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हमारा देश भारत एशिया (Asia) महाद्वीप का हिस्सा है। भारत का अधिकांश भाग एक प्रायद्वीप है, जिसका अर्थ है कि यह तीन तरफ से पानी से घिरा हुआ है। भारत का भूगोल अत्यंत विविध है, जिसमें बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाओं से लेकर रेगिस्तान, उपजाऊ मैदान, पहाड़ियाँ और पठार तक के परिदृश्य शामिल हैं। हमारा राज्य उत्तर प्रदेश सिंधु-गंगा के उपजाऊ मैदानी क्षेत्र का हिस्सा है। हमारा शहर रामपुर भी इसी क्षेत्र में, जिसे “तराई क्षेत्र” भी कहा जाता है, में आता है।
तराई उत्तरी भारत और दक्षिणी नेपाल में समतल नीची भूमि का एक क्षेत्र है। यह क्षेत्र हिमालय की बाहरी तलहटी, अर्थात शिवालिक पहाड़ियों के दक्षिण में और गंगा के मैदान के उत्तर में स्थित है। ऊँचे घास के मैदान, झाड़ियों और समतल घास के मैदान, साल के जंगल और मिट्टी से भरपूर दलदल आदि इस तराई क्षेत्र की विशेषताएं हैं। उत्तर भारत में, तराई क्षेत्र पूर्व दिशा में यमुना नदी से लेकर हरियाणा, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और हमारे उत्तर प्रदेश राज्य तक फैला हुआ है। ब्रह्मपुत्र नदी के तराई क्षेत्र में स्थित पश्चिम बंगाल और असम तथा बांग्लादेश और भूटान देशों से संबंधित तराई क्षेत्र को ‘दुअर’ कहा जाता है। भारत में तराई क्षेत्र पश्चिम में यमुना नदी से लेकर पूर्व में भागमती नदी के बीच 810 किलोमीटर तक फैला है। जबकि नेपाल में तराई क्षेत्र 33,998.8 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है; और 67 से 300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस क्षेत्र में 50 से अधिक आर्द्रभूमियाँ शामिल हैं।
भारत में कई बारहमासी हिमालयी नदियाँ तराई क्षेत्र से होकर गुजरती हैं। इनमें यमुना, गंगा, शारदा, करनाली, नारायणी, राप्ती और कोसी नदियाँ शामिल हैं।
इनमें से प्रत्येक नदी पहाड़ों से बाहर निकलने के स्थान पर तथा नीचे आकर हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जलोढ़ मैदान बनाती है। इस क्षेत्र की भूवैज्ञानिक संरचना में विभिन्न नदियों द्वारा बनाए गए सभी पुराने और नए जलोढ़ मैदान शामिल हैं। मुख्य रूप से ये दोनों मैदान रेत, मिट्टी, गाद, कंकड़ और मोटे टुकड़ों के जलोढ़ भंडार का निर्माण करते हैं। नए जलोढ़ क्षेत्रों का प्रत्येक वर्ष सक्रिय जलधाराओं या नदियों द्वारा लाए गए ताजा निक्षेपों द्वारा नवीनीकरण होता रहता है। जबकि, पुराना जलोढ़ जलधाराओं या नदियों के प्रवाह से दूर प्रदेश में पाया जाता है। जैस मैदान के ऊपरी इलाकों में, जहां कम गाद जमा होती है।
तराई क्षेत्र में मिट्टी जलोढ़ और महीन से मध्यम बनावट वाली होती है। पहले यह क्षेत्र घने वनों से ढका हुआ था लेकिन वर्तमान में तराई और पहाड़ी क्षेत्रों में वन आवरण कम होता जा रहा है। वनों की कटाई और कृषि क्षेत्र बढ़ने के साथ, बजरी, पत्थर और रेत का एक पारगम्य मिश्रण विकसित होता है, जिससे जल स्तर नीचे चला जाता है। लेकिन, जहां ये परतें मिट्टी और महीन तलछट से बनी होती हैं, वहां भूजल सतह पर आ जाता है और इससे तलछट बह जाती है। इस वजह से मानसून के दौरान यहां बार-बार और बड़े पैमाने पर बाढ़ आ जाती है।
