वायुसेना दिवस पर जानिए, कैसे ड्रोन और उपग्रह भारत की रक्षा में आसमान से नज़र रखते हैं

हथियार व खिलौने
08-10-2025 09:20 AM
वायुसेना दिवस पर जानिए, कैसे ड्रोन और उपग्रह भारत की रक्षा में आसमान से नज़र रखते हैं

रामपुरवासियो, भारतीय वायुसेना दिवस (Indian Air Force Day) का दिन हमारे दिलों में गर्व और सम्मान की लहर जगा देता है। यह दिन हमें केवल हमारे वायुसेना के वीर जवानों की बहादुरी और बलिदान की याद नहीं दिलाता, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि आज की दुनिया में सुरक्षा का दायरा कितना बदल चुका है। सीमाएँ पहले जैसी स्थिर नहीं रहीं, ख़तरे अब सिर्फ़ ज़मीन तक सीमित नहीं रहे, और दुश्मन की चालें भी पहले से कहीं ज़्यादा जटिल हो गई हैं। ऐसे समय में हमारी सुरक्षा की मज़बूती सिर्फ़ बंदूकों, टैंकों या परंपरागत हथियारों पर निर्भर नहीं रह गई है।
अब आसमान से निगरानी करने वाले आधुनिक उपकरण - उपग्रह (Satellites) और ड्रोन (Drones) - हमारी रक्षा का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। इन्हें सही मायनों में ‘आइज़ इन द स्काई’ (Eyes in the Sky) यानी आसमान की आँखें कहा जाता है, क्योंकि ये धरती पर हो रही हर हलचल को बेहद बारीकी से पकड़ लेते हैं। पहाड़, रेगिस्तान या समुद्र - कोई भी इलाक़ा इनकी नज़रों से छुपा नहीं रह सकता। सबसे अहम बात यह है कि यह तकनीक हमारे सैनिकों की जान जोखिम में डाले बिना हमें सुरक्षा देती है। सेना को पहले से चेतावनी मिल जाती है, दुश्मन की गतिविधियों पर लगातार नज़र रहती है और रणनीतिक फैसले कहीं ज़्यादा सुरक्षित और सटीक हो पाते हैं। यही वजह है कि आज भारतीय वायुसेना तकनीक और पराक्रम का संगम बन चुकी है। जब आसमान में तिरंगा लहराते हुए हमारे जांबाज़ लड़ाकू विमान उड़ान भरते हैं, तो उनके पीछे यही अदृश्य शक्ति - ड्रोन और उपग्रह - चुपचाप प्रहरी की तरह काम कर रहे होते हैं। वायुसेना दिवस हमें याद दिलाता है कि आधुनिक युद्ध का चेहरा बदल चुका है, और उसमें हमारी वायुसेना हर चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है।
इस लेख में हम जानेंगे कि रक्षा निगरानी उपग्रह (Defense Surveillance Satellites) आधुनिक युद्ध और खुफ़िया तंत्र में किस तरह क्रांति ला रहे हैं। हम देखेंगे कि अलग-अलग तरह के सेंसर (sensor) वाले उपग्रह किस तरह काम करते हैं और उनका युद्ध रणनीति में क्या महत्व है। इसके बाद, हम समझेंगे कि कॉम्बैट ड्रोन (combat drone) कैसे सिर्फ़ निगरानी ही नहीं, बल्कि दुश्मन पर सटीक वार करके युद्ध का चेहरा बदल रहे हैं। अंत में, हम भारतीय वायुसेना में ड्रोन की बढ़ती भूमिका और उनकी बहुआयामी क्षमताओं पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे।

रक्षा निगरानी उपग्रह और ड्रोन: आधुनिक युद्ध के नए प्रहरी
आज की दुनिया में जब सीमाएँ, संघर्ष और ख़तरे लगातार बदल रहे हैं, तब आसमान से निगरानी करने वाले उपकरण - यानी उपग्रह (Satellites) और ड्रोन (Drones) - किसी भी देश की सुरक्षा का मज़बूत सहारा बन गए हैं। इन्हें सही मायनों में आइज़ इन द स्काई यानी आसमान की आँखें कहा जाता है, क्योंकि ये बिना किसी सैनिक की जान जोखिम में डाले, ज़मीन पर हो रही हलचल को पकड़ने और दुश्मन की गतिविधियों पर नज़र रखने में सक्षम हैं। इनकी मदद से सेना को पहले से चेतावनी मिल जाती है और रणनीतिक फैसले कहीं ज़्यादा सुरक्षित और सटीक हो पाते हैं।

रक्षा निगरानी उपग्रह: आसमान की आँखें
रक्षा निगरानी उपग्रह आज किसी भी देश की सुरक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा आधार बन चुके हैं। इन्हें दूर बैठे प्रहरी की तरह समझा जा सकता है, जो बिना थके, बिना रुके लगातार चौकसी करते रहते हैं। ये दुश्मन की गतिविधियों, ठिकानों की स्थिति, मिसाइलों की तैनाती, सीमा पार हो रही हलचल और ज़मीन पर बदलाव तक सबकुछ रिकॉर्ड करते हैं। आधुनिक उपग्रह इतनी सूक्ष्म और स्पष्ट जानकारी जुटा लेते हैं कि मानो आसमान से नीचे की दुनिया खुली किताब की तरह दिखाई दे रही हो। इनका सबसे बड़ा फ़ायदा यही है कि जहाँ सैनिकों की पहुँच मुश्किल हो - जैसे घने जंगल, रेगिस्तान या दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र - वहाँ भी ये उपग्रह आसानी से जानकारी इकट्ठा कर लेते हैं। इससे दुश्मन को चौंकाने की बजाय पहले से उसकी तैयारी समझने और रणनीति बनाने का मौक़ा मिल जाता है। यही कारण है कि आज इन्हें युद्ध की रणनीति का अदृश्य मगर सबसे मज़बूत हथियार माना जाता है।

उपग्रह सेंसर और उनकी क्षमताएँ
रक्षा उपग्रहों की ताक़त उनके सेंसरों में छिपी होती है। हर सेंसर की अपनी भूमिका और महत्व है, और मिलकर ये पूरे आकाश को एक निगरानी जाल में बदल देते हैं।

  • ऑप्टिकल इमेजिंग (Optical Imaging) उपग्रह: ये शक्तिशाली कैमरों और टेलीस्कोप (telescope) से लैस होते हैं। ये इतनी बारीक तस्वीरें खींच सकते हैं कि ज़मीन पर खड़े वाहनों, इमारतों या यहाँ तक कि छिपाकर रखे गए ठिकानों की भी पहचान हो सके। दुश्मन का कैमोफ़्लाज (camouflage) यानी छिपाने की कोशिश भी इनसे ज़्यादा देर तक बच नहीं पाती।
  • सिंथेटिक अपर्चर राडार (Synthetic Aperture Radar - SAR) उपग्रह: ये उपग्रह खास इसलिए हैं क्योंकि ये धुंध, बादल, बारिश या अंधेरे से भी प्रभावित नहीं होते। दिन हो या रात, मौसम कैसा भी हो - ये लगातार नज़र बनाए रखते हैं।
  • इन्फ्रारेड सेंसर (Infrared Sensor) उपग्रह: इनमें लगे सेंसर किसी भी तरह की गर्मी को पकड़ लेते हैं। जैसे मिसाइल के लॉन्च (launch) होते ही उसका तापमान बदलता है, या परमाणु परीक्षण से निकलने वाली गर्मी - इन सबका तुरंत पता चल जाता है।
  • सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) उपग्रह: ये दुश्मन के संचार संकेतों को पकड़ते हैं। रेडियो तरंगों से लेकर राडार की बीमें और यहाँ तक कि मिसाइल के परीक्षण की इलेक्ट्रॉनिक (electronic) तरंगें भी ये सेंसर रिकॉर्ड कर लेते हैं।

इनकी वजह से उपग्रह सिर्फ़ तस्वीरें लेने वाले उपकरण नहीं रह जाते, बल्कि वे दुश्मन की हर गतिविधि को पकड़ने वाले सर्वशक्तिशाली प्रहरी बन जाते हैं।

उपग्रहों का सामरिक महत्व और उपयोग
रक्षा उपग्रहों का सबसे बड़ा महत्व यही है कि वे युद्ध की दिशा और स्वरूप बदल देते हैं। जब ये आसमान से नज़र रखते हैं, तो दुश्मन की किसी भी गतिविधि का पता पहले ही लग जाता है। यही ‘अर्ली वार्निंग सिस्टम’ (Early Warning System) कहलाता है - जैसे किसी मिसाइल के लॉन्च होने या परमाणु गतिविधि की शुरुआत पर तुरंत अलर्ट (alert) मिल जाना। सिर्फ चेतावनी ही नहीं, बल्कि ये उपग्रह युद्ध क्षेत्र में स्मार्ट (smart) हथियारों को सटीक लक्ष्य तक पहुँचाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। चाहे सीमा की निगरानी हो, तटीय इलाक़ों की सुरक्षा हो या दुश्मन के ठिकानों की जानकारी जुटाना - हर जगह उपग्रह निर्णायक साबित होते हैं। कहा जा सकता है कि आज की लड़ाई केवल मैदान में सैनिक नहीं जीतते, बल्कि आसमान से चौकसी करने वाले उपग्रह भी उसे दिशा देते हैं।

