विदेशों में घरों की फ़र्श को आकर्षक और आरामदायक बना रहे हैं, उत्तर प्रदेश के शानदार कालीन

घर - आंतरिक सज्जा/कुर्सियाँ/कालीन
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विदेशों में घरों की फ़र्श को आकर्षक और आरामदायक बना रहे हैं, उत्तर प्रदेश के शानदार कालीन

कालीन बुनाई और हस्तनिर्मित कालीन के निर्माण में, उत्तर प्रदेश के कारीगरों का कोई तोड़ नहीं है। भदोही, "(भारत का कालीन शहर)" और मिर्ज़ापुर जैसे शहरों को, इस उद्योग का बेताज बादशाह माना जाता है। यहाँ पर जटिल डिज़ाइन और चमकीले रंगों वाले उच्च गुणवत्ता के कालीन बनाए जाते हैं। यहाँ पर पारंपरिक फ़ारसी डिज़ाइनों से लेकर आधुनिक डिज़ाइनों तक सभी प्रकार के कालीन मिल जाते हैं। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इन कालीनों की मांग बहुत अधिक है। इस उद्योग से हज़ारों कारीगर और छोटे व्यवसाय जुड़े हुए हैं, जो इसे उत्तर प्रदेश की संस्कृति और अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बनाते हैं।

 ईरान के इस्फ़हान में कालीन का एक बाज़ार | Source : Wikimedia

उत्तर प्रदेश के हस्तनिर्मित कालीन, यहाँ के अद्वितीय शिल्प कौशल और कला की उत्कृष्टता का भी प्रतीक माने जाते हैं। इसलिए, आज के इस लेख में, हम उत्तर प्रदेश के कालीन उद्योग की चर्चा करेंगे। इसके तहत, हम इस उद्योग की समृद्ध परंपरा और कला पर ध्यान देंगे। इसके अलावा, हम भारत के कालीन उद्योग और उसके निर्यात पर भी नज़र डालेंगे और इसके वैश्विक महत्व को समझेंगे। अंत में, मिर्ज़ापुर के पारंपरिक हस्तनिर्मित कालीनों और भदोही में हाथ से गांठने की तकनीक के विकास के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।

उत्तर प्रदेश, अपने अनोखे रंगों और डिज़ाइनों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहाँ लगभग 90% कालीन बुनकरों को रोज़गार मिलता है। भदोही, मिर्ज़ापुर और आगरा, उत्तर प्रदेश के प्रमुख कालीन केंद्र हैं। इनमें से भदोही का विशेष महत्व है, क्योंकि यहाँ की अर्थव्यवस्था और 500 से अधिक गाँव पूरी तरह से कालीन व्यवसाय पर निर्भर हैं।

कालीन बुनता हुआ एक कारीगर | Source : Wikimedia

भदोही के कालीन, अपने अनूठे डिज़ाइनों के लिए प्रसिद्ध हैं। ये डिज़ाइन स्थानीय बुनकरों द्वारा बनाए जाते हैं। इन डिज़ाइनों में प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है।  उत्तर प्रदेश के कालीन गुलाबी-बेज, शहद, हाथीदांत और इराकी हरे रंगों में तैयार किए जाते हैं। इन पर हाथ से उकेरे  गए या नक्काशीदार किनारे होते हैं।

यहाँ की एक और लोकप्रिय  कला,  “मूर्तिकला डिज़ाइन" है। इसमें धागों की कतरनों का उपयोग किया जाता है, जो कालीन को 3-आयामी बनावट देता है। यह डिज़ाइन 18वीं सदी में प्रचलित हुआ और इसमें चमकीले पेस्टल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।

आज उत्तर प्रदेश, रेशम के कालीनों के निर्यात के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक बन गया है। यहाँ के कालीन डिज़ाइनों में ईरानी, मोरक्कन, फ़्रेंच और तुर्कमेन डिज़ाइनों का मिश्रण देखने को मिलता है। इन डिज़ाइनों को स्थानीय डिज़ाइनरों द्वारा तैयार किया जाता है। यहाँ के कई प्रसिद्ध डिज़ाइन ईरान के शहरों जैसे सरोघ, तबरीज़, हमादान, काशान, इस्फ़हान और खुरासान के नाम पर आधारित हैं।

