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                                            मनुष्य का शरीर पंचतत्वों से मिल कर बना हुआ है जिनमें जल भी शामिल है। हम जानते हैं हर पानी पीने लायक नहीं होता तो हम जल को पेयजल बनाने के लिये कई उपाय अपनाते हैं। उन्हीं उपायों में से एक है जल का क्लोरीनीकरण। पीने के पानी में क्लोरीन डाला जाता है ताकि उसे मानव द्वारा पीने के अनुकूल बनाया जा सके। क्लोरीन पानी में मौजूद सूक्ष्मजीवों और जीवाणुओं को मार देता है। इसके उपयोग सरल, सुगम, सस्ते एवं प्रभावी होने के कारण बड़े पैमाने तथा घरेलू स्तर में पानी के रोगाणुओं को नष्ट करने के एक उत्तम तरीका है।
क्लोरीन व्यापक रूप से कीटनाशकों, उर्वरकों, सॉल्वैंट्स, दवाइयों, डिटर्जेंट, प्लास्टिक, पॉलीविनायल क्लोराइड आदि के उत्पादन में उपयोग किया जाता है। आज, लगभग 85 प्रतिशत सभी औषधियों में क्लोरीन का उपयोग किया जाता है, उनमें हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, कैंसर, एड्स, गठिया, निमोनिया, मधुमेह, और अल्सर का इलाज करने वाली दवाएं भी शामिल हैं। हालांकि क्लोरीन से पानी में मिलाने से माइक्रो बैक्टीरिया एवं कैलीफार्म बैक्टीरिया मर तो जाते हैं, वहीं दूसरी ओर जल में क्लोरीन की अधिक मात्रा से कैंसर, कोशिका क्षति, अस्थमा, आंतों और गुर्दे में ट्यूमर, हृदय की समस्याएं जैसी बीमारियां भी हो सकती है। साथ-साथ क्लोरीनयुक्त जल बच्चो के लिये भी हानिकारक होता है। अब प्रश्न यह उठता है कि हम क्लोरीन का उपयोग कर ही क्यों रहे है जब यह इतना हानिकारक है।
दरसल पेयजल में क्लोरीन का उपयोग 1800 के दशक में शुरू हुआ, जल क्लोरीनीकरण को लागू करने के शुरुआती प्रयास 1893 में जर्मनी के हैम्बर्ग में किए गए थे और 1904 तक जल उपचार में यह विश्व भर में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाने लगा। दुर्भाग्य से, हम क्लोरीन का उपयोग इसलिये नहीं करते हैं क्योंकि यह कीटाणुशोधन का सबसे सुरक्षित और सबसे प्रभावी माध्यम है, बल्कि इसलिये करते है क्योंकि यह सबसे सस्ता तरीका है। अभी तक पानी को कीटाणुमुक्त करने के लिए अधिकतर वाटर प्यूरीफायर्स में क्लोरीन नामक रसायन या इसके उप-उत्पाद (क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन्स, सोडियम हाइपोक्लोराइट) को एक किफायती, प्रभावी कीटाणुनाशक के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। परंतु इनमें से कई म्यूटेजेनिक और या कार्सिनोजेनिक होते हैं। कई देशों में जल शुद्धिकरण में जहरीली गैस क्लोरीन का प्रयोग बंद तक कर दिया है।
हाल में ही रामपुर के जिला अस्पताल में एक बड़ा हादसा होने से बचा। वार्ड के पीछे पंप हाउस में रखे क्लोरीन के सिलेंडर से गैस का रिसाव हो गया। जैहरीली गैस कई वार्डों में घुस गई, जिससे अफरा-तफरी मच गई।
जहां तक संभव हो सके क्लोरीन के उपयोग से बचें, पानी कीटाणुशोधन के लिए क्लोरीन के आलावा वैकल्पिक तरीकों का उपयोग भी किया जा सकता है जैसे ओजोनेशन, ब्रोमिनेशन और आयोडीनीकरण, होम फ़िल्ट्रेशन, UV विकिरण, आयनीकरण विकिरण आदि
संदर्भ:1.https://en.wikipedia.org/wiki/Water_chlorination 
2.http://www.filterwater.com/t-articles.harmfuleffectsofchlorine.aspx
3.https://chlorine.americanchemistry.com/Chlorine/Front-Line/
4.https://timesofindia.indiatimes.com/videos/city/lucknow/chlorine-gas-leaks-at-rampur-district-hospital-25-patients-affected/videoshow/63263366.cms
5.https://en.wikipedia.org/wiki/Chlorine_gas_poisoning