स्वतंत्रता संग्राम का एक गौरवशाली अध्याय है, रामपुर के अली बंधुओं का जीवन

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
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स्वतंत्रता संग्राम का एक गौरवशाली अध्याय है, रामपुर के अली बंधुओं का जीवन

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कुछ ऐसे महानायक हुए, जिनकी लेखनी और नेतृत्व ने आज़ादी की लड़ाई को नई दिशा दी। मुहम्मद अली जौहर (Mohammad Ali Jauhar) भी ऐसे ही क्रांतिकारियों में गिने जाते हैं। उनका जन्म 1878 में उत्तर-पश्चिमी प्रांत के रामपुर में हुआ था। उनके बड़े भाई, शौकत अली (Shaukat Ali), भी स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानियों में शामिल थे। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ये दोनों सिर्फ़ क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि प्रख्यात पत्रकार और शिक्षाविद् भी थे? मुहम्मद अली ने अपने विचार जनता तक पहुँचाने के लिए "कॉमरेड" और "हमदर्द" जैसे प्रभावशाली अख़बारों की स्थापना की। यही नहीं, 1920 में जामिया मिलिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दूसरी ओर, शौकत अली ने असहयोग आंदोलन का नेतृत्व कर अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ़ मोर्चा खोला। आज भी रामपुर में मुहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय, उनके नाम पर बनी सड़कें और विभिन्न स्मारक उनकी विरासत को जीवित रखते हैं। उनके सम्मान में आयोजित शैक्षिक कार्यक्रमों और स्मृति आयोजनों के ज़रिए उनके योगदान को याद किया जाता है। आज के इस लेख में हम अली बंधुओं के जीवन, संघर्ष और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को विस्तार से जानेंगे। साथ ही, महात्मा गांधी और अली बंधुओं के आपसी संबंध को भी समझेंगे। इसके अलावा, हम मुहम्मद अली जौहर के व्यक्तित्व, उनके जीवन दर्शन, काव्य प्रतिभा और साहित्यिक योगदान पर भी चर्चा करेंगे।

"दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल तेरी क़ज़ा के बाद...
है इब्तेदा हमारी तेरी इंतेहा के बाद..."

(अर्थज़िंदगी फिर से तब शुरू होगी, जब तानाशाह का अंत होगा। हमारी शुरुआत तुम्हारी सीमा के बाद होगी।)
इन पंक्तियों को मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने लिखा था। उनकी कलम में ऐसा जादू था कि उनके शब्द लोगों के दिलों को झकझोर देते थे। जौहर का बचपन रामपुर की समृद्ध काव्य परंपरा में बीता, जहां चार बैत की शायरी का रिवाज था। इस माहौल ने उनकी भाषा और अभिव्यक्ति को निखार दिया। आगे चलकर उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) में शिक्षा प्राप्त की, जो उस समय मुस्लिम युवाओं के लिए बौद्धिक बहस और विचारों का केंद्र था। यहीं पर उनकी अंग्रेज़ी पर गहरी पकड़ बनी, जिससे उनके लेखन और भाषण अत्यधिक प्रभावशाली हो गए।

मौलाना मोहम्मद अली जौहर | चित्र स्रोत : wikimedia 

मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जीवन संघर्ष, शिक्षा और उपलब्धियों का प्रतीक है। जब वे केवल पाँच वर्ष के थे, तभी उनके पिता अब्दुल अली ख़ान का निधन हो गया। पिता को कम उम्र में खोने के बावजूद, उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। पहले उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। 1898 में, वे इंग्लैंड गए और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) के लिंकन कॉलेज से आधुनिक इतिहास की पढ़ाई की।
भारत लौटने के बाद, जौहर ने रामपुर रियासत में शिक्षा निदेशक के रूप में काम किया, फिर बड़ौदा सिविल सेवा में शामिल हो गए। इसी दौरान उनकी लेखन में रुचि बढ़ी और वे एक प्रभावशाली लेखक, वक्ता और दूरदर्शी राजनीतिक नेता बन गए। उन्होंने द टाइम्स (लंदन) (The Times (London)), द मैनचेस्टर गार्डियन (The Manchester Guardian) और द  ऑब्ज़र्वर (The Observer) जैसे प्रतिष्ठित अख़बारों में लेख लिखे, जिनमें उनकी स्पष्ट सोच और बेबाक विचार झलकते थे।

  • 1911 में, उन्होंने कोलकाता से अंग्रेज़ी साप्ताहिक पत्रिका द कॉमरेड (The Comrade) की शुरुआत की, जो जल्द ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गई। 1912 में, वे दिल्ली आ गए। 
  • अगले ही साल, 1913 में, उन्होंने उर्दू में दैनिक समाचार पत्र हमदर्द शुरू किया, जो समाज में जागरूकता फैलाने का एक सशक्त माध्यम बना।
  • 1902 में, जौहर ने अमजदी बानो बेगम (1886-1947) से विवाह किया। अमजदी बेगम भी राष्ट्रीय आंदोलन और खिलाफ़त आंदोलन में सक्रिय रहीं और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जौहर ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (जो उस समय मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (Muhammadan Anglo-Oriental College) के नाम से जाना जाता था) के विस्तार के लिए कड़ी मेहनत की। 1920 में, वे जामिया मिलिया इस्लामिया के सह-संस्थापकों में शामिल हुए। बाद में, यह विश्वविद्यालय दिल्ली स्थानांतरित हुआ और शिक्षा व सामाजिक सुधार का एक प्रमुख केंद्र बन गया।

