रामपुर जानें, सोनार प्रणाली, कैसे गहरे समुद्रों की अनदेखी दुनिया को उजागर कर रही है ?

अवधारणा I - मापन उपकरण (कागज़/घड़ी)
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रामपुर जानें, सोनार प्रणाली, कैसे गहरे समुद्रों की अनदेखी दुनिया को उजागर कर रही है ?

रामपुर की पुरानी गलियों और ऐतिहासिक इमारतों में हर कोने पर कोई न कोई दिलचस्प कहानी छिपी होती है। यहाँ घूमते समय इन कहानियों को महसूस किया जा सकता है। ठीक इसी तरह, समुद्र भी कई परतों में बँटा होता है, और उसकी हर परत में नई संभावनाएँ या अनदेखे रहस्य छीपे होते हैं। लेकिन इन गहराइयों को आँखों से नहीं देखा जा सकता! इसके लिए हमें अत्याधुनिक तकनीकों, जैसे सोनार  (SONAR), की मदद लेनी पड़ती है। सोनार, यानी साउंड नैविगेशन एंड रेंजिंग (Sound Navigation and Ranging) एक ऐसी तकनीक है जो ध्वनि तरंगों का उपयोग करके समुद्र की गहराइयों को मापने और उनके नक्शे तैयार करने में सहायता करती है। इसलिए आज के इस लेख में हम इसी सोनार प्रणाली को विस्तार से समझेंगे। सबसे पहले, जानेंगे कि यह तकनीक किस तरह समुद्री नैविगेशन में मदद करती है। फिर, हम इसके दो मुख्य प्रकारों - सक्रिय और निष्क्रियके बीच के अंतर को समझेंगे। इसके अलावा, हम देखेंगे कि कैसे यह तकनीक केवल समुद्र तक ही सीमित न रहते हुए हमारी सुरक्षा से लेकर वैज्ञानिक खोजों तक अहम भूमिका निभा रहा है। और अंत में, हम जाइरोस्कोपिक स्टेबलाइज़र (Gyroscopic Stabilizer) पर चर्चा करेंगे, जो जहाज़ों को समुद्री तूफ़ानों और ऊँची लहरों में भी संतुलित बनाए रखने में मदद करता है।

जहाजों पर सोनार प्रणाली के संचालन का प्रतीक दृश्य। | चित्र स्रोत : Wikimedia 

आइए सबसे पहले जानते हैं कि सोनार क्या है और यह कैसे काम करती है?

सोनार (SONAR) एक ऐसी तकनीक है जो पानी के भीतर मौजूद वस्तुओं की स्थिति और दूरी का पता लगाने के लिए ध्वनि तरंगों का उपयोग करती है। यह प्रणाली मुख्य रूप से चार प्रमुख घटकों (डिस्प्ले, ट्रांसड्यूसर (Transducer),  ट्रांसमिटर (Transmitter) और रिसीवर (Receiver) से मिलकर बनी होती है।

सबसे पहले,  ट्रांसमिटर (Transmitter) एक इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजता है, जिसे ट्रांसड्यूसर (Transducer) ध्वनि तरंग (सोनिक वेव) में परिवर्तित कर पानी में प्रसारित करता है। जब यह ध्वनि किसी वस्तु से टकराती है, तो वह प्रतिध्वनि (Echo) के रूप में लौटती है। सोनार सिस्टम इस प्रतिध्वनि को पकड़कर वस्तु की दूरी और स्थिति का आकलन करता है।

कुछ आधुनिक सोनार सिस्टम 7,000 मीटर तक की दूरी तक वस्तुओं का पता लगाने में सक्षम होते हैं। जब लौटने वाली ध्वनि तरंगें वापस ट्रांसड्यूसर तक पहुंचती हैं, तो इसे दोबारा इलेक्ट्रिक सिग्नल में बदला जाता है। इसके बाद, रिसीवर (Receiver) इस सिग्नल को प्रोसेस कर स्क्रीन पर एक ग्राफ या छवि के रूप में प्रदर्शित करता है।

सोनार सिस्टम में  हाइड्रोफ़ोन (Hydrophone) सेंसर भी होते हैं, जो ध्वनि की तीव्रता और चरण (फेज) को मापकर वस्तु की सटीक स्थिति और दूरी निर्धारित करने में मदद करते हैं।