 इन अद्वितीय कालीनों का निर्माण मिर्ज़ापुर, भदोही और खमरिया जैसे शहरों में प्रशिक्षित बुनकर करते हैं। इन कालीनों को बनाने के लिए जूट की सुतली के साथ मुड़े हुए सूती धागों का उपयोग किया जाता है, जिससे कालीन की गुणवत्ता अधिक खुरदरी होती है और प्रति वर्ग इंच लगभग 60 गांठ होती हैं।

शाहजहाँपुर और आगरा में मुख्य रूप से सूती और ऊनी कालीन बनाए जाते हैं। यहाँ के बुनकर बाज़ार की मांग के अनुसार पारंपरिक और आधुनिक डिज़ाइनों का उत्पादन करते हैं। उत्तर प्रदेश के कालीनों की यही विशेषताएँ इन्हें विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाती हैं।

भदोही का कालीन उद्योग पूरी तरह निर्यातोन्मुखी है। भारत का कुल वार्षिक कालीन निर्यात, लगभग 12,000 करोड़ रुपये का है! उसमें से करीब 7,000 करोड़ रुपये का योगदान अकेले भदोही का है। इससे इस क्षेत्र के आर्थिक महत्व का पता चलता है।

भदोही के कालीनों को 2010 में भौगोलिक संकेत (जी आई (GI)) टैग भी प्राप्त हुआ। इस टैग ने भदोही के कालीनों को वैश्विक बाज़ारो में विशिष्ट पहचान और प्रमाणिकता प्रदान की। इससे इनकी मांग और प्रतिष्ठा में और अधिक वृद्धि हुई।

भदोही में 22 लाख से अधिक ग्रामीण कारीगर इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। “एक  ज़िला -एक उत्पाद" (ओ डी ओ पी (ODOP)) योजना के तहत, जिले में 1 लाख से अधिक करघे और 500 निर्यात इकाइयाँ कार्यरत हैं।

कालीन बुनने की प्रक्रिया | Source : Wikimedia

अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ (ए आई सी एम ए) के पूर्व अध्यक्ष रवि पटोदिया के अनुसार, भदोही में 1,800 से अधिक पंजीकृत निर्यात इकाइयाँ हैं। 

भारत - रेशम, नारियल रेशे, जूट और हथकरघा कालीनों के साथ-साथ फ़र्श के अन्य कवरिंग्स का भी निर्यात करता है। देश की कुल उत्पादन क्षमता के लगभग 85-90% कालीनों का निर्यात किया जाता है! इस प्रकार भारत, विश्व में कालीनों का सबसे बड़ा निर्यातक बन जाता है। वैश्विक स्तर पर लगभग 40% हस्तनिर्मित कालीनों का निर्यात भारत से ही किया जाता है।

2021-22 में, भारत के हस्तनिर्मित कालीनों और अन्य फ़र्श कवरिंग्स (Floor Coverings) के निर्यात में 19.5% की वृद्धि हुई और यह 2.23 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। भारत से निर्यात किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के कालीनों में ऊनी कालीन, रग्स, दरी, कॉटन कालीन आदि का सबसे अधिक योगदान है। अप्रैल 2022 से सितंबर 2022 के बीच, भारत के कालीन निर्यात का आँकड़ा 710 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। 2021-22 में, भारत ने 1.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के हस्तनिर्मित कालीन निर्यात किए, जिसमें 18.8% की वृद्धि हुई। इसके अलावा, 168.67 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के जूट कालीन और फ़र्श कवरिंग्स का निर्यात हुआ, जो कुल निर्यात का 7.8% था।

भारत 70 से अधिक देशों में कालीन निर्यात करता है। इनमें अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, यू ए ई, फ़्रांस, स्वीडन, नीदरलैंड्स और इटली सबसे बड़े आयातक हैं। अमेरिका भारत के कालीन और फ़र्श कवरिंग्स का सबसे बड़ा (कुल निर्यात का 57% हिस्सा) खरीदार है। अप्रैल 2021 से मार्च 2022 के बीच, भारत ने अमेरिका को 1281.29 मिलियन अमेरिकी डॉलर के हस्तनिर्मित कालीन और अन्य फ़र्श कवरिंग्स निर्यात किए, जो पिछले वर्ष के 1063.37 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक था।

जयपुर में कालीन की एक दुकान | Source : Wikimedia

भदोही के अलावा, मिर्ज़ापुर में कालीन बुनाई का इतिहास भारत के कपड़ा उद्योग के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। 19वीं सदी के अंत तक यह क्षेत्र कालीन बुनाई के लिए प्रसिद्ध हो गया। 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद कई कुशल बुनकर मिर्ज़ापुर आ गए। उन्होंने यहां शांति पाई और अपने शिल्प को जारी रखा। भदोही और मिर्ज़ापुर के बीच स्थित माधोसिंह गांव उनका नया बसेरा बन गया।

इस गांव में उन्होंने छोटे स्तर पर कालीन बुनने का काम फिर से शुरू किया। 19वीं सदी के अंत में मिर्ज़ापुर में कालीन बुनाई की वास्तविक क्षमता उभरकर सामने आई। श्री ब्राउन फ़ोर्ड (Brownford) जैसे लोगों ने इन बुनकरों की प्रतिभा को पहचाना। इसका परिणाम यह हुआ कि, पास के खमरिया नामक इलाके में मेसर्स ई. हिल एंड कंपनी (Messrs E. Hill & Co.) जैसी कंपनियों की स्थापना हुई।

इन कंपनियों ने, मिर्ज़ापुर में कालीन उद्योग के विकास को गति प्रदान की। उद्योग के बढ़ते प्रभाव के साथ मिर्ज़ापुर बुनाई के प्रमुख केंद्र के रूप में पहचाना जाने लगा। यहां के बुनकरों का कौशल पीढ़ियों से संजोया गया है। उनकी कला में नए डिज़ाइन और तकनीकों का समावेश हुआ, जिस कारण, मिर्ज़ापुर की कालीनों ने एक अलग पहचान और आकर्षण हासिल किया।

कालीन की पारंपरिक बुनाई का दृश्य | Source : Wikimedia

भदोही  ज़िले के पास गंगा नदी बहती है। यह शहर, भारत का सबसे पुराना और प्रमुख कालीन बुनाई केंद्र है। भदोही उपमहाद्वीप के कालीन उद्योग का 60% से अधिक योगदान करता है। ओ बी टी कार्पेट्स  रीटेल (Obeetee Carpets) की सी ई ओ  ऐंजेलीक धामा कहती हैं, "यहां के कारीगर अपने पूर्वजों से मिली कला का बहुत सम्मान करते हैं।" भदोही के कारीगरों ने अपनी शिल्पकला को पश्चिमी प्रभाव से अछूता रखा है। उन्होंने कालीन बुनाई की परंपरा को कई पीढ़ियों तक जीवित रखा है। यह शिल्प 16वीं शताब्दी में भदोही में शुरू हुआ। कारीगर इसे ग्रैंड ट्रंक रोड के जरिए, (जो एक प्रमुख व्यापार मार्ग था!) यहां लाए थे।

भदोही में कालीन बनाने की प्रक्रिया, बेहद आकर्षक और श्रमसाध्य है। यहाँ के हर कालीन को हाथ से बुना जाता है। एक कारीगर, प्रतिदिन 6,000 से 9,000 गांठें बांधता है। यह केवल, गांठों का काम नहीं है; बल्कि इन कालीनों में कारीगर अपनी कहानियां भी बुनते हैं।  ऐंजेलीक धामा बताती हैं, "ये कहानियां कारीगरों की एकता, उनके परिवारों के गहरे संबंध और उनकी विनम्र संस्कृति को दर्शाती हैं।" इन कालीनों की गुणवत्ता, मुख्य रूप से गांठों की संख्या और इस्तेमाल की गई सामग्री पर निर्भर करती है। भदोही के एक प्रीमियम कालीन में प्रति वर्ग इंच 425 गांठें होती हैं। इन कालीनों को बनाने में मुलायम मिश्रित ऊन, उच्च गुणवत्ता वाला रेशम या दोनों का इस्तेमाल किया जाता है।  इस प्रकार, भदोही के कारीगर, अपनी अनोखी तकनीक और समर्पण से हस्तनिर्मित कालीनों को विश्व स्तरीय पहचान देते हैं।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/22vgnatt

https://tinyurl.com/26txexvs

https://tinyurl.com/2ys3hpr7

https://tinyurl.com/23xtrpl3

https://tinyurl.com/23xtrpl3

मुख्य चित्र : तुर्की में एक कालीन का शोरूम (flickr)