रामपुर जन्माष्टमी विशेष : श्री कृष्ण के कन्हैया एवं गोपाला जैसे नामों के गहरे अर्थ समझिए

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
26-08-2024 09:16 AM
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रामपुर जन्माष्टमी विशेष : श्री कृष्ण के कन्हैया एवं गोपाला जैसे नामों के गहरे अर्थ समझिए
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन, हमारे रामपुर की गलियों में, आपको छोटे-छोटे बच्चे भगवान श्री कृष्ण के भेष में चंचलता के साथ घूमते हुए दिखाई दे जाएंगे। इस दिन "कन्हैया" और "कान्हा" जैसे शब्दों की गूँज दूर-दूर से ही सुनाई दे जाती है। श्री कृष्ण, सुरक्षा, करुणा, कोमलता और प्रेम के प्रतीक हैं। आज हम श्री कृष्ण के कुछ लोकप्रिय नामों के बारे में चर्चा करेंगे। साथ ही, इन नामों की उत्पत्ति और उनके पीछे की कहानियों को भी समझने का प्रयास करेंगे। आइए, सबसे पहले यह जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण को कन्हैया क्यों कहा जाता है?
"कन्हैया" शब्द का अर्थ "सबसे प्रिय पुत्र" होता है। यह उपाधि, श्री कृष्ण के लिए एकदम उपयुक्त है। हम सभी जानते हैं कि उन्होंने एक नन्हें बालक के रूप में पूरे वृंदावन और गोकुल वासियों को अपनी लीलाओं से मंत्रमुग्ध कर दिया था। भागवत पुराण में ऐसी कई किवदंतियां हैं, जिनमें श्री कृष्ण द्वारा रची गई विभिन्न लीलाओं का वर्णन मिलता है। उन्होंने ये सभी लीलाएं, तब रचीं, जब वे आठ वर्ष से भी कम आयु के थे। धार्मिक ग्रंथों में उनके कई चमत्कारों का वर्णन किया गया है। राक्षसों का वीरतापूर्वक वध करना एक ऐसा ही साहसिक कार्य है। उन्होंने कई प्राणियों को उनके जन्म-जन्मांतर के श्रापों से मुक्त भी किया था। साथ ही, उनकी लीलाओं में, वृंदावन के घरों से मक्खन चुराने का भी उल्लेख मिलता है। चित्रों में, श्री कृष्ण को यमुना नदी के तट पर खेलते हुए दिखाया जाता है। उन्हें गोवर्धन की पहाड़ियों पर गाय चराते हुए भी दिखाया जाता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कालिया नाग के फ़न पर नृत्य किया था और गोवर्धन की पहाड़ी को आसानी से अपनी ऊँगली पर भी उठा लिया था। भगवान कृष्ण ने गोपियों के हृदय में दिव्य प्रेम के बीज भी बोए थे।
श्री कृष्ण का कन्हैया के अलावा एक प्रचलित नाम "गोपाल' या गोपाला" भी है। आइए, अब उन्हें यह नाम मिलने के कारणों को समझने का प्रयास करते हैं।
⚫ गायों के रक्षक: श्री कृष्ण को 'गोपाला' के नाम से जाना जाता है, क्योंकि वे गायों की रक्षा करते थे । अपनी गायों की देखभाल वे ही करते थे । छोटी उम्र में भी कृष्ण ने बहुत बड़ी ज़िम्मेदारियाँ संभाली थीं । वे और उनके सखा, हर दिन बछड़ों को जंगल में ले जाते थे । अगर जानवर भटक भी जाते , तो गोपाला बस गोवर्धन पहाड़ी की चोटी पर चढ़ जाते । वे अपनी बांसुरी बजाते थे और सभी गायें वापस लौट जाती थीं । बांसुरी की मधुर ध्वनि सभी भक्तों एवं गोपियों का ध्यान खींचती थीं । अपनी छवियों में श्री कृष्ण को अक्सर एक या कई गायों के साथ एक चरवाहे के रूप में दर्शाया जाता है।
⚫ इंद्रियों के रक्षक: “पाल” का अर्थ रक्षक होता है। “गो” का अर्थ इंद्रियां भी हो सकता है। वास्तव में मन सहित सभी इंद्रियों को नियंत्रित करना बहुत कठिन कार्य होता है। महान धनुर्धर अर्जुन ने मन की तुलना हवा से की है, जिसे पकड़ा नहीं जा सकता। अर्जुन कहते हैं, “हे कृष्ण, मन चंचल, अशांत, ज़िद्दी और बहुत मज़बूत है! मुझे लगता है इसे वश में करना, हवा को नियंत्रित करने से भी अधिक कठिन है।” (भगवद-गीता, 6.34). इंद्रियों पर नियंत्रण के बिना, कोई व्यक्ति योगी नहीं बन सकता। योगी बने बिना, कोई व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकता। मन या इंद्रियों के नियंत्रण का एक स्पष्ट मार्ग, अभ्यास है। इसके लिए कम खाना और कम सोना महत्वपूर्ण है। आसक्ति पर भी नज़र रखनी चाहिए। अतः गोपाल के रूप में श्री कृष्ण, इंद्रियों की रक्षा करने में मदद करते हैं।
