रामायण के आध्यात्मिक प्रतीकवाद को समझते हुए, आइए मनाएं राम नवमी का त्योहार

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
05-04-2025 09:23 AM
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रामायण के आध्यात्मिक प्रतीकवाद को समझते हुए, आइए मनाएं राम नवमी का त्योहार

 हमारे शहर के कई लोग ये बात जानते होंगे कि राम नवमी, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को  मनाई जाती है। हिंदू धर्म में यह दिन अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। इस वर्ष राम नवमी का  त्योहार 6 अप्रैल 2025 अर्थात कल  मनाया  जाएगा। हमारे शहर रामपुर में भी जीवंत रामलीला प्रदर्शनों, लोककथाओं और रज़ा लाइब्रेरी में उपलब्ध दुर्लभ पांडुलिपियों के साथ रामायण की भावना आज भी जीवंत है। रज़ा लाइब्रेरी में उपलब्ध दुर्लभ पांडुलिपियों की समृद्ध विरासत इस महाकाव्य के धर्म, भक्ति और विजय के संदेशों को खूबसूरती से दर्शाती हैं! वास्तव में, रामायण एक ऐसा भारतीय महाकाव्य है, जो गहन आध्यात्मिक प्रतीकवाद प्रस्तुत करता है। भगवान राम आत्मा का प्रतीक हैं, सीता हृदय का और रावण मन का। लक्ष्मण चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि हनुमान साहस और अंतर्ज्ञान का। हिंदू परंपरा में, राम को अक्सर एक आदर्श इंसान के रूप में चित्रित किया जाता है, जो धर्म, करुणा, कर्तव्य और त्याग जैसे गुणों का प्रतीक है, और उन्हें "मर्यादा पुरूषोत्तम" या पूर्ण पुरुष माना जाता है। तो आइए, आज रामायण की कहानी और उसके प्रतीकों को विस्तार से जानते हुए यह समझने का प्रयास करते हैं कि रामायण के प्रमुख पात्र प्रतीक रूप में क्या दर्शाते हैं? इसके साथ ही, हम कुछ महत्वपूर्ण रामायण प्रतीकों (Symbols),  और रूपांकनों (Motifs) पर प्रकाश डालेंगे।

वन में हनुमान जी से मिलते श्री राम | चित्र स्रोत : Wikimedia 

रामायण की कहानी और उसके प्रतीकवाद:

राम द्वारा सीता की खोज- साधक की खोज: 

राम द्वारा सीता की खोज यात्रा आध्यात्मिक साधक की खोज का प्रतिनिधित्व करती है। रावण के दस सिर दस इंद्रियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। रावण द्वारा सीता (आंतरिक शांति) का अपहरण दर्शाता है कि कैसे आत्मा, शुरू में परमात्मा (सर्वोच्च स्व) की स्थिति में, भौतिक लगाव और भ्रम की खोज के कारण जीवात्मा (व्यक्तिगत स्व) की स्थिति में गिर जाती है, जिसका प्रतीक स्वर्ण मृग है। जैसे राम सीता को पुनः प्राप्त करने के लिए निकलते हैं, आध्यात्मिक साधक अपने वास्तविक स्वरूप को फिर से खोजने और खोई हुई शांति को पुनः प्राप्त करने की खोज में निकल पड़ते हैं।
सेतु निर्माण- ज्ञान का मार्ग: 

सुग्रीव और उसकी सेना की मदद से, राम द्वारा विशाल महासागर को पार करने हेतु पुल का निर्माण, साधना में साधक के प्रयासों का प्रतिनिधित्व करता है। पुल ज्ञान का प्रतीक है, जो साधक को संसार के सागर को पार करने और आत्म-प्राप्ति के तट तक पहुंचने में मदद करता है।

यह चित्र, 19वीं शताब्दी की रामा थग्यिन नामक रामायण पांडुलिपि का एक भाग है, विशेष रूप से, जो रामायण का म्यांमार संस्करण है। इसमें लंका जाने के लिए समुद्र पार करने हेतु पत्थर के पुल का निर्माण करती वानर सेना को दिखाया गया है |  चित्र स्रोत : Wikimedia 

सागर पार करना- मोह सागर को पार करना:

भारत और लंका के बीच का विशाल महासागर, संसार या मोह के सागर का प्रतिनिधित्व करता है। इस महासागर की लहरें, जीवन के उतार-चढ़ाव का प्रतिनिधित्व करती हैं। समुद्र की गहराई गहन अज्ञान का प्रतीक है। पानी में छिपे राक्षस राग-द्वेष का प्रतीक हैं। साधक को अपनी साधना से मोह एवं अज्ञान से भरे इस सागर को पार करना होता है। 

राम के अस्त्र- आध्यात्मिक विकास के लिए उपकरण:

राम के धनुष और तीर, जिनके द्वारा उन्होंने अपने सभी शत्रुओं का विनाश किया, आध्यात्मिक विकास के संदर्भ में, विवेक और वैराग्य जैसे आवश्यक गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें साधक को विकसित करना चाहिए।

चित्र स्रोत : Wikimedia

  रावण के साथ युद्ध- आंतरिक संघर्ष:

रावण और उसकी सेना के विरुद्ध राम की लड़ाई, हमारी अपनी नकारात्मक प्रवृत्तियों के विरुद्ध आंतरिक संघर्ष का प्रतीक है। रावण, अहंकार और दस इंद्रियों का प्रतिनिधित्व करता है। इंद्रियों से व्यक्ति में वस्तुओं के प्रति लगाव विकसित होता है और लगाव से वासना, जबकि वासना से क्रोध उत्पन्न होता है। रावण का भाई कुम्भकर्ण, जड़ता और अज्ञान का प्रतीक है। जबकि इंद्रजीत, सूक्ष्म इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है। इन राक्षस रूपी आंतरिक प्रवृत्तियों पर काबू पाना, मन की शुद्धि को दर्शाता है, जो आध्यात्मिक विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सीता के साथ पुनर्मिलन- आंतरिक शांति की पुनः खोज:

सीता के साथ राम का पुनर्मिलन, किसी साधक  के लिए, अपनी आंतरिक शांति और आनंद को फिर से खोजने का प्रतीक है। इस अवस्था को "आत्माराम" के रूप में वर्णित किया गया है। यह आध्यात्मिक यात्रा की परिणति का प्रतिनिधित्व करता है, जहां व्यक्ति आत्म-ज्ञान के आनंद का अनुभव करता है।
 

चित्र स्रोत : flickr 

अयोध्या वापसी- आत्म-ज्ञान का स्थिरीकरण:

राम की अयोध्या वापसी और राज्याभिषेक, आत्म-ज्ञान के स्थिरीकरण का प्रतिनिधित्व करता है। अयोध्या, जिसका अर्थ है "जिसे युद्ध से नहीं जीता जा सकता", अटल शांति की स्थिति का प्रतीक है। राम-राज्य, आत्म-ज्ञान के साथ जीने का प्रतिनिधित्व करता है, जहां आंतरिक संघर्ष बंद हो गए हैं। यह जीवनमुक्त की स्थिति है   जहाँ व्यक्ति पूर्ण ज्ञान में दृढ़ता से स्थिर होता है।

रामायण के पात्रों का प्रतीकवाद:

राम: आत्मा का प्रतीक:

भगवान राम, प्रत्येक व्यक्ति के भीतर आत्मा, शाश्वत और शुद्ध सार का प्रतिनिधित्व करते हैं। अस्तित्व की मार्गदर्शक शक्ति के रूप में, राम सदाचार, सत्य और दिव्य उद्देश्य का प्रतीक हैं। आत्मा का अंतिम उद्देश्य, हृदय से अपना संबंध बनाए रखना और सांसारिक विकर्षणों के बावजूद अपने उच्च उद्देश्य को पूर्ण करना है।

सीता: हृदय का प्रतीक:

सीता, हृदय का प्रतीक  हैं , जो प्रेम, करुणा और भक्ति का स्थान है। हृदय स्वाभाविक रूप से आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है, फिर भी यह मन की इच्छाओं और भ्रमों द्वारा आकर्षित होने के प्रति संवेदनशील है। रावण द्वारा सीता का अपहरण यह दर्शाता है कि मन के अत्यधिक प्रभाव के कारण हृदय आत्मा से कैसे दूर हो सकता है।