शौकत अली जौहर |  चित्र स्रोत : wikimedia 

आइए अब एक नज़र शौकत अली जौहर के जीवन और करियर पर डालते हैं:

  • शिक्षा और प्रारंभिक जीवन: शौकत अली ने अपनी शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पूरी की। पढ़ाई के दौरान वे विश्वविद्यालय की क्रिकेट टीम के कप्तान भी बने। 1896 से 1913 के बीच, उन्होंने अवध और आगरा के संयुक्त प्रांत में प्रांतीय सिविल सेवा में काम किया।
  • पत्रकारिता और राजनीतिक संघर्ष: शौकत अली ने अपने भाई मोहम्मद अली के साथ मिलकर पत्रकारिता में कदम रखा। उन्होंने उर्दू साप्ताहिक 'हमदर्द' और अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'कॉमरेड' के प्रकाशन में अपने भाई का सहयोग किया। 1919 में, अंग्रेज़ों ने उन पर देशद्रोही सामग्री प्रकाशित करने और विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का आरोप लगाया, जिसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा। उसी वर्ष, उन्हें खिलाफ़त सम्मेलन का पहला अध्यक्ष चुना गया।
  • असहयोग आंदोलन में भूमिका: असहयोग आंदोलन (Non-cooperation movement (1919-1922)) के दौरान, शौकत अली ने महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन किया। इस आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 1921 से 1923 तक दोबारा जेल जाना पड़ा। उनके संघर्ष और लोकप्रियता को देखते हुए, उनके प्रशंसकों ने उन्हें और उनके भाई को "मौलाना" की उपाधि दी।
  • कांग्रेस से मोहभंग और मुस्लिम लीग में प्रवेश: हालांकि, बाद में शौकत अली का कांग्रेस और गांधी के नेतृत्व से मोहभंग हो गया। उन्होंने मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की और 1928 की नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया। उन्होंने लंदन में हुए पहले और दूसरे गोलमेज़ सम्मेलन में भी भाग लिया।
  • मुस्लिम लीग और जिन्ना के सहयोगी: 1931 में उनके भाई मोहम्मद अली का निधन हो गया। इसके बाद, शौकत अली ने यरुशलम में विश्व मुस्लिम सम्मेलन (World Islamic Congress) का आयोजन किया। 1936 में, वे अखिल भारतीय मुस्लिम लीग में शामिल हो गए और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) के  करीबी सहयोगी और प्रचारक बने। 1934 से 1938 तक वे सेंट्रल असेंबली के सदस्य भी रहे। अंततः साल 1938 में शौकत अली का निधन हो गया।
1931 में, अनिवार्य फ़िलिस्तीन (मैंडेटरी पैलेस्टाइन) के यरुशलम में भारतीय मुस्लिम नेता शौकत अली को फिलिस्तीनी अरब ध्वज सौंपा जा रहा है, जिस पर गुम्बद-ए-सख़रा (डोम ऑफ द रॉक) का चित्र अंकित है। चित्र स्रोत : Wikimedia 

मौलाना मोहम्मद अली जौहर और शौकत अली का जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक गौरवशाली अध्याय है। उनकी कलम और नेतृत्व ने देशवासियों में जागरूकता और संघर्ष का जज़्बा पैदा किया। पत्रकारिता, शिक्षा और राजनीति के माध्यम से उन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत को खुली चुनौती दी। खिलाफ़त आंदोलन (Khilafat Movement) और असहयोग आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।

आज भी उनके विचार और योगदान प्रेरणा का स्रोत हैं। जौहर की साहित्यिक प्रतिभा और शौकत अली का नेतृत्व संघर्षशील भारत का प्रतीक बन गया। उनकी स्मृति में आयोजित कार्यक्रम और उनके नाम पर बने संस्थान उनके अमर योगदान को जीवित रखते हैं। अली बंधुओं का त्याग, साहस और समर्पण आने वाली पीढ़ियों को निरंतर प्रेरित करता रहेगा।

 

संदर्भ:

https://tinyurl.com/23rcw3xz
https://tinyurl.com/23rcw3xz
https://tinyurl.com/2bpwx64h
https://tinyurl.com/2cuuxfqe

मुख्य चित्र: रामपुर में जन्मे और प्रख्यात स्वतंत्रा सैनानियों के रूप में प्रासदिधअली बंधुओं की एक तस्वीर (Wikimedia)