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                                            रामपुर की गलियों और चौपालों में जब महिलाएं आत्मनिर्भरता की बातें करती हैं, तो यह सिर्फ शब्दों की नहीं, बल्कि एक नए युग की दस्तक होती है। कभी जो महिलाएं अपने परिवार की आय पर पूरी तरह निर्भर हुआ करती थीं, आज वे अपने निर्णय खुद लेने लगी हैं—चाहे वो स्वरोज़गार हो, प्रवास के माध्यम से काम की तलाश, या शिक्षा के बाद नौकरी की ओर बढ़ता कदम। रामपुर की महिलाएं अब सिर्फ घर की चूल्हा-चौका सँभालने वाली पारंपरिक पहचान में सीमित नहीं हैं, बल्कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र, नीतिगत बदलावों की साक्षी और प्रेरणास्रोत बन रही हैं।
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे रामपुर की महिलाओं की आर्थिक स्थिति समय के साथ बदली है। हम यह भी समझेंगे कि पहले जहाँ महिला प्रवास के पीछे विवाह प्रमुख कारण होता था, वहीं अब रोजगार और आर्थिक अवसरों की तलाश में भी वे घर से बाहर निकल रही हैं। फिर, हम देखेंगे कि महिला श्रमिकों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और श्रम भागीदारी दर में कैसा बदलाव आया है। अंत में, हम उन मिथकों की चर्चा करेंगे जो अब टूट रहे हैं, और जिनके पीछे महिलाएं अपनी असली शक्ति दिखा रही हैं।
रामपुर में महिलाओं की आर्थिक स्थिति का बदलता स्वरूप
कभी रामपुर की अधिकतर महिलाएं अपने घरों की चारदीवारी से बाहर नहीं निकलती थीं और उनके आर्थिक हालात मुख्य रूप से उनके पतियों या घर के पुरुष सदस्यों की आय पर निर्भर करते थे। लेकिन समय के साथ यह तस्वीर बदलने लगी है। शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और स्वरोज़गार योजनाओं ने महिलाओं को न केवल आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि उन्होंने अब खुद कमाना और अपने निर्णय लेना शुरू कर दिया है।
आज, रामपुर की कई महिलाएं सिलाई, कढ़ाई, छोटी दुकानों, टिफ़िन सेवाओं (Tiffin Service) और कृषि संबंधी कामों में सक्रिय रूप से भागीदारी कर रही हैं। शहरी क्षेत्र की महिलाएं जहां शैक्षिक योग्यता के आधार पर निजी या सरकारी नौकरियों की ओर अग्रसर हो रही हैं, वहीं ग्रामीण महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के ज़रिए स्वरोज़गार की दिशा में बढ़ रही हैं। यह परिवर्तन केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक रूप से भी गहराई से जुड़ा है क्योंकि इससे महिलाओं की पारिवारिक और सामाजिक स्थिति में भी सुधार आया है। वे अब सलाहकार की भूमिका में हैं, निर्णय लेने वाली हैं, और अपने बच्चों की शिक्षा से लेकर घर के बजट (budget) तक को नियंत्रित कर रही हैं।

महिला प्रवास के बदलते कारण और आर्थिक अवसरों की खोज
पहले महिला प्रवास का मुख्य कारण विवाह हुआ करता था—लड़कियां अपने पति के साथ नए स्थान पर बस जाती थीं। लेकिन अब स्थिति बदल रही है। रामपुर की महिलाएं आज शिक्षा, नौकरी और आर्थिक अवसरों की तलाश में अकेले या समूहों में भी प्रवास कर रही हैं। यह प्रवास अब केवल सामाजिक रीति-रिवाज़ का हिस्सा नहीं बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में उठाया गया साहसिक कदम है।
भारत की जनगणना (1971-2001) के अनुसार, महिला प्रवासियों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है।2001 में यह संख्या 218.7 लाख तक पहुँच गई थी, जबकि 1971 में यह मात्र 110 लाख थी। यह दर्शाता है कि महिलाएं अब केवल परिवार का अनुसरण करने के लिए नहीं, बल्कि अपनी इच्छा और जरूरतों के लिए भी स्थान बदल रही हैं। रामपुर की कई महिलाएं महानगरों की ओर घरेलू काम, केयर वर्क (Care Work), या फैक्ट्री (Factory) आधारित रोजगार के लिए जा रही हैं। यह आर्थिक पहल उन्हें आत्मनिर्भर ही नहीं बनाता, बल्कि उनके परिवारों को भी आर्थिक सहारा देता है। हालांकि यह यात्रा आसान नहीं होती—पर यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और बदलती मानसिकता का प्रमाण है।

महिला श्रमिकों की चुनौतियाँ और श्रम भागीदारी दर में बदलाव
महिला प्रवासी श्रमिकों को जहां एक ओर आर्थिक स्वतंत्रता का रास्ता दिखाई देता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। रामपुर की महिलाएं जो बाहर काम के लिए जाती हैं, उन्हें कई बार वेतन में भेदभाव, सुरक्षित आवास की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता, और यौन शोषण तक की जोखिमों का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, परिवार से दूरी और बच्चों की ज़िम्मेदारी का बोझ उन्हें मानसिक रूप से भी प्रभावित करता है।
भारत में महिला श्रम भागीदारी दर में वर्षों से उतार-चढ़ाव रहा है। 1990 में यह दर 30.2% थी, जो 2018 तक घटकर 17.5% रह गई। हालांकि 2020-21 की रिपोर्ट (report) बताती है कि यह दर फिर से बढ़कर 24.8% तक पहुँची, जो एक सकारात्मक संकेत है। इस सुधार में महिला सशक्तिकरण योजनाएं, स्वरोज़गार के अवसर, और औद्योगिक विकास की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। रामपुर में भी सरकार द्वारा चलाई जा रही कौशल विकास योजनाएं और महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने वाले कार्यक्रम इस दर को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं।

कार्यस्थल पर महिलाओं से जुड़े मिथक और उनकी सच्चाई
समाज में महिलाओं के बारे में कई ऐसे मिथक (गलत धारणा) हैं जो उनके आत्मविश्वास, क्षमता और नेतृत्व को कमतर आँकते हैं। लेकिन महिलाएं इन मिथकों को हर दिन तोड़ रही हैं। पहला मिथक है कि महिलाएं पुरुषों जितनी महत्वाकांक्षी नहीं होतीं, जबकि सच्चाई यह है कि महिलाएं अपने करियर (career) को लेकर उतनी ही गंभीर होती हैं, लेकिन उन्हें रास्ते में ज़्यादा बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
दूसरा मिथक यह है कि महिलाएं अच्छी वार्ताकार नहीं होतीं, जबकि शोध बताते हैं कि महिलाएं जब दृढ़ता से बातचीत करती हैं तो उन्हें अधिक आलोचना झेलनी पड़ती है। तीसरा मिथक है कि महिलाएं आत्मविश्वास में पुरुषों से पीछे होती हैं, जबकि कई बार वे आत्मविश्वास तो दिखाती हैं, लेकिन उन्हें 'घमंडी' करार दिया जाता है। चौथा और सबसे प्रचलित मिथक है कि महिलाएं काम के प्रति उतनी प्रतिबद्ध नहीं होतीं। लेकिन महिलाएं खेत, कार्यालय और व्यवसायिक मंचों पर लगातार यह साबित कर रही हैं कि वे भी पुरुषों की तरह पूरी निष्ठा से काम करती हैं। महिलाएं अब पंचायतों, विद्यालयों, व्यापारिक संस्थाओं और सामाजिक संगठनों में प्रभावशाली नेतृत्व की मिसाल पेश कर रही हैं।
संदर्भ-