जटायु वध | चित्र स्रोत : Wikimedia

 रावण: मन का प्रतीक:

रावण, मन का प्रतिनिधित्व करता है, विशेष रूप से इसकी अहंकार-प्रेरित प्रवृत्तियों का। मन की आसक्ति, इच्छाएँ और भ्रम, हृदय को आत्मा से दूर कर  सकती हैं। जिस प्रकार, रावण के कार्य, राम और सीता के सौहार्द को बाधित करते हैं, उसी प्रकार, अनियंत्रित मन, आंतरिक उथल-पुथल और आध्यात्मिक वियोग का कारण बन सकता है।

लक्ष्मण: चेतना का प्रतीक:

लक्ष्मण, चेतना  के प्रतीक हैं, जो आत्मा के साथ जुड़ी रहती है। जिस प्रकार लक्ष्मण सदैव अपने भाई राम के साथ रहे, इसी प्रकार, चेतना सदैव आत्मा से जुड़ी रहती है और सक्रिय रहते हुए यह सुनिश्चित करती है कि आत्मा विकर्षणों और खतरों से दूर रहे।

हनुमान: साहस और अंतर्ज्ञान का प्रतीक:

भक्ति और शक्ति के प्रतीक हनुमान साहस और अंतर्ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं। चुनौतियों पर काबू पाने के लिए ये गुण आवश्यक हैं। हनुमान का अटूट दृढ़ संकल्प और ज्ञान, उन्हें आत्मा और हृदय के बीच की खाई को पाटने, संतुलन बनाए रखने और जीवन शक्ति को पुनः प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

रामायण से संबंधित कुछ प्रतीक, रूपक और रूपांकन:

प्रतीक: 

  • पुष्प: अच्छे या दैवीय चरित्रों को दर्शाने के लिए फूलों का उपयोग किया जाता है और फूल दिव्य आशीर्वाद के संकेत के रूप में चमत्कारिक रूप से आकाश से गिरते हैं। इसके विपरीत, राक्षसी स्थानों को पुष्पहीन बताया गया है। फूल, प्राकृतिक दिव्य सौंदर्य के प्रतीक हैं, क्योंकि वे धरती से निकलते हैं। इसके अतिरिक्त, फूलों को अक्सर देवताओं को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है।
  • रेशम, आभूषण और इत्र: कैकेयी के आदेश पर जब राम, सीता और लक्ष्मण को जंगल में निर्वासित किया गया तो उन्हें अपने रेशमी वस्त्र और साज-सज्जा का त्याग करना पड़ा। रेशम, आभूषण और इत्र, धन और पवित्रता के संकेत हैं, साथ ही आध्यात्मिक पक्ष और धार्मिकता के भी। 

रूपांकन:

  • अस्त्र: संपूर्ण रामायण में जादुई अस्त्र बार-बार दिखाई देते हैं। इनमें से कई अस्त्र देवताओं से आते हैं, और दैवीय कृपा के प्रमाण हैं।
  • ऋषि और मुनि: राम अपनी पूरी जीवन यात्रा के दौरान, कई ऋषि-मुनियों से मिलते हैं, जिन्होंने प्रमुख आध्यात्मिक शक्तियां हासिल की हैं। वे राम को उसकी असली पहचान याद दिलाते हैं और उनकी खोज में उनकी सहायता करते हैं। रामायण में इन पवित्र लोगों की केंद्रीय भूमिका यह दर्शाती है कि रामायण सबसे ऊपर आध्यात्मिक अनुभवों का एक रूपक है, और इसे एक पवित्र ग्रंथ के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।

रूपक:

  • राम धर्मात्मा के रूप में: राम की यात्रा को आत्मा की यात्रा के रूपक के रूप में समझा जाता है। राम की तरह, आत्मा को अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई प्रलोभनों और बाधाओं को पार करना होगा।

 

संदर्भ: 

https://tinyurl.com/3zka9z9m

https://tinyurl.com/93m5byxu

https://tinyurl.com/yffbvzrv

मुख्य चित्र: सेतु निर्माण का दृश्य और गिलहरी को दुलार करते प्रभु श्री राम (Wikimedia)