सोनार सिस्टम की कार्यक्षमता काफी हद तक समुद्री पर्यावरण पर निर्भर करती है। समुद्र में मौजूद छोटे कण (Particles) ध्वनि तरंगों को उसी तरह बिखेर सकते हैं, जैसे कोहरे में रोशनी बिखरती है। इससे सोनार की सटीकता प्रभावित होती है।

इसी कारण वैज्ञानिक लगातार समुद्री पर्यावरण और ध्वनि प्रसार (Sound Propagation) का अध्ययन करते रहते हैं ताकि सोनार सिस्टम को और अधिक सटीक और प्रभावी बनाया जा सके।

सक्रिय सोनार प्रवाह मीटर | चित्र स्रोत : Wikimedia 

सोनार सिस्टम कई प्रकार के होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं: 

1) सक्रिय सोनार (Active Sonar): सक्रिय सोनार में एक ट्रांसड्यूसर सरणी (Transducer Array), पानी में ध्वनि तरंगें (Acoustic Signals) भेजता है। जब कोई वस्तु इस ध्वनि के संपर्क में आती है, तो यह तरंग उससे टकराकर वापस लौटती है, जिसे प्रतिध्वनि (Echo) कहा जाता है।

अगर सोनार सरणी इस प्रतिध्वनि को पकड़ने में सक्षम होती है, तो यह उसकी शक्ति को माप सकती है।

ध्वनि के भेजे जाने और लौटने में लगने वाले समय (Time Delay) की गणना करके, सिस्टम यह निर्धारित करता है कि वस्तु कितनी दूर और किस दिशा में स्थित है।

इस तकनीक का उपयोग नौसेना, समुद्री अनुसंधान और मछली पकड़ने जैसे क्षेत्रों में किया जाता है।

2) निष्क्रिय सोनार (Passive Sonar): निष्क्रिय सोनार का उपयोग मुख्य रूप से पानी के भीतर ध्वनियों को सुनने के लिए किया जाता है। यह सक्रिय सोनार की तरह खुद से कोई ध्वनि तरंगें नहीं भेजता, बल्कि पहले से मौजूद प्राकृतिक और कृत्रिम ध्वनियों को पकड़ता है।

इसका उपयोग विशेष रूप से पनडुब्बियों (Submarines), जहाज़ों, और समुद्री जीवों जैसे  वेल (Whales) की ध्वनियों को ट्रैक करने के लिए किया जाता है। यह सैन्य जहाज़ों (Naval Ships) के लिए बहुत उपयोगी होता है, क्योंकि इससे उनकी मौजूदगी का पता नहीं चलता। हालांकि, एक अकेला निष्क्रिय सोनार उपकरण किसी वस्तु की सटीक दूरी नहीं माप सकता। इसके लिए एक से अधिक निष्क्रिय सोनार सिस्टम को एक साथ उपयोग किया जाता है। जब ध्वनि विभिन्न सेंसर तक अलग-अलग समय में पहुंचती है, तो इन समय अंतरों का विश्लेषण करके ध्वनि के स्रोत की सटीक स्थिति का अनुमान लगाया जाता है।

फ्रांस के तट पर यूएसएस सुसान बी. एंथनी (एपी-72) जहाज़ के मलबे की मल्टीबीम छवि। चित्र स्रोत : Wikimedia 

सोनार, तकनीक पानी के भीतर निगरानी, संचार और नैविगेशन के लिए एक अत्याधुनिक प्रणाली है। यह ध्वनि तरंगों का उपयोग करके समुद्री वातावरण की तस्वीर उकेरती है। आइए जानते हैं, यह तकनीक किन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

जहाज़ों और पनडुब्बियों के लिए सुरक्षित रास्ता चुनना बेहद जरूरी होता है। सोनार की मदद से खतरनाक चट्टानों, डूबे हुए जहाज़ों और बारूदी सुरंगों जैसी बाधाओं की पहचान की जाती है। यह तकनीक समुद्री नैविगेशन को सुरक्षित और प्रभावी बनाती है।