कॉम्बैट ड्रोन: आधुनिक युद्ध का नया चेहरा
ड्रोन यानी मानव रहित विमान अब सिर्फ़ देखने और निगरानी करने तक सीमित नहीं रहे। आधुनिक युद्ध में ये दुश्मन पर सीधे वार करने वाले हथियार बन चुके हैं। कॉम्बैट ड्रोन में हथियार लगाए जाते हैं और इन्हें पायलट (pilot) दूर से नियंत्रित करता है, या कभी-कभी ये अर्ध-स्वायत्त (semi-autonomous) होकर ख़ुद भी मिशन पूरा कर लेते हैं। इनका सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि पायलट की जान जोखिम में नहीं पड़ती, और दुश्मन पर सटीक वार भी हो जाता है। जंगल, पहाड़, रेगिस्तान या शहर के भीड़भाड़ वाले इलाक़े - कॉम्बैट ड्रोन हर परिस्थिति में दुश्मन का पीछा करके सही समय पर हमला करने में सक्षम हैं। यही वजह है कि इन्हें आज आधुनिक युद्ध का ‘गेम चेन्ज़र’ (Game Changer) कहा जाने लगा है।

बोइंग X-45A UCAV

कॉम्बैट ड्रोन की खास क्षमताएँ
कॉम्बैट ड्रोन के पास कई ऐसी क्षमताएँ हैं, जो इन्हें ज़मीनी युद्ध से आगे ले जाती हैं।

  • ये बेहद सटीक निशाना लगाते हैं और आसपास के क्षेत्र को कम से कम नुकसान पहुँचाते हैं।
  • फर्स्ट पर्सन व्यू (First Person View) तकनीक से इन्हें ऐसे संचालित किया जा सकता है मानो ऑपरेटर (operator) ख़ुद ड्रोन के भीतर बैठा हो।
  • इनका सबसे बड़ा लाभ यह है कि ये अलग-अलग तरह के हथियार लेकर उड़ सकते हैं - छोटे मिसाइल, ग्रेनेड (grenade), मोर्टार (Mortar)- और मिशन के हिसाब से तुरंत इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • तेज़ गति, फुर्ती और अलग-अलग इलाक़ों में काम करने की क्षमता इन्हें हर स्थिति के लिए उपयुक्त बनाती है।

युद्ध क्षेत्र में त्वरित प्रतिक्रिया और स्मार्ट तकनीक की वजह से कॉम्बैट ड्रोन लगातार अहम भूमिका निभा रहे हैं।

यूएवी और ड्रोन जैसी छोटी उड़ने वाली वस्तुओं का पता लगाने के लिए यह भारतीय सेना का 2डी निम्न स्तर का हल्का वजन भरानी रडार है।

भारतीय वायुसेना में ड्रोन की भूमिका
भारतीय वायुसेना में ड्रोन का इस्तेमाल पिछले कुछ सालों में काफ़ी बढ़ा है। ये सीमा पार दुश्मन की गतिविधियों पर नज़र रखने, खुफ़िया जानकारी जुटाने, टोही मिशनों और दुर्गम क्षेत्रों में निगरानी करने के लिए तैनात किए जाते हैं। विदेशी युद्धों से मिले अनुभव ने दिखाया है कि ड्रोन आईईडी - इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IEDs - Improvised Explosive Devices) यानी विस्फोटक जाल का पता लगाने और उन्हें निष्क्रिय करने में भी बेहद कामयाब हैं। इसके अलावा, वायुसेना ड्रोन का उपयोग इस्टार (ISTAR) और सीड (SEAD) जैसे जटिल और ख़तरनाक मिशनों में भी करती है। ड्रोन न सिर्फ़ निगरानी के लिए, बल्कि गहरी पैठ वाले हमलों और वैज्ञानिक अनुसंधान तक में इस्तेमाल हो रहे हैं। भारतीय वायुसेना में इनकी बढ़ती मौजूदगी साफ़ बताती है कि भविष्य की लड़ाई में इनका योगदान और भी निर्णायक होने वाला है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/yfdvpkbe 
https://tinyurl.com/58hntaau 
https://tinyurl.com/yc2jcpyz  

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