सूरदाय जयंती विशेष: सूरदास ने जब-जब गाया, हमने कृष्ण को साक्षात पाया

ध्वनि I - कंपन से संगीत तक
25-04-2023 09:45 AM
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सूरदाय जयंती विशेष: सूरदास ने जब-जब गाया, हमने कृष्ण को साक्षात पाया

                                                                                   मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो,
                                                                       भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहिं पठायो ।
                                                                       चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ॥
महान संतकवि और संगीतकार सूरदास द्वारा लिखित यह पंक्तियां, जब भी रेडियों में संगीत के तौर पर सुनाई देती थी, तो ऐसा प्रतीत होता था, मानों भगवान श्री कृष्ण स्वयं हमारे समक्ष आकर, माता यशौदा से कह रहे हों कि "मां मैंने माखन नहीं खाया!" सूरदास अपनी भक्तिपूर्ण रचनाओं से कुछ ऐसा जादू बिखेर देते हैं ,कि उन्हें पढ़ने या सुनने वाला मंत्रमुग्ध होकर उन्हें एकटक सुनता ही रह जाता है!
सूरदास 16वीं शताब्दी के दौरान, एक दृष्टिहीन भक्ति कवि और गायक थे, जो मुख्य रूप से भगवान श्री कृष्ण की पूजा-आराधना करते थे। वे पुष्टि मार्ग संप्रदाय के संस्थापक विट्ठलनाथ द्वारा चुने गए आठ कवियों में से एक माने जाते थे, जिन्होंने भगवान कृष्ण की स्तुति संगीत रचना की थी। सूरदास अपनी उत्कृष्ट भक्ति और काव्य प्रतिभा के कारण उन आठ कवियों में सबसे प्रसिद्ध थे। उनकी अधिकांश कविताएँ ब्रज भाषा में लिखी गईं, जबकि कुछ मध्यकालीन हिंदी की अन्य बोलियों में भी लिखी गईं। माना जाता है कि सूरदास का जन्म 1478 में हुआ था, लेकिन उनकी मृत्यु की सही तारीख अभी भी अनिश्चित है। कई लोग मानते हैं कि उनका जन्म आगरा और मथुरा के बीच, जबकि कुछ का कहना है कि उनका जन्म दिल्ली के पास सिही नामक गाँव में हुआ था। जबकि कई अन्य लोगों का मानना है कि उनका जन्म श्री कृष्ण की लीलाओं के गवाह रहे ब्रजधाम में हुआ था।
माना जाता है कि सूरदास, गरीब परिवार से थे, जिस कारण उनके परिवार वाले उनकी अच्छी तरह से देखभाल नहीं कर पाते थे। शायद इसी लिए जब वह मात्र छह साल के बालक थे, तभी उन्होंने भक्त मण्डली के एक समूह में शामिल होने के लिए घर छोड़ दिया। कई लोग यह भी मानते हैं कि एक रात स्वयं भगवान श्री कृष्ण उनके सपने में आये और कृष्ण ने ही उन्हें वृंदावन जाने तथा भगवान की स्तुति में गीत गाते हुए अपना जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। श्री कृष्ण के निर्देशों का पालन करते हुए सूरदास वृंदावन चले गए। आगे चलकर वे एक महान संगीतकार और कवि बने, और उन्होंने श्री कृष्ण का महिमा मंडन करते हुए कई सुंदर गीत लिखे। उनके गीत आज भी व्यापक स्तर पर गाए जाते हैं, तथा वे समूचे भारत में बहुत लोकप्रिय हैं। कई किवदंतियों के अनुसार मात्र छह साल की आयु में अपना ग्रह त्याग करने के बाद वे अपने गुरु वल्लभ आचार्य से मिले और उनके शिष्य बन गए। वल्लभ आचार्य के मार्गदर्शन और प्रशिक्षण में, सूरदास ने श्रीमद् भागवत को कंठस्थ कर लिया, हिंदू शास्त्रों का अध्ययन किया और दार्शनिक तथा धार्मिक विषयों पर खूब व्याख्यान दिया। वे जीवन भर अविवाहित रहे। उनके गुरु श्री वल्लभाचार्य एक बुद्धिमान व्यक्ति थे जिन्होंने सूरदास को हिंदू दर्शन और ध्यान के बारे में बारीकी से पढ़ाया। चूंकि सूरदास गायन में अच्छे थे और श्रीमद भागवतम् का पूरा ज्ञान रखते थे, इसलिए श्री वल्लभाचार्य ने उन्हें भगवान कृष्ण और राधा की प्रशंसा में 'भगवद लीला' नामक भक्ति गीत गाने के लिए प्रेरित किया। बाद में, श्री वल्लभाचार्य ने सूरदास को गोवर्धन में श्रीनाथ मंदिर में निवासी गायक के रूप में नियुक्त किया। सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ प्रमुख माने जाते हैं:
(1) सूरसागर - जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं।
(2) सूरसारावली
(3) साहित्य-लहरी - जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं।
(4) नल-दमयन्ती
(5) ब्याहलो
आज सूरदास को उनकी प्रसिद्ध रचना, सूर सागर के लिए जाना जाता है। सूरसागर, महाकवि सूरदास द्वारा रचे गए कीर्तनों-पदों का (ब्रजभाषा में) रचित एक सुंदर संकलन है, जो शब्दार्थ की दृष्टि से उत्कृष्ट, उपयुक्त और आदरणीय माना जाता है। इसमें भक्ति की प्रधानता नज़र आती है। इसके दो प्रसंग "कृष्ण की बाल-लीला' और "भ्रमर-गीतसार' अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। माना जाता है कि सूरसागर में लगभग एक लाख पद हैं। किन्तु वर्तमान संस्करणों में लगभग पाँच हजार पद ही मिलते हैं। इसके अलावा सूरदास ने सूर सारावली और साहित्य लहरी की भी रचना की। उनकी सभी रचनाएँ भक्ति मार्ग पर जोर देती हैं और भक्ति आंदोलन का अभिन्न हिस्सा मानी जाती हैं, जो भारतीय उपमहाद्वीप में फैला हुआ है! यह आंदोलन जनता के आध्यात्मिक सशक्तिकरण का प्रतिनिधित्व करता है। यह आंदोलन कृष्ण या श्री हरि विष्णु जैसे विशिष्ट हिंदू देवताओं के लिए गहरी भक्ति, या प्रेम दिखाने पर केंद्रित था।
सूरदास की सभी रचनाएँ हिंदी की ब्रज भाषा नामक बोली में लिखी गई थी। हालाँकि उनके समय तक, यह एक बहुत ही अपरिष्कृत भाषा मानी जाती थी, क्योंकि प्रचलित साहित्यिक भाषाएँ या तो फारसी या संस्कृत थीं। सूरदास के काम ने ब्रजभाषा को एक साहित्यिक भाषा के रूप में पहचान दिलाई। आपको जानकार हैरानी होगी कि उनकी रचनाएं सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी मिलती हैं। सूरदास के बारे में यह व्यापक रूप से माना जाता है कि उन्होंने भगवान श्री कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी को कुछ ऐसे लिखा जैसे वह उस समय स्वयं वहाँ मौजूद थे, और उन्होंने इसे घटित होते देखा हो। उनकी कविताएँ इतनी उत्कृष्ट मानी जाती हैं कि इन्होंने हिंदी भाषा को और अधिक सुंदर तथा पढ़ने में आसान बना दिया। हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्रीकृष्ण के परम भक्त सूरदास जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है! इस साल सूरदाय जयंती 25 अप्रैल 2023 यानी आज के दिन मनाई जा रही है!

संदर्भ
https://bit.ly/2PcHwuR
https://bit.ly/3ow8DYf
https://bit.ly/3AisUmB

चित्र संदर्भ
1. श्री कृष्ण एवं सूरदास को दर्शाता एक चित्रण (facebook, Pexels)
2. सूरदास के विवरण को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. राधा कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (Creazilla)
4. सूरदास के गुरु श्री वल्लभाचार्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. सूर सागर में वर्णित श्री कृष्ण के जनमोत्स्व को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
6. राधा कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)



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