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                                            राधा संग खेले नंदलाला,
बरसे रंग गगन से आला।
गोपियाँ हंसें, ग्वाल झूमें,
रंगों की दुनिया संग घूमे।
होली भारतीय संस्कृति के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।इस त्यौहार को वसंत के आगमन, बुराई पर अच्छाई की जीत और राधा कृष्ण के प्रेम का भी प्रतीक माना जाता है।लोग इसे रंगों के उत्सव और पारंपरिक व्यंजनों के आनंद के साथ हर्षोल्लास से मनाते हैं।होली की पूर्व संध्या पर, होलिका दहन किया जाता है।यह राक्षसी होलिका के अंत और भक्त प्रह्लाद की विजय का प्रतीक है।इस अवसर पर विशाल अलाव जलाए जाते हैं, जिनके चारों ओर लोग भजन-कीर्तन करते हैं।
आज के इस लेख में, हम होली के ऐसे ही अनूठे अनुष्ठानों और गतिविधियों को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे। इसके बाद, हम इस अवसर पर बनाए जाने वाले प्रसिद्ध व्यंजनों जैसे गुजिया, धुस्का, ठंडाई और पूरन पोली के बारे में जानेंगे। इसके अलावा, हम उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में होली के अनोखे उत्सवों पर नज़र डालेंगे। फिर, 'लठमार होली' के बारे में चर्चा करेंगे और देखेंगे कि इसे हमारा उत्तर प्रदेश के बरसाना और नंदगांव में कैसे मनाया जाता है।
आइए, शुरुआत होली पर किए जाने वाले अनुष्ठानों और गतिविधियों के साथ करते हैं:
तैयारी: होली से कुछ दिन पहले ही लोग इसकी तैयारियाँ शुरू कर देते हैं। इस दौरान, शहर के मुख्य चौराहों पर होलिका दहन के लिए लकड़ियाँ इकट्ठा की जाती हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि त्योहार के दिन जलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में लकड़ियाँ मौजूद रहें।
होलिका दहन समारोह: होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन किया जाता है। लकड़ियों के ढेर में राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का पुतला रखा जाता है और जलाया जाता है। यह अनुष्ठान भक्त प्रह्लाद और भगवान नारायण की भक्ति का प्रतीक है। एक किवदंती के अनुसार, होलिका ने प्रह्लाद को मारने की कोशिश की थी, लेकिन खुद ही आग में जलकर नष्ट हो गई। इस प्रकार यह अनुष्ठान बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।
रंगों का खेल: होली के अगले दिन, धुलेटी (जिसे धुलेंडी बभी कहा जाता है) मनाई जाती है, जो इस पर्व का सबसे खास दिन होता है। इस दौरान लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं, पिचकारी से रंगों की बौछार करते हैं और पानी से खेलते हैं। इसके अलावा इस दौरान बॉलीवुड के गाने बजते हैं, लोग ढोलक की थाप पर नाचते हैं और होली का आनंद लेते हैं। खाने-पीने की भी खास परंपरा होती है। गुजिया, मठरी, मालपुआ और अन्य पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद सभी बड़े चाव से लेते हैं।
होली के त्योहार को खुशियों और रंगों के साथ ही स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है। इस अवसर पर तरह-तरह के पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जो इस त्योहार को और खास बना देते हैं।
आइए, अब होली पर खाए जाने वाले कुछ लोकप्रिय व्यंजनों के बारे में जानते हैं:
1. गुजिया: गुजिया को होली का पर्याय माना जाता है। होली के अवसर पर बनाई जाने वाली यह पारंपरिक मिठाई हर किसी की पहली पसंद होती है। खासकर उत्तर और पश्चिम भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और गुजरात में इसे बड़े ही चाव से खाया जाता है। मैदे से बनी इन कुरकुरी थैलियों में गुड़, खोया और मेवों की भरावन होती है। इन्हें डीप-फ़्राई करने के बाद कभी-कभी चीनी की चाशनी में भी डुबोया जाता है, जिससे इनका स्वाद और भी बढ़ जाता है। यह मिठाई त्योहार की मिठास को दोगुना कर देती है।
2. धुस्का: धुस्का, झारखंड और बिहार में होली के खास पकवानों में शामिल है। यह एक तरह का नमकीन और कुरकुरा व्यंजन होता है, जिसे चावल और चने के आटे से बनाया जाता है। इसे डीप-फ़्राई किया जाता है और अक्सर आलू या चने की सब्जी के साथ परोसा जाता है। इसका हल्का मसालेदार स्वाद होली के जश्न को और भी मज़ेदार बना देता है।
3. पूरन पोली: पूरन पोली महाराष्ट्र और कर्नाटक की होली की पारंपरिक मिठाइयों में से एक है। यह मीठी स्टफ़िंग वाली रोटी होती है, जिसमें चना दाल और गुड़ या चीनी का मिश्रण भरा जाता है। इसे घी में सेंककर परोसा जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी लाजवाब हो जाता है। खासतौर पर महाराष्ट्र के शहरों जैसे मुंबई और पुणे में इसे बड़े उत्साह से खाया जाता है।
4. ठंडाई: ठंडाई के बिना होली अधूरी लगती है। यह पारंपरिक भारतीय पेय उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में बहुत लोकप्रिय है। दूध से बनी इस ठंडी और ताज़गी भरी ड्रिंक में सूखे मेवे, बीज, केसर और खुशबूदार मसाले मिलाए जाते हैं। यह न केवल स्वाद में बेहतरीन होती है, बल्कि शरीर को ठंडक भी पहुंचाती है।
5. मसाला मठरी: मसाला मठरी होली का एक खास नमकीन स्नैक है, जिसे पूरे उत्तर भारत में पसंद किया जाता है। मैदा, अजवायन और मसालों से बने इस परतदार और कुरकुरे क्रैकर को डीप-फ़्राई किया जाता है। इसकी मसालेदार और चटपटी स्वाद इसकी खासियत होती है, जो चाय के साथ खाने में बेहद स्वादिष्ट लगती है। इसे घर पर बनाया जा सकता है या बाज़ार से खरीदा जा सकता है, लेकिन होली के मौके पर इसका स्वाद लेना जरूर बनता है।
आइए, अब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में होली कैसे मनाई जाती है?
