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महेश्वर में स्थित नर्मदा घाट सदियों से मध्य प्रदेश का एक प्रमुख आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है। यह ऐतिहासिक शहर, भारत की पवित्र नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर बसा हुआ है। यहाँ के घाट न केवल धार्मिक आस्था से जुड़े हैं, बल्कि महेश्वर की पहचान और इसकी समृद्ध विरासत के प्रतीक भी हैं। जबकि, पुणे में मुला-मुथा नदी (Mula Mutha River) के किनारे एक आधुनिक रिवरफ़्रंट परियोजना पर काम हो रहा है। इस प्रोजेक्ट की योजना 2000 के दशक में बनाई गई थी, और 2022 में इसका निर्माण शुरू हुआ। पुणे नगर निगम इस रिवरफ़्रंट को शहर के विकास और सौंदर्यीकरण के नजरिए से तैयार कर रहा है।
आज के इस लेख में हम इन दोनों रिवरफ़्रंट की विस्तार से तुलना करेंगे। सबसे पहले, हम महेश्वर के ऐतिहासिक घाटों और उनके महत्व को समझेंगे। फिर, यह जानेंगे कि अहिल्या घाट कैसे महेश्वर की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है। इसके बाद, पुणे रिवरफ़्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (Pune Riverfront Development Project) में हो रहे बदलावों पर नज़र डालेंगे। इस दौरान, हम इसके बजट और इसकी आवश्यकता पर भी चर्चा करेंगे। अंत में, हम मुला-मुथा रिवरफ़्रंट विकास से जुड़े कुछ संभावित नुकसानों को समझने की कोशिश करेंगे।
आइए सबसे पहले आपको महेश्वर में नर्मदा घाट से परिचित कराते हैं:
मध्य प्रदेश के खरगोन ज़िले में स्थित महेश्वर में नर्मदा नदी पर चार प्रमुख घाट (अहिल्या घाट, पेशवा घाट, महिला घाट और फांसे घाट) हैं। ये सभी घाट भव्य मंडप की तरह दिखते हैं, जैसे किसी मंच पर कोई शानदार प्रस्तुति होने वाली हो। किले, घाट और नर्मदा नदी का संगम एक अद्भुत नज़ारा पेश करता है। अगर आप वाराणसी और महेश्वर के घाटों को देखें, तो इनमें कई समानताएँ मिलेंगी। अहिल्या बाई होल्कर ने वाराणसी में कुछ घाटों के निर्माण के लिए आर्थिक सहायता दी थी। ऐसा माना जाता है कि महेश्वर के घाटों को बनाने की प्रेरणा भी उन्होंने वहीं से ली थी!
महेश्वर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। पहले इसे महिष्मती के नाम से जाना जाता था। यह वही महिष्मती है, जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। राजा कार्तवीर्य अर्जुन के शासनकाल में यह एक समृद्ध राजधानी हुआ करती थी। यह क्षेत्र कई राजवंशों का साक्षी रहा है। 18वीं शताब्दी में जब होलकर वंश का शासन था, तब यह और भी प्रसिद्ध हुआ। खासकर रानी अहिल्याबाई होलकर के समय में महेश्वर एक सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ। उन्होंने घाटों के किनारे कई भव्य मंदिरों और किलों का निर्माण करवाया। आज भी ये ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं।
अहिल्या घाट से महेश्वर की अर्थव्यवस्था को कैसे बढ़ावा मिलता है?
महेश्वर, सिर्फ़ अपने ऐतिहासिक स्थलों के लिए ही नहीं, बल्कि महेश्वरी साड़ियों के लिए भी मशहूर है। नर्मदा घाटों के पास कई बुनकर इन खूबसूरत साड़ियों को तैयार करते हैं। पर्यटक यहाँ आकर न सिर्फ़ इनकी बुनाई की कला देखते हैं, बल्कि इन्हें सीधे बुनकरों से खरीदते भी हैं। इसके अलावा, महेश्वर का अहिल्या किला यानी रानी का किला भी बेहद प्रसिद्ध है। यह किला महेश्वर की स्थापत्य कला की भव्यता को दर्शाता है। इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है।
आइए अब जानते हैं कि पुणे रिवरफ़्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट क्या है?
मुला और मुथा नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं और पुणे के संगम ब्रिज पर मिलकर मुला-मुथा नदी बनाती हैं, जो आगे बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है। एक समय में पुणे की जीवनरेखा मानी जाने वाली ये नदियाँ आज प्रदूषण और क्षरण का शिकार हो चुकी हैं। पुणे नगर निगम (PMC) ने 2016 में इन नदियों के सौंदर्यीकरण की योजना बनाई थी। अब, यह योजना पुणे नदी कायाकल्प परियोजना के रूप में साकार होने जा रही है। इस प्रोजेक्ट को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (Public Private Partnership (PPP)) के तहत लागू किया जाएगा।
इस प्रोजेक्ट को 2021 में मिली थी और इसकी अनुमानित लागत ₹4,727 करोड़ है। इसे 10 सालों में 11 चरणों में पूरा करने की योजना है।
परियोजना के तहत निम्नलिखित क्षेत्र शामिल होंगे:
इन नदियों से जुड़े 5 बांध और जलग्रहण क्षेत्र भी परियोजना का हिस्सा होंगे:
इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य नदियों को पुनर्जीवित करना और बाढ़, प्रदूषण, कचरा डंपिंग जैसी समस्याओं का समाधान करना है।
बाढ़ नियंत्रण: नदी के प्रवाह में बाधाओं को हटाना और तटों को व्यवस्थित करना।
प्रदूषण प्रबंधन: अनुपचारित सीवेज के निर्वहन और ठोस अपशिष्ट डंपिंग को रोकना।
नदी तटों का संरक्षण: नदी के तल और किनारों की स्थिति सुधारना।
पुणे नगर निगम (Pune Municipal Corporation (PMC)) मुला नदी के 44 किलोमीटर लंबे हिस्से पर तटबंध बनाने की योजना बना रहा है। यह वही नदी है, जो पुणे में मुथा नदी से मिलने के बाद मुला-मुथा कहलाती है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य बाढ़ के खतरे को कम करना और नदी के प्रदूषण को नियंत्रित करना है। पुणे में नौ जल-मल शोधन संयंत्र (Sewage Treatment Plants (STP)) हैं, जो प्रतिदिन लगभग 600 मिलियन लीटर (MLD) गंदे पानी को फ़िल्टर करते हैं। यह शहर में उत्पन्न होने वाले कुल 930 एम एल डी सीवेज का एक बड़ा हिस्सा है, जिसे शुद्ध करने के बाद नदी में प्रवाहित किया जाता है।
हालांकि किसी रिवरफ़्रंट के कारण उसके आसपास बसे शहर को कई फ़ायदे होते हैं, लेकिन इसके अपने कुछ नुकसान भी हैं! अधिकतर शहरों में नदी किनारों पर रिवरफ़्रंट डेवलपमेंट के नाम पर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किए जाते हैं। इनमें नदी के किनारे दीवारें बनाना, बाढ़ को रोकने के लिए तटबंध (Embankments) तैयार करना, धार्मिक गतिविधियों के लिए घाटों का निर्माण और आम जनता के लिए पार्क और पाथवे बनाना शामिल होता है।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के निर्माण कार्य नदी के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र (ecology) के लिए बेहद नुकसानदायक होते हैं। उदाहरण के लिए, जब नदी किनारे तटबंध या दीवारें बनाई जाती हैं, तो उनकी नींव 30 से 40 फीट गहराई तक जाती है। इससे जमीन के नीचे मौजूद जलस्तर (Aquifers) पर असर पड़ता है, जिससे पानी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो सकता है।
इसके अलावा, इस तरह के निर्माण कार्यों से नदी की चौड़ाई कम हो जाती है, जिससे बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो सकती है। जब पानी के बहाव के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती, तो भारी बारिश के दौरान जलभराव बढ़ सकता है, जिससे शहरों में बाढ़ की आशंका बढ़ जाती है।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/26r6b73w
https://tinyurl.com/27dl8zpw
https://tinyurl.com/2qd5rwrs
https://tinyurl.com/28wcj966
मुख्य चित्र: नर्मदा नदी पर स्थित घाट तथा अहिल्या किला और मुला-मुथा नदी के संगम पर एक बंधारा (flickr , Wikimedia)