वैज्ञानिक और शोधकर्ता समुद्र की गहराइयों को समझने के लिए सोनार का इस्तेमाल करते हैं। इससे समुद्र की सतह का विस्तृत नक्शा तैयार किया जाता है और  वहाँ मौजूद संरचनाओं की थ्री-डायमेंशनल इमेजिंग संभव होती है। व्यावसायिक मछुआरों के लिए सोनार किसी वरदान से कम नहीं है। यह पानी के अंदर मछलियों के झुंड का सटीक पता लगाने में मदद करता है, जिससे मछलियों की तलाश करना बहुत आसान और अधिक प्रभावी हो जाता है। पानी के भीतर संचार आसान नहीं होता, लेकिन सोनार तकनीक इसे भी संभव बनाती है। इसके  ज़रिए पनडुब्बियां और जहाज़जहाज़ आपस में संदेशों का आदान-प्रदान कर सकते हैं, जिससे सैन्य और वैज्ञानिक अभियानों में काफी सुविधा होती है।

सोनार सिर्फ समुद्री खोज तक सीमित नहीं है, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में भी यह अहम भूमिका निभाती है। अल्ट्रासाउंड स्कैनिंग (Ultrasound Scanning) में सोनार तकनीक का उपयोग होता है, जिससे गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की जांच की जाती है और अन्य चिकित्सकीय परीक्षण किए जाते हैं।

वैज्ञानिक महासागरों की गहराई नापने और समुद्र तल के स्वरूप को समझने के लिए भी सोनार का उपयोग करते हैं। यह जानकारी समुद्री पारिस्थितिकी, खनन (Mining) और समुद्री सुरक्षा (Maritime Security) के लिए बेहद उपयोगी होती है।

जाइरोस्कोप | चित्र स्रोत : Wikimedia 

क्या आपने कभी सोचा है कि तेज लहरों पर भी विशाल जहाज़ डगमगाते क्यों नहीं हैं? 
इसके पीछे एक बेहद खास तकनीक होती है, जिसे जाइरोस्कोपिक स्टेबलाइज़र (Gyroscopic Stabilizer) कहा जाता है। यह तकनीक जहाज़ को संतुलित बनाए रखने में मदद करती है, जिससे यात्रियों को झटके कम महसूस होते हैं।

इस स्टेबलाइज़र का मुख्य घटक फ़्लाईवील (Flywheel) होता है, जिसे इलेक्ट्रिक मोटर (Electric Motor) घुमाती है। यह फ़्लाईवील बहुत तेज़ गति से घूमता है और गतिज क्षण (Kinetic Momentum) उत्पन्न करता है।

फ़्लाईवील एक विशेष यंत्र, जिम्बल (Gimbal) से जुड़ा होता है, जो इसे जहाज़ की हरकतों से प्रभावित होने से बचाता है। जब जहाज़ तेज लहरों के कारण झुकता है, तो जाइरोस्कोपिक स्टेबलाइज़र एक विरोधी बल (Counteracting Force) उत्पन्न करता है, जिससे जहाज़ फिर से संतुलन में आ जाता है।

चित्र स्रोत : Wikimedia 

समुद्र में तेज लहरों के कारण जहाज़ दाएं-बाएं झुकने (Rolling Motion) का अनुभव करता है। लेकिन जैसे ही जहाज़ झुकता है, जाइरोस्कोपिक स्टेबलाइज़र इसके विपरीत एक बल उत्पन्न करता है, जिसे जाइरोस्कोपिक टॉर्क (Gyroscopic Torque) कहा जाता है। यह जहाज़ को स्थिर बनाए रखता है और यात्रियों को झटकों से बचाता है।

इसका उपयोग लक्ज़री याच (Luxury Yacht), क्रूज़ शिप (Cruise Ship), नौसैनिक जहाज़ और सैन्य अभियानों के दौरान स्थिरता बनाए रखने के लिए किया जाता है!

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/2ayjn3fo 

https://tinyurl.com/23bqwvny 

https://tinyurl.com/27328zbe 

https://tinyurl.com/29gn22rg 

मुख्य चित्र में मल्टीबीम सोनार जिसका उपयोग समुद्र तल का मानचित्रण करने के लिए किया जाता है! का स्रोत : wikimedia