क्यों रामपुरवासियो के लिए इलाहाबादी सुर्खा अमरूद, स्वाद और सुगंध का पर्याय बन गया है?

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क्यों रामपुरवासियो के लिए इलाहाबादी सुर्खा अमरूद, स्वाद और सुगंध का पर्याय बन गया है?

रामपुरवासियो, अगर आपने कभी प्रयागराज की यात्रा की हो, तो वहाँ की गलियों या स्टेशनों पर बिकते, लाल और भीनी-भीनी ख़ुशबू बिखेरते अमरूदों ने ज़रूर आपका मन मोह लिया होगा। ये कोई साधारण फल नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की एक विशिष्ट पहचान बन चुका है — इलाहाबादी सुर्खा अमरूद। इसका गहरा गुलाबी गूदा, मीठा स्वाद और तेज़ सुगंध इसे बाकी सभी किस्मों से अलग करता है। हमारे रामपुर से क़रीब 550 किलोमीटर दूर, प्रयागराज और उसके पास के कौशाम्बी ज़िले की उपजाऊ मिट्टी में उगने वाला यह अमरूद अब प्रदेश की सीमाओं को पार कर देशभर में अपनी अनोखी पहचान बना चुका है।

आज के लेख में हम जानेंगे कि इलाहाबादी सुर्खा अमरूद को उसकी विशेष पहचान कैसे मिली और यह सांस्कृतिक रूप से कितना महत्वपूर्ण है। फिर हम देखेंगे कि स्थानीय लोगों, व्यापारियों और यात्रियों के बीच इसकी लोकप्रियता कैसे बनी। उसके बाद हम इस अमरूद के उत्पादन केंद्रों, विशेष रूप से कौशाम्बी ज़िले के मूरतगंज और चायल क्षेत्रों के आर्थिक आंकड़ों को समझेंगे।

इलाहाबादी सुर्खा अमरूद की विशेष पहचान और ऐतिहासिक मान्यता

इलाहाबादी सुर्खा अमरूद, जिसे स्थानीय लोग प्रेमपूर्वक "सेबिया अमरूद" भी कहते हैं, अपनी अनोखी बनावट और स्वाद के कारण राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग मुक़ाम रखता है। इसके फल का बाहरी हिस्सा सेब की तरह लाल होता है और अंदरूनी गूदा गहरे गुलाबी रंग का, जो इसे सामान्य सफ़ेद अमरूदों से पूर्णतः अलग करता है। यह मीठा, गूदा-मुक्त और बीजों की संख्या में कम होता है, जिससे इसका स्वाद और खाने का अनुभव दोनों विशिष्ट हो जाते हैं। इतिहास में इस फल की लोकप्रियता की झलक 19वीं सदी के मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी के शब्दों में मिलती है, जिन्होंने इसे “दिव्य फल” कहा और कहा कि इसकी जगह भगवान के चरणों में होनी चाहिए। यही भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव इस फल को विशिष्ट बनाता है। उनके इस कथन से यह भी स्पष्ट होता है कि यह फल उस समय केवल खाद्य सामग्री नहीं था, बल्कि इलाहाबाद की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक भी था। साल 2007–08 में इसे 'जियोग्राफिकल इंडिकेशन' (GI) टैग मिला, जिसने इसे कानूनी रूप से विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान प्रदान की। GI टैग मिलने के बाद इलाहाबाद सुर्खा की ख्याति और बाज़ार मूल्य में वृद्धि हुई। आज यह अमरूद उत्तर भारत की ठंड में आने वाले उन विशेष फलों में शामिल है, जिसे लोग उपहार के रूप में अपने रिश्तेदारों को भेजते हैं। 

इलाहाबादी सुर्खा की लोकप्रियता के सामाजिक और बाज़ार पक्ष

इलाहाबादी सुर्खा केवल स्वादिष्ट फल नहीं, बल्कि प्रयागराज के दैनिक जीवन और सामाजिक संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। यहाँ के विक्रेताओं का दिन सुबह 5 बजे बागों से ताज़ा अमरूद तोड़ने से शुरू होता है, और जैसे ही ये फल बाज़ार में पहुँचते हैं, देखते ही देखते घंटे भर में बिक भी जाते हैं। इनकी रंग-बिरंगी पैकेजिंग और ताज़गी लोगों को आकर्षित करती है, और इनके लिए ग्राहकों की भीड़ सुबह से ही इंतज़ार करती दिखती है। इलाहाबाद जंक्शन पर आने-जाने वाली ट्रेनों के यात्री इन अमरूदों की खुशबू से इतने सम्मोहित होते हैं कि चाय-पानी छोड़कर अमरूद की खरीदारी में लग जाते हैं। वहां का दृश्य खुद में एक सांस्कृतिक अनुभव होता है — विक्रेता ज़ोर से आवाज़ लगाते हैं, “सुर्खा लो, इलाहाबाद का असली अमरूद लो!” और यात्री खुद को रोक नहीं पाते।

ठंड के मौसम में यह अमरूद लोगों के उपहारों का हिस्सा बन जाता है। प्रयागराज और आसपास के लोग इसे रिश्तेदारों को भेजते हैं, जिससे इसका भावनात्मक मूल्य भी बढ़ जाता है। इसकी लोकप्रियता केवल प्रयागराज तक सीमित नहीं रही, बल्कि बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे पड़ोसी राज्यों में भी इसके नियमित ट्रक भेजे जाते हैं। इस अमरूद के प्रति उपभोक्ताओं का यह प्रेम दर्शाता है कि यह फल केवल स्वाद के लिए नहीं खरीदा जाता, बल्कि यह एक पहचान, एक अनुभव और एक परंपरा का रूप बन गया है। प्रयागराज के बाज़ारों में जब यह अमरूद सर्दियों में आता है, तो मानो एक उत्सव सा वातावरण बन जाता है।

इलाहाबादी सुर्खा का भौगोलिक उत्पादन केंद्र और आर्थिक आँकड़े

इस अमरूद की खेती मुख्य रूप से कौशाम्बी ज़िले के दो ब्लॉकों — मूरतगंज और चायल — में की जाती है, जिन्हें राज्य सरकार ने ‘फल पट्टी (Fruit Belt)’ घोषित किया है। इस क्षेत्र की जलवायु, गंगायमुनाञ्चल की दोआब वाली ज़मीन, और उपजाऊ मिट्टी मिलकर इस फल को एक विशिष्ट गुणवत्ता प्रदान करती है। कौशाम्बी में लगभग 300 हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है और हर मौसम में यहाँ से प्रतिदिन लगभग 50 टन इलाहाबादी सुर्खा बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल को निर्यात किया जाता है। यह आँकड़ा प्रयागराज के लिए न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके कृषक समुदाय की आजीविका का मुख्य आधार भी है।

भारत में अमरूद उत्पादन की तुलना में देखें तो केला और आम के बाद अमरूद का स्थान प्रमुख है। लेकिन इलाहाबादी सुर्खा, उत्पादन की मात्रा से अधिक, गुणवत्ता, स्वाद और क्षेत्रीय पहचान के कारण अधिक महत्त्व रखता है। इसकी माँग अन्य राज्यों से आने वाले अमरूद की तुलना में कई गुना अधिक होती है, जो प्रयागराज के किसानों और व्यापारियों के लिए स्थायी बाज़ार बनाता है। इस क्षेत्रीय केंद्र ने प्रयागराज को एक फल उत्पादक हब के रूप में स्थापित कर दिया है, जिससे जुड़ी अर्थव्यवस्था और सप्लाई चेन दोनों को मज़बूती मिली है। यह न केवल स्थानीय व्यापारियों के लिए अवसर खोलता है, बल्कि कृषि से जुड़ी सहायक सेवाओं — जैसे पैकेजिंग, ट्रांसपोर्ट और मार्केटिंग — को भी रोज़गार प्रदान करता है।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/2urmtscn