रामपुरवासियो, आइए जानें कैसे सदाबहार वर्षावन हैं हमारे पर्यावरण के असली रक्षक

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15-09-2025 09:25 AM
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रामपुरवासियो, आइए जानें कैसे सदाबहार वर्षावन हैं हमारे पर्यावरण के असली रक्षक

रामपुरवासियो, आइए आज हम प्रकृति की उस अद्भुत धरोहर के बारे में बात करें जिसे हम उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests) कहते हैं। ये जंगल दुनिया के सबसे पुराने और सबसे जीवनदायी वनों में गिने जाते हैं। इन्हें “सदाबहार” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ के पेड़ सालभर हरे-भरे रहते हैं। ज़रा सोचिए, ऐसे घने जंगल जहाँ इतनी बारिश होती है कि पेड़ों की पत्तियों से बनी छतरी (canopy) के नीचे ज़मीन तक सूरज की किरणें मुश्किल से पहुँच पाती हैं। यही कारण है कि इन्हें अक्सर वर्षावन (rainforests) भी कहा जाता है। ये वन सिर्फ़ पेड़ों का समूह नहीं हैं, बल्कि पृथ्वी के फेफड़े हैं। यही जंगल हमारी साँसों के लिए ऑक्सीजन (oxygen) बनाते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) को सोखते हैं और धरती की जलवायु को संतुलित रखते हैं। पश्चिमी घाट, अंडमान-निकोबार, असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में फैले ये वन अनगिनत जीव-जंतुओं और पौधों की प्रजातियों का घर हैं। हाथी, बाघ, गैंडा, रंग-बिरंगे पक्षी और असंख्य औषधीय पौधे इन वनों की पहचान हैं। आज जब इंसान तेज़ी से शहरों का विस्तार कर रहा है और जंगलों की कटाई बढ़ रही है, तब ये सवाल और भी बड़ा हो जाता है, क्या हम इस प्राकृतिक खज़ाने को बचा पाएँगे? उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन हमें सिर्फ़ ताज़ी हवा ही नहीं देते, बल्कि पानी, दवाइयाँ और धरती की जीवन-शक्ति भी इन्हीं से जुड़ी हुई है। इसलिए इन्हें जानना, समझना और सहेजना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन क्या हैं और ये वैश्विक पारिस्थितिकी के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं। इसके बाद हम पढ़ेंगे इनकी मुख्य विशेषताओं के बारे में, कैसे घनी वनस्पति, उच्च वर्षा और बहुस्तरीय संरचना इन्हें अद्वितीय बनाती है। फिर हम देखेंगे कि भारत में इन वनों का भौगोलिक वितरण कहाँ-कहाँ है और इनमें कौन-कौन सी प्रमुख वृक्ष प्रजातियाँ पाई जाती हैं। आगे हम चर्चा करेंगे कि इन वनों में रहने वाली पशु प्रजातियाँ कितनी विविध और रोचक हैं। और अंत में हम बात करेंगे भारत में इन वनों के संरक्षण के प्रयासों और चुनौतियों की, जिन पर हमारा भविष्य निर्भर करता है।

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों का परिचय और पारिस्थितिक महत्त्व
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, जिन्हें वर्षावन भी कहा जाता है, धरती की जैव-विविधता (biodiversity) का सबसे बड़ा खजाना हैं। ये मुख्यतः भूमध्य रेखा (equator) के नज़दीक स्थित उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ सालभर गर्मी और नमी बनी रहती है। इन वनों को 'सदाबहार' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ के पेड़ कभी सूखे या पत्तों से रहित नहीं होते, हर मौसम में ये हरे-भरे रहते हैं। यह केवल पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि पूरी धरती के लिए जीवन का स्रोत हैं। वैश्विक कार्बन चक्र (carbon cycle) को संतुलित करना, वातावरण में ऑक्सीजन की आपूर्ति करना और असंख्य प्रजातियों को घर प्रदान करना, ये सब इनके मूल योगदान हैं। धरती की जलवायु को संतुलित रखने में इन वनों की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी इंसान के शरीर में दिल की होती है। जल, वायु और औषधीय पौधों के माध्यम से ये वन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मानव समाज की जीवन-रेखा बने हुए हैं।

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों की प्रमुख विशेषताएँ
इन वनों की सबसे विशेष पहचान है उनकी घनी और बहुस्तरीय (multi-layered) संरचना। यहाँ हर साल औसतन 2000 मिमी से अधिक वर्षा होती है, जिसके कारण पेड़ असाधारण रूप से ऊँचे, कभी-कभी 60 से 80 मीटर तक, हो जाते हैं। ऊपर की परत में विशाल पेड़ों की छत्री इतनी सघन होती है कि सूर्य की रोशनी का केवल 1% ही ज़मीन तक पहुँच पाता है। इस छत्री के नीचे अलग-अलग परतों में झाड़ियाँ, छोटे पेड़ और जमीन पर उगने वाली घास, काई और फर्न (fern) जीवन की निरंतरता बनाए रखते हैं। इन वनों में अधिपादप (epiphytes) जैसे ऑर्किड (orchids), लताएँ और बेलें पेड़ों पर चढ़कर जीवन का एक अनूठा संसार रचती हैं। सालभर गर्म और आर्द्र जलवायु इन्हें दुनिया के सबसे उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) बनाती है। यहाँ जीवन का हर रूप, चाहे पौधे हों या जीव, परस्पर जुड़े हुए हैं, मानो पूरा जंगल एक जीवित जीव हो।

भारत में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों का भौगोलिक वितरण और प्रमुख वनस्पतियाँ
भारत जैसे विविध जलवायु वाले देश में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन एक विशेष स्थान रखते हैं। ये मुख्यतः पश्चिमी घाट, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, और पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में पाए जाते हैं। पश्चिमी घाट में महोगनी (Mahogany) , आबनूस (ebony), शीशम और गुलमोहर जैसे पेड़ इस क्षेत्र की पहचान हैं। अंडमान-निकोबार में बेंत, ऐनी और जामुन जैसे वृक्ष अपनी विशिष्टता लिए खड़े हैं। वहीं पूर्वोत्तर भारत में बाँस, गुर्जन और अगर जैसे वृक्ष ग्रामीण जीवन और औषधीय परंपराओं से गहराई से जुड़े हुए हैं। इन वनों की वनस्पतियाँ केवल पारिस्थितिकी के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से भी अहम हैं। ग्रामीण समुदाय इनके फलों, पत्तियों, लकड़ी और औषधीय पौधों पर निर्भर रहते हैं। इस प्रकार, ये वन पर्यावरण और मनुष्य दोनों के जीवन में एक सेतु का कार्य करते हैं।

इन वनों में पाई जाने वाली विविध पशु प्रजातियाँ
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन अपनी जैव-विविधता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। यहाँ पाए जाने वाले जीव-जंतु इन वनों को जीवन से भर देते हैं। बड़े स्तनधारियों (mammals) में एशियाई हाथी, बाघ, तेंदुआ, गैंडा और विभिन्न प्रजातियों के हिरण शामिल हैं। इनकी गूंज और पदचाप जंगल की गहराइयों को जीवंत कर देती है। पक्षियों की बात करें तो हॉर्नबिल (Hornbill), हमिंगबर्ड (Hummingbird), टौकेन (Toucan) और रंग-बिरंगे तोते अपनी आवाज़ और रंगों से आकाश को सजा देते हैं। सरीसृपों (reptiles) में अजगर, कोबरा, मगरमच्छ और तरह-तरह की छिपकलियाँ यहाँ सामान्य हैं। उभयचर (amphibians) जैसे पेड़ मेंढक और टोड (toad) बरसाती मौसम का संगीत रचते हैं। कीटों की दुनिया भी बेहद समृद्ध है, तितलियों के रंगीन पंख, मधुमक्खियों की गूंज और दीमकों की गतिविधियाँ इस पारिस्थितिक श्रृंखला को संतुलित बनाए रखती हैं। इन सबका मेल एक ऐसा पारिस्थितिक जाल (ecological web) तैयार करता है जिसमें हर प्राणी की भूमिका अपरिहार्य है।

भारत में सदाबहार वनों के संरक्षण के प्रयास और चुनौतियाँ
भारत सरकार ने इन वनों की रक्षा के लिए कई प्रयास किए हैं। राष्ट्रीय उद्यान (National Parks), वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuaries) और जैवमंडल रिज़र्व (Biosphere Reserves) स्थापित कर इन वनों को सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management) योजनाओं में स्थानीय लोगों को भी शामिल किया गया है, जिससे वे जंगलों की सुरक्षा में सक्रिय भूमिका निभा सकें। वनीकरण और पुनर्वनीकरण योजनाएँ (afforestation & reforestation) चलाकर नए पेड़ लगाए जा रहे हैं और क्षतिग्रस्त जंगलों को फिर से हरा-भरा बनाया जा रहा है। लेकिन चुनौतियाँ अभी भी गंभीर हैं, तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण, लकड़ी की अवैध कटाई, अवैध शिकार और जलवायु परिवर्तन इन वनों पर लगातार दबाव डाल रहे हैं। समस्या यह भी है कि स्थानीय लोग, जिनकी आजीविका इन्हीं वनों पर निर्भर है, अक्सर मजबूरी में इन संसाधनों का अति-शोषण कर बैठते हैं। यदि समय रहते कठोर और संवेदनशील कदम नहीं उठाए गए तो यह प्राकृतिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों से छिन सकती है।

संदर्भ- 

https://shorturl.at/eZJ4T