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रामपुरवासियो, कैंसर (cancer) का नाम सुनते ही मन भारी हो जाता है। यह सिर्फ़ एक बीमारी नहीं, बल्कि ऐसी सच्चाई है जो इंसान और उसके पूरे परिवार की ज़िंदगी बदल देती है। शरीर के दर्द से कहीं ज़्यादा गहरा असर यह मन और भावनाओं पर डालता है। आधुनिक दौर की भागदौड़, प्रदूषण, तनाव और अस्वास्थ्यकर खानपान ने इसे और आम बना दिया है, जिससे अब यह बीमारी केवल बड़े शहरों या उम्रदराज़ लोगों तक सीमित नहीं रही - यह हमारे घरों और मोहल्लों तक पहुँच चुकी है। इस बीमारी से जूझना आसान नहीं होता। हर कैंसर पीड़ित के पीछे एक परिवार होता है, जो उसकी तकलीफ़ को अपने हिस्से का दर्द मानकर सहता है। दवाइयाँ और इलाज ज़रूरी हैं, लेकिन उनसे भी ज़्यादा ज़रूरत होती है इंसानी सहारे, प्यार और भरोसे की। जब किसी को यह महसूस होता है कि वह अकेला नहीं है, बल्कि पूरा समाज उसके साथ खड़ा है, तो उसका साहस कई गुना बढ़ जाता है। कैंसर हमें यह सिखाता है कि ज़िंदगी कितनी कीमती है और हर पल को जीना कितना ज़रूरी। यह लड़ाई केवल डॉक्टरों और दवाओं की नहीं है, बल्कि हमारी जागरूकता, देखभाल और आपसी सहयोग की भी है। अगर हम मिलकर शुरुआत करें - लोगों को सही जानकारी दें, शुरुआती लक्षण पहचानने में मदद करें और इलाज तक उनकी पहुँच आसान बनाएँ - तो इस बीमारी के खिलाफ़ जंग कहीं आसान हो सकती है।
इस लेख में हम कैंसर से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि कैंसर वास्तव में क्या है और इसके शुरुआती लक्षण कैसे पहचाने जा सकते हैं। इसके बाद हम देखेंगे कि इसके प्रमुख कारण और जोखिम कारक कौन-कौन से हैं। आगे बढ़ते हुए, हम कैंसर का प्राचीन इतिहास और "कैंसर" शब्द की उत्पत्ति को समझेंगे। फिर हम पढ़ेंगे कि भारत में कैंसर का इतिहास क्या रहा और आज यह कैसे एक महामारी जैसी स्थिति बन गया है। इसके साथ ही, हम वैश्विक स्तर पर कैंसर की घटनाओं पर हुई ऐतिहासिक बहसों पर भी नज़र डालेंगे। अंत में, हम यह समझेंगे कि जीवनशैली में बदलाव और कुछ आदतें अपनाकर कैंसर के जोखिम को कैसे कम किया जा सकता है।
कैंसर क्या है और इसके लक्षण
कैंसर एक ऐसा रोग है जिसे सुनते ही मन में भय और चिंता दोनों पैदा हो जाते हैं। यह कोई एक बीमारी नहीं, बल्कि कई प्रकार की बीमारियों का समूह है, जिसमें शरीर की कोशिकाएँ (cells) नियंत्रण खोकर अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं। सामान्यतः हमारी कोशिकाएँ एक निश्चित समय तक बढ़ती हैं और फिर मर जाती हैं, लेकिन कैंसर में यही संतुलन बिगड़ जाता है। कैंसर कोशिकाएँ न केवल तेजी से बढ़ती हैं, बल्कि आसपास के ऊतकों (tissues) और अंगों (organs) में भी फैल जाती हैं। यही वजह है कि यह साधारण ट्यूमर (tumor) से अलग और अधिक खतरनाक होता है। इसके शुरुआती लक्षण अक्सर मामूली लगते हैं, लेकिन इन्हें नज़रअंदाज़ करना खतरनाक साबित हो सकता है। शरीर में अचानक कोई गांठ उभरना, बार-बार या असामान्य रक्तस्राव होना, लगातार खांसी या गले की खराश रहना, अचानक और बिना वजह वजन कम होना, लंबे समय तक थकान बने रहना, भूख में कमी, और मल त्याग की आदतों में बदलाव - ये सब संभावित चेतावनी संकेत हो सकते हैं। हर बार ये लक्षण कैंसर की ओर ही इशारा करें, ऐसा ज़रूरी नहीं है, लेकिन डॉक्टर से तुरंत जांच कराना हमेशा समझदारी होती है।
कैंसर के कारण और जोखिम कारक
कैंसर का कोई एकमात्र कारण नहीं होता, बल्कि यह कई अलग-अलग वजहों से मिलकर विकसित होता है। सबसे बड़ा कारण है तंबाकू - चाहे वह धूम्रपान के रूप में हो या गुटखा और पान मसाला जैसे अन्य रूपों में। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, तंबाकू का सेवन लगभग 22% कैंसर मौतों के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा, अस्वस्थ जीवनशैली भी इसमें बड़ी भूमिका निभाती है। मोटापा, अत्यधिक शराब का सेवन, वसायुक्त और प्रोसेस्ड आहार (processed food), जंक फूड (junk food) की अधिकता और शारीरिक गतिविधि की कमी कैंसर की संभावना को बढ़ा देते हैं। कुछ संक्रमण भी कैंसर का कारण बन सकते हैं, जैसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (H. pylori) से पेट का कैंसर, हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B) और सी वायरस (C virus) से लिवर कैंसर, एचपीवी (HPV) वायरस से गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, और एचआईवी (HIV) संक्रमण से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, प्रदूषण, जहरीले रसायन, कीटनाशक, रेडिएशन (radiation) और वंशानुगत (genetic) कारक भी जोखिम को कई गुना बढ़ा सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि लगभग 5–10% कैंसर के मामले वंशानुगत जीन (genes) की वजह से होते हैं, यानी यदि परिवार में किसी को कैंसर हुआ है, तो अगली पीढ़ी में भी इसका खतरा बढ़ सकता है।
कैंसर का प्राचीन इतिहास और शब्द-व्युत्पत्ति
अक्सर लोग सोचते हैं कि कैंसर एक आधुनिक रोग है, लेकिन सच्चाई यह है कि इसका इतिहास हज़ारों साल पुराना है। प्राचीन मिस्र की ममियों में हड्डियों और स्तनों के कैंसर जैसे रोगों के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। करीब 3000 ईसा पूर्व लिखे गए "एडविन स्मिथ पेपिरस" (Edwin Smith Papyrus) नामक चिकित्सा ग्रंथ में स्तन ट्यूमर का उल्लेख और उसका उपचार दर्ज है। यह दर्शाता है कि इंसान बहुत पहले से इस रोग से जूझ रहा है। यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) (460–370 ईसा पूर्व) ने कैंसर को "कार्सिनोस" (Karkinos) कहा, जिसका अर्थ है केकड़ा (crab)। यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि कैंसर कोशिकाएँ केकड़े की तरह शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैल जाती हैं। बाद में रोमन चिकित्सकों ने इसे "कैंसर" नाम दिया। भारत की परंपरागत चिकित्सा प्रणाली - आयुर्वेद और सिद्ध ग्रंथों - में भी कैंसर जैसे रोगों का उल्लेख "अर्बुद" और "ग्रन्थि" नामों से मिलता है। यह इस बात का प्रमाण है कि कैंसर कोई नया रोग नहीं, बल्कि सदियों से मानव सभ्यता का हिस्सा रहा है।
भारत में कैंसर का इतिहास और बढ़ता बोझ
भारत में कैंसर का दस्तावेज़ीकरण 17वीं सदी से मिलने लगता है। 1860 से 1910 के बीच ब्रिटिश मेडिकल सर्विस (British Medical Service) ने कई कैंसर मामलों को दर्ज किया, जिनमें पेट, स्तन और मुंह के कैंसर प्रमुख थे। 20वीं सदी की शुरुआत तक कैंसर बुजुर्गों और मध्यम आयु वर्ग में मौत का एक बड़ा कारण बन गया। स्वतंत्रता के बाद 1946 में राष्ट्रीय समिति ने कैंसर उपचार केंद्र स्थापित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। मुंबई कैंसर रजिस्ट्री (Mumbai Cancer Registry), जो 1963 में स्थापित हुई, ने यह साफ़ दिखाया कि 1964 से 2012 के बीच भारत में कैंसर के मामलों में लगभग चार गुना वृद्धि हुई है। आज हालत यह है कि देशभर के सार्वजनिक कैंसर अस्पताल मरीजों से भरे रहते हैं। रिपोर्टों में इसे "महामारी" और "कैंसर सुनामी" तक कहा गया है। आधुनिक जीवनशैली, प्रदूषण, अस्वस्थ आहार और तंबाकू सेवन ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
वैश्विक दृष्टिकोण और ऐतिहासिक बहसें
कैंसर केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में इंग्लैंड में यह बहस छिड़ी कि आखिर कैंसर के मामले अचानक इतने क्यों बढ़ रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि यह बीमारी पहले भी उतनी ही थी, बस अब निदान की तकनीकें बेहतर हो गई हैं, इसलिए अधिक मामले सामने आ रहे हैं। वहीं, कुछ अन्य डॉक्टरों का मानना था कि औद्योगिक क्रांति, बदलती जीवनशैली और प्रदूषण ने कैंसर को सचमुच बढ़ाया है। 20वीं सदी में अमेरिका और कनाडा में भी इसी तरह की चर्चाएँ हुईं। इन बहसों से यह बात साफ़ हुई कि कैंसर केवल एक चिकित्सकीय मुद्दा नहीं है, बल्कि सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक कारकों से भी जुड़ा हुआ है। आज यह वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में गिना जाता है।
कैंसर से बचाव और जोखिम कम करने के उपाय
हालाँकि कैंसर को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसके जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। सबसे पहला कदम है धूम्रपान और तंबाकू से पूरी तरह परहेज़ करना। इसके अलावा, संतुलित और पौष्टिक आहार लेना, जिसमें ताज़ी सब्ज़ियाँ, फल और फाइबर (fiber) भरपूर हों, बेहद ज़रूरी है। शराब का सेवन कम से कम करना, नियमित व्यायाम और सक्रिय जीवनशैली अपनाना शरीर को मजबूत बनाते हैं और प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाते हैं। कुछ कैंसर टीकाकरण के जरिए भी रोके जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, एचपीवी वैक्सीन (HPV Vaccine) गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से बचाव में मददगार है और हेपेटाइटिस बी वैक्सीन लिवर कैंसर का खतरा कम कर सकती है। धूप के अधिक संपर्क से बचना, प्रोसेस्ड मीट (processed meat) और अत्यधिक वसायुक्त आहार से दूरी रखना भी लाभकारी है। साथ ही, समय-समय पर स्वास्थ्य जांच और स्क्रीनिंग टेस्ट (screening test) कराना शुरुआती अवस्था में कैंसर पकड़ने और इलाज की सफलता बढ़ाने का सबसे बड़ा उपाय है।
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