रामपुर की सुरों भरी ज़मीन पर खिला सहसवान घराना, संजोए हुए है ग्वालियर की विरासत

ध्वनि I - कंपन से संगीत तक
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रामपुर की सुरों भरी ज़मीन पर खिला सहसवान घराना, संजोए हुए है ग्वालियर की विरासत

भारतीय शास्त्रीय संगीत की विविधता और गहराई अनेक घरानों की परंपराओं में प्रतिबिंबित होती है, जिन्होंने अपनी विशिष्ट गायन शैलियों और संगीत दर्शन से इस सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध किया है। भारत की समृद्ध सांगीतिक परंपरा में अनेक घरानों का योगदान रहा है, जिन्होंने न केवल कला को संरक्षण दिया, बल्कि उसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे भी बढ़ाया। उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर रामपुर और सहसवान से निकला रामपुर सहसवान घराना  हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ऐसी ही एक धरोहर है, जिसने ख़याल गायकी को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। इस घराने की नींव उस्ताद इनायत हुसैन खान ने रखी, और बाद में कई दिग्गज संगीतकारों ने इसकी परंपरा को समृद्ध किया। इस लेख में हम रामपुर-सहसवान घराने के ऐतिहासिक विकास, ग्वालियर घराने से इसके गहरे संबंध, इसके कलात्मक योगदान और भारतीय संगीत पर इसके स्थायी प्रभाव की विस्तृत जानकारी पर चर्चा करेंगे।

रामपुर सहसवान घराना: इतिहास और विकास

रामपुर सहसवान घराने की नींव उस्ताद इनायत हुसैन खान ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में रखी थी। वे प्रसिद्ध वीणा वादक उस्ताद महबूब खान के पुत्र थे और उनकी संगीत शिक्षा का आधार बहुत दृढ़ था। इस घराने का नाम दो स्थानों से जुड़ा है – रामपुर, जहाँ नवाबी दरबार ने संगीत को संरक्षण और मंच प्रदान किया, और सहसवान, जहाँ से इस घराने के कई प्रमुख गायक और वंशज उत्पन्न हुए।

रामपुर नवाबों, विशेषकर नवाब युसूफ अली खान और बाद में नवाब कल्बे अली खान और नवाब हामिद अली खान के संरक्षण में इस घराने को समृद्धि और सम्मान मिला। रामपुर दरबार में कई श्रेष्ठ संगीतज्ञों को आमंत्रित किया गया, जिनमें ध्रुपद, ख़याल, ठुमरी, और वाद्य संगीत के विशेषज्ञ शामिल थे। यह दरबार उस समय के भारत के सांगीतिक मानचित्र पर एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया था।

इस घराने की शैली में गहराई, अनुशासन और विशुद्धता की छाप देखी जाती है। यह परंपरा गुरु-शिष्य परंपरा से आगे बढ़ी, जिसमें संगीत केवल कौशल नहीं, बल्कि साधना और आत्मिक अनुभव का विषय माना गया।

ग्वालियर घराना और रामपुर घराने के बीच सम्बन्ध

रामपुर सहसवान घराने का ग्वालियर घराने से गहरा सम्बन्ध है, जिसे भारतीय ख़याल गायकी का सबसे पुराना और बुनियादी घराना माना जाता है।ग्वालियर घराने की शुरुआत 16वीं शताब्दी में हुई और यह घराना ख़याल गायकी में ठहराव, स्पष्टता और रागों की संरचनात्मक शुद्धता के लिए प्रसिद्ध है। रामपुर सहसवान घराने की गायन शैली पर ग्वालियर घराने की यह विशेषताएँ स्पष्ट रूप से प्रभाव डालती हैं।

ऐतिहासिक रूप से यह माना जाता है कि उस्ताद इनायत हुसैन खान स्वयं ग्वालियर घराने के कुछ वरिष्ठ गायकों से प्रभावित थे। उनके शिष्य और उत्तराधिकारी, जैसे उस्ताद मुश्ताक हुसैन खान, जिन्होंने भारत सरकार से पद्म भूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया था, ग्वालियर की शास्त्रीय शैली को अपने गायन में एक नई परिभाषा देने में सफल रहे।

साथ ही, रामपुर सहसवान घराना आगरा, पटियाला और किराना घराने की कुछ शैलियों से भी प्रेरणा लेता रहा, लेकिन इसकी आधारशिला ग्वालियर की शैली पर ही टिकी रही। इन दोनों घरानों के संबंधों ने ख़याल गायकी को और अधिक समृद्ध तथा परिपक्व बनाया।

रामपुर सहसवान घराने के प्रमुख योगदान

रामपुर सहसवान घराने का भारतीय शास्त्रीय संगीत में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस घराने ने ख़याल गायकी को न केवल शुद्धता और गहराई प्रदान की, बल्कि उसमें तकनीकी परिष्कार और सौंदर्यात्मक अभिव्यक्ति भी जोड़ी। इसकी गायकी की शैली में स्वर की स्पष्टता, तानों की सटीकता, बोल-आलाप की नफासत और ताल में अत्यधिक अनुशासन विशेष रूप से देखे जाते हैं।

उस्ताद मुश्ताक हुसैन खान, जो भारत के पहले राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित शास्त्रीय गायक थे, ने इस घराने की अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई। वे संगीत नाटक अकादमी के संस्थापक सदस्यों में भी शामिल थे। उनके अलावा उस्ताद निसार हुसैन खान, जो ऑल इंडिया रेडियो के प्रतिष्ठित कलाकार रहे, और उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान, जिन्हें पद्म विभूषण प्राप्त हुआ, इस परंपरा के महत्वपूर्ण वाहक रहे हैं।

रामपुर सहसवान घराने के गायन में केवल तकनीकी पक्ष ही नहीं, बल्कि भावनात्मक अभिव्यक्ति और आध्यात्मिकता का भी समावेश होता है। यही कारण है कि इसके कलाकार न केवल मंचों पर सराहे गए, बल्कि संगीत शिक्षा में भी आदर्श बने।

रामपुर सहसवान घराना और भारतीय संगीत परंपरा

रामपुर सहसवान घराना भारतीय शास्त्रीय संगीत की उस परंपरा का प्रतीक है जिसमें गुरु-शिष्य परंपरा, पारिवारिक सांस्कृतिक उत्तराधिकार और क्षेत्रीय विविधताओं का अद्वितीय समावेश होता है। यह घराना इस बात का उदाहरण है कि कैसे किसी क्षेत्रीय शैली को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई जा सकती है।

इस घराने की संगीत साधना में धर्म, संस्कृति और आत्मानुभूति का समन्वय है। शास्त्रीय संगीत संस्थान जैसे आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी और संगीत नाटक अकादमी ने इस घराने के कई वरिष्ठ कलाकारों को सम्मानित किया है, जिससे इसकी परंपरा को सशक्त मंच मिला।

वर्तमान समय में इस घराने की परंपरा दिवंगत उस्ताद राशिद खान, उस्ताद अर्शद अली खान, और उस्ताद गुलाम हुस्नैन खान जैसे कलाकारों द्वारा आगे बढ़ाई जा रही है। ये कलाकार न केवल परंपरा को जीवित रखे हुए हैं, बल्कि इसे युवा पीढ़ी तक भी पहुँचा रहे हैं। रामपुर सहसवान घराना आज भी भारतीय सांस्कृतिक विरासत का गर्वपूर्ण अध्याय है।