रामपुर सहसवान घराना: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक अमूल्य उपहार

ध्वनि I - कंपन से संगीत तक
01-07-2024 10:09 AM
Post Viewership from Post Date to 01- Aug-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
1980 134 0 2114
* Please see metrics definition on bottom of this page.
रामपुर सहसवान घराना: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक अमूल्य उपहार

उत्तर प्रदेश के हृदय में बसा, ऐतिहासिक रामपुर शहर लंबे समय से भारत की समृद्ध संगीत विरासत का गढ़ रहा है। रामपुर की संगीत विरासत, महान ‘उस्ताद इनायत हुसैन खान’ द्वारा स्थापित सहसवान घराने से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। हालांकि संगीत के क्षेत्र में रामपुर शहर की विरासत को समझने से पहले हमारे लिए 'कर्नाटक संगीत' की संपन्नता से परिचित होना उचित रहेगा, जिसने सदियों से संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया हुआ है।
कर्नाटक संगीत, दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे आकर्षक संगीत परंपराओं में से एक है, जिसकी शुरुआत भारत के दक्षिणी क्षेत्रों से हुई थी। ऐसा माना जाता है कि "कर्नाटक" शब्द की जड़ें संस्कृत शब्द "कर्णेशुअथति" में निहित हैं, जिसका अर्थ "कर्णों अर्थात कानों को सुकून देने वाला" होता है। प्राचीन युग से लेकर आज तक कर्नाटक संगीत समय की कसौटी पर खरा उतरा है। यहाँ कि संगीत का यह दुर्लभ रूप मध्य एशिया और फारस के प्रभावों से भी काफी हद तक अप्रभावित रहा है। उत्तर भारतीय संगीत पर भी कर्नाटक संगीत का गहरा प्रभाव पड़ा है। कर्नाटक संगीत के प्रदर्शनों की सूची को विभिन्न समय अवधियों में विभिन्न संगीतकारों की रचनाओं द्वारा समृद्ध किया गया है।
संस्कृत, कर्नाटक संगीत में इस्तेमाल की जाने वाली प्राथमिक भाषा है, हालाँकि तेलुगु, कन्नड़, तमिल और मलयालम जैसी अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी कर्नाटक संगीत की रचनाएँ आम हो गई हैं।
यद्यपि संगीत को धर्म, जाति या पंथ की सीमाओं से ऊपर माना जाता है, वहीँ कर्नाटक संगीत की उत्पत्ति वैदिक शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं में निहित मानी जाती है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के अन्य रूपों की तरह, कर्नाटक संगीत की विशेषता भी भक्ति और माधुर्य है। कर्नाटक संगीत मुख्य रूप से गायन पर केंद्रित है, जिसमें अधिकांश रचनाएँ गाने के लिए लिखी जाती हैं। वाद्ययंत्रों पर बजाए जाने पर भी संगीत के इस रूप का उद्देश्य गायकी (गायन) शैली का अनुकरण करना होता है। रागों (संगीतमय पैमाने) और थालों (ताल) पर जोर देना इस संगीत परंपरा की एक पहचान है। कलाकार इन संरचनाओं का सख्ती से पालन करते हैं। कर्नाटक संगीतकार मुख्य रूप से संगीत के वक्रों पर महारत के लिए प्रसिद्ध हैं। कर्नाटक संगीत परंपरा में प्रसिद्ध संगीतकारों की एक समृद्ध ताने-बाने की झलक मिलती है, जिनमें से प्रत्येक ने इस शैली पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। पुरंदर दास, जिन्हें अक्सर "कर्नाटक संगीत के जनक" के रूप में जाना जाता है, को कर्नाटक संगीत के बुनियादी पाठों के निर्माण और राग "मायामालवगौला" की शुरूआत सहित उनके योगदान के लिए जाना जाता है।
"कर्नाटक संगीत की त्रिमूर्तियों"

