आइए जानें, दुनियाभर में सड़क दुर्घटनाओं की सच्चाई, सुरक्षा नीतियाँ और भारत के लिए ज़रूरी सबक

गतिशीलता और व्यायाम/जिम
17-11-2025 09:18 AM
आइए जानें, दुनियाभर में सड़क दुर्घटनाओं की सच्चाई, सुरक्षा नीतियाँ और भारत के लिए ज़रूरी सबक

रामपुरवासियों, सड़कें केवल यात्रा का साधन नहीं होतीं - ये किसी शहर की जीवनरेखा होती हैं। लेकिन जब इन्हीं सड़कों पर लापरवाही, तेज़ रफ़्तार और नियमों की अनदेखी हावी हो जाती है, तो ये ज़िंदगी का सबसे बड़ा ख़तरा बन जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हालिया रिपोर्ट बताती है कि हर साल दुनिया भर में लाखों लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं, और करोड़ों घायल होकर जीवनभर की परेशानियों का सामना करते हैं। भारत जैसे देशों में यह समस्या और भी गंभीर है, जहाँ ट्रैफ़िक व्यवस्था कमजोर है और सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता अभी भी सीमित है। इसलिए, ज़रूरी है कि हम सड़क दुर्घटनाओं की वैश्विक स्थिति, उनके कारणों और उन देशों की नीतियों को समझें जिन्होंने इस दिशा में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
आज के इस लेख में हम समझेंगे कि दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति कितनी गंभीर हो चुकी है और इनसे जुड़े आँकड़े हमें क्या बताते हैं। साथ ही यह भी जानेंगे कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सड़क हादसे इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं, किन देशों ने अपनी नीतियों और जागरूकता अभियानों से सड़क सुरक्षा में नई मिसालें कायम की हैं, और विभिन्न देशों में ड्राइविंग नियमों के बीच क्या रोचक अंतर हैं। अंत में, भारत के सर्दियों के मौसम में कोहरे और लापरवाही से बढ़ते हादसों से मिलने वाले सबक पर भी चर्चा करेंगे।

दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं की वर्तमान स्थिति और चिंताजनक आँकड़े
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, हर मिनट दो से अधिक लोग और प्रतिदिन लगभग 3,200 से ज़्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाते हैं। सालाना यह संख्या लगभग 1.19 मिलियन (million) मौतों तक पहुँचती है। सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि सड़क दुर्घटनाएँ अब 5 से 29 वर्ष के युवाओं और बच्चों की मौत का प्रमुख कारण बन चुकी हैं। यानी, जो उम्र जीवन की शुरुआत और सपनों का समय होती है, वही सड़क पर खत्म हो रही है। क्षेत्रवार आँकड़े देखें तो स्थिति और भी असमान है - दक्षिण-पूर्व एशिया में 28%, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में 25%, अफ्रीका में 19%, अमेरिका में 12% और यूरोप में मात्र 5% मौतें होती हैं। यह अंतर साफ़ बताता है कि विकसित देशों में सड़क सुरक्षा के नियम और उनका पालन कहीं ज़्यादा सशक्त है। यूरोप जैसे देशों ने तकनीकी सुधार, बेहतर सड़क डिज़ाइन और ट्रैफ़िक अनुशासन से हादसों को कम किया है, जबकि एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में जनसंख्या और अव्यवस्था के कारण स्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है।

निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएँ
दुनिया में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली लगभग 90% मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। इन देशों में समस्या सिर्फ़ ट्रैफ़िक नियमों के पालन की नहीं है, बल्कि कई स्तरों पर संरचनात्मक कमी मौजूद है - सड़कें अक्सर संकरी, टूटी हुई या बिना संकेतों के होती हैं; सार्वजनिक परिवहन अव्यवस्थित होता है, और हेलमेट या सीट बेल्ट जैसी बुनियादी सुरक्षा आदतों की अनदेखी आम है। सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि इन मौतों में से आधी पैदल यात्रियों, साइकिल चालकों और मोटरसाइकिल सवारों की होती हैं। यानी, जो लोग स्वयं वाहन नहीं चला रहे, वे भी असुरक्षित हैं। पैदल यात्रियों की मौतों में हाल के वर्षों में 3% की वृद्धि हुई है, जबकि साइकिल चालकों की मौतों में 20% का इज़ाफ़ा दर्ज किया गया है। यह दर्शाता है कि सड़क सुरक्षा केवल ड्राइवरों के लिए नहीं, बल्कि हर राहगीर के लिए उतनी ही ज़रूरी है। इसके अलावा, इन देशों में ट्रैफ़िक पुलिस की संख्या कम है, कानूनों का पालन ढीला है, और दुर्घटना के बाद तुरंत चिकित्सा सुविधा न मिलने से मौतों का अनुपात और बढ़ जाता है। यह स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि विकास केवल आर्थिक नहीं, बल्कि “सुरक्षा और व्यवस्था” के रूप में भी होना चाहिए।

सड़क सुरक्षा में अग्रणी देश और उनकी सफल नीतियाँ
डब्ल्यूएचओ (WHO) की 2023 की ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट (Global Status Report) के अनुसार, 2010 से 2021 के बीच दस देशों ने सड़क दुर्घटनाओं में 50% तक की कमी की है। इनमें कतर (Qatar), ब्रुनेई (Brunei), डेनमार्क (Denmark), जापान, लिथुआनिया (Lithuania), नॉर्वे (Norway), रूस, त्रिनिदाद (Trinidad) और टोबैगो (Tobago), यूएई (UAE) और वेनेज़ुएला प्रमुख हैं। इन देशों की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि उन्होंने सड़क सुरक्षा को सिर्फ़ एक "कानूनी मुद्दा" नहीं, बल्कि "सांस्कृतिक जिम्मेदारी" बना दिया। स्वीडन (Sweden) का "विज़न ज़ीरो" मॉडल ("Vision Zero" model) इस सोच पर आधारित है कि कोई भी व्यक्ति सड़क पर अपनी जान न गंवाए - इसीलिए वहाँ सड़क डिज़ाइन से लेकर गति सीमा तक हर चीज़ इंसानी सुरक्षा को ध्यान में रखकर तय की जाती है। जापान में पैदल यात्रियों के लिए विशेष फुटपाथ और क्रॉसिंग ज़ोन (Crossing Zone) बनाए गए हैं, साथ ही ड्राइवरों के लिए शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाते हैं ताकि वे ट्रैफ़िक नियमों का पालन स्वाभाविक रूप से करें। यूएई ने ड्राइविंग टेस्ट प्रणाली और ट्रैफ़िक कैमरों को इतना सशक्त किया है कि नियम तोड़ने की संभावना बेहद कम हो गई है।

दुनिया भर में ड्राइविंग नियमों का तुलनात्मक विश्लेषण
दुनिया के हर देश में सड़क सुरक्षा नियम उनके इतिहास और संस्कृति से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom), भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान में सड़क के बाईं ओर ड्राइविंग होती है, जबकि अमेरिका, जर्मनी (Germany) और फ्रांस (France) में दाईं ओर। इसका ऐतिहासिक कारण यह है कि ब्रिटिश उपनिवेश वाले देशों में बाईं तरफ़ चलने की परंपरा बनी रही। गति सीमा भी अलग-अलग है - ब्रिटेन (Britain) में मोटरवे (motorway) पर 70 एमपीएच (mph) की सीमा है, जबकि ऑस्ट्रेलिया में 130 किमी/घंटा (km/h) तक अनुमति है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में गति सीमाएँ 30-60 किमी/घंटा के बीच रखी जाती हैं ताकि पैदल यात्रियों और साइकिल सवारों को सुरक्षा मिल सके। शराब पीकर ड्राइविंग के नियम भी सख़्त हैं - जापान में रक्त में अल्कोहल (alcohol) की सीमा केवल 0.03% है, जबकि भारत और अमेरिका में यह 0.08% है। कुछ देशों जैसे अमेरिका में लाल बत्ती पर दाएँ मुड़ने की अनुमति है, जबकि जर्मनी और फ्रांस में यह मना है जब तक ग्रीन सिग्नल न मिले। इन नियमों का अंतर यह दर्शाता है कि हर देश ने सड़क सुरक्षा को अपनी सामाजिक ज़रूरतों और यातायात की प्रकृति के अनुसार ढाला है।

सड़क सुरक्षा के मामले में सबसे सुरक्षित देश
मोनाको (Monaco), स्वीडन, माइक्रोनीशिया (Micronesia) और किरिबाती (Kiribati) जैसे देश सड़क सुरक्षा के आदर्श उदाहरण हैं। मोनाको में सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मृत्यु दर 0 प्रति 1,00,000 है - यानी पिछले कुछ वर्षों में यहाँ सड़क पर किसी की जान नहीं गई। इसका कारण है सख़्त निगरानी, सीमित वाहन संख्या, और उन्नत सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था। स्वीडन ने सड़क सुरक्षा को मानवाधिकार का हिस्सा बना दिया है। यहाँ हर सड़क, फुटपाथ और साइकिल लेन को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि गलती होने पर भी हादसा न हो। माइक्रोनीशिया और किरिबाती जैसे द्वीपीय देशों में वाहनों की संख्या बहुत कम है, और सख़्त स्थानीय नियमों के कारण दुर्घटनाओं की दर बेहद कम रहती है। इन देशों की सफलता इस बात का प्रमाण है कि सड़क सुरक्षा केवल तकनीक से नहीं, बल्कि अनुशासन और जनजागरूकता से आती है।

भारत में कोहरे के मौसम में बढ़ता हादसों का खतरा और ज़रूरी सबक
भारत में सर्दियों का मौसम अपने साथ कई सौंदर्य लाता है, लेकिन घना कोहरा इसे एक मौन ख़तरे में बदल देता है। कोहरे के कारण दृश्यता घट जाती है, और तेज़ रफ़्तार गाड़ियाँ अचानक सामने आकर टकरा जाती हैं। ऐसे मौसम में सड़कें एक "ब्लाइंड ज़ोन" (Blind Zone) बन जाती हैं जहाँ ज़रा-सी असावधानी जानलेवा हो सकती है। मुख्य कारणों में तेज़ रफ़्तार, वाहनों पर रिफ्लेक्टर (reflector) या चेतावनी लाइट का अभाव, और ट्रकों या भारी वाहनों की गलत पार्किंग शामिल हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि चालक लो बीम हेडलाइट (Low Beam Headlight) का उपयोग करें, वाहन के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखें और गति सीमा का पालन करें। सड़क सुरक्षा केवल नियमों की बात नहीं - यह जीवन की रक्षा की संस्कृति है, जिसे अपनाना हर नागरिक की जिम्मेदारी है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/4nnxkdw4 
https://tinyurl.com/266s3n4k 
https://tinyurl.com/mwt8n4wj 
https://tinyurl.com/ht5kyexm 
https://tinyurl.com/yvw255wc 



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