रामपुर, आइए आज अवगत होते हैं, भारत में वर्नैक्यूलर शिक्षा की शुरुआत और इसके महत्व से

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
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रामपुर, आइए आज अवगत होते हैं, भारत में वर्नैक्यूलर शिक्षा की शुरुआत और इसके महत्व से

छात्रों को उनकी मूल भाषा में पढ़ाने की प्रथा को वर्नाक्यूलर शिक्षा (Vernacular Education) के नाम से जाना जाता है। यह इस विचार पर आधारित है कि मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने से छात्रों के शैक्षिक अनुभव में सुधार हो सकता है। 1854 के "वुड्स डिस्पैच" (Wood’s Despatch) के बाद, भारत में स्थानीय भाषा शिक्षा को महत्वपूर्ण गति मिली, जिसने प्राथमिक शिक्षा में स्थानीय भाषाओं का उपयोग करने की सिफ़ारिश की। तो आइए, आज भारत में वर्नाक्युलर शिक्षा के महत्व और विकास के कालानुक्रमिक क्रम के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम (Vernacular Press Act) के बारे में जानेंगे और आधुनिक भारत में वर्नाक्युलर शिक्षा के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम रामपुर में शैक्षिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति के बारे में समझेंगे।
 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संग्रह से प्राप्त 1866 में कर्नाटक के बैंगलोर हाई स्कूल की मैट्रिकुलेशन कक्षा के विद्यार्थियों की एक तस्वीर। चित्र स्रोत : Wikimedia 


शिक्षा में स्थानीय भाषा का महत्व:

शिक्षा में स्थानीय भाषाओं के उपयोग से परिणामों, भागीदारी और ड्रॉपआउट दर (Droupout rate) पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा मिलने पर छात्रों के शैक्षिक अनुभवों में महत्वपूर्ण रूप से सुधार होता है। स्थानीय भाषा में शिक्षा न केवल वैचारिक स्पष्टता, आत्मविश्वास और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देती है, बल्कि विशेष रूप से ग्रामीण और आर्थिक रूप से वंचित छात्रों को भी लाभान्वित करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 (National Education Policy 2020) के दिशानिर्देशों में, शिक्षा में समानता, पहुंच और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए  स्थानीय भाषाओं का समर्थन किया गया है, जो शिक्षा में स्थानीय भाषाओं के प्रयोग के महत्व को दर्शाता है।

चित्र स्रोत : pxhere

वर्नाक्यूलर शिक्षा के विकास का कालानुक्रमिक क्रम:

ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, भारत में वर्नाक्यूलर शिक्षा के उद्भव से शैक्षिक नीतियों और प्रथाओं में महत्वपूर्ण बदलाव आया। ब्रिटिश प्रभुत्व से पहले, स्वदेशी शिक्षा प्रणालियाँ ज्यादातर पारंपरिक शिक्षण और शिक्षण तकनीकों पर आधारित थीं, जो अक्सर स्थानीय भाषाओं में थीं। ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों ने शैक्षिक वातावरण में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए, विशेष रूप से वर्नाक्यूलर शिक्षा के प्रोत्साहन और विकास के माध्यम से। इस विकास को निम्न प्रकार समझा जा सकता है:

  • 1835, 1836, 1838: बंगाल और बिहार में वर्नाक्यूलर शिक्षा पर विलियम एडम (William Adam) की रिपोर्ट ने कार्यक्रम की खामियों को उजागर किया।
  • 1843-53: उत्तर-पश्चिम प्रांत के लेफ़्टिनेंट गवर्नर, जेम्स जोनाथन ने प्रत्येक तहसील में एक मॉडल स्कूल के रूप में एक सरकारी स्कूल और शिक्षकों के लिए एक सामान्य स्कूल बनाया। 
  • 1853: एक प्रसिद्ध लिखित ब्योरे में, लॉर्ड डलहौजी ने वर्नाक्यूलर शिक्षा के पक्ष में राय व्यक्त की।
  • 1854: वुड्स डिस्पैच द्वारा स्थानीय शिक्षा के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देश स्थापित किए गए थे:
  • मानकों का उत्थान,
  • सरकारी निकाय द्वारा नियंत्रण,
  • शिक्षकों का नियमित स्कूलों में प्रशिक्षण,
  • स्थानीय भाषा में प्राथमिक शिक्षा।
  • 1854-71: ब्रिटिश प्रशासन ने माध्यमिक शिक्षा और वर्नाक्यूलर शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और पहले की तुलना में पांच गुना से भी अधिक स्थानीय भाषा के स्कूल खोले गए।
  • 1882: हंटर आयोग (Hunter Commission) का मानना था कि राज्य को वर्नाक्यूलर शिक्षा के विस्तार और सुधार के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए।
  • 1904: शिक्षा नीति में वर्नाक्यूलर शिक्षा पर विशेष जोर दिया गया और इसके लिए अनुदान बढ़ाया गया।
  • 1929: हार्टोग समिति ने प्राथमिक शिक्षा की निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत की।
  • 1937: वर्नाक्यूलर विद्यालयों को कांग्रेस मंत्रालयों से प्रोत्साहन मिला।
चित्र स्रोत : pexels

वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम:

ब्रिटिश भारत में, आयरिश प्रेस कानूनों पर आधारित वर्नाक्यूलर'  प्रेस अधिनियम' (Vernacular Press Act 1878) को भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता को कम करने और ब्रिटिश नीतियों के प्रति आलोचना की अभिव्यक्ति को रोकने के लिए अधिनियमित किया गया था। सरकार द्वारा जनमत और  उसके प्रति देशद्रोही लेखन को प्रबंधित करने  हेतु स्वदेशी प्रेस को विनियमित करने के लिए, वर्नाक्युलर प्रेस अधिनियम, 1878 को अपनाया गया। यह अधिनियम, भारत के तत्कालीन वायसराय लिटन द्वारा प्रस्तावित किया गया और 14 मार्च 1878 को वायसराय लॉर्ड लिटन (Lord Lytton) की परिषद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया। इस अधिनियम में अंग्रेज़ी भाषा के प्रकाशनों को शामिल नहीं किया गया था, क्योंकि इसका उद्देश्य दक्षिण को छोड़कर देश में हर जगह 'ओरिएंटल भाषाओं में प्रकाशनों' में देशद्रोही लेखन को नियंत्रित करना था। इस अधिनियम ने सरकार को निम्नलिखित तरीकों से प्रेस पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार दिया:

  • आयरिश प्रेस अधिनियम पर आधारित, इस अधिनियम ने सरकार को वर्नाक्युलर प्रेस में रिपोर्ट और संपादकीय को सेंसर करने के व्यापक अधिकार प्रदान किए।
  • सरकार  विभिन्न भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों पर नियमित रूप से नज़र रखने लगी।
  • यदि किसी अखबार में छपने वाली किसी रिपोर्ट को देशद्रोही करार दिया जाता था, तो उस अखबार को चेतावनी दी जाती थी।

भारत में वर्नाक्यूलर शिक्षा के कार्यान्वयन में चुनौतियां:

सीमित नामांकन: अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education (AICTE)) के अनुसार, एन ई पी 2020 (National Education Policy 2020) के हिस्से के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम शुरू करने के प्रयासों के बावजूद, शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में, क्षेत्रीय भाषाओं में बीटेक कार्यक्रमों के लिए आवंटित 1,140 सीटों में से केवल 233 सीटें भरी गईं। 2022-23 तक इस आंकड़े में थोड़ा सुधार हुआ, लेकिन कई कॉलेजों में अभी भी पर्याप्त रिक्तियां बनी हुई हैं। उदाहरण के लिए, गुजरात तकनीकी विश्वविद्यालय (Gujarat Technological University) में गुजराती-माध्यम पाठ्यक्रमों के लिए कोई नामांकन नहीं हुआ, जो यह दर्शाता है कि कई छात्र स्थानीय भाषा-आधारित इंजीनियरिंग शिक्षा का चयन करने में झिझक रहे हैं।

धारणा संबंधी समस्याएं: तकनीकी साहित्य और अनुसंधान में अंग्रेज़ी के व्यापक उपयोग के कारण, कई छात्रों का मानना है कि अपनी मातृभाषा में इंजीनियरिंग करने से उनके रोज़गार के अवसर सीमित हो सकते हैं और वैश्विक नौकरी बाज़ार में उनकी क्षमता सीमित हो सकती है।

सीमित संसाधन: इसकी प्रमुख चुनौतियों में से एक क्षेत्रीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक सामग्री की कमी है। अधिकांश पाठ्यपुस्तकें और शैक्षणिक संसाधन अभी भी अंग्रेज़ी आशा में हैं, जिससे छात्रों के लिए अपनी मातृभाषा में पाठ्यक्रम से पूरी तरह जुड़ना कठिन हो गया है। कुछ संस्थानों ने द्विभाषी दृष्टिकोण लागू करने का प्रयास किया है, लेकिन इन प्रयासों से अभी तक नियुक्ति और परीक्षाओं के दौरान भाषा दक्षता के बारे में चिंताओं का समाधान नहीं हुआ है।

चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह 

रामपुर में शैक्षिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:

रामपुर और  यहाँ के गांवों में शैक्षिक क्षेत्र, लगातार विकसित हो  रहे हैं । हमारे शहर में कई माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और कॉलेज हैं। काशीपुर-अंगा, केमरी, बिलासपुर आदि जैसे आसपास के स्थानों के छात्रों के लिए यहां के शैक्षणिक संस्थान मुख्य आकर्षण हैं। उच्च शिक्षा के लिए शहर के कई नए संस्थान मुख्य रूप से एमजेपी रोहिलखंड विश्वविद्यालय, बरेली से संबद्ध हैं। हालाँकि  यहाँ कई शैक्षणिक संस्थान हैं, लेकिन अभी भी रामपुर  का औसत साक्षरता दर, 53.34% है, जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से कम है। पुरुष साक्षरता दर 61.40% है, और महिला साक्षरता दर 44.44% है। मुहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय (Mohammad Ali Jauhar University) यहां स्थापित होने वाला पहला विश्वविद्यालय है। रामपुर के ग्रामीण इलाकों में कई सार्वजनिक और सरकारी प्राथमिक विद्यालय भी शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/h9wp25ka

https://tinyurl.com/mr29tbv7

https://tinyurl.com/2vrdtmjw

https://tinyurl.com/yh6yk7vt

https://tinyurl.com/ytwvm558
 

मुख्य चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह