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रामपुरवासियो, जब सर्दियों की हल्की ठंडक हवा में घुलती है और शहर की गलियाँ भक्ति के सुरों से गूंजने लगती हैं, तब समझिए कि गुरु नानक जयंती का पावन पर्व आ पहुंचा है। यह वही समय होता है जब रामपुर की सुबहें प्रभात फेरियों के मधुर कीर्तन से सजती हैं और शामें दीपों की रोशनी में नहाए गुरुद्वारों की रौनक से जगमगा उठती हैं। गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जीवन के उन अमर सिद्धांतों का उत्सव है जो समानता, सेवा और प्रेम की ज्योति जलाते हैं। गुरु नानक देव जी ने यह सिखाया कि सच्चा धर्म किसी पूजा स्थल की दीवारों में नहीं, बल्कि इंसानियत और करुणा के भाव में बसता है। इसी कारण इस दिन रामपुर के लोग, चाहे वे किसी भी धर्म या पृष्ठभूमि से हों, एक साथ आकर श्रद्धा और एकता के भाव से इस पर्व को मनाते हैं। गुरुद्वारों में गूंजते कीर्तन, लंगर सेवा की सादगी और निःस्वार्थ भक्ति का वातावरण पूरे शहर को आध्यात्मिक ऊष्मा से भर देता है। गुरु नानक जयंती रामपुर के लिए केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि यह संदेश है कि जब हम एक-दूसरे की सेवा और प्रेम में बंधते हैं, तभी “एक ओंकार” की सच्ची भावना हमारे जीवन में साकार होती है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि गुरु नानक जयंती का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व क्या है, और यह पर्व सिख समाज के लिए इतना विशेष क्यों माना जाता है। इसके बाद हम समझेंगे कि गुरु नानक देव जी ने समानता, सेवा और मानवता का जो संदेश दिया, वह आज भी समाज में कैसे प्रासंगिक है। फिर हम उनके जीवन से करुणा, विनम्रता और सादगी के वे जीवन-पाठ जानेंगे, जो हर व्यक्ति के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि गुरु नानक जयंती किस प्रकार सभी धर्मों के प्रति सम्मान और एकता का प्रतीक बन गई है, और अंत में यह पर्व सिख संस्कृति, परंपरा और गुरु नानक जी की शिक्षाओं के वैश्विक प्रभाव को कैसे संरक्षित रखता है।
गुरु नानक जयंती का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व
गुरु नानक जयंती, जिसे गुरुपुरब कहा जाता है, सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी के पावन जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन आता है, जो आमतौर पर नवंबर माह में पड़ता है, और सिख पंचांग के अनुसार इसे सबसे पवित्र और महत्त्वपूर्ण तिथियों में से एक माना जाता है। इस दिन प्रातःकाल प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं, जहाँ श्रद्धालु गुरु बाणी का गायन करते हुए गलियों और मोहल्लों में भक्ति और शांति का संदेश फैलाते हैं। नगर में निकाले जाने वाले भव्य नगर कीर्तन में सजे हुए रथ पर गुरु ग्रंथ साहिब की शोभायात्रा होती है। इस शोभायात्रा के आगे पारंपरिक परिधान में सुसज्जित निहंग सिख अपनी युद्धकला का प्रदर्शन करते हैं, जिससे श्रद्धा और उत्साह का वातावरण बन जाता है। बच्चे, महिलाएँ और बुज़ुर्ग सभी “वाहेगुरु” के जयकारों से पूरे नगर को गुंजायमान कर देते हैं। रामपुर और उसके आस-पास के गुरुद्वारों में इस अवसर पर अखंड पाठ, कीर्तन दरबार और लंगर सेवा का विशेष आयोजन किया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि समाज में एकता, भाईचारे और निःस्वार्थ सेवा की भावना को भी सशक्त बनाता है।

समानता, सेवा और मानवता का सन्देश
गुरु नानक देव जी का सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा और समानता के सिद्धांतों को समर्पित था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “सबमें जोत, जोत है सोई”, अर्थात ईश्वर हर जीव में समान रूप से विद्यमान है। उनका यह विचार सामाजिक बंधनों, जात-पात और धार्मिक भेदभाव से परे था। गुरु जी ने यह संदेश दिया कि सच्ची पूजा किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि सेवा और करुणा के भाव में निहित है। गुरु नानक जयंती के अवसर पर सिख समाज लंगर सेवा आयोजित करता है, जहाँ हर व्यक्ति - चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या वर्ग का हो - एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करता है। यह दृश्य मानव समानता की सबसे सुंदर मिसाल है। रामपुर के गुरुद्वारों में भी इस दिन भक्त स्वयं भोजन तैयार करते हैं, परोसते हैं और दूसरों की सेवा में आत्मिक सुख का अनुभव करते हैं। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि भक्ति का असली अर्थ दूसरों के कल्याण में योगदान देना और सबको समान दृष्टि से देखना है।
करुणा, विनम्रता और सादगी के जीवन-पाठ
गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि जीवन की सच्ची शक्ति करुणा, विनम्रता और सादगी में निहित है। उन्होंने दिखाया कि अहंकार और लोभ मनुष्य को उसकी मूल मानवता से दूर कर देते हैं। गुरु जी का संदेश था कि “विच दुनिया सेव कमाईए, तां दरगह बैठे पाईए”, अर्थात इस संसार में सेवा का भाव ही आत्मिक उन्नति का मार्ग है। इस दिन श्रद्धालु ध्यान, भजन और नाम-स्मरण के माध्यम से आत्मिक शांति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। कीर्तन के दौरान “सतनाम वाहेगुरु” की गूंज पूरे वातावरण को भक्ति से भर देती है। गुरु नानक देव जी ने यह भी कहा कि असली धन वह नहीं जो सोने-चांदी के रूप में संचित किया जाए, बल्कि वह जो दूसरों की सहायता में लगाया जाए। आज भी लाखों श्रद्धालु उनके इन उपदेशों को जीवन में अपनाते हैं और समाज में प्रेम, सहयोग और सेवा की भावना को जीवित रखते हैं।

सभी धर्मों के प्रति सम्मान और एकता का प्रतीक
गुरु नानक देव जी का दर्शन सीमाओं और धार्मिक पहचान से परे था। उन्होंने कहा कि “ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान - सब इंसान हैं।” इस संदेश में मानवता की सबसे गहरी व्याख्या निहित है। उन्होंने सिखाया कि परमात्मा एक है, जो सभी धर्मों के मूल में समान रूप से विद्यमान है। उनका उद्देश्य धार्मिक भेदभाव मिटाकर लोगों को एक सूत्र में बाँधना था। गुरु नानक जयंती के अवसर पर कई गुरुद्वारे और सामाजिक संस्थाएँ अंतरधार्मिक संवाद आयोजित करती हैं, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ आकर गुरु जी के विचारों और शिक्षाओं पर चर्चा करते हैं। इससे समाज में सहिष्णुता, सौहार्द और एकता की भावना को बल मिलता है। रामपुर जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहरों में यह पर्व इस बात का उदाहरण है कि विविधता में भी एकता संभव है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि धर्म का असली उद्देश्य विभाजन नहीं, बल्कि इंसानियत और सद्भाव को बढ़ावा देना है।
सिख संस्कृति, परंपरा और विरासत का संरक्षण
गुरु नानक जयंती केवल श्रद्धा और भक्ति का पर्व नहीं, बल्कि यह सिख संस्कृति और परंपराओं के जीवंत संरक्षण का माध्यम भी है। इस दिन अखंड पाठ, नगर कीर्तन और कीर्तन दरबार के आयोजन के माध्यम से गुरु परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जाता है। रामपुर के गुरुद्वारों में इस दिन दीप सजावट, पुष्पों से सजे पंडाल और संगीतमय भजन-कीर्तन वातावरण को पूरी तरह आध्यात्मिक बना देते हैं। श्रद्धालु न केवल नतमस्तक होते हैं, बल्कि गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को जीवन में अपनाने का संकल्प भी लेते हैं। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि सिख इतिहास केवल वीरता की गाथा नहीं, बल्कि त्याग, सेवा और सत्य की परंपरा है, जिसे हर पीढ़ी तक पहुँचाना और सहेजना हमारा कर्तव्य है।

विश्व स्तर पर गुरु नानक की शिक्षाओं का प्रभाव
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ आज भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर विश्वभर में फैल चुकी हैं। कनाडा, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom), ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और मलेशिया (Malaysia) जैसे देशों में सिख समुदाय अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ गुरु नानक जयंती मनाता है। विदेशों में भी नगर कीर्तन, गुरुपुरब लंगर सेवा और संगीतमय प्रार्थनाएँ आयोजित की जाती हैं, जिनमें अन्य धर्मों के लोग भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। गुरु जी के सिद्धांत - समानता, सत्य, सेवा और सह-अस्तित्व - अब संपूर्ण मानवता के लिए सार्वभौमिक मूल्य बन चुके हैं। उनका दर्शन आज भी आधुनिक दुनिया के लिए एक मार्गदर्शन का स्रोत है, जहाँ विभाजन और असमानता बढ़ रही है। गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ हमें यह स्मरण कराती हैं कि प्रेम और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं, और सच्चा इंसान वही है जो सबको समान दृष्टि से देखता है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/32jav3un
https://tinyurl.com/3tz56hp5
https://tinyurl.com/mvmnabmy
https://tinyurl.com/zdzueeyw
https://tinyurl.com/yv7y592b
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