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रामपुर उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक नगर है, जिसकी गाथा सदियों पुरानी है। यह नगर कभी राजपूतों, रोहिलाओं और नवाबों का गौरवशाली केंद्र रहा है। रामपुर की मिट्टी में इतिहास की सुगंध, संस्कृति की गहराई और परंपरा की मिठास आज भी बसी हुई है। प्राचीन समय में रामपुर को "काठेर" कहा जाता था। रोहिलाओं ने रामपुर को अपनी राजधानी बनाया और इसे "रोहिलखंड" नाम दिया गया। इस समय में रामपुर ने राजनीतिक और सैन्य दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। जब मराठों ने वर्ष 1772 में रोहिलखंड पर हमला किया, तब रोहिलाओं ने अवध के नवाब से सहायता माँगी, और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की मदद से यहाँ युद्ध हुआ।
पहली वीडियो में हम रामपुर रियासत के इतिहास को समझने का प्रयास करेंगे।
नीचे दी गई वीडियो के माध्यम से हम रामपुर की कुछ पुरानी झलकियां देखेंगे।
वर्ष 1774 में नवाब फैज़ुल्ला ख़ाँ ने रामपुर रियासत की स्थापना की। उन्होंने इस नगर का नाम "मुस्तफ़ाबाद" रखा, लेकिन यह आम बोलचाल में "रामपुर" ही कहलाता रहा। नवाब फैज़ुल्ला ख़ाँ एक विद्वान और कला-संरक्षक शासक थे। उन्होंने अनेक दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथ एकत्र किए, जो आज रामपुर की शान — रामपुर रज़ा पुस्तकालय — में सुरक्षित हैं। नवाब कल्ब अली ख़ाँ ने अपनी विद्वता और प्रशासनिक कौशल से रामपुर को एक सांस्कृतिक केंद्र बनाया। उन्होंने जामा मस्जिद का निर्माण कराया और पुस्तकालय के संग्रह को और समृद्ध किया। नवाबों ने भारतीय स्थापत्य कला और यूरोपीय वास्तुकला का अनूठा संगम रामपुर की इमारतों में दिखाया।
ब्रिटिश शासन के समय भी रामपुर की स्थिति विशेष बनी रही। नवाबों ने ब्रिटिश शासन के साथ सहयोग बनाए रखा, जिससे रामपुर में विद्यालयों, महलों, उद्यानों और सार्वजनिक भवनों का निर्माण हुआ। यह रियासत अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक चेतना के लिए जानी जाती रही। स्वतंत्रता के पश्चात 15 अगस्त 1947 को रामपुर भारत का पहला रियासत था, जिसने स्वेच्छा से भारतीय गणराज्य में विलय स्वीकार किया। 26 जनवरी 1950 में यह संयुक्त प्रांतों में सम्मिलित हुआ। यद्यपि नवाबों से राजसत्ता छीन ली गई, लेकिन उनकी संस्कृति, विद्वता और जनसेवा की परंपरा आज भी यहाँ जीवित है।
रामपुर केवल एक नगर नहीं है, यह भारत की साझा संस्कृति, साहित्यिक गहराई, और सौहार्द की जीवंत मिसाल है।
नीचे दी गई वीडियो में हम रामपुर शहर की एक झलक देखेंगे।
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