ब्रज क्षेत्र में होली का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान भगवान श्री कृष्ण के भक्त मथुरा, वृंदावन, बरसाना, नंदगांव और गोकुल जैसे स्थानों पर एकत्र होते हैं, जहाँ उन्होंने अपना बचपन बिताया था। इस विशेष उत्सव को ब्रज की होली कहा जाता है। यह होली, दस दिनों तक चलती है। ब्रज क्षेत्र—मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव—हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, क्योंकि ये स्थान भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े हैं।
इन दिनों वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालु बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं। वहाँ पुजारी, भगवान कृष्ण का प्रतिनिधित्व करते हुए भक्तों पर रंग-बिरंगे फूल बरसाते हैं। यह एक अत्यंत लोकप्रिय उत्सव है, जिसमें देश-विदेश से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं। ब्रज की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसमें लठमार होली, लड्डू होली और छड़ी होली जैसी विभिन्न परंपराएँ शामिल हैं। वृंदावन में श्रद्धालु और पर्यटक फूलवाली होली खेलते हैं। इस दौरान भक्त फूलों और प्राकृतिक रंगों से बनी रंगोली के साथ होली का आनंद लेते हैं।
लठमार होली क्या है?
लठमार होली, होली का एक अनोखा और रोचक रूप है, जिसमें महिलाएँ पुरुषों को खेल-खेल में लाठियों से मारती हैं। ‘लठमार’ शब्द ‘लाठी’ से बना है, जिसका अर्थ 'छड़ी' होता है। यह खास परंपरा, सिर्फ़ बरसाना और नंदगाँव में मनाई जाती है और इसके पीछे एक गहरी सांस्कृतिक व धार्मिक कहानी जुड़ी हुई है।
लोककथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण नंदगाँव में बड़े हुए। वे अपनी प्रिय राधा और उनकी सखियों को चिढ़ाने के लिए बरसाना आए थे। इस पर राधा और उनकी सखियाँ उन्हें लाठियों से मारने लगीं। आज भी यही खेल हर साल दोहराया जाता है, जिससे भक्ति, मस्ती और परंपरा एक साथ जुड़ जाती है।
बरसाना में होली का उत्सव, मुख्य दिन से कई दिन पहले शुरू हो जाता है। देश-विदेश से लोग इसे देखने के लिए यहाँ आते हैं। लठमार होली के दिन, नंदगाँव के पुरुष होली गीत गाते हुए बरसाना आते हैं और महिलाओं को मज़ाक में छेड़ने की कोशिश करते हैं। इसके जवाब में, महिलाएँ लाठी लेकर उनका सामना करती हैं और उन पर प्रहार करके अपने गाँव की रक्षा करती हैं। चारों ओर रंग, हँसी और संगीत की गूँज माहौल को और भी रोमांचक बना देती है।
अन्य जगहों पर जहाँ होली एक दिन की होती है, वहीं बरसाना में यह दो दिन तक मनाई जाती है। पहले दिन, नंदगाँव के पुरुष, बरसाना में आकर महिलाओं को रंगने की कोशिश करते हैं। अगले दिन, महिलाएँ, नंदगाँव जाकर पुरुषों पर रंग डालती हैं। यह परंपरा, केवल एक खेल नहीं, बल्कि कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी की याद भी दिलाती है, जिसमें शरारत, भक्ति और परंपरा का सुंदर मेल देखने को मिलता है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र का स्रोत : Wikimedia