| Post Viewership from Post Date to 30- Oct-2025 (5th) Day | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2207 | 65 | 4 | 2276 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
                                            क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में अदालतों में फैसले क्यों सालों-साल तक लटके रहते हैं? लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि केवल भारत ही नहीं, बल्कि यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) से लेकर यूरोप और अफ्रीका तक, दुनियाभर की अदालतें इस समय मामलों के बोझ से दब चुकी हैं। करोड़ों लंबित केस, धीमी न्यायिक प्रक्रियाएं, और बढ़ती अपराध दर - ये सब मिलकर एक वैश्विक संकट का संकेत दे रहे हैं। भारत में 51 मिलियन (million) से ज़्यादा मुकदमे आज भी निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, इंग्लैंड, क्रोएशिया (Croatia), और यूरोपीय संघ में भी अदालतों की स्थिति कुछ खास बेहतर नहीं है। और जब बात दुनिया के अपराधों की हो, तो कुछ देश ऐसे हैं जहाँ असुरक्षा ने आम जीवन को ही चुनौती दे डाली है। आइए इस लेख में इन वैश्विक समस्याओं की परत-दर-परत समीक्षा करें।
इस लेख में सबसे पहले हम जानेंगे भारत में लंबित मामलों की भयावह स्थिति और इसके अदालती आँकड़े। फिर, हम देखेंगे यूनाइटेड किंगडम के क्राउन कोर्ट (Crown Court) में न्याय प्रक्रिया की धीमी पड़ती गति। इसके बाद, क्रोएशिया जैसे देश में किए जा रहे न्यायिक सुधारों और लंबित मामलों में आई कमी की चर्चा करेंगे। अगले भाग में हम समझेंगे यूरोपीय संघ के शरण मामलों की जटिलता और लंबित केसों की स्थिति। अंत में, हम जानेंगे दुनिया के पाँच ऐसे देशों के बारे में जहाँ अपराध दर सबसे अधिक है और इसके सामाजिक-राजनीतिक कारण क्या हैं।
भारत में लंबित अदालती मामलों की वर्तमान स्थिति और आँकड़े
भारत का न्यायिक तंत्र इस समय एक गंभीर दबाव झेल रहा है। देश में इस समय 5.1 करोड़ से भी अधिक मामले अदालतों में लंबित हैं - यह आंकड़ा दुनिया में सबसे अधिक है। और यह सिर्फ संख्या नहीं है, बल्कि इन मामलों के पीछे करोड़ों लोगों की अधूरी उम्मीदें, अधूरा न्याय और वर्षों की मानसिक पीड़ा छिपी है। सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि इनमें से लगभग 1.8 लाख से अधिक मामले ऐसे हैं जो तीन दशक से भी अधिक समय से अदालतों में रुके पड़े हैं - यानी एक व्यक्ति का पूरा जीवन बीत सकता है, पर उसका मुकदमा फिर भी समाप्त नहीं होता। यह सिर्फ निचली अदालतों की बात नहीं है, बल्कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड बन चुका है - जहाँ 83,000 से अधिक केस लंबित हैं। इसका सीधा प्रभाव यह है कि नागरिकों में न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा धीरे-धीरे कम हो रहा है। इन हालातों की वजह कई हैं: देश में जजों की भारी कमी, कोर्ट की कार्यप्रणाली का धीमापन, समय पर तारीख न मिलना, बार-बार स्थगन, तकनीकी अपग्रेडेशन (Upgradation) का अभाव, और सरकारी वकीलों की अनुपलब्धता जैसे ढांचागत कारण इस स्थिति को और बिगाड़ते जा रहे हैं। इसके चलते आम जनता को इंसाफ मिलना एक संघर्ष जैसा अनुभव हो गया है।

यूनाइटेड किंगडम में क्राउन कोर्ट में लंबित मामलों की बढ़ती समस्या
अगर आप सोचते हैं कि लंबित मामलों की समस्या सिर्फ भारत में ही है, तो यह जानकर आश्चर्य होगा कि यूनाइटेड किंगडम जैसे विकसित देश में भी अदालतें इसी परेशानी से जूझ रही हैं। इंग्लैंड और वेल्स की क्राउन कोर्ट - जहाँ गंभीर आपराधिक मामलों की सुनवाई होती है - वहाँ नवंबर 2024 तक लंबित मामलों की संख्या 73,105 तक पहुँच गई है। यह आंकड़ा 2019 के अंत में मौजूद 38,000 मामलों से लगभग दोगुना हो गया है। यहाँ तक कि कोर्ट में एक अपराधी के मामले को सुलझने में अब औसतन 735 दिन यानी दो साल से भी अधिक समय लग रहा है। यह बीते दशक की सबसे धीमी न्यायिक प्रक्रिया मानी जा रही है। और जब अदालतों में फैसले आने में देरी होती है, तब इसका असर सीधे अपराधियों की सजा में, पीड़ितों की न्याय-प्राप्ति में और पूरे समाज में कानून के प्रति सम्मान में दिखता है। यह परिस्थिति दर्शाती है कि समय पर न्याय अब सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की अदालतों के सामने एक साझा चुनौती बन चुकी है - चाहे वह कोई विकसित राष्ट्र ही क्यों न हो।
क्रोएशिया की न्याय व्यवस्था और लंबित मामलों में गिरावट के प्रयास
लेकिन हर चुनौती के बीच एक आशा की किरण भी होती है, और यूरोप का छोटा देश क्रोएशिया इसका बेहतरीन उदाहरण है। जहाँ दुनिया की बड़ी अदालतें मामलों के बोझ से दब रही हैं, वहीं क्रोएशिया ने अपने न्यायिक ढांचे में सुधार कर लंबित मामलों की संख्या में करीब 11% की गिरावट हासिल की है। वहाँ वर्तमान में यह आंकड़ा 4.5 से 4.6 लाख के बीच है - जो इस क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है। यह सुधार अचानक नहीं हुआ। सरकार ने इस दिशा में कई ठोस कदम उठाए - जैसे कि अदालतों का डिजिटलीकरण, न्यायिक प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए नए कर्मियों की नियुक्ति, और न्यायालय भवनों की संरचना में सुधार। इतना ही नहीं, संवैधानिक न्यायालयों में न्यायाधीशों की समय से पहले नियुक्ति की योजना भी बनाई गई, ताकि न्यायिक प्रक्रिया में कोई रुकावट न हो। यहां तक कि कोविड-19 (Covid-19) महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया की अदालतें बंद हो रही थीं, तब भी क्रोएशिया ने सुनिश्चित किया कि मामलों की संख्या में उछाल न आए। यह उदाहरण दर्शाता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और नीति-निर्माण के बल पर एक प्रभावशाली न्याय प्रणाली का निर्माण किया जा सकता है - और भारत सहित अन्य देशों को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।

यूरोपीय संघ में लंबित शरण संबंधी मामलों की स्थिति (CEAS)
यूरोपीय संघ में न्यायिक प्रणाली में एक बड़ा बोझ शरणार्थियों से जुड़े मामलों के रूप में देखा जा रहा है। कॉमन यूरोपीय असाइलम सिस्टम (Common European Asylum System - CEAS) के तहत, 2022 के अंत तक यूरोपीय देशों में करीब 899,000 शरण आवेदन लंबित थे - जिनमें से 636,000 से अधिक मामलों में प्रथम निर्णय तक नहीं हो पाया था। इनमें सबसे अधिक मामले जर्मनी (Germany), फ्रांस (France), स्पेन (Spain), इटली (Italy), ऑस्ट्रिया (Austria) और बेल्जियम (Belgium) जैसे देशों में थे। जर्मनी अकेले लगभग 30% लंबित शरण मामलों को संभाल रहा है। 2021 की तुलना में 2022 में इन देशों में मामलों की संख्या दोगुनी हो गई, और यह रुझान अब भी जारी है। इटली और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में आवेदनों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई, जिससे वहां की अदालतें बोझ से दब गईं। इसके पीछे कारण हैं - अंतरराष्ट्रीय पलायन में तेजी, युद्धग्रस्त क्षेत्रों से लोगों का विस्थापन और सीमित संसाधन। शरणार्थियों के मामलों की देरी केवल कानूनी समस्या नहीं, बल्कि यह मानवीय संकट भी है। न्याय मिलने की प्रक्रिया जितनी धीमी होगी, उतना ही अधिक इन लोगों की अस्थिरता और असुरक्षा बढ़ती जाएगी।
दुनिया में अपराध दर के लिहाज़ से शीर्ष 5 देश और उनके कारण
लंबित अदालती मामलों का सीधा संबंध उस समाज की अपराध दर से भी होता है। और जब हम वैश्विक अपराध दर की बात करते हैं, तो कुछ देशों के हालात सबसे गंभीर पाए गए हैं। ये वे देश हैं, जहाँ न केवल अपराध अधिक हैं, बल्कि कानून व्यवस्था को बनाए रखना भी बहुत मुश्किल हो गया है।
संदर्भ- 
https://tinyurl.com/yre7jszk