⚫ भूमि के रक्षक: गोपाल वृंदावन की भूमि के भी रक्षक हैं। श्री चैतन्य महाप्रभु ने घोषित किया है कि श्री कृष्ण और उनकी भूमि दोनों ही पूजनीय हैं। कोई यह भी तर्क दे सकता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति मूल रूप से भगवान से हुई है। एक बुद्धिमान व्यक्ति हर स्थिति और स्थान में परमात्मा की उपस्थिति देखता है। ऐसा कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने कभी वृंदावन छोड़ा ही नहीं। वे अभी वहीं हैं। भक्ति-योग के अभ्यास से, आँखें इस अद्भुत सत्य को महसूस करने में सक्षम होती हैं।
श्री कृष्ण का जीवन केवल आध्यात्मिक दृष्टि से नहीं वरन, दार्शनिक और सामाजिक दृष्टि से भी अनुसरणीय है। इसलिए यदि आप उनकी लीलाओं से और अधिक गहराई से परिचित होना चाहते हैं, तो निम्नलिखित पुस्तकें आपका मार्गदर्शन कर सकती हैं:
➤पुराणों में कृष्ण चक्र: पुराणों में, कृष्ण की कथाओं में पाए जाने वाले मुख्य विषयों और रूपांकनों पर चर्चा की गई है। इसमें, चर्चित प्रतीकात्मक साक्ष्यों की तस्वीरों का एक संग्रह शामिल है।
➤ जगन्नाथ का पंथ: इस पुस्तक में ओड़ीसा नृवंशविज्ञान के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। इसमें आदिवासी प्रभावों और आर्यनीकरण के इतिहास पर केंद्रित प्रमुख व्याख्याओं की तीखी तुलना की गई है। साथ ही, इसमें धार्मिक रूढ़िवाद के महत्व पर व्यापक साक्ष्य प्रदान किए गए हैं। इसमें वर्णित मिथक और अनुष्ठान दर्शाते हैं कि बलिदान का प्रतीकवाद, धार्मिक व्यवस्था के मूल में है।
➤ वैष्णववाद: इस विद्वत्तापूर्ण पुस्तक में भारत के सबसे पुराने जीवित धर्मों में से एक, वैष्णववाद की जांच की गई है। वैष्णववाद के मूल सिद्धांतों का वर्णन, दुनिया के सबसे पुराने धार्मिक साहित्य ऋग्वेद के श्लोकों में भी मिलता है। इस पुस्तक के दूसरे भाग में, विशिष्टाद्वैत वेदांत के मौलिक दार्शनिक सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं। इससे सिद्ध होता है कि वैष्णववाद केवल एक धार्मिक पंथ नहीं है, बल्कि इसका एक विश्वसनीय दार्शनिक आधार भी है।
➤ दिव्य संगिनी: भारत में देवत्व के स्त्री पहलू की पूजा और सराहना भी की जाती है। यह पुस्तक, पश्चिमी पाठकों को भी इसी दृष्टिकोण से परिचित कराती है। इसमें एक गहन और व्यापक दृष्टिकोण लिया गया है। पहले भाग में श्री कृष्ण की प्रेमिका और संगिनी राधा का बहुआयामी विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। दूसरे भाग के निबंधों में भारतीय धर्म में स्त्रीत्व के आयाम पर सामान्य दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए हैं। साथ ही, इसमें हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के फ़ॉग आर्ट म्यूज़ियम (Fogg Art Museum) और बोस्टन के म्यूज़ियम ऑफ़ फ़ाइन आर्ट्स (Museum of Fine Arts in Boston) के संग्रह से चित्रों का एक समृद्ध चयन किया गया है।
दिव्य प्रेम का नृत्य: इस पुस्तक का केंद्र, श्री कृष्ण की नाटकीय प्रेम कविता एवं रास लीला है। यह कविता, भारत के सबसे बहुमूल्य संस्कृत ग्रंथों में से एक, भागवत पुराण का अंतिम केंद्र बिंदु है। इसे भारतीय और पश्चिमी विद्वानों ने समान रूप से एक साहित्यिक कृति माना है। काव्य प्रतिभा और उच्च धार्मिक दृष्टि की इस कृति को दुनिया की सबसे महान पवित्र प्रेम कहानियों में से एक माना जाता है। ग्राहम श्वाईग (Graham Schweig) के अनुसार, इसे भारत के ‘गीतों का गीत’ माना जाना चाहिए। इसकी कहानी, सर्वोच्च देवता को युवा और कामुक ग्वाले श्री कृष्ण के रूप में प्रस्तुत करती है। वे अपनी प्रिय गोपियों के साथ एक आकर्षक और उत्सवपूर्ण "दिव्य प्रेम के नृत्य" में शामिल होते हैं। इस पुस्तक में, प्रेम के माध्यम से, मृत्यु से ऊपर उठना, भक्ति का योग, सांसारिक प्रेम और ईश्वर के प्रति भावुक प्रेम के बीच का अंतर, तथा नैतिक सीमाओं और असीम प्रेम के बीच द्वंद्वात्मक तनाव जैसे विषय प्रस्तुत किए गए हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2a4ydmlt
https://tinyurl.com/22rlg3vx
https://tinyurl.com/24wvp9al

चित्र संदर्भ
1. जंगल में गोपियों एवं ग्वालों के साथ श्री कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (rawpixel)
2. बाल कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
3. शेष नाग के फ़न पर श्री कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. विश्वरूप के रूप में श्री कृष्ण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)