद में कुल चार लंबी मीनारें तथा तीन गुम्बद मौजूद हैं। वर्ष 1912 में नवाब हामिद अली खां ने जामा मस्जिद का जीर्णोद्धार कराया, तथा इस कार्य को मोती मस्जिद को देखकर ही पूरा किया गया। मोती मस्जिद को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका निर्माण किन कल्पनाओं के साथ कराया गया होगा।
https://shorter.me/0E2XJ
https://shorter.me/T11EH
संदर्भ
https://shorter.me/SzqkJ
चित्र संदर्भ
1. जामा मस्जिद के स्वर्णिम गुंबद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सर कल्ब अली खान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जामा मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. रामपुर की मोती मस्जिद को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. नजदीक से रामपुर की जामा मस्जिद के गुंबद को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)