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                                            क्या आप जानते हैं कि अतिपर्यटन (Overtourism) तब होता है जब किसी जगह पर बहुत ज़्यादा पर्यटक आ जाते हैं और उस जगह की क्षमता से ज़्यादा लोग वहां घूमने आ जाते हैं। इसका असर पर्यावरण, लोगों की ज़िंदगी और सांस्कृतिक धरोहर पर बुरा पड़ता है। भारत में बहुत सी ऐसी जगहें हैं, जहाँ ओवर टूरिज़म बढ़ रहा है, और इस कारण वहाँ के लोग और पर्यावरण प्रभावित हो रहे हैं।
आज हम जानेंगे कि भारत में अतिपर्यटन (Overtourism) के कारण क्या हैं। फिर, हम यह भी समझेंगे कि अतिपर्यटन हमारे समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे नुक़सान पहुँचाता है। इसके बाद, हम जानेंगे कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए स्थायी तटीय पर्यटन क्यों ज़रूरी है। अंत में, हम कुछ आसान तरीके सीखेंगे, जिनसे हम अपनी अगली बीच यात्रा को ज़्यादा पर्यावरण के अनुकूल बना सकते हैं।

भारत में अतिपर्यटन के कारण:
1.) आसान यात्रा और सस्ती कीमतें: आजकल यात्रा करना बहुत आसान हो गया है। सस्ती हवाई टिकटें, बेहतर रेलवे नेटवर्क और सस्ते होटल की सुविधाओं की वजह से लोग कहीं भी घूमने जा सकते हैं। साथ ही ट्रैवल ऐप्स ने छोटी जगहों को भी प्रख्यात बना दिया है, लेकिन इन जगहों में इंफ़्रास्ट्रक्चर यानी सुविधाएं नहीं होतीं, जिससे भीड़ बढ़ जाती है।
2.) मौसमी पर्यटन: कुछ खास दिनों जैसे त्योहारों और छुट्टियों के दौरान, बहुत सारे लोग एक ही जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं। जैसे  नए साल (New Year) पर गोवा या गर्मियों में मनाली में भारी भीड़ होती है। इन जगहों पर पर्यटकों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि वे अपनी क्षमता से बाहर हो जाते हैं।
3.) नियमों की कमी: कई जगहों पर जैसे राष्ट्रीय उद्यान, धरोहर स्थल और पहाड़ी इलाके, वहां कितने पर्यटक आ सकते हैं, इसका कोई ठोस नियम नहीं है। इस वजह से बहुत सारे लोग इन जगहों पर बिना किसी नियंत्रण के जाते हैं, जिससे पर्यावरण और संस्कृति को नुकसान पहुंचता है।
4.) प्रसिद्ध जगहों का प्रचार: भारत में कुछ प्रसिद्ध जगहें जैसे ताज महल, जयपुर और केरल का प्रचार बहुत ज़्यादा किया जाता है। इससे इन जगहों पर बहुत ज़्यादा भीड़ हो जाती है, जबकि कई दूसरी सुंदर जगहें हैं, जो उतनी  प्रख्यात नहीं हो पातीं और वो अनदेखी रह जाती हैं।
5.) सोशल मीडिया का प्रभाव: आजकल सोशल मीडिया पर बहुत से लोग अपनी ट्रिप्स और तस्वीरें शेयर करते हैं। इससे कुछ जगहों को “इंस्टाग्राम-योग्य” बना दिया जाता है और वहां पर्यटकों की तादाद बढ़ जाती है। लेकिन बहुत बार इन जगहों पर पर्यटकों को स्थिरता और पर्यावरण का ध्यान नहीं रहता है।
 

