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आज तारिख है 30 जनवरी, और हर भारतीय को इस तारिख के बारे में सुनते ही एक व्यक्ति की याद आती है, महात्मा गाँधी। आज ही के दिन सन 1948 में गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। पूरे देश के लिए यह एक बहुत ही बड़ा शोक का दिन था। यहाँ तक कहा जाता है कि शायद यह भारतीय इतिहास का सबसे दुखद हादसा था। और ज़ाहिर सी बात थी कि इतने ख़ास व्यक्ति के जीवन को श्रद्धांजलि भी एक विराट रूप में देनी थी। नीचे दिए गए वीडियो में आप गांधीजी के अंतिम संस्कार की झलक देख सकते हैं:
अंतिम संस्कार के बाद गांधीजी की अस्थियों को कई कलशों में कर देश के भिन्न कोनों में भेजा गया था ताकि सभी को शोक ज़ाहिर करने का मौका मिल सके। साथ ही दिल्ली के राजघाट में उनकी समाधी बनायी गयी। बहुत कम लोग यह जानते हैं पर रामपुर के नागरिकों को यह पता होगा कि राजघाट ही गांधीजी की इकलौती समाधी नहीं है। हमारे रामपुर में भी एक गाँधी समाधी मौजूद है जो इसे देश में मौजूद 3 समाधियों में से एक बनाता है। तीसरी समाधी गुजरात के कच्छ में स्थित है। तो आइये जानते हैं कि आखिर कैसे उत्तर प्रदेश के रामपुर में गांधीजी की समाधी बनाई गयी।
गांधीजी के निधन के बारे में सुनकर रामपुर के उस समय के नवाब रज़ा अली खान (शासन अवधि: 1930-1966) काफी सदमे में थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वे गांधीजी के काफी करीब थे और उनका बहुत सम्मान करते थे। इतिहासकारों का कहना है कि इस खबर के बारे में सुनते ही नवाब ने रामपुर रियासत में सरकारी मातम घोषित कर दिया था। साथ ही वे स्वयं तुरंत दिल्ली की ओर निकल पड़े। वे चाहते थे कि वे अपने साथ गांधीजी की कुछ अस्थियाँ रामपुर तक लेकर आयें ताकि उनकी रियासत के लोग भी इस महान आत्मा को श्रद्धांजलि दे सकें। इतिहासकार बताते हैं कि गांधीजी की अस्थियों को नवाब द्वारा 11 फ़रवरी 1948 को रामपुर लाया गया। कहा जाता है कि नवाब ने ये सफ़र अपनी ख़ास रेलगाड़ी में किया था और उन्होंने लौटते हुए हर स्टेशन पर रेल को रुकवाया ताकि सभी लोग राष्ट्रपिता को के प्रति सम्मान ज़हिर कर सकें।
रामपुर लौटने के बाद 12 फरवरी 1948 को गांधीजी की अस्थियों को एक शाही जुलूस के साथ कोसी नदी के किनारे ले जाया गया और उसका कुछ हिस्सा नदी में विसर्जित कर दिया गया। बचे हुए हिस्से को शहर के ह्रदय में दफनाकर उस स्थान को गाँधी समाधी घोषित कर दिया गया। गांधीजी ने अपने जीवनकाल में दो बार रामपुर का दौरा किया था, एक बार मौलाना शौकत अली और मोहम्मद अली से मुलाकात करने और दूसरी बार नवाब सय्यद हामिद अली खान बहादुर से मिलने।
आज गांधीजी की पुण्यतिथि के दिन हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।
सन्दर्भ:
1.https://www.pressreader.com/india/hindustan-times-lucknow/20181002/281590946503324
2.https://www.youtube.com/watch?v=17S6kInWtPw