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आज भारत ही नहीं वरन् विश्व के कई हिस्सों में हमें सिख धर्म के अनुयायी देखने को मिलेंगे। इस एकेश्वरवादी धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी में गुरू नानक जी द्वारा की गयी। इन्होंने विश्व भ्रमण के दौरान संसार में व्याप्त अंधविश्वास, कट्टरवाद, असत्य, पाखण्ड, घृणा और इससे प्रभावित जन-मानस की दुदर्शा देखते हुए, मानव जाति को वास्तविक परमेश्वर से अवगत कराने तथा सत्मार्ग में लाने का निर्णय लिया। 1 वर्ष तक इन्होंने अपने निवास स्थान के आसपास शांति, करुणा, धर्म और सत्यता के संदेश दिये। बाद में इनके द्वारा विश्व के विभिन्न हिस्सों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, तिब्बत, नेपाल, भूटान, दक्षिण पश्चिम चीन, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब, मिस्र, इज़राइल, जॉर्डन, सीरिया, कज़ाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान, और किर्गिस्तान आदि) में भ्रमण करके उपदेश दिये गये। इनकी यात्रा को उदासियाँ कहा गया। इन्होंने विभिन्न धार्मिक केंद्रों (हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सूफी, योगी आदि) का भ्रमण किया तथा उनकी संस्कृति, परंपराओं को करीब से समझा। अपनी पहली उदासी में इन्होंने 6 वर्ष तक पूर्वी भारत का भ्रमण किया। पूर्वी भारत से इनके इस मिशन को पश्चिम, उत्तर और दक्षिण तक पहुंचाया गया।
गुरू नानक जी द्वारा की गयी उदासी :
पहली उदासी: इनके द्वारा 31-37 वर्ष तक की अवस्था में पहली उदासी की गयी, जो लगभग सात वर्ष (1500-1506 ईस्वी) तक चली। इसमें इन्होंने सुल्तानपुर, तुलम्बा (आधुनिक मखदमपुर, जिला मुल्तान), पानीपत, दिल्ली, बनारस (वाराणसी), नानकमत्ता (जिला ऊधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड), टांडा वंजारा (जिला रामपुर), कामरूप (असम), आसा देश (असम), सैदपुर (आधुनिक अमीनाबाद, पाकिस्तान), पसरूर (पाकिस्तान), सियालकोट का भ्रमण किया।
दूसरी उदासी: गुरु नानक जी ने 37-44 वर्ष तक की अवस्था में दूसरी उदासी की, जो लगभग 7 वर्षों (1506-1513 ईस्वी) तक चली। इसमें इनके द्वारा धनसरी घाटी, संगलदीप (श्रीलंका)।
तीसरी उदासी: 45-49 वर्ष तक की अवस्था में इन्होंने अपनी तीसरी उदासी पूरी की, जो पांच वर्ष (1514-1518 ईस्वी) तक चली। इसमें इन्होंने कश्मीर, सुमेर पर्वत, नेपाल, ताशकंद, सिक्किम, तिब्बत का भ्रमण किया।
चौथी उदासी: 50-52 की उम्र में इन्होनें 3 वर्ष (1519-1521 ईस्वी) तक अपनी चौथी उदासी (मक्का और अरब देशों) की।
पांचवी उदासी: गुरु नानक जी ने पांचवी उदासी 54-56 वर्ष तक की अवस्था में पूरी की। दो वर्ष (1523-1524 ईस्वी) की इस उदासी में इन्होंने पंजाब के भीतर भ्रमण किया।
इन्हें दुनिया में सर्वाधिक भ्रमण करने वाले व्यक्तियों में शामिल किया जाता है। अपनी तीसरी उदासी के दौरान 1514 में नानक जी रोहिलखण्ड वाले क्षेत्र में भी आये। यह क्षेत्र सिख धर्म के अनुयायियों के लिए तीर्थ स्थल बन गया। रामपुर के आस-पास आज भी कई सिख तीर्थ स्थल उपस्थित हैं :
नानकमत्ता
ऊधम सिंह नगर (उत्तराखण्ड) में स्थित नानकमत्ता साहिब गुरूद्वारा उत्तराखण्ड के तीन पवित्र सिख तीर्थ स्थलों (हेमकुण्ड साहिब, रीठा साहिब, नानकमत्ता) में से एक है जो गुरूनानक जी से जुड़ा हुआ है। गुरूनानक जी के आगमन से पूर्व यह स्थान गोरखनाथ के भक्तों का निवास स्थान हुआ करता था, जिस कारण इसे गोरखमत्ता कहा जाता था। नानक जी ने यहां के स्थानीय लोगों को ध्यान के माध्यम से मोक्ष का मार्ग बतलाया। इनकी इस यात्रा के पश्चात इस स्थान को नानकमत्ता के नाम से जाना जाने लगा। गुरूद्वारे के मध्य भाग पर स्थित पीपल के वृक्ष के विषय में कहा जाता है कि गोरखनाथों ने नानक जी के विरोध में अपनी योग साधना के माध्यम से वृक्ष को क्षति पहुंचानी चाही जिसे नानक जी द्वारा रोक दिया गया। इस स्थान को आज पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है।
गुरुद्वारा नानक पुरी साहेब
ऊधमसिंह नगर के टांडा गांव में स्थित गुरुद्वारा नानक पुरी साहेब गुरू नानक जी से जुड़ा हुआ है। नानक जी की तीसरी उदासी (1514) के दौरान इस क्षेत्र में फैली बाल तस्करी (रोहिल्ला पठानों द्वारा) को रोकने के लिए भाई हरसिंह जी के अनुरोध पर नानक जी यहां आये। नानक जी एक बच्चे के भेष में पत्थरों पर विराज गये तथा उन्हें एक रोहिल्ला द्वारा पकड़कर दो घोड़े के लिए एक व्यापारी को बेच दिया गया। व्यापारी ने उन्हें बगीचे में तोते भगाने के लिए रखा किंतु उनके बगीचे में कदम रखते ही बगीचा सूख गया। पठान ने उसे भेड़ के व्यापारी को बेचा लेकिन बच्चे के भेड़ को लकड़ी से छूते ही भेड़ मर गयी, और वापस छूने पर ज़िन्दा हो गयी। तीसरी बार पठान द्वारा बच्चे को एक अन्य पठान के पास बेचा गया जिसने उससे चक्की में आटा पीसने के लिए रखा लेकिन यहां भी वह जितने ज्यादा गेहूं पीसता गया, आटा उतना कम होता गया। अंततः पठान को उसकी गलती का एहसास हुआ और वह नानक जी का भक्त बन गया। बच्चों की तस्करी करने वाले उस पठान ने चौथी बार उस बच्चे को एक ख्वाजा को बेच दिया। ख्वाजा ने बच्चे को कुंए से पानी लाने का कार्य सौंपा लेकिन बच्चे के कुंए के पास जाते ही उस क्षेत्र का सारा पानी सूख गया। तब सभी पठानों ने मस्जिद पर एकत्रित होकर अल्लाह की प्रार्थना की इस पर नानक जी ने कहा, “अल्लाह तुम्हारी तभी सुनेगा जब तुम बच्चों की तस्करी रोक दो।” पठानों द्वारा इनके अनुसरण पर पानी पुनः बहने लगा। इसी प्रकार अन्य बच्चों की तस्करी करने वाले रोहिल्लों को नानक जी ने सुधारा। अंत में रोहिलखण्ड के सभी रोहिल्ला पठान नानक जी के भक्त बन गये। यहां पर गुरू नानक और गुरू गोविंद जी के जन्म दिवस, गुरू अर्जुन देव के शहीद दिवस तथा होला मोहल्ला पर्व का आयोजन किया जाता है।
सितारगंज (ऊधमसिंह नगर)
तीन जलाशयों के मध्य बसा सितारगंज सिख प्रधान क्षेत्र है। यह शहर नानकमत्ता के निकटवर्ती है। सरयू और देवहा नदी पर नानक सागर बांध का निर्माण किया गया है।
नानक सागर
यह नानकमत्ता के पास देवहा नदी की धारा को बांध के लिए रोककर बनाई गयी झील है।
सिखों के दसवें गुरू, गुरु गोविन्द सिंह ने सिखों को मुगलों के विरूद्ध आवाज उठाने के लिए जागृत किया। सिख सेनानायक बंदा सिंह बहादुर ने मुगलों को पराजित किया तो वहीं नवाब कपूर सिंह ने पंजाब को मुगलों और जमीनदारों के उत्पीड़न से मुक्ति दिलाई। बंदा सिंह बहादुर के शहीद होने के पांच वर्ष पश्चात मुगलों द्वारा पुनः पंजाब पर हमला किया गया जिसमें कपूर सिंह ने डटकर मुगलों का सामना किया। इसी दौरान खालसा का निर्माण हुआ तथा सिखों ने दोआब (जमुना और सिंधु) के मध्य क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। इसके पश्चात सिखों द्वारा सरदार उपनाम रखा गया। सिखों ने अपने प्रिय अस्त्र-शस्त्र तलवार और भाले से अनेक विरोधों का सामना किया तथा भारत के अनेक हिस्सों में सिख गुरूद्वारों का निर्माण कराया। कई सिख धर्म की रक्षा के लिए शहीद भी हो गये।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Nanakmatta
2.http://www.nanakmattasahib.com/NS_HP_GS_Main.htm
3.http://www.sikhiwiki.org/index.php/The_Udasis_of_Guru_Nanak
4.http://www.sikhiwiki.org/index.php/Gurudwara_Nanakpuri_Sahib_Village_Tanda
5.https://en.wikipedia.org/wiki/Sitarganj
6.http://www.sikhiwiki.org/index.php/Nanak_Sagar
7.http://www.sikh-history.com/sikhhist/events/warriors_1750.html