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                                            रामपुर में मुगल तथा ब्रिटिश काल की बहुत सारी इमारतें हैं। जो सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर हैं। रामपुर में रज़ा पुस्तकालय, जामा मस्जिद, रंग महल, हामिद मंजिल-किला जैसी इमारतों की भारत में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। इन ऐतिहासिक धरोहरों में यूरोपीय शैली की वास्तुकला अथवा इंडो-सार्सेनिक वास्तुकला (Indo-Saracenic Architecture) का प्रभाव देखने को मिलता है। इसी तरह भारत के अन्य राज्यों में भी इंडो- सार्सेनिक वास्तुकला के अन्य नमूने जैसे कर्नाटक में मैसूर पैलेस (Mysore Palace), चेन्नई में विक्टोरिया पब्लिक हॉल (Victoria Public Hall), कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल (Victoria Memorial)आदि स्थापित हैं। इनमें से कुछ अब भारतीय पुरातात्विक विभाग (Archaeological Survey of India) द्वारा संरक्षित देश की ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल हैं।
भारत में इंडो- सार्सेनिक वास्तुकला जिसे इंडो-गोथिक (Indo-Gothic), मुगल- गोथिक (Mughal-Gothic), नियो-मुगल (Neo-Mughal), शैली भी कहा जाता है, उसकी शुरुआत ब्रिटिश वास्तुकारों द्वारा 19वीं सदी में की गयी थी। यह शैली मुख्यतः हिन्दू-मुग़ल और भारतीय वास्तुकला से प्रेरित है जिसमें ब्रिटेन के विक्टोरियन (Victorian) काल की गोथिक (Gothic) कला, और नियो क्लासिकल (Neo-Classical) का मिश्रण है। भारत में पहली इंडो- सार्सेनिक इमारत मद्रास अथवा चेन्नई में चेपौक महल (Chepauk Palace) थी। वर्तमान समय में इंडो- सार्सेनिक वास्तुकला के नमूने भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया और यहां तक कि इंग्लैंड में भी पाए जाते हैं।
इंडो- सार्सेनिक वास्तुकला में भवनों की बुनियादी अभिन्यास और संरचना विशिष्ट शैलियों और सजावट के साथ अन्य शैलियों जैसे गोथिक रिवाइवल (Gothic Revival), निओ-क्लासिकल (Neo-Classical), और मशराबिया (अरबी वास्तुकला) आदि से बनाई जाती थी। 19वीं शताब्दी मे मशराबिया (अरबी वास्तुकला) जिसे भारत में झरोखा नाम से भी जाना जाता है, इंडो- सार्सेनिक वास्तुकला की विशिष्ट विशेषताओं में से एक है। ये बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं। इन खिडकियों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना यह थी कि बिना किसी को दिखे "पर्दा प्रथा" का सख्ती से पालन करती महिलायें इन खिडकियों से महल के नीचे सड़कों के समारोह व गलियारों में होने वाली रोजमर्रा की जिंदगी की गतिविधियों को आसानी से देख सकें। वैकल्पिक रूप से, इन खिड़कियों का उपयोग तीरंदाजों और जासूसों के लिए भी किया जाता था। रामपुर में ऐसी कई ऐतिहासिक धरोहरे हैं जो हमारे गौरवशाली व समृद्ध अतीत की प्रमाण हैं, इनकी सुंदरता तथा संरचना खासतौर पर यहां की खिड़कियाँ बस देखते ही बनती हैं।
संदर्भ:
1. https://onartandaesthetics.com/2016/04/23/indo-gothic/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Saracenic_Revival_architecture
3. https://www.slideshare.net/shubhamsisodiya9/history-report-on-the-indo-saracenic-architecture
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Jharokha
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Mashrabiya