हमारे रामपुर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति बढ़ रही है जागरूकता !

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
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हमारे रामपुर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति बढ़ रही है जागरूकता !

हमारा मानसिक स्वास्थ्य, हमारी सोच, भावनाओं, हमारे आसपास की दुनिया की धारणा और हमारे कार्यों को प्रभावित करता है। भारत में मनोरोग संबंधी बीमारी को लंबे समय से एक वर्जित और कलंकित विषय माना जाता रहा है, जहां व्यक्तियों को अपनी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब आपको यह जानकर खुशी होगी कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ रही है। 2021 में एक सर्वेक्षण के दौरान, नौ भारतीय महानगरीय केंद्रों में 3497 उत्तरदाताओं में से, 92 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने जवाब दिया कि वे अपने या अपने किसी परिचित के मानसिक विकारों की स्थिति में पेशेवर मनोचिकित्सक से उपचार लेंगे, जो 2018 में 54 प्रतिशत से अधिक है। हालांकि, अभी भी पूरे देश में मानसिक रोगों को लेकर जागरूकता कम है। तो आइए, आज भारत में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने में आने वाली चुनौतियों के बारे में जानते हुए समझने का प्रयास करते हैं कि हमारे देश में अन्य शारीरिक बीमारियों की तुलना में इस प्रकार की बीमारी पर उतना ध्यान क्यों नहीं दिया जाता है। इसके साथ ही, हम भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से संबंधित कुछ प्रमुख आंकड़ों और मनोचिकित्सकों की कमी के मुद्दे पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए हाल के वर्षों में उठाए गए कदमों और उपायों पर कुछ प्रकाश डालेंगे।

चित्र स्रोत : pexels 

भारत में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने में आने वाली चुनौतियां:

  • संसाधनों की कमी: भारत में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों और सुविधाओं की कमी है, जिससे लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचना मुश्किल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, मौजूदा सेवाएं भी अधिकांश आबादी के लिए वहनीय नहीं हैं।
  • सीमित ज्ञान: भारत में सामान्य आबादी के बीच मानसिक स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान और समझ की कमी है। बहुत से लोगों को मानसिक बीमारी के लक्षणों या मदद लेने के तरीके के बारे में जानकारी नहीं होती है।
  • सांस्कृतिक मान्यताएँ: मानसिक बीमारी से जुड़ी पारंपरिक मान्यताएं भी चिकित्सीय मदद में बाधा बन सकती हैं। भारत में आज भी कई लोग मानते हैं कि मानसिक बीमारी अलौकिक या आध्यात्मिक कारकों के कारण होती है और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के बजाय पारंपरिक चिकित्सकों से मदद लेते हैं।
  • सरकारी समर्थन का अभाव: भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को संबोधित करने के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित नहीं किए गए हैं, और कई मौजूदा मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम जनसंख्या के अनुरूप अपर्याप्त हैं।

इन चुनौतियों से कैसे निपटें:

इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए, भारत में मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करने की दिशा में अधिक संसाधनों और प्रयासों की आवश्यकता है। इसमें मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बढ़ाना, जनता को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शिक्षित करना और मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक को कम करना शामिल है। इसके अतिरिक्त, मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास में धार्मिक और सामुदायिक नेताओं को शामिल करना लाभदायक हो सकता है।

चित्र स्रोत : pexels 

भारत में मानसिक बीमारी कलंक क्यों है:

आज भी भारत में मानसिक बीमारी को अक्सर अंधविश्वास और अज्ञानता के चश्मे से देखा जाता है। बहुत से लोग मानते हैं कि मनोरोग संबंधी बीमारियाँ व्यक्तिगत कमज़ोरी, बुरे कर्म या यहाँ तक कि बुरी आत्माओं के कब्ज़े के कारण होती हैं। ये अंधविश्वास, मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से पीड़ित व्यक्तियों को समाज में स्वयं को शर्मिंदा अनुभव कराते हैं। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को अक्सर एक पारिवारिक मामला माना जाता है, जिसे लोगों की नज़रों से छिपाकर रखा जाना चाहिए। अधिकांश लोग, पेशेवर मदद लेने से झिझकते हैं। मानसिक बीमारी से जुड़ा कलंक सामाजिक अलगाव, रोज़गार के अवसरों की हानि और परिवार और दोस्तों के साथ तनावपूर्ण संबंधों को जन्म दे सकता है। इससे पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे व्यक्तियों की पीड़ा और भी अधिक बढ़ जाती है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से संबंधित कुछ प्रमुख आँकड़े:

भारत में लगभग 60 से 70 मिलियन (6 से 7 करोड़) लोग, सामान्य और गंभीर मानसिक विकारों से पीड़ित हैं। यह एक चिंता का विषय है कि पूरी दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्या भारत में होती है, जहां एक वर्ष में आत्महत्या के लगभग 2.6 लाख से अधिक मामले सामने आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रति लाख लोगों पर आत्महत्या की औसत दर 10.9 है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य रोगियों की चिंताजनक संख्या को देखते हुए यह जानना आवश्यक है कि हम भारत में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से निपटने के लिए कितने सक्षम हैं। भारत में प्रति 100,000 लोगों पर केवल 0.3 मनोचिकित्सक, 0.07 मनोवैज्ञानिक और 0.07 सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वहीं, विकसित देशों में मनोचिकित्सकों का अनुपात प्रति 100,000 पर 6.6 है और वैश्विक स्तर पर मानसिक अस्पतालों की औसत संख्या प्रति 100,000 पर 0.04 है जबकि भारत में यह केवल 0.004 है।

चित्र स्रोत : pxhere

भारत में मनोचिकित्सकों की संख्या कम क्यों हैं:

  • अपर्याप्त स्नातक शिक्षा: विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में न के बराबर स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रम (Undergraduate medical courses), मनोचिकित्सा पर केंद्रित है। स्नातक स्तर पर, मनोचिकित्सा पर बहुत कम अनिवार्य परीक्षाएं होती हैं और पाठ्यक्रम भी कठोर नहीं हैं।
  • स्नातकोत्तर सीटों की सीमित संख्या: जब मनोचिकित्सा में स्नातकोत्तर शिक्षा (postgraduate education) की बात आती है, तो मेडिकल कॉलेजों में पर्याप्त सीटें उपलब्ध नहीं हैं। वर्तमान में, भारत में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में केंद्र द्वारा वित्त पोषित केवल 21 उत्कृष्टता केंद्र हैं। मनोचिकित्सा में अति विशेषज्ञता पाठ्यक्रम बहुत कम हैं। अब तक, भारत में केवल दो अति विशेषज्ञता पाठ्यक्रम हैं - बाल और किशोर मनोचिकित्सा, तथा वृद्धावस्था मानसिक स्वास्थ्य। 
  • चिकित्सकों का पलायन: भारत में पर्याप्त मनोचिकित्सकों की कमी का एक और कारण यह है कि अधिकांश मनोचिकित्सक, विदेशों में बेहतर संभावनाओं की तलाश में देश छोड़ देते हैं। भारत में अच्छे अवसरों की कमी के कारण प्रतिभा पलायन होता है, जो जनसंख्या में मनोचिकित्सकों के विषम अनुपात को देखते हुए विडंबनापूर्ण है। यह विडंबना ही तो है कि भारत में जितने मनोचिकित्सक हैं, उससे कहीं अधिक मनोचिकित्सक पश्चिमी देशों में भारतीय मूल के हैं।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए उठाए गए कदम और उपाय:

देश में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए भारत सरकार, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। भारत सरकार द्वारा देश में 'राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम' (National Mental Health Programme (NMHP)) लागू किया गया है, जिसके तृतीयक देखभाल घटक के तहत, मानसिक स्वास्थ्य विशिष्टताओं में पीजी विभागों में छात्रों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ तृतीयक स्तर की उपचार सुविधाएं प्रदान करने के लिए 25 उत्कृष्टता केंद्रों को मंजूरी दी गई है।  इसके अलावा, सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य विशिष्टताओं में 47 पीजी विभागों को  मज़बूत करने के लिए 19 सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों को भी समर्थन दिया गया है। एन एम एच पी (National Mental Health Programme (NMHP)) के ज़िला '  मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम' को 767  ज़िलों में कार्यान्वयन के लिए  मंज़ूरी दे दी गई है, जिसके लिए, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को सहायता प्रदान की जाती है। 

सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को  मज़बूत करने के लिए भी कदम उठा रही है। सरकार द्वारा 1.73 लाख से अधिक उप स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में अपग्रेड किया है। इन आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में प्रदान की जाने वाली व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के तहत सेवाओं के पैकेज में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को जोड़ा गया है। 

निमहंस (NIMHANS) द्वारा आयोजित की गई मानसिक स्वाथ्य के महत्त्व की जागरूकता फैलाने के लिए एक कार्यशाला
| चित्र स्रोत : Wikimedia

2018 में भारत सरकार द्वारा तीन केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों - राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (National Institute of Mental Health and Neuro Sciences (NIMHANS)), बेंगलुरु, लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Lokopriya Gopinath Bordoloi Regional Institute of Mental Health (LGBRIMH)), तेजपुर, असम और केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (Central Institute of Psychiatry (CIP)), रांची - की स्थापना की गई, जहां डिजिटल अकादमियों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सा और पैरा-मेडिकल पेशेवरों की विभिन्न श्रेणियों को ऑनलाइन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम प्रदान किया जाता है। डिजिटल अकादमियों के तहत प्रशिक्षित पेशेवरों की कुल संख्या 42,488 है।

साथ ही, 66 संस्थान/विश्वविद्यालयों में 'एम.फिल चिकित्सा मनोविज्ञान' पाठ्यक्रम उपलब्ध है। शैक्षणिक सत्र 2024-25 से चिकित्सा मनोविज्ञान में अधिक पेशेवरों को विकसित करने के लिए, चिकित्सा मनोविज्ञान (ऑनर्स) पाठ्यक्रम और इस पाठ्यक्रम की पेशकश करने के लिए 19 विश्वविद्यालयों को  मंज़ूरी दी गई। उपरोक्त के अलावा, सरकार द्वारा देश में गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और देखभाल सेवाओं तक पहुंच को और बेहतर बनाने के लिए 10 अक्टूबर 2022 को एक "राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम" शुरू किया गया। 22 नवंबर 2024 तक, 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 53 टेली मानस सेल स्थापित किए गए हैं और टेली मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं शुरू की गई हैं। 10 अक्टूबर, 2024 को 'विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस' के अवसर पर सरकार द्वारा टेली मानस मोबाइल एप्लिकेशन भी लॉन्च की गई। टेली-मानस मोबाइल एप्लिकेशन, एक व्यापक मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म है जिसे मानसिक स्वास्थ्य से लेकर मानसिक विकारों तक के मुद्दों के लिए सहायता प्रदान करने के लिए विकसित किया गया है।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/yvp5mcaj

https://tinyurl.com/mvkype2b

https://tinyurl.com/5h4tvcms

https://tinyurl.com/3ykxdk84

https://tinyurl.com/3v2fz4th

मुख्य चित्र स्रोत : pexels