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भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि हमेशा से एक मजबूत आधार रही है। सदियों से यह न केवल भोजन और रोज़गार का स्रोत रही है बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का केंद्र भी रही है। आज भी लगभग 60% आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है। हालांकि समय के साथ यह क्षेत्र कई चुनौतियों और बदलावों से गुज़रा है। तकनीकी नवाचार, वैश्विक निवेश और सरकारी नीतियों ने कृषि को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। खासतौर पर, अनुबंध खेती और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसे तंत्र किसानों की आय और स्थिरता सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का बदलता महत्व क्या है। इसके बाद, हम कृषि के भविष्य को आकार देने वाली तकनीकी प्रगति और स्टार्टअप्स (startups) की भूमिका पर चर्चा करेंगे। फिर हम अनुबंध खेती के लाभ और चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे। आगे हम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नीति के विकास और उसके प्रभाव पर विचार करेंगे। अंत में, हम यह देखेंगे कि भविष्य में किसानों की आय बढ़ाने और कृषि को स्थिर बनाने के लिए कौन से कदम ज़रूरी हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका और बदलता महत्व
भारत की जीडीपी में कृषि का सीधा योगदान लगभग 20% माना जाता है, लेकिन इसका असली महत्व केवल आँकड़ों तक सीमित नहीं है। यह क्षेत्र ग्रामीण समाज की रीढ़ है और करोड़ों लोगों की आजीविका इसी पर निर्भर करती है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार, खाद्य सुरक्षा और निर्यात जैसे पहलुओं में कृषि का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। 1960 के दशक में जब भारत खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था, तब हरित क्रांति और नई कृषि नीतियों ने देश को आत्मनिर्भर बनाया। आज चावल और गेहूँ उत्पादन में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में गिना जाता है। हालांकि, समय के साथ आर्थिक विकास का प्राथमिक चालक कृषि नहीं रहा; औद्योगीकरण और शहरीकरण ने इसकी जगह ले ली। इसके बावजूद, यह क्षेत्र आज भी करोड़ों परिवारों के जीवन का आधार है और देश की सामाजिक स्थिरता को बनाए रखने वाला सबसे अहम स्तंभ है।
तकनीकी नवाचार और कृषि का भविष्य
आज भारतीय कृषि एक नए युग में प्रवेश कर रही है, जहाँ तकनीकी नवाचार इसकी पहचान बदल रहे हैं। "एग्री-टेक क्रांति" के रूप में जानी जाने वाली इस प्रक्रिया ने खेती को और अधिक वैज्ञानिक और लाभकारी बना दिया है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ड्रोन (Drone), हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) और प्लांट साइंस (Plant Science) जैसी आधुनिक तकनीकें किसानों को सटीक खेती करने और उत्पादन बढ़ाने में मदद कर रही हैं। 2022 में कृषि क्षेत्र में 1.2 बिलियन (Billion) डॉलर से अधिक का निवेश हुआ, जो इस बात का प्रमाण है कि निवेशक अब इस क्षेत्र में अपार संभावनाएँ देख रहे हैं। खासतौर पर एग्रीफिनटेक (Agri-Fintech), ऑटोमेशन (Automation) और फार्म-टू-फोर्क सॉल्यूशंस (Farm-to-Fork Solutions) ने किसानों और बाजार के बीच की दूरी घटा दी है। इन तकनीकों के माध्यम से किसान अब न केवल उत्पादन बढ़ा रहे हैं बल्कि सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँच बनाकर अधिक लाभ भी कमा रहे हैं। इसीलिए, भविष्य की कृषि अब पारंपरिक पद्धतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि नवाचार और आधुनिकता के सहारे एक नए और आत्मनिर्भर युग की ओर बढ़ रही है।
अनुबंध खेती: किसानों और कंपनियों के लिए अवसर और चुनौतियाँ
अनुबंध खेती भारतीय कृषि के लिए एक ऐसा विकल्प है, जो किसानों और कंपनियों दोनों के लिए अवसर लेकर आता है। इस मॉडल में किसान और कंपनियाँ आपसी समझौते के तहत उत्पादन और विपणन का तालमेल बनाते हैं। किसानों को बीज, तकनीक, सलाह और बाजार की गारंटी मिलती है, जबकि कंपनियों को निश्चित गुणवत्ता और समय पर आपूर्ति सुनिश्चित होती है। इससे किसानों की आय बढ़ने और जोखिम घटने की संभावना रहती है। अनुबंध खेती के फायदे स्पष्ट हैं - निवेश और उत्पादन सेवाओं तक पहुँच, ऋण सुविधा, आधुनिक तकनीक का प्रयोग, कौशल का विकास, गारंटीकृत मूल्य निर्धारण और विश्वसनीय बाज़ार तक सीधी पहुँच। लेकिन इसके साथ चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। कई बार कंपनियाँ अनुचित तकनीक थोप देती हैं, गुणवत्ता मानकों में हेरफेर करती हैं, किसानों को कोटा और मूल्य निर्धारण में उलझा देती हैं। इसके अलावा, एकाधिकार और ऋणग्रस्तता का खतरा भी बना रहता है। यही कारण है कि अनुबंध खेती तभी सफल हो सकती है जब इसे न्यायसंगत और पारदर्शी तरीके से प्रबंधित किया जाए।
भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति का विकास और प्रभाव
भारत में एमएसपी (MSP) की शुरुआत 1960 के दशक में खाद्यान्न संकट से उबरने के लिए हुई थी। इसका मूल उद्देश्य यह था कि अगर बंपर फसल हो जाए और बाजार मूल्य गिर जाए, तो भी किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम मूल्य मिल सके। आज भारत सरकार 23 प्रमुख फसलों के लिए एमएसपी घोषित करती है। इस नीति ने किसानों को बाजार की अस्थिरता से बचाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई है। गेहूँ और चावल जैसी फसलें सबसे अधिक एमएसपी के तहत खरीदी जाती हैं, जिससे हरित क्रांति के बाद देश आत्मनिर्भर बना। हालांकि, एमएसपी की एक बड़ी सीमा यह है कि इसका लाभ मुख्यतः कुछ ही फसलों और कुछ ही राज्यों तक सीमित है। छोटे और सीमांत किसान अक्सर इससे वंचित रह जाते हैं। इसके अलावा, एक ही तरह की फसलों पर निर्भरता बढ़ने से फसल विविधता भी कम हो गई है। इसलिए, एमएसपी एक महत्वपूर्ण सुरक्षा जाल तो है, लेकिन यह किसानों की आय में स्थायी सुधार का अकेला साधन नहीं बन सकता।
भविष्य की राह: किसानों की आय बढ़ाने और कृषि को स्थिर बनाने के उपाय
भारतीय कृषि का भविष्य बहुआयामी दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। एमएसपी और अनुबंध खेती दोनों ही अहम साधन हैं, लेकिन इनके साथ-साथ अन्य कदम उठाना भी ज़रूरी है। किसानों को फसलों में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित करना, आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना और आधुनिक तकनीकें जैसे ड्रोन, सेंसर और स्मार्ट सिंचाई (Smart Irrigation) प्रणाली अपनाना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, किसानों को आसान ऋण, बीमा योजनाएँ और पारदर्शी बाजार तक पहुँच दिलाना उनकी आय बढ़ाने की दिशा में अहम कदम हैं। सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर पारदर्शी अनुबंध प्रणाली और स्थायी खेती के मॉडल विकसित कर सकते हैं। अगर इन पहलों को सही तरीके से लागू किया जाए तो भारतीय कृषि न केवल आत्मनिर्भर बनेगी बल्कि किसानों की आय भी दोगुनी हो सकती है और यह क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/43ujt6as
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