रामपुरवासियों, पारंपरिक और डिजिटल मीडिया की समझ ही बचा सकती है आपको भ्रामक सूचनाओं से!

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रामपुरवासियों, पारंपरिक और डिजिटल मीडिया की समझ ही बचा सकती है आपको भ्रामक सूचनाओं से!

बदलते समय के साथ रामपुर की सरज़मीं पर पत्रकारिता का स्वरूप भी निरंतर बदल रहा है। पहले दौर में ख़बरें गली-चौपालों या अख़बारों के ज़रिए लोगों तक पहुँचती थीं, जिसमें कभी-कभी घंटों या पूरा दिन लग जाता था। लेकिन डिजिटल क्रांति के बाद अब किसी भी ख़बर को धरती के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँचने में केवल चंद सेकंड लगते हैं। रामपुर के बाज़ारों, गलियों और कॉफ़ी हाउसों में लोग अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही ख़बरों पर चर्चा करते दिखाई देते हैं। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म, सोशल मीडिया और तुरंत अपडेट के दौर में अब ख़बरें सिर्फ़ महानगरों तक सीमित नहीं हैं। रामपुर जैसे शहरों में भी लोग ट्विटर (अब X.com) और फेसबुक (Facebook) पर ब्रेकिंग न्यूज़ (Breaking News) से जुड़े रहते हैं। पारंपरिक अख़बार और टीवी चैनल भी अब डिजिटल रिपोर्टिंग (digital reporting) के ज़रिए रियल-टाइम कवरेज (real-time coverage) और इंटरैक्टिव कंटेंट परोसने लगे हैं। हालांकि, इस डिजिटल युग में भ्रामक सूचनाओं (Fake News) का ख़तरा भी बढ़ गया है। ऐसे में रामपुर के लोगों को ख़बर शेयर करने से पहले उस ख़बर के स्रोत की अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल करने की आदत डालनी चाहिए।
इसी मुद्दे को संबोधित करते हुए आज के इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे डिजिटल युग ने रामपुर सहित पूरे देश में पत्रकारिता का चेहरा बदल दिया है। इसके बाद हम नए मीडिया के विकास, उसकी ताक़त और चुनौतियों पर नज़र डालेंगे। अंत में, हम डिजिटल और पारंपरिक मीडिया के प्रभाव का आकलन करते हुए यह समझेंगे कि इसका पत्रकारिता और पाठकों की सहभागिता पर क्या असर हो रहा है।
 

चित्र स्रोत : Wikimedia 

चलिए सबसे पहले जानने की कोशिश करते हैं कि डिजिटल युग में पत्रकारिता कितनी बदल गई है?
पिछले कुछ दशकों में पत्रकारिता के क्षेत्र में ज़बरदस्त बदलाव देखा गया है। पहले के समय में पत्रकारों का मुख्य उद्देश्य तथ्यों को निष्पक्ष तरीके से पेश करना होता था। वे स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग करते थे और अपनी राय को ख़बरों से अलग रखते थे। लेकिन आज के समय में तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते चलन के साथ ही पत्रकारिता का दायरा भी क़ाफ़ी बढ़ गया है। आज केवल बड़े मीडिया हाउस ही नहीं, बल्कि आम लोग भी ख़बरें साझा कर रहे हैं। नागरिक पत्रकारिता (Citizen Journalism) ने आम लोगों को भी रिपोर्टर (reporter) बना दिया है। लोग घटनाओं की लाइव रिपोर्टिंग (live reporting) करते हैं, वीडियो अपलोड करते हैं और अपनी राय खुलकर व्यक्त करते हैं। एक दशक पहले तक हमारे पास ख़बरों तक पहुचने के लिए केवल पारंपरिक मीडिया ही एक माध्यम हुआ करता था, लेकिन बदलते दौर के साथ आज, डिजिटल मीडिया इसे कड़ी टक्कर दे रहा है!

आइए अब स्पष्ट रूप से समझने की कोशिश करते हैं कि पारंपरिक मीडिया और डिजिटल मीडिया में क्या अंतर है?
पारंपरिक मीडिया क्या है?

पारंपरिक मीडिया उन विज्ञापन और मार्केटिंग तरीकों को कहा जाता है, जिनका इस्तेमाल कई दशकों से हो रहा है। इसके ज़रिए कंपनियाँ संभावित ग्राहकों तक पहुँचती हैं। इसमें शामिल हैं:

  • टेलीविज़न विज्ञापन
  • रेडियो प्रचार
  • प्रिंट मीडिया (अख़बार, पत्रिकाएँ, पोस्टर आदि)

पारंपरिक मीडिया मुख्य रूप से ऑफ़लाइन होता है और बिना इंटरनेट के ज़्यादा लोगों तक पहुँचता है। यह गाँव, कस्बों और उन इलाकों में भी कारगर होता है, जहाँ इंटरनेट की सुविधा सीमित होती है।
 

स्रोत : pexles

चित्र डिजिटल मीडिया क्या है?

डिजिटल मीडिया, को "न्यू मीडिया (New Media)" भी कहा जाता है! इसके तहत इंटरनेट के ज़रिए जानकारी प्रसारित की जाती है। इसमें शामिल हैं:

  • सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म (फेसबुक, इंस्टाग्राम, X, यूट्यूब)
  • ईमेल मार्केटिंग
  • वेबसाइट और ऑनलाइन विज्ञापन

 डिजिटल मीडिया तेज़, इंटरैक्टिव और ग्लोबल होता है। इसमें मिनटों में दुनिया भर में जानकारी पहुँचाने क्षमता होती है।

डिजिटल मीडिया और पारंपरिक मीडिया में कुछ प्रमुख अंतर निम्नवत दिए गए हैं:

- लागत-प्रभावशीलता: डिजिटल मीडिया, पारंपरिक मीडिया के मुक़ाबले किफ़ायती साबित होती है। एक ओर जहाँ ऑनलाइन विज्ञापन कम बजट में लाखों लोगों तक पहुँच सकता है। वहीं, टीवी या प्रिंट विज्ञापन महंगे होते हैं और सीमित लोगों तक पहुँचते हैं।
इंटरैक्टिविटी और जुड़ाव: डिजिटल मीडिया में उपभोक्ता सीधे प्रतिक्रिया दे सकते हैं। सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट और शेयर के ज़रिया ब्रांड और ग्राहकों का सीधा जुड़ाव बनता है।
वहीं, पारंपरिक मीडिया एकतरफ़ा होता है। दर्शक या पाठक तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दे सकते।
डेटा सटीकता: डिजिटल मीडिया में डेटा को ट्रैक करना आसान होता है। पारंपरिक मीडिया में ऐसा सटीक डेटा मिलना मुश्किल होता है। डिजिटल मीडिया के तहत आप जान सकते हैं:

  • कितने लोगों ने विज्ञापन देखा।
  • कितनों ने क्लिक किया।
  • कितनों ने ख़रीदारी की।

- उपभोक्ता विश्वास: डिजिटल मीडिया पर लोग ब्रांड के बारे में आसानी से जानकारी हासिल कर सकते हैं। ऑनलाइन समीक्षाएँ (reviews) पढ़कर ग्राहक फ़ैसला लेते हैं, जिससे ब्रांड में भरोसा बढ़ता है। पारंपरिक मीडिया में ग्राहकों को फ़ौरन प्रतिक्रिया देने का मौका नहीं मिलता, जिससे भरोसा बनाने में ज़्यादा समय लगता है।
पहुँच: पारंपरिक मीडिया की पहुँच अक्सर स्थानीय स्तर तक ही होती है। यह उन इलाकों (जैसे गाँव या छोटे शहरों) में असरदार हो सकता है, जहाँ अभी भी इंटरनेट नहीं पंहुचा है।  वहीं, डिजिटल मीडिया की पहुँच पूरी दुनियां में होती है। कंपनियाँ दुनिया भर में अपने उत्पाद या सेवाएँ प्रमोट कर सकती हैं।
 

