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रामपुर की वास्तुकला में हम एक कलाकृति बड़ी आसानी से देख लेते हैं जो कि एक विशेष प्रकार के पत्ते की तरह दिखाई देती है। यह पत्ता अकेंथस (Acanthus) नाम के एक पेड़ का है और इसे अकेंथस पत्ता भी कहा जाता है अब प्रश्न यह है की यह पत्ता आया कहाँ से जबकि ऐसी कलाकृति प्राचीन भारत के महलों आदि पर दिखाई नहीं देती। तो यदि हम वास्तुकला में इस पत्ते का प्रयोग देखना चालू करते हैं तो यह 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीक वास्तुकला में इस्तेमाल किए गए थे, खासकर के अपोलो एपिकुरियस (Apollo Epicurius) के मंदिर में लगभग 450 से 420 ईसा पूर्व तक। इन पत्तियों को कैथरीन के रूप में जाना जाता था तथा ये ग्रीक स्तंभ की एक शैली पर विस्तृत रूप से, या शीर्ष पर दिखाई देते हैं। उनके कुछ किनारों को कसकर मोड़ दिया जाता है। यूनानी वास्तुकला में भी इन पत्तियों के इस्तेमाल को देखा जा सकता है। यह कला यूनान से चलकर दुनिया भर में अकेंथस पत्तियों की एक प्रमुख पुनर्नवीनीकरण आकृति या कलाकृति का तत्व बन गया।
यूनानियों की तरह, रोम ने अन्य वास्तुशिल्प सजावट में अकेंथस का प्रयोग किया। युरोपियों ने इस कला का प्रचार प्रसार किया तथा दुनिया भर में अपने अंतर्गत आने वाले देशों में इस कला का विस्थापन किया। भारत में यह कला सर्व प्रथम मुगलों द्वारा विदेशियों के संपर्क में आने के बाद प्रयोग में लायी गयी थी। इलाहबाद, मुंबई, दिल्ली आदि स्थानों पर इस कलाकृति को देखा जा सकता है। रामपुर लम्बे समय तक यूरोपियों के प्रभाव में रहा तथा यहाँ पर सारसैनिक कला में कई भवन बनवाये गए जिस कारण यहाँ पर ये पत्तियां यहाँ की इमारतों पर दिखाई दे जाती हैं।
प्रथम चित्र में रामपुर के रज़ा पुस्तकालय पर और द्वितीय चित्र में जामा मस्जिद पर अकेंथस पत्ते की सजावट को देखा जा सकता है।
1. https://study.com/academy/lesson/acanthus-leaves-architecture-design-symbolism.html
2. http://buffaloah.com/a/DCTNRY/a/acan.html
3. https://www.britannica.com/art/acanthus-ornamental-motif