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                                            उल्कापिंडों ने पृथ्वी के पर्यावरण को आकार देने में एक बड़ी भूमिका निभाई है, जिनके माध्यम से लौह (Iron) और फ़ॉस्फ़ोरस (Phosphorus) जैसे आवश्यक तत्व पृथ्वी पर आए हैं। इन्होंने हमारे ग्रह पर जीवन को विकसित करने में मदद की है। दिलचस्प बात यह है कि, हमारे रामपुर की उपजाऊ कृषि भूमि भी लौह-समृद्ध है। कोई उल्कापिंड, एक चट्टान होती है, जो अंतरिक्ष से पृथ्वी पर गिरती है। वे क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और अन्य खगोलीय निकायों के अवशेष हैं। उल्कापिंड (Meteorite), पृथ्वी पर पाई जाने वाली चट्टानों से अलग हैं, और उनका अध्ययन, हमारे सौर मंडल में अन्य ग्रहों की उत्पत्ति के बारे में सुराग प्रदान कर सकता हैं। कई वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का मानना है कि, लगभग 3.26 बिलियन साल पहले हुए, एक बड़ा उल्कापिंड प्रभाव ने – जिसे “एस2 (S2)” कहा जाता है – आद्य सूक्ष्मजीवों जैसे जीवन के शुरुआती विकास में, महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो सकती है। तो आज आइए देखें कि, उल्कापिंड कैसे बनते हैं और वे अन्य खगोलीय निकायों से अलग क्यों है। फिर हम देखेंगे कि, हर साल कितने उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरते हैं। उसके बाद, हम पृथ्वी पर गिरे सबसे पुराने उल्कापिंडों की खोज करेंगे। अंत में, हम जीवन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक शर्तों के बारे में बात करेंगे, और प्रारंभिक पृथ्वी को अंतरिक्ष प्रभावों एवं उल्कापिंडों ने कैसे आकार दिया, यह जानेंगे।
उल्कापिंड कैसे बनते हैं?
उल्कापिंडों का गठन/निर्माण विभिन्न स्रोतों से होता है। ये सितारों, ग्रहों या उपग्रहों जैसे कुछ बड़े खगोलीय वस्तुओं के निर्माण या विनाश के अवशेष होते हैं। अन्य उल्कापिंड, क्षुद्रग्रहों के टुकड़े हो सकते हैं, या वे टुकड़े हैं, जो धूमकेतु से टूट गए हैं।
कितने उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरते हैं ?
एक शोध के अनुसार, प्रति वर्ष, लगभग 17,000 उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरते हैं। पृथ्वी पर अंतरिक्ष से गिरने वाली सामग्री के वर्तमान अनुमान, “अल्पकालिक निगरानी या खोज नेटवर्क” पर आधारित हैं, जो स्थानिक रूप से बहुत सीमित हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए, वैज्ञानिकों ने दो साल तक अंटार्कटिका (Antarctica) में उल्कापिंडों की खोज की, जहां उनको देखना आसान है।
वास्तव में, ध्रुवों पर उल्कापिंड प्रभावों की संख्या, भूमध्य रेखा पर होने वाले प्रभावों का केवल 65% है। अमेरिका में स्थित – सेंटर फ़ॉर नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट स्टडीज़ (Centre for Near-Earth Object Studies) के सहयोग से बनाए गए एक मॉडल ने, विभिन्न स्थानों पर बड़े उल्कापिंड प्रभावों के जोखिम के पुनर्मूल्यांकन की अनुमति दी। ये प्रभाव, भूमध्य रेखा पर 12% अधिक है, और ध्रुवों पर 27% कम है।
सबसे पुराना उल्कापिंड जो पृथ्वी पर गिरा था:
ऑस्ट्रेलिया (Australia) में वैज्ञानिकों ने 3.48 बिलियन साल पुराने, चट्टानी टुकड़ों का पता लगाया है, जो पृथ्वी पर कोई उल्कापिंड दुर्घटनाग्रस्त होने के शुरुआती सबूत हो सकते हैं। ये टुकड़े, तब बने होंगें, जब उल्कापिंड ज़मीन पर गिरा होगा और इसने हवा में पिघली हुई चट्टानों का छिड़काव किया होगा। यह पिघली हुई चट्टान तब ठंडी हो गई, और मोतियों जैसे आकार में कठोर हुई।
पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पिलबारा क्रेटन (Pilbara Craton) के पास पाए जाने वाले, ये चट्टान – “पृथ्वी के भूगर्भिक रिकॉर्ड में किसी संभावित उल्कापिंड प्रभाव” के सबसे पुराने सबूत हैं।
जीवन की उत्पत्ति के लिए, किन स्थितियों की आवश्यकता थी?
पृथ्वी पर जीवन के लिए किन स्थितियों की आवश्यकता थी, इसके लिए कई अलग-अलग सिद्धांत मौजूद हैं। सबसे प्रसिद्ध सिद्धांत में से एक, प्राइमॉर्डियल सूप परिकल्पना (Primordial soup hypothesis) है। यह सिद्धांत बताता है कि, प्रारंभिक पृथ्वी पर तीव्र पराबैंगनी विकिरण और बिजली ने पानी, अमोनिया (Ammonia) और मीथेन (Methane) जैसे यौगिकों के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिए ऊर्जा प्रदान की। यह सिद्धांत सुझाव देता है कि, इन प्रतिक्रियाओं ने फिर डी एन ए (DNA) और आर एन ए(RNA) जैसे अणुओं के निर्माण का नेतृत्व किया, जो बाद में जीवन प्रणाली का हिस्सा बन गए।
अन्य सिद्धांत, बर्फ़ और हिमनद, रेडियोधर्मी समुद्र तटों और उल्कापिंडों से जुड़ी प्रतिक्रियाओं का सुझाव देते है। उल्कापिंडों को पहले से ही जीवन के गठन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि, कार्बोनेशिअस कोंड्राइट्स (Carbonaceous chondrites) नामक उल्कापिंडों के एक समूह ने पृथ्वी के अधिकांश पानी को वितरित किया है।
उल्कापिंडों ने जीवन की उत्पत्ति का समर्थन कैसे किया ?
एस2 उल्कापिंड प्रभाव द्वारा उत्पन्न सुनामी ने, गहरे महासागर से लौह और फ़ॉस्फोरस जैसे आवश्यक पोषक तत्वों को, तटीय क्षेत्रों में लाया, जो जीवन के लिए आवश्यक हैं। एस2 के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने के लिए, वैज्ञानिकों ने हाल ही में दक्षिण अफ़्रीका (South Africa) के बार्बरटन ग्रीनस्टोन बेल्ट (Barberton Greenstone belt) में गड्ढों की जांच की। उन्होंने विश्लेषण के लिए, वहां से लगभग 100 किलोग्राम चट्टानों के नमूने एकत्र किए। इसके निष्कर्षों ने संकेत दिया है कि, उल्कापिंड प्रभाव ने महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को जन्म दिया । इससे जीवाणु जीवन तेज़ी से समृद्ध होने लगा। ऐसा लगता है कि, इस प्रभाव के बाद जीवन के लिए वास्तव में अनुकूल परिस्थितियां उत्पन्न हुईं, और इसका विकास हुआ।
इस युग में, वायुमंडल और महासागरों में ऑक्सीजन की कमी थी, और उस समय कोई जटिल कोशिकाएं मौजूद नहीं थीं।
धन्यवाद, रामपुर !
संदर्भ 
मुख्य चित्र में पृथ्वी की ओर बढ़ते उल्कापिंड का स्रोत : Wikimedia