1. त्यागराज
2. मुथुस्वामी दीक्षितार
3. श्यामा शास्त्री ने कई अन्य प्रतिष्ठित संगीतकारों के साथ मिलकर संगीत की इस विरासत को और समृद्ध किया है। नीचे कर्नाटक संगीत के चार मूलभूत तत्वों की सूची दी गई है, जिन्हें कर्नाटक संगीत की नीवं माना जाता है:
- श्रुति (सापेक्ष संगीत पिच),
- स्वर (एकल स्वर की संगीतमय ध्वनि)
- राग (मधुर सूत्र),
- ताल (लयबद्ध चक्र)
आइए इन आकर्षक अवधारणाओं को विस्तार से जानते हैं:
श्रुति: सुर का सार: श्रुति संगीत की उस सुर को संदर्भित करती है, जिसे मनुष्य के कानों द्वारा सुना जाता है। इसकी जड़ें प्राचीन वेदों में निहित है। स्वर: राग के निर्माण खंड: यह एकल ध्वनि है, जिसे हम सा- रे- ग- म- प- ध- नि के रूप में जानते हैं। कुल 12 स्वर होते हैं, और उनके अनूठे संयोजन से 'थाट' का निर्माण होता है।
राग: मधुर टेपेस्ट्री: राग जटिल प्रणालियाँ होती हैं, जिसके तहत मंत्रमुग्ध करने वाली धुनों के निर्माण के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए जाते हैं। इन दिशा-निर्देशों में गति की दिशा (आरोहणम और अवरोहणम) और पैमाने के भीतर अलंकरण (गमक) का उपयोग शामिल होता है। ताल: ताल समय या लय को मापने की एक प्रणाली है। सरल ताल तीन भागों (लाघु, ध्रुत और अनुध्रुत) से बनते हैं।
 इन तीनों से मिलकर सात मूल ताल समूह बनते हैं:
- अट ताल
- ध्रुव ताल
- एक ताल
- झप ताल
- मत्य ताल
- रूपक ताल
- त्रिपुता ताल
इनमें से प्रत्येक का अपना आकर्षक लयबद्ध पैटर्न होता है।
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक अमूल्य उपहार रामपुर सहसवान घराना भी है, जो कि एक संगीत परंपरा या विरासत है, जिसकी उत्पत्ति हमारे रामपुर और सहसवान शहरों में हुई थी। उस्ताद इनायत हुसैन खान को इस घराने का संस्थापक माना जाता है। वे उस्ताद महबूब खान के पुत्र थे, जो कि खुद भी एक प्रसिद्ध गायक और वीणा वादक थे, जिन्होंने रामपुर के नवाबों के दरबार में प्रदर्शन किया था। 1840 से 1868 तक रामपुर अपने पांचवें नवाब, नवाब यूसुफ अली के शासनकाल के दौरान उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था। रामपुर सहसवान घराने के कुछ सबसे प्रसिद्ध प्रतिपादकों में उस्ताद इनायत हुसैन खान, उस्ताद हैदर खान, पद्म भूषण उस्ताद मुश्ताक हुसैन खान, उस्ताद फ़िदा हुसैन खान, पद्म भूषण उस्ताद निसार हुसैन खान और कई अन्य नाम शामिल हैं। रामपुर के नवाब संगीत के उदार संरक्षक माने जाते थे, जिन्होंने महान तानसेन के वंशजों जैसे प्रसिद्ध कलाकारों का समर्थन किया। प्रसिद्ध उर्दू कवि मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी अपने जीवन के आखिरी पल रामपुर के नवाबों के संरक्षण में ही गुज़ारे थे।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4mnr5ktc
https://tinyurl.com/2uftzmhh
https://tinyurl.com/kr5h6aea
https://tinyurl.com/49syn6ne
https://tinyurl.com/3hwb6mwr

चित्र संदर्भ
1. रामपुर के सहसवान घराने गायकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गुलाम सिराज नियाजी स्वर्गीय उस्तद गुलाम हुसैन खान के बेटे और स्वर्गीय पद्म भूषण उस्ताद मुश्ताक हुसैन खान के पोते हैं। वह रामपुर-सहस्वान घराना से संबंधित है। को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. उक्त छवि में कर्नाटक संगीत ट्रिनिटी त्यागराजा, मुथुस्वामी डीकशिटर, सिमासास्त्री, अन्नामाय्या, नारायण तेरा, पुरंदरा दास, एम बालमुरली कृष्णा, एनावरापु रामास्वामी, सुश्री उपबालक्ष्मी, सुश्री सबबालक्ष्मी, को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. मेलकार्टा कर्नाटक संगीत (दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत) में मौलिक राग (संगीत तराजू) का एक संग्रह है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)