वृत्ताकार होने के कारण तराई के इस क्षेत्र को तराई आर्क लैंडस्केप (Terai Arc Landscape (TAL) भी कहा जाता है। इसी तराई क्षेत्र में भारत के कुछ प्रसिद्ध बाघ अभयारण्य और संरक्षित क्षेत्र जैसे जिम कॉर्बेट बाघ अभयारण्य, राजाजी राष्ट्रीय उद्यान, दुधवा बाघ अभयारण्य, वाल्मिकी बाघ अभयारण्य आदि शामिल हैं। साथ ही, नेपाल के बर्दिया वन्यजीव अभयारण्य, चितवन राष्ट्रीय उद्यान और सुखला फांटा वन्यजीव अभयारण्य भी इसी क्षेत्र में आते हैं। कुल मिलाकर, इस क्षेत्र में 13 संरक्षित क्षेत्र हैं, जिनमें से नौ भारत में और चार नेपाल में हैं। इस क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 49,500 वर्ग किलोमीटर है, जिसका 30,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भारत में स्थित है।
इस क्षेत्र के जंगल जानवरों की तीन प्रमुख प्रजातियों का घर हैं। यहां हमें बंगाल टाइगर (बाघ), एक सींग वाला बड़ा गैंडा और एशियाई हाथी आसानी से दिख सकते हैं। इनके अलावा, यहां प्राणियों की कई अन्य प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं। भारत में, वर्ष 2000 से प्रमुख वन्यजीवों के लिए पूरे परिदृश्य में निवास स्थान की अखंडता और संयोजकता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक सक्षम नीति और संस्थागत वातावरण के भीतर क्षेत्र के स्थानीय समुदायों के लिए वैकल्पिक आजीविका विकल्प प्रदान करते हुए ‘विश्व वन्यजीवन कोष’ (World Wildlife Fund (WWF)इस तराई क्षेत्र में काम कर रहा है।
संरचना और ढाल के आधार पर उत्तर भारत के मैदान को निम्नलिखित चार भागों में वर्गीकृत किया गया है-
1. भाबर
2. तराई
3. खादर
4. बांगर
तराई क्षेत्र के विषय में हमने विस्तार से जान लिया है| आइए, अन्य 3 क्षेत्रों के बारे में जानते हैं-
• भाबर-
शिवालिक पर्वतों की तलहटी पर, सिंधु नदी से लेकर तीस्ता नदी तक विस्तृत क्षेत्र भाबर क्षेत्र कहलाता है| भाबर मैदान जम्मू–कश्मीर से लेकर असम तक फैला हुआ है। यह क्षेत्र कंकरीला और पारगम्य मैदानी भाग है। इस क्षेत्र का निर्माण हिमालय से उतरते वक्त नदियों द्वारा लाये गए कंकड़ व अन्य पथरीले अवसादों के निक्षेपण से होता है, जिन्हें ‘जलोढ़ पंख’ या ‘जलोढ़ शंकु’ भी कहा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि पहाड़ों से उतरती हुई नदियां इस क्षेत्र में आकर विलुप्त हो जाती हैं। दरअसल, वे इन कंकड़ों में विलीन हो जाती है, और भूमि सतह के नीचे से बहती हैं। भाबर के मैदान की चौड़ाई पूर्वी क्षेत्र की तुलना में पश्चिमी क्षेत्र में अधिक है। वास्तव में, यह क्षेत्र कृषियोग्य नहीं है।
• बांगर-
यह पुरानी जलोढ़ मृदा से निर्मित मैदान है। इसका विस्तार दो नदियों के बीच स्थित दोआब क्षेत्र में पाया जाता है। ये क्षेत्र बाढ़ के