अतिपर्यटन  कैसे हमारे महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाता है ?
1.) कोरल रीफ़ का नाश: पहले जहां रंग-बिरंगे कोरल रीफ़होते थे, वहां अब ओवर-डाइविंग और स्नॉर्कलिंग जैसे वाटर स्पोर्ट हैं की वजह से बहुत ज़्यादा नुकसान हुआ है। इससे इन नाजुक कोरल रीफ़पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान हुआ है। इसके अलावा, सनस्क्रीन में मौजूद रसायन भी कोरल ब्लिचिंग का कारण बनते हैं। कोरल एक जीवित जीव है, इसलिए जब तैराक इसे तोड़ते हैं, नुकसान पहुंचाते हैं या प्रदूषित करते हैं, तो यह मारा जाता है। मनुष्य द्वारा की गई ऐसी दुर्घटनाएं अब तक दुनिया के लगभग 50% कोरल रीफ्स की मौत का कारण बन चुकी हैं।
2.) समुद्री प्रदूषण: समुद्र में प्रदूषण कई स्रोतों से आता है, लेकिन यह समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचाता है। पर्यटकों के गतिविधियों की वजह से प्लास्टिक कचरा और गंदगी का गलत तरीके से समुद्र में डंप होना आम है। लापरवाह पर्यटकों की आदतें, समुद्र में प्लास्टिक के ढेर लगाने का कारण बनती हैं, खासकर पर्यटन स्थल के आस-पास। इसके अलावा, क्रूज़ शिप्स भी अरबों गंदे या प्रदूषित कचरे को समुद्र में फेंक देते हैं, जिससे समुद्री जीवन प्रभावित होता है।
3.) ओवरफ़िशींग (अधिक मछली पकड़ना): हम सभी को समुद्र के किनारे ताजे समुद्री भोजन का स्वाद बहुत पसंद है, लेकिन पर्यटकों की बढ़ती मांग की वजह से ओवरफ़िशींग होती है, जो मछली की आबादी को घटाता है और समुद्री इकोसिस्टम के संतुलन को बिगाड़ता है। इससे उन स्थानीय समुदायों पर भी असर पड़ता है, जिनकी आजीविका समुद्र पर निर्भर है। वे बड़े और तकनीकी रूप से उन्नत मछली पकड़ने की विधियों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। इसका असर मछलियों की संख्या पर पड़ता है।
4.) नाव/बोट ट्रैफ़िक: पर्यटन, परिवहन और अन्य मनोरंजन गतिविधियों से अधिक बोट ट्रैफ़िक समुद्र में तेल के रिसाव, समुद्री स्तनधारियों के साथ टक्कर और समुद्र की सतह को परेशान कर सकता है। अनियंत्रित बोटिंग से समुद्री आक्रमणकारी प्रजातियों का फैलाव भी होता है। जिन इलाकों में ज़्यादा बोट ट्रैफ़िक होता है, वहां समुद्र तट से महत्वपूर्ण प्रजातियां और कीस्टोन प्रजातियां दूर भाग जाती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन आ जाता है।

सतत तटीय पर्यटन क्यों ज़रूरी है ?
1.) आर्थिक लाभ: सतत तटीय पर्यटन से देश को बहुत सारे  फ़ायदे होते हैं। इससे सरकार को पैसे मिलते हैं, रोज़गार के अवसर बनते हैं और व्यापार को भी बढ़ावा मिलता है। जब पर्यटक हमारे देश में आते हैं, तो इससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है। यह आय सरकार के लिए एक बड़ा स्रोत बनती है।
2.) सरकारी राजस्व में योगदान: सरकार को पर्यटन से पैसे सीधे और परोक्ष तरीके से मिलते हैं। सीधे तरीके में, पर्यटकों से आयकर, रोज़गार और पर्यटन से जुड़े शुल्क जैसे इकोटैक्स शामिल होते हैं। परोक्ष तरीके में, पर्यटकों द्वारा खरीदी गई चीजों पर टैक्स आता है, जैसे टिकट, स्मृति चिन्ह, भोजन, होटल का खर्चा आदि। इससे सरकार को काफी राजस्व मिलता है, जो विकास के कामों में लगाया जाता है।
3.) विदेशी मुद्रा: जब विदेशी पर्यटक हमारे देश में आते हैं और यहां खर्च करते हैं, तो इससे हमारे देश को विदेशी मुद्रा मिलती है। यह देश के लिए एक बड़ी आय का स्रोत बनता है। पर्यटन से होने वाली विदेशी मुद्रा आय बहुत महत्वपूर्ण होती है, और कई देशों के लिए यह मुख्य आय का स्रोत है। उदाहरण के लिए, भारत में पर्यटन से विदेशी मुद्रा कमाई होती है, जो देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाती है।
4.) रोज़गार के मौके: पर्यटन से बड़े पैमाने पर रोज़गार के मौके मिलते हैं। जैसे होटलों में, रेस्तरां में, टैक्सी चलाने में, स्मृति चिन्ह बेचने वाले दुकानदारों को काम मिलता है। इसके अलावा, पर्यटन से स्थानीय लोगों को भी काम मिलता है, जैसे गाइड्स और छोटे दुकानदार। पर्यटन के कारण, सरकार को बेहतर सड़कें, पानी, बिजली, और परिवहन जैसी सुविधाएं बनाने का मौका भी मिलता है, जिससे सभी की जिंदगी बेहतर होती है।
5.) स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान: पर्यटन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बहुत फायदा होता है। जैसे सड़क पर विक्रेता, गाइड और अन्य छोटे व्यापारियों को भी काम मिलता है। इनसे पैसा स्थानीय अर्थव्यवस्था में लौटकर आता है और यह फिर से खर्च होता है, जिससे और अधिक लोगों को फायदा मिलता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पर्यटन से जो पैसे मिलते हैं, उनका 100% स्थानीय अर्थव्यवस्था में वापस आता है।
6.) समाज पर सकारात्मक प्रभाव: पर्यटन क्षेत्र में रोज़गार  बढ़ने से, स्थानीय समाज की जीवनशैली में सुधार आता है। पर्यटन से आने वाले पैसे का सही इस्तेमाल सरकारी योजनाओं में होता है, जिससे स्कूल, अस्पताल, सड़कों और अन्य ज़रूरी सुविधाओं का सुधार होता है। साथ ही, पर्यटन से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी कदम उठाए जाते हैं, जैसे प्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठाना और प्राकृतिक धरोहरों का संरक्षण करना। 