चित्र स्रोत : pexles

फ़ीडबैक और एनालिटिक्स: डिजिटल मीडिया में फ़ीडबैक तुरंत मिलता है। कंपनियाँ लाइक, शेयर, कमेंट और रिव्यू के ज़रिया तुरंत ग्राहकों की राय जान सकती हैं। पारंपरिक मीडिया में सर्वे या ग्राहक कॉल्स के ज़रिया फ़ीडबैक धीरे-धीरे आता है।
आज लोग ख़बरें देखने, पढ़ने और साझा करने के लिए नए और आसान तरीके अपना रहे हैं। इस बदलाव ने न सिर्फ़ मीडिया सामग्री बनाने का तरीका बदला, बल्कि उसे उपभोग करने के तरीके को भी पूरी तरह से बदल दिया है। फेसबुक (Facebook) (2004), यूट्यूब (YouTube) (2005), ट्विटर (अब X.com) (2006) और टम्बलर (Tumblr) (2007) जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स ने रिपोर्टिंग के मायने ही बदल दिए। पहले ख़बरें सिर्फ़ बड़े मीडिया हाउस तक सीमित थीं, लेकिन अब आम लोग भी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। इससे नागरिक पत्रकारिता को बढ़ावा मिला।
लोग अब अपनी आवाज़ सोशल मीडिया पर उठा रहे हैं, जिससे दर्शकों की भागीदारी पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है। 2001 में इंस्टेंट मैसेजिंग (instant messaging) सेवाओं के आने से पत्रकारों का काम क़ाफ़ी आसान हो गया। अब लोग रियल-टाइम (real-time) में संवाद कर सकते हैं, जिससे ख़बरें तेज़ी से फैलती हैं। इसके अलावा, पत्रकारों और दर्शकों के बीच संवाद भी बेहतर हुआ है, जिससे सूचना का आदान-प्रदान अधिक प्रभावी हो गया है। 
 

चित्र स्रोत : pexles

2002 में सैटेलाइट रेडियो की शुरुआत ने ऑडियो पत्रकारिता का दायरा बढ़ा दिया। अब लोग कहीं भी और कभी भी ऑडियो न्यूज़ सुन सकते हैं। यह ख़बरें पहुंचाने का एक नया और प्रभावी माध्यम बन गया। 2010 में इंस्टाग्राम (Instagram) जैसे फ़ोटो-शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म (photo sharing platform) के आने के बाद पत्रकारों को विज़ुअल स्टोरीटेलिंग (visual story telling) का एक नया ज़रिया मिला। अब ख़बरें सिर्फ़ टेक्स्ट (text) तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि तसवी़रों और वीडियो के ज़रिया ज़्यादा आकर्षक और प्रभावी तरीके से बताई जाने लगीं। डिजिटल क्रांति ने पत्रकारिता को पूरी तरह से बदल दिया है। अब ख़बरें रियल-टाइम में रिपोर्ट होती हैं। इंटरैक्टिव स्टोरीटेलिंग (interactive story telling) के ज़रिया ख़बरों को दर्शकों के लिए और दिलचस्प बनाया जा रहा है।
आने वाले वर्षों में तकनीक और दर्शकों की बदलती पसंद के अनुसार पत्रकारिता भी आगे बढ़ेगी। पत्रकारों को प्रासंगिक बने रहने के लिए नई तकनीकों को अपनाना होगा। हालांकि, इसके साथ ही कई चुनौतियाँ भी हमारे समक्ष खड़ी हुई हैं। आज ख़बरों के नाम पर लोग कई बार अपने हित में एजेंडा भी चलाते हैं। इंटरनेट पर जानबूझकर भ्रामक या पक्षपाती जानकारी फैलाई जाती है। इंटरनेट ने किसी को भी लेखक बनने की ताक़त दे दी है। कोई भी व्यक्ति ब्लॉग या सोशल मीडिया पोस्ट लिखकर दुनिया भर में अपनी राय पहुँचा सकता है। कई बार ये बातें बिना तथ्य-जांच के वायरल हो जाती हैं, जिससे अफ़वाहें और ग़लत जानकारी फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है। इसके साथ ही डिजिटल युग ने पत्रकारों के काम को और मुश्किल बना दिया है। अब उन्हें तेज़ी से बदलते न्यूज़ साइकल के साथ तालमेल बिठाना पड़ता है। लोगों तक सबसे पहले ख़बर पहुँचाने की होड़ में कई बार रिपोर्टिंग की गहराई और तथ्य-जांच से समझौता हो जाता है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/22w7ouam 

https://tinyurl.com/28h5wfvj 

https://tinyurl.com/yb9nyjov

मुख्य चित्र में पत्रकारिता में प्रस्तुति देते हुए गोवा विश्वविद्यालय के छात्र का स्रोत : Wikimedia