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                                            ‘आवारा मवेशी’ शब्द, गाय, बैल और भैंस, जैसे उन गोजातीय जानवरों को संदर्भित करता है, जो किसी मालिक के बिना स्वतंत्र रूप से घूमते हैं या जिन्हें मुक्त छोड़ दिया जाता है। वे किसी व्यक्ति की देखभाल में नहीं होते हैं। ऐसे जानवर, भारतीय किसानों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करते हैं, जिससे फ़सल विनाश, स्वास्थ्य जोखिम और आर्थिक नुकसान, यातायात मुद्दे और सुरक्षा चिंताएं सामने आती हैं। बेशक ही, भारत के कई अन्य शहरों की जनता की तरह, हम रामपुर के लोग भी इस समस्या से पीड़ित हैं। भारत में 5 लाख आवारा मवेशी आबादी है; और उनकी 48% आबादी केवल राजस्थान एवं हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में ही है। उत्तर प्रदेश में आयोजित पशुधन गणना 2019 के अनुसार राजस्थान के बाद, 11 लाख आवारा मवेशियों के साथ, हमारे राज्य में इनकी सबसे बड़ी आबादी है। इस संदर्भ में, चलिए, आज भारत में आवारा मवेशियों की समस्या पर काबू पाने के समाधानों के बारे में, कुछ महत्वपूर्ण विवरणों का पता लगाएं। फिर, हम जानेंगे कि रामपुर में कितना पशुधन है। उसके बाद, हम भारत में सबसे अधिक पशुधन आबादी वाले राज्यों का पता लगाएंगे। इसके अलावा, हम भारत में पशुधन किसानों द्वारा सामना की जाने वाली, प्रमुख चुनौतियों की जांच भी करेंगे। अंत में, हम भारत के पशुधन क्षेत्र में सुधार के उद्देश्य से, हाल के वर्षों में किए गए कुछ उपायों का पता लगाएंगे।
भारत के आवारा मवेशियों की समस्या पर काबू पाने के लिए कुछ समाधान:
1.इस समस्या से निपटने के लिए सबसे पहला कदम, स्वदेशी और विदेशी पशुओं की नस्लों का प्रजनन रोकना है। अनुसंधान संस्थानों को प्रजनन के लिए स्वदेशी नस्लों के वीर्य का उपयोग करना चाहिए।
2.अन्य दृष्टिकोण, प्रति–संकर प्रजनन को रोकना हो सकता है। प्रति–संकर प्रजनन में, भ्रूण हस्तांतरण प्रौद्योगिकी (Embryo transfer technology) के माध्यम से शुद्ध स्वदेशी गायों का प्रजनन करने के लिए, संकर नस्लों का पालक माताओं के रूप में उपयोग किया जाता है।
3.शोधकर्ताओं को नर बछड़ों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए, जिनकी मांग कम है, स्वदेशी नस्लों के यौन वीर्य को भी विकसित करना चाहिए।
4.भारतीय नस्लों को विदेशी नस्लों की तुलना में एक फ़ायदा होता है, क्योंकि वे स्वाभाविक रूप से ए2 (A2) गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करती हैं, जो मनुष्यों के लिए फ़ायदेमंद है। स्वदेशी गाय के दूध में उच्च मात्रा में संयुग्मित लिनोलिक एसिड (Linoleic acid), ओमेगा-3 फ़ैटी एसिड (Omega-3 fatty acids) और सेरेब्रोसाइड्स (Cerebrosides) जैसे कुछ उपयोगी घटक भी होते हैं।
5.शोधकर्ताओं को, स्वदेशी नस्लों से मिलने वाले दूध के प्रकारों का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए, ताकि उनकी योग्यता को समझा जा सके। यह गैर-विवरणी नस्लों की उपयोगिता को बढ़ाएगा।
6. दुग्ध उत्पादन के अलावा, मवेशियों का उपयोग बोझ वहन में भी किया जाता है। यदि ऐसे कृषि उपकरण विकसित किए जाएँ जो इनके साथ समन्वय स्थापित कर सकें, तो इनकी उपयोगिता और भी बढ़ाई जा सकती है।
7.स्वदेशी मवेशियों के गोबर में असंख्य उपयोगी बैक्टीरिया होते हैं, जो रोगजनकों के कारण होने वाली बीमारियों को रोक सकते हैं। साथ ही, इसका उपयोग एक प्राकृतिक शोधक के रूप में किया जा सकता है।
हमारे रामपुर ज़िले में कितना पशुधन है ?
1.विदेशी मवेशी संख्या: 38769
2.स्वदेशी मवेशी संख्या: 67327
3.भैंसों की संख्या: 353580
4.बकरियों की आबादी: 80830
5.भैंस, भेड़ और बकरियों की संयुक्त आबादी: 734768
भारत में सबसे अधिक पशुधन आबादी वाले राज्य:
| क्रमांक | राज्य | पशुधन संख्या (मिलियन में) 2012 | पशुधन संख्या (मिलियन में) 2019 | 
| 1 | उत्तर प्रदेश | 68.7 | 67.8 | 
| 2 | राजस्थान | 87.7 | 56.8 | 
| 3 | मध्य प्रदेश | 36.3 | 40.6 | 
| 4 | पश्चिम बंगाल | 30.3 | 37.4 | 
| 5 | बिहार | 32.9 | 36.2 | 
| 6 | आंध्र प्रदेश | 29.4 | 34.0 | 
| 7 | महाराष्ट्र | 32.5 | 33.0 | 
| 8 | तेलंगाना | 26.7 | 32.6 | 
| 9 | कर्नाटक | 27.7 | 29.0 | 
| 10 | गुजरात | 27.1 | 26.9 | 
भारत में पशुधन किसानों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियां:
1. प्रजनन हेतु उच्च श्रेणी वाले बैल या नर मवेशी उपलब्ध नहीं हैं।
2. कई प्रयोगशालाएं, खराब गुणवत्ता के वीर्य का उत्पादन करती हैं।
3. पशुधन किसानों को पारंपरिक कृषि किसानों की तुलना में क्रेडिट और पशुधन बीमा योजनाओं का लाभ उठाते समय, अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
4. पशुजनक बीमारियों के मामलों में तेज़ वृद्धि के कारण, आज पशु रोगों के लिए उचित निदान और उपचार सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं, जो हमारे देश में ज़्यादा विकसित नहीं हैं।
5. खाद्य संसाधनों की कमी के कारण, पशु बीमारी प्रबंधन अपर्याप्त है।
6. स्वदेशी नस्लों के लिए कोई क्षेत्र-आधारित संरक्षण योजनाएं भी नहीं हैं।
7. इसके अलावा, इस क्षेत्र का समर्थन करने के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढांचे तथा उत्पादन में सुधार हेतु, किसानों के लिए विशेषज्ञता और गुणवत्ता सेवाओं की कमी, कुछ अन्य प्रमुख समस्याएं हैं।
भारत के पशुधन क्षेत्र में सुधार के लिए लागू की गई सरकारी पहलों की खोज:
•राष्ट्रीय गोकुल मिशन (Rashtriya Gokul Mission):
यह पहल, चयनात्मक प्रजनन और आनुवंशिक उन्नयन के माध्यम से, स्वदेशी नस्लों के विकास और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करती है।
•राष्ट्रीय पशुधन मिशन (National Livestock Mission: ):
इसका उद्देश्य, पशुधन उत्पादन प्रणालियों में मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार सुनिश्चित और सभी हितधारकों की क्षमता का निर्माण करना है।
•किसान क्रेडिट कार्ड को इस क्षेत्र में लाना और पशु स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा विकास निधि की स्थापना, आदि।
•डेयरी विकास कार्यक्रम:
डेयरी उद्यमशीलता विकास योजना तथा राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम जैसी योजनाएं, डेयरी क्षेत्र को आधुनिक बनाने और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखती हैं।
•पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (Livestock Health and Disease Control Programs):
खुर व मुंह की बीमारी (Foot mouth disease) और ब्रुसेलोसिस (Brucellosis) रोग के संदर्भ में, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम तथा रोग निगरानी एवं नैदानिक सेवाओं को मज़बूत करने के लिए, पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण योजना, इसमें शामिल है।
संदर्भ
चित्र स्रोत : pexels