आपकी अगली बीच यात्रा को और अधिक  पर्यावरण अनुकूल बनाने के कुछ उपाय:
1.) लंबी उड़ानों को कम करें: अगर आपकी बीच यात्रा लंबी हवाई यात्रा से जुड़ी है, तो उड़ान का सफ़र पर्यावरण पर सबसे ज़्यादा असर डालता है। इसका मतलब है कि भले ही होटल या रिसॉर्ट सतत तरीके से  चलाए जाएं, लेकिन आपकी यात्रा का पर्यावरणीय प्रभाव हमेशा अच्छा नहीं होता। इसलिए, आप  नज़दीकी बीच शहर की यात्रा करें, जिसे आप ट्रेन या अन्य सार्वजनिक परिवहन से आसानी से पहुंच सकते हैं, जैसे मालदीव के बजाय।
2.) इको- फ़्रेंडली रिसॉर्ट्स चुनें: ऐसे रिसॉर्ट्स ढूंढें जो पानी से दूर और छोटे-छोटे भवनों में स्थित हों, जिनका स्वामित्व स्थानीय लोगों के पास हो। इन रिसॉर्ट्स में खिड़कियां होती हैं, जिससे एयर कंडीशनिंग की ज़रूरत कम होती है और यहां एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध होता है। यहां के मेनू में स्थानीय भोजन और पेय होते हैं। कुछ होटल, आपको ऑनलाइन बिजली के स्रोत और कचरे के प्रबंधन के बारे में जानकारी देते हैं। गोल्फ़ कोर्स से बचें क्योंकि ये बहुत सारा पानी खर्च करते हैं और समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।
3.) अधिक विकसित स्थानों से बचें: जब आप कम भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाते हैं, तो आप ज़्यादा विकास को रोक सकते हैं। उदाहरण के लिए, सैंटोरीनी (Santorini) के बजाय ग्रीस के एक शांत द्वीप फ़ोलेगांद्रोस (Folegandros) जाएं या कोस्टा रिका (Costa Rica) के बजाय निकारागुआ चुनें। कम भीड़-भाड़ वाले स्थानों को ज़्यादा पर्यटकों की मदद की जरूरत होती है, और यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को ज़्यादा फायदा पहुंचाता है।
4.) ऐसे रिसॉर्ट्स चुनें जो स्थानीय लोगों को सशक्त बनाते हैं: जब स्थानीय लोग पर्यटन उद्योग में काम करते हैं और इसका स्वामित्व रखते हैं, तो पर्यटन से मिलने वाली आय स्थानीय अर्थव्यवस्था में रहती है, बजाय इसके कि वह विदेशी कंपनियों को चली जाए। इससे स्थानीय लोगों को भी फायदा होता है।
 
संदर्भ:
मुख्य चित्र: कैरिबियाई द्वीप के सेंट मार्टिन (Saint Martin) नामक क्षेत्र में स्थित माहो बीच का दृश्य (Wikimedia)