चलिए समझते हैं, ग्रामीण भारत में मातृ स्वास्थ्य देखभाल के सुधार के लिए ज़रूरी उपायों को

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
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चलिए समझते हैं, ग्रामीण भारत में मातृ स्वास्थ्य देखभाल के सुधार के लिए ज़रूरी उपायों को

मातृ एवं नवजात शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए, महिलाओं के लिए 'प्रसवपूर्व (Prenatal care) और प्रसवोत्तर देखभाल (Postnatal care) ' अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। हालाँकि, भारत में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं पर पांच दशक पुराने परिवार कल्याण कार्यक्रम के बावजूद, भारत में अभी भी मातृ रुग्णता और मृत्यु दर वैश्विक अनुमान की लगभग एक चौथाई है। ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन’ (National Health Mission (NHM)) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019-21 में भारत में केवल 70% महिलाओं ने गर्भावस्था के समय पहली तिमाही में जांच कराई, जबकि 58.1% महिलाओं ने प्रसवपूर्व देखभाल के लिए कम से कम चार दौरे किए। तो आइए, आज ग्रामीण भारत में मातृ स्वास्थ्य देखभाल की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए समझते हैं कि हाल के वर्षों के दौरान, भारत में कितनी महिलाओं को प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त हुई। इसके साथ ही, हम ग्रामीण भारत में मातृ स्वास्थ्य देखभाल में आने वाली कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम अपने देश के ग्रामीण अस्पतालों में मातृ स्वास्थ्य देखभाल पहुंच में सुधार के लिए कुछ उपायों पर चर्चा करेंगे।

ग्रामीण भारत में मातृ स्वास्थ्य देखभाल की वर्तमान स्थिति:

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (National Family Health Survey-5 (2019-21)) में, 130,312 महिलाओं पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रामीण भारत में, 54.3% गर्भवती महिलाओं ने प्रसवपूर्व चार या अधिक देखभाल दौरे किए, 88.6% महिलाओं को प्रसव के लिए उपयुक्त स्थितियां प्राप्त हुई, जबकि 75.5% माताओं और 79.8% नवजात शिशुओं को जन्म के 48 घंटों के भीतर प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त हुई। हालाँकि, ग्रामीण भारत में केवल 43.5% माताओं-नवजात शिशुओं को मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य देखभाल की सभी चार सेवाओं का लाभ मिला।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

 
मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता के पूर्ण उपयोग में भौगोलिक असमानताएं महत्वपूर्ण कारक थीं। मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों, पश्चिमी महाराष्ट्र और मध्य ओडिशा के जिलों और पूर्वोत्तर राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, असम और नागालैंड में भौगोलिक असमानताएं सबसे अधिक थीं। इसके अलावा, ग्रामीण भारत में मातृ शिक्षा, आर्थिक असमानता, स्वास्थ्य बीमा कवरेज़ और जनसंचार माध्यमों की कमी जैसे कारक देखभाल की निरंतरता के पूर्ण उपयोग को प्रभावित करने वाले प्रमुख निर्धारकों में शामिल है।

भारत में प्रसवोत्तर देखभाल की वर्तमान स्थिति:

भारत में प्रसवोत्तर देखभाल, मातृ देखभाल के सबसे उपेक्षित घटकों में से एक है।  ऊपर बताए गए सर्वेक्षण में शामिल केवल 42% महिलाओं को प्रसव के बाद देखभाल प्राप्त हुई। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 34% महिलाओं की तुलना में शहरी क्षेत्रों में 66% महिलाओं में प्रसवोत्तर जांच होने की संभावना दोगुनी होती है।  ज़िला स्तरीय घरेलू सर्वेक्षण-3 (District Level Household Survey-3) के निष्कर्षों के भी अनुसार भी, ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में यह अंतर हमेशा की तरह व्यापक बना हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि ग्रामीण भारत में, लगभग 70% भारतीय आबादी निवास करती है, वहां अच्छी गुणवत्ता वाली देखभाल की पहुंच कम है। शहरी क्षेत्रों में भी, गरीबों के बीच स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में ज्ञान और जागरूकता की कमी, सेवा प्रदाताओं और समुदायों के बीच कम संबंध और पारस्परिक संवाद की कमी के कारण, इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं गंभीर रूप से बाधित हैं।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

ग्रामीण भारत में मातृ स्वास्थ्य देखभाल के लिए सबसे बड़ी चुनौतियां:

