दक्षिण व मध्य एशियाई संस्कृति, व्यापार और कला में है कुषाण साम्राज्य की भूमिका

छोटे राज्य : 300 ई. से 1000 ई.
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दक्षिण व मध्य एशियाई संस्कृति, व्यापार और कला में  है कुषाण साम्राज्य की भूमिका
रामपुर वासियों, क्या आप जानते हैं कि, पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी में, कुषाण काल के दौरान, दक्षिण और मध्य एशिया के बीच, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संपर्क, बहुत तेज़ हो गए थे। पुरातत्व उत्खनन, ऐतिहासिक कला साक्ष्य, सिक्के और शिलालेख, कुषाण साम्राज्य की स्थापना; उत्तर-पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप; और रेशम मार्गों के बीच होने वाले व्यापार और सांस्कृतिक संचरण के बीच संबंध को दर्शाते हैं। तो आइए, आज कुषाण साम्राज्य के बारे में विस्तार से जानें। आगे, हम कुषाण काल के लोक प्रशासन के बारे में चर्चा करेंगे। हम कुषाण वंश के सबसे महत्वपूर्ण शासकों के बारे में भी जानेंगे। फिर, हम कुषाण साम्राज्य के सिक्कों का पता लगाएंगे। अंत में, हम कुषाण साम्राज्य की, संस्कृति, व्यापार और कला में, महत्वपूर्ण भूमिका पर कुछ प्रकाश डालेंगे।
कुषाण राजवंश, सत्तारूढ़ वंश – युएझ़ी (Yuezhi), का वंशज कहा जा सकता है। युएझ़ी (Yuezhi) राजवंश, आम युग की पहली तीन शताब्दियों के दौरान, उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप, अफ़गानिस्तान और मध्य एशिया के अधिकांश हिस्सों पर शासन करता था। युएझ़ी वंश ने, पहली शताब्दी ईस्वी में, बैक्ट्रिया(Bactria) पर विजय प्राप्त की और राज्य को, पांच भागों में, विभाजित किया। इनमें से, एक भाग, कुषाणों (गुइशुंग – Guishuang) का था। हालांकि, इसके सौ साल बाद, कुषाण प्रमुख – कुजुला कडफ़िसेस(Kujula Kadphises) ने, युएझी साम्राज्य का राजनीतिक एकीकरण, अपने अधीन कर लिया।
कुषाण क्षेत्र में, एक समय, विभिन्न राजवंशों द्वारा शासित, राष्ट्रीयताओं की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल थी। इसलिए, यह काफ़ी स्वाभाविक है कि, कुषाण ने, भारतीय–यूनानी, शक, चीनी और मौर्य साम्राज्यों की शहरी प्रशासनिक प्रणाली को अपनाया होगा। कुषाणों द्वारा, उत्तरी भारत की विजय के समय, भारतीय शहरों का प्रशासन, एक गवर्नर द्वारा किया जाता था। जबकि, उनके अधीनस्थ, तीन मुख्य मैजिस्ट्रेट थे।
ज़िला निरीक्षक को कुषाण प्रशासन में, गोपा के नाम से जाना जाता था। वे , दस, बीस या चालीस परिवारों का प्रभारी होते थे । उनसे यह अपेक्षा की गई थी, कि, वे अपने ज़िले में रहने वाले सभी पुरुषों और महिलाओं की जाति, आय व खर्चे तथा नाम और व्यवसायों को जानें। साथ ही, स्थानिका नामक, एक अन्य ज़िला निरीक्षक भी थे, जो, शहर के चार अनुभागों में से, प्रत्येक अनुभाग के प्रभारी थे । इनमें से प्रत्येक निरीक्षक, गढ़ वाले शहर के, एक-चौथाई हिस्से के, मामलों का प्रबंधन करते थे।
जहां तक, ईरानी क्षेत्रीय शहरों का सवाल है, उनके पास, ज़िला निरीक्षक थे, और इस बात के कुछ सबूत हैं कि, वे ज़िले, दीवारों से घिरे हुए थे । जबकि, भारत में, नगर निगम के अधिकारी, कारीगरों और व्यापारियों की गतिविधियों को नियंत्रित करते थें। हमें, नगर परिषदों के संदर्भ हैं, और कुछ शहरों में, शहर की अपनी मुहर भी होती थी। मेगस्थनीज़ (Megasthenes) के अनुसार, कुषाण शहरी जीवन का प्रबंधन, छह समितियों द्वारा किया जाता था। इनमें से प्रत्येक समिति में, पांच सदस्य होते थे, और उनका अपना विशिष्ट कार्य होता था।
इस प्रकार प्रशासित, कुषाण वंश के, महत्वपूर्ण शासक निम्नलिखित थे।
1.) कुजुला कडफ़िसेस (Kujula Kadphises) (30 ईस्वी – 80 ईस्वी): 
कुजुला कडफ़िसेस, कडफ़िसेस प्रथम थे। वे पहले कुषाण शासक थे, जिन्होंने, भारत में, कुषाण साम्राज्य की नींव रखी। इसलिए, उन्हें, कुषाण साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। धर्म की उपाधि – ‘थिडा’, उनके द्वारा अपनाई गई थी। कडफ़िसेस प्रथम ने, काबुल, अफ़गानिस्तान तथा कांधार पर, आधिपत्य स्थापित किया। उन्होंने, तांबे के सिक्के भी जारी किए, जो, रोमन सिक्कों के समान थे।
2.) विमा तक्तु या सदाशकना (80 ईस्वी – 95 ईस्वी): वास्तव में, यह निश्चित नहीं है कि, कुजुला कडफ़िसेस के बाद, विमा तक्तु सिंहासन पर बैठे थे या नहीं। परंतु, माना जाता है कि उनके शासनकाल में, कुषाण साम्राज्य का विस्तार, दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हुआ।
3.) विमा कडफ़िसेस (Vima kadphises) (95 ईस्वी – 127 ईस्वी): रबातक शिलालेख में, उल्लेख है कि, विमा कडफ़िसेस, सदक्षणा के पुत्र और कनिष्क के पिता थे । वह कडफ़िसेस द्वितीय थे । उन्होंने, अपने शासन काल में, बड़ी संख्या में, सोने के सिक्के जारी किए। साथ ही, विमा कडफ़िसेस ने, कुषाण साम्राज्य का विस्तार, सिंधु नदी के पूर्व तक किया।
4.) कनिष्क (127 ईस्वी – 150 ईस्वी): कुषाण साम्राज्य, राजा कनिष्क के शासनकाल के दौरान, अपनी सबसे बड़ी सीमा पर पहुंच गया। एक शक्तिशाली सम्राट के रूप में, उनकी विरासत, शिलालेखों, पाठ्य परंपराओं, पुरातात्विक अवशेषों और सिक्कों में संरक्षित है । रबातक बैक्ट्रियन शिलालेख के अनुसार, कनिष्क के समय, कुषाण क्षेत्र, गंगा-यमुना घाटी में साकेता, कौशांबी, पाटलिपुत्र और श्री-कंपा शहरों तक, फैला हुआ था। मथुरा के पास स्थित, कनिष्क की एक विशाल मूर्ति, यह दर्शाती है कि उन्होंने “सार्वभौमिक सम्राट( चक्रवर्ती )” की भूमिका निभाई थी। इस मूर्ति पर, एक ब्राह्मी शिलालेख भी है, जिस पर, “महान राजा, राजाओं के राजा, भगवान के पुत्र, कनिष्क”, ऐसा लिखा है। कनिष्क को, पेशावर में, चीनी तीर्थयात्रियों द्वारा वर्णित, एक विशाल स्तूप के निर्माण का, श्रेय दिया जाता है। यहां, इसकी 87 वर्ग मीटर की नींव में फैले, पुरातत्व अवशेषों की खुदाई की गई है। बौद्ध साहित्यिक स्रोत, कनिष्क को, अशोक के आदर्श पर आधारित, बौद्ध धर्म के एक प्रमुख संरक्षक के रूप में चित्रित करते हैं। इनके कुछ सिक्कों पर, बौद्ध चित्रण दिखाई देता है, लेकिन, उनके सिक्के, विभिन्न प्रकार के ईरानी, यूनानी और भारतीय देवी-देवताओं को भी दर्शाते हैं।
विभिन्न शासकों द्वारा जारी किए गए कुषाण साम्राज्य के सिक्के, कई मायनों में, महत्वपूर्ण थे। प्रारंभिक कुषाण सिक्कों का श्रेय, आम तौर पर, विमा कडफ़िसेस को दिया जाता है। कुषाण सिक्कों में, आम तौर पर यूनानी, मेसोपोटामियन(Mesopotamian), ज़ोरास्ट्रियन(Zorastrian) और भारतीय पौराणिक कथाओं से ली गई, प्रतीकात्मक आकृतियों को दर्शाया गया है । शिव, बुद्ध और कार्तिकेय, सिक्कों पर चित्रित, प्रमुख भारतीय देवता थे । कुषाण कालीन सोने के सिक्कों ने, विशेषकर गुप्ता राजवंश के सिक्कों को भी प्रभावित किया।
इसके अलावा, कुषाण काल की महत्वपूर्ण उपलब्धियां निम्नलिखित थीं:
• कुषाण शासन के तहत, उत्तर–पश्चिम भारत और आसपास के क्षेत्रों ने, चीन तक रेशम मार्ग के साथ, समुद्री व्यापार और वाणिज्य दोनों में भाग लिया।
• उन्होंने, यूनानी वर्णमाला के एक रूप का उपयोग करना सीख लिया था। कुजुला के पुत्र, कारवां मार्गों पर, रोमन ऑरियस(Roman aureus) की नकल में, सोने के सिक्के चलाने वाले पहले भारतीय शासक थे ।
• कनिष्क के शासन के तहत, इस राजवंश ने, अरल सागर से लेकर, वर्तमान उज़्बेकिस्तान, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान से होते हुए; उत्तरी भारत से लेकर, पूर्व में बनारस, और दक्षिण में, सांची तक; एक बड़े क्षेत्र को नियंत्रित किया था। यह व्यापक व्यापारिक गतिविधियों, और शहरी जीवन, बौद्ध विचार और दृश्य कला के उत्कर्ष द्वारा, चिह्नित महान धन का काल भी था।
• कुषाण साम्राज्य के केंद्र में, गांधार क्षेत्र, धार्मिक मतभेदों के प्रति सहिष्णु, एक बहुजातीय समाज का घर था। यह, अपने रणनीतिक स्थान के लिए, वांछनीय बन गया, जिसमें थलचर रेशम मार्गों तक, सीधी पहुंच और अरब सागर पर, बंदरगाहों तक संयोजकता शामिल थे।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3vmx46te
https://tinyurl.com/3kecf2fj
https://tinyurl.com/sd8jzm3d
https://tinyurl.com/4tvjtwb3
https://tinyurl.com/5buaxh3k
https://tinyurl.com/2wr66w4b

चित्र संदर्भ
1. अपने सिक्कों पर स्वयं को "कुषाण" कहने वाले पहले राजा राजा: हेरायोस (1-30 ई.) और इस राजवंश के विस्तार को संदर्भित करता एक मानचित्र (wikimedia)
2. कुजुल कडफिसेस एक कुषाण राजकुंवर था जिसने पहली सदी ईसवी में युएझ़ी परिसंघ को संगठित किया और पहला कुषाण सम्राट बना। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कुषाण भक्त के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. विमा कडफ़िसेस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कुषाण सम्राट कनिष्क की बिना सिर वाली मूर्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)