रामपुर में कभी विज्ञापन का मतलब था—बाज़ारों में लोगों की बातचीत या दुकानों के शटरों पर लगे पोस्टर। आज वही काम इंस्टाग्राम स्टोरीज़ और वॉट्सऐप फॉरवर्ड्स कर रहे हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि विज्ञापन का सफ़र आज से हज़ारों साल पुराना है! इसकी जड़ें करीब 3000 साल पहले मिस्र के थेब्स शहर तक जाती हैं। वहीं पर दुनिया का पहला लिखा हुआ विज्ञापन एक पपीरस (एक खास तरह का कागज़) पर खोजा गया। दिलचस्प बात ये थी कि इसमें एक भागे हुए नौकर की तलाश की सूचना और साथ ही, एक कपड़े की दुकान का प्रचार भी किया गया था। यहीं से लिखकर विज्ञापन करने की शुरुआत हुई, जो सदियों तक विकसित होती रही।
1806 का जापानी एदो काल का एलईएल फ्लायर, जो किन्सेइटान नामक एक पारंपरिक औषधि के लिए है | चित्र स्रोत : Wikimedia
शुरुआत में तो विज्ञापन ज़्यादातर ज़ुबानी या एक-दूसरे को उत्पाद के बारे में बताकर ही होता था। पर जैसे-जैसे समाज बदला, विज्ञापन के तरीके भी बदलने लगे। लोगों का ध्यान खींचने के लिए पत्थरों पर नक्काशी और झंडों का इस्तेमाल होने लगा। इस तरह, केवल सुनने की बजाय देखकर जानकारी देने का चलन शुरू हुआ, और इसने चीज़ों और सेवाओं को लोगों तक पहुँचाने का नज़रिया ही बदल दिया।
आज हम जिस 'विज्ञापन' को जानते हैं, उसका रूप करीब 17वीं सदी में उभरना शुरू हुआ, जब अख़बार छपने लगे। हालाँकि इसकी नींव तो बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी! पहला अंग्रेज़ी विज्ञापन 1477 में विलियम कैक्सटन (William Caxton) ने छापा था! देखते ही देखते, 19वीं सदी आते-आते अख़बार और पत्रिकाएँ विज्ञापन के सबसे बड़े मंच बन गए। उस दौर के विज्ञापन बड़े सीधे-सरल होते थे, जिनमें ज़्यादातर लिखावट ही होती थी, और तस्वीरें न के बराबर होती थी। इनका मुख्य काम बस लोगों को बाज़ार में उपलब्ध चीज़ों और सेवाओं की जानकारी देना था।
फिर औद्योगिक क्रांति का दौर आया। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में पोस्टर्स (Posters) और बड़े-बड़े होर्डिंग खूब चलन में आए। इन्हें भीड़भाड़ वाली जगहों पर लगाया जाता, ताकि आते-जाते लोगों की नज़रें इन पर टिकें। चटकीले रंग और आकर्षक तस्वीरें इन्हें किसी भी ब्रांड को मशहूर करने का ज़बरदस्त ज़रिया बना गईं।
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चलिए अब देखते हैं कि अलग-अलग समय में विज्ञापन का स्वरूप कैसा रहा।
रेडियो: आवाज़ का जादू (1920-1950):- व्यावसायिक रेडियो प्रसारण की शुरुआत पहली बार 2 नवंबर 1920 को हुई थी! यह लोगों के लिए अखबारों से हटकर एक बिलकुल नया अनुभव था। देखते ही देखते रेडियो हर घर में पहुँच गया। दुकानदारों, विज्ञापन कंपनियों और लेखकों को अपने सामान और विचारों को लोगों तक पहुँचाने का एक शानदार नया तरीका मिल गया। पहला पेड रेडियो विज्ञापन 1922 में न्यूयॉर्क के वेआफ़ (WEAF) स्टेशन पर प्रसारित हुआ था।
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टेलीविज़न: देखना भी, सुनना भी (1950-2000): धीरे-धीरे समय बदला और 1960 के दशक तक टेलीविज़न विज्ञापनों का सबसे बड़ा माध्यम बन गया। अब विज्ञापन लेखन में सिर्फ़ शब्द ही नहीं, बल्कि चित्र भी शामिल हो गए थे। बेशक, पहले अखबारों और पर्चों में तस्वीरें होती थीं, लेकिन टीवी पर चलने वाले दृश्य कहीं ज़्यादा जीवंत और आकर्षक हो गए। 60 और 70 के दशक को अक्सर "रचनात्मक क्रांति" का दौर कहा जाता है, क्योंकि इस समय अविश्वसनीय रूप से यादगार और प्रभावशाली विज्ञापन बने। यही वह समय था जब अलग-अलग ब्रांड अपनी खास पहचान बनाने लगे, और उनके विज्ञापन लोगों के दिलों में बस जाते थे।
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बिलबोर्ड: राह चलते विज्ञापन (1900-2000): 1960 के दशक में सड़कों के किनारे बड़े-बड़े बोर्ड लगाकर विज्ञापन करना बहुत आम हो गया। खासकर जब सरकार ने लंबी दूरी की सड़कों का जाल बिछाया, तो विज्ञापनदाताओं को एक शानदार अवसर मिल गया। उन्होंने उन रास्तों पर बड़े-बड़े बिलबोर्ड लगा दिए जहाँ से हर दिन हज़ारों गाड़ियाँ गुज़रती थीं। बिलबोर्ड के लिए विज्ञापन लिखने का तरीका भी बदल गया। अब ऐसे शब्दों और रंगों का इस्तेमाल किया जाता था जो दूर से भी लोगों का ध्यान खींच सकें, क्योंकि गाड़ियाँ तो बहुत तेज़ी से (लगभग 80 से 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से) निकल जाती थीं। इसलिए, बिलबोर्ड पर लिखे अक्षर बड़े, ज़्यादा रंगीन और ऐसी जगह पर लगाए जाते थे कि उनका संदेश तुरंत लोगों तक पहुँच जाए।
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इंटरनेट का उदय: डिजिटल दुनिया में विज्ञापन (1990-2000):- 1990 के दशक में इंटरनेट, यानी वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web) का आगमन हुआ। इसने विज्ञापन और विज्ञापन लेखन की पूरी दुनिया को बदलकर रख दिया। यह एक डिजिटल क्रांति थी! पहला ऑनलाइन विज्ञापन 27 अक्टूबर 1994 को हॉट वायर्ड डॉटकॉम (HotWired.com) नामक वेबसाइट पर दिखाई दिया। आश्चर्य की बात यह है कि सिर्फ चार महीनों के भीतर इस विज्ञापन पर क्लिक करने वालों की संख्या 44% तक पहुँच गई थी, जो आज के ऑनलाइन विज्ञापनों की तुलना में बिल्कुल अलग है। इंटरनेट ने विज्ञापन के लिए एक नया मैदान खोल दिया था, जहाँ लोगों तक पहुँचने के अनगिनत तरीके थे।
इस तरह, बीसवीं सदी में विज्ञापन का तरीका धीरे-धीरे विकसित होता रहा, नए-नए माध्यम आते रहे और लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के तरीके भी बदलते रहे। हर दौर की अपनी विशेषता थी और हर माध्यम ने विज्ञापन की दुनिया को एक नया रूप दिया।
21वीं सदी में डिजिटल दुनिया ने विज्ञापन को कैसे बदला?
2000 का दशक: नई सदी, अपने साथ डिजिटल क्रांति लेकर आई। इंटरनेट ने विज्ञापन के तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया। अब कंपनियों के लिए यह संभव हो गया था कि वे खास लोगों या समूहों को ध्यान में रखकर विज्ञापन दिखा सकते थे और लोगों को ऐसा लगे कि यह विज्ञापन विशेष रूप से उन्हीं के लिए बनाया गया है। सोशल मीडिया के आने से कंपनियों का अपने ग्राहकों से जुड़ने का तरीका पूरी तरह से नया हो गया।
2010 का दशक: 2010 का दशक, इस बात के लिए याद किया जाता है कि कंपनियां समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझने लगी थीं और विज्ञापन में सच्चाई दिखाने पर ज़ोर देने लगी थीं। इस समय, कई कंपनियों ने ऐसे विज्ञापन बनाए जिनमें वे किसी सामाजिक या पर्यावरण से जुड़े अच्छे काम का समर्थन करती थीं। इससे लोगों को यह महसूस होने लगा कि कंपनियां सिर्फ़ पैसे कमाने के बारे में नहीं सोचतीं , बल्कि समाज की भी परवाह करती हैं ।
2020 का दशक: 2020 के दशक में डिजिटल विज्ञापन का दबदबा और भी बढ़ गया। कंपनियों ने लोगों को उनकी पसंद और ज़रूरत के हिसाब से विज्ञापन दिखाने के लिए बड़े पैमाने पर डेटा और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) का इस्तेमाल किया। आजकल आपने देखा होगा कि बहुत से मशहूर लोग ( इन्फ़्लुएंसर) भी विज्ञापन करते हैं, और यह तरीका बहुत लोकप्रिय हो गया है। इसके अलावा, वर्चुअल रियलिटी (आभासी वास्तविकता (VR)) और ऑगमेंटेड रियलिटी (संवर्धित वास्तविकता (AR)) जैसी नई तकनीकों ने लोगों के सामान देखने और खरीदने के तरीके को बदल दिया है। अब लोग घर बैठे ही यह महसूस कर सकते हैं कि कोई चीज कैसी दिखेगी।
मुख्य चित्र में एक कांस्य की प्लेट है, जिसका उपयोग चीन के सॉन्ग राजवंश काल में जिनान शहर में स्थित "लियू परिवार की सुई की दुकान" के विज्ञापन को छापने के लिए किया गया था। इसे दुनिया का सबसे प्राचीन और पहचाना गया मुद्रित विज्ञापन माध्यम माना जाता है। तथा ऑनलाइन विज्ञापन का स्रोत : Wikimedia, pexels