  • भौगोलिक और बुनियादी ढाँचे की बाधाएं: ग्रामीण भारत में भौगोलिक अलगाव स्वास्थ्य देखभाल की पहुंच में प्राथमिक बाधाओं में से एक है। छोटे-छोटे गांव अक्सर निकटतम स्वास्थ्य सुविधा से दूर स्थित होते हैं, जहां तक पहुंचना खराब सड़क बुनियादी ढांचे के कारण मुश्किल हो जाता है, खासकर मानसून के मौसम में। इस भौगोलिक अलगाव के कारण, प्रसवपूर्व और आपातकालीन देखभाल तक पहुंच में देरी होती है, जिससे प्रसव (Delivery) के दौरान, जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।
  • वित्तीय बाधाएं: स्वास्थ्य देखभाल की लागत ग्रामीण महिलाओं के लिए एक और महत्वपूर्ण बाधा है। हालाँकि, आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं मुफ़्त होती हैं, लेकिन प्रसवपूर्व एवं प्रसवोत्तर देखभाल के लंबे समय के लिए परिवहन, दवाएं और अनौपचारिक भुगतान जैसे अतिरिक्त खर्च वहन करना कम आय वाले परिवारों के लिए मुश्किल होता है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं: ग्रामीण महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में सामाजिक-सांस्कृतिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रसव, लिंग भूमिका और गर्भावस्था के दौरान, किसी महिला की यात्रा से संबंधित सांस्कृतिक मानदंड अक्सर महिलाओं को कुशल चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने से रोकते हैं। कई ग्रामीण समुदायों में तो आज भी, परिवार की  बुज़ुर्ग महिलाएं या पारंपरिक प्रसव परिचारिकाएं, जिन्हें दाई के नाम से भी जाना जाता है, प्रसव कराती हैं जिससे  इस गतिविधि के दौरान, स्वास्थ्य जोखिम और बढ़ जाते हैं।
चित्र स्रोत : Wikimedia 

ग्रामीण अस्पतालों में मातृ स्वास्थ्य देखभाल पहुंच में सुधार के लिए समाधान:

  • टेलीमेडिसिन और प्रौद्योगिकी (Telemedicine and Technology): ग्रामीण अस्पतालों में मातृ स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच बढ़ाने में, टेलीमेडिसिन और प्रौद्योगिकी का एकीकरण एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में उभर कर सामने आया है। ये नवाचार, न केवल भौगोलिक अंतराल को पाटते हैं, बल्कि अधिक कुशल और व्यापक स्वास्थ्य सेवा वितरण की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  • सहयोगात्मक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल (Collaborative Healthcare Models): ग्रामीण अस्पतालों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए सहयोगात्मक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल, नवीन रणनीतियों के रूप में उभरे हैं। शहरी अस्पतालों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देकर और सामुदायिक स्वास्थ्य संगठनों के साथ नेटवर्क स्थापित करके, ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाएं, अपनी क्षमताओं को बढ़ा सकती हैंऔर सेवा वितरण में सुधार कर सकती हैं, जिससे इन समुदायों को व्यापक देखभाल प्राप्त हो सकती है।
  • बुनियादी ढांचा और संसाधन विकास (Infrastructure and Resource Development): अस्पतालों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं के निरंतर प्रावधान को सुनिश्चित करने के लिए, ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल में बुनियादी ढांचा और संसाधन विकास महत्वपूर्ण है। चिकित्सा उपकरणों का आधुनिकीकरण करके, पुराने बुनियादी ढांचे को  विकसित और भौतिक बुनियादी ढांचे का विस्तार करके, नैदानिक ​​क्षमताओं को बढ़ाया जा सकता है, रोगी देखभाल को सुव्यवस्थित , टेलीहेल्थ समाधानों का एकीकरण करके जटिल मातृ मामलों के लिए दूरस्थ परामर्श और विशेषज्ञ सहयोग प्राप्त   और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती मांग को समायोजित किया जा सकता है।
चित्र स्रोत : Wikimedia 
  • सामुदायिक शिक्षा (Community Education and Outreach): सामुदायिक शिक्षा, ग्रामीण क्षेत्रों में मातृ स्वास्थ्य देखभाल पहुंच में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है। जागरूकता को बढ़ावा देकर और सांस्कृतिक और भाषाई बाधाओं को दूर करके, इन प्रयासों का उद्देश्य समुदायों को सशक्त बनाना और स्वास्थ्य सेवाओं के साथ बेहतर जुड़ाव की सुविधा प्रदान करना है।
  • सरकारी नीतियां और समर्थन (Government Policies and Support): सरकारी नीतियां और समर्थन ग्रामीण क्षेत्रों में मातृ स्वास्थ्य देखभाल के परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल के लिए वित्त पोषण पहल का कार्यान्वयन और इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को प्रोत्साहित करने के लिए विधायी उपाय चुनौतियों पर काबू पाने और समग्र मातृ स्वास्थ्य देखभाल पहुंच में सुधार के लिए महत्वपूर्ण हैं।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/4nj5xmd4

https://tinyurl.com/2fzvd9ms

https://tinyurl.com/3hvx8ctn

https://tinyurl.com/yvy7pjma

मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia