रामपुर की श्रद्धा से विश्व मंच तक: गणेश चतुर्थी का सांस्कृतिक विस्तार

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
27-08-2025 09:38 AM
रामपुर की श्रद्धा से विश्व मंच तक: गणेश चतुर्थी का सांस्कृतिक विस्तार

रामपुर के निवासियों को गणेश चतुर्थी की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
रामपुरवासियों, गणेश चतुर्थी का त्योहार सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, यह आस्था, उल्लास और सांस्कृतिक एकता का जीवंत प्रतीक है। चाहे उत्तर प्रदेश हो या महाराष्ट्र, ओडिशा हो या तमिलनाडु, हर कोने में गणपति बप्पा का स्वागत ढोल-नगाड़ों, रंगोली, भजन-कीर्तन और पारंपरिक मिठाइयों के साथ किया जाता है। रामपुर के भी कई घरों और मंदिरों में इस दिन एक विशेष रौनक देखने को मिलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश जी की यह दिव्यता अब केवल भारत तक सीमित नहीं रही? आज वे दुनिया भर में श्रद्धा और संस्कृति के प्रतीक बन चुके हैं, थाईलैंड (Thailand) से लेकर अमेरिका तक, जहां लोग उन्हें न केवल पूजते हैं, बल्कि अपने जीवन और कला में भी स्थान देते हैं। 
इस लेख में हम गणेश जी की विदेशों में प्रचलित छवि और लोकप्रियता को पाँच पहलुओं से समझने की कोशिश करेंगे। सबसे पहले, हम देखेंगे कि थाईलैंड जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में श्री गणेश को किस रूप में पूजा जाता है और उनके मंदिरों की क्या विशेषताएं हैं। फिर, हम पढ़ेंगे कि श्री गणेश की उपस्थिति जापान, चीन, कंबोडिया (Cambodia) और तिब्बत जैसे देशों की कलाओं और परंपराओं में कैसे दिखाई देती है। इसके बाद, हम जानेंगे कि भारत के बाहर बसे प्रवासी भारतीय समुदायों ने अमेरिका, यूके (UK - United Kingdoms) और कनाडा (Canada) जैसे देशों में गणेश चतुर्थी को किस तरह भव्यता दी है। आगे, हम समझेंगे कि कैसे गणपति केवल धार्मिक नहीं, बल्कि कला, संगीत, टेलीविजन (Television) और व्यापार के प्रतीक बन चुके हैं। अंत में, हम चर्चा करेंगे कि श्री गणेश की लोकप्रियता और प्रतीकात्मकता के पीछे भारत की सांस्कृतिक कूटनीति, व्यापारिक संपर्कों और आध्यात्मिक प्रवाह की क्या भूमिका रही है।

थाईलैंड: श्री गणेश जहां कला, व्यापार और शिक्षा के देवता हैं
थाईलैंड में श्री गणेश को 'फ्राफिकानेत' (Phra Phikanet) के नाम से जाना जाता है, और उन्हें विशेष रूप से समृद्धि, बाधा-निवारण और कला के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है। बैंकॉक (Bangkok) के मध्य में स्थित रॉयल (Royal) ब्राह्मण मंदिर से लेकर हुआई ख्वांग (Huai Khwang) और सेंट्रलवर्ल्ड (Centralworld) तक, थाई राजधानी के कोने-कोने में गणेश की प्रतिष्ठित प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं। इन मंदिरों में न केवल थाई लोग, बल्कि चीनी और भारतीय मूल के लोग भी बड़ी श्रद्धा से दर्शन करने आते हैं। चाचोएंगसाओ को तो ‘गणेश शहर’ ही कहा जाता है, जहां बैठी, खड़ी और लेटी हुई तीन विशाल प्रतिमाएं गणपति के विभिन्न रूपों को दर्शाती हैं। इनमें सबसे ऊँची, 49 मीटर की बैठी हुई गणेश प्रतिमा, थाईलैंड में अपनी तरह की सबसे बड़ी मूर्ति मानी जाती है।

चीन, जापान, तिब्बत और कंबोडिया: सांस्कृतिक व्याख्याओं में श्री गणेश
श्री गणेश की छवि केवल भारत तक सीमित नहीं रही। चीन में बौद्ध प्रभावों के साथ, गणेश की उपस्थिति एक संरक्षक और बाधा हटाने वाले देवता के रूप में दिखती है। जापान में वे 'कांगितेन' (Kangiten) नाम से जाने जाते हैं, जहां दो गणेश मूर्तियाँ एक-दूसरे को आलिंगन करती हुई दर्शाई जाती हैं, यह रूप विशेष रूप से 8वीं शताब्दी में चीन से जापान पहुँचा। कंबोडिया में गणेश की प्रतिमाओं में उनका चेहरा हाथी का नहीं बल्कि मानव रूप में दिखाया गया है, जो वहां की स्थानीय कलात्मकता का अद्भुत उदाहरण है। वहीं, तिब्बती बौद्ध परंपराओं में भी गणेश को सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। इन विविध व्याख्याओं से यह स्पष्ट होता है कि गणेश वैश्विक सांस्कृतिक संवाद का एक जीवंत प्रतीक बन चुके हैं।

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प्रवासी भारतीयों के जरिए विदेशों में गणेश चतुर्थी का उत्सव
आज श्री गणेश की पूजा अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom), कनाडा, फिजी (Fiji), मॉरीशस (Mauritius), सिंगापुर (Singapore) और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी बड़े उल्लास से की जाती है। टोरंटो (Toronto, Canada) में प्रवासी भारतीय परिवार अपनी सीमित सुविधाओं में भी गणेश चतुर्थी को भव्यता से मनाते हैं। न्यूयॉर्क (New York, USA) और कैलिफोर्निया (California, USA) में मुंबई से गणेश मूर्तियाँ मंगाकर 11 दिनों तक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यूके के लंदन में लक्ष्मी नारायण मंदिर में गणेश मूर्ति की स्थापना होती है और 5000 से अधिक लोग इस आयोजन में भाग लेते हैं। समापन की शोभायात्रा के साथ मूर्ति का विसर्जन थेम्स (Thames) नदी में किया जाता है। इन आयोजनों ने गणेश चतुर्थी को एक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक पर्व बना दिया है, जो प्रवासी भारतीयों की आस्था और एकजुटता का प्रतीक है।

गणपति: अब कला, मीडिया और व्यापार के भी संरक्षक
गणेश जी की लोकप्रियता अब सिर्फ मंदिरों तक सीमित नहीं है। थाईलैंड में टेलीविजन स्टूडियोज़ (Studios) और प्रोडक्शन हाउस (Production House) के बाहर उनके मंदिर बनाए गए हैं, जहां शूटिंग (seating) से पहले विधिवत पूजा की जाती है। भारत में भी फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) में किसी नए प्रोजेक्ट की शुरुआत गणेश पूजन के बिना नहीं होती। इसी तरह से, कई देशों में गणेश की प्रतिमाएं आर्ट गैलरीज (Art Galleries), डिजाइन स्कूल्स (Design School), और व्यापारिक संस्थानों में रखी जाती हैं। थाईलैंड का ललित कला विभाग स्वयं गणेश के चिन्ह को अपने प्रतीक के रूप में अपनाता है। यह इस बात का प्रमाण है कि गणेश अब केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैश्विक संस्कृति, कला और व्यवसाय के प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं।

श्री गणेश की वैश्विक प्रतिष्ठा के पीछे का ऐतिहासिक-सांस्कृतिक प्रवाह
गणेश जी की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के पीछे भारत की प्राचीन व्यापारिक यात्राएं, सांस्कृतिक संपर्क और आध्यात्मिक प्रभावों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्राचीन काल में भारत से व्यापारी समुद्र मार्ग से जावा, बाली और बर्मा तक गए और साथ में अपनी संस्कृति और देवताओं की उपासना भी ले गए। दक्षिण-पूर्व एशिया के कई शिलालेखों में 5वीं और 6ठी शताब्दी से गणेश की मूर्तियां पाई गई हैं। इस सांस्कृतिक संपर्क के कारण ही आज श्री गणेश इंडोनेशिया (Indonesia), म्यांमार (Myanmar (Burma)), थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम (Vietnam) जैसे देशों की सांस्कृतिक स्मृति का भी हिस्सा हैं। इन सांस्कृतिक यात्राओं और लोकआस्थाओं के माध्यम से गणपति आज ‘विश्व देवता’ बन चुके हैं।

संदर्भ- 

https://short-link.me/1anry 

https://short-link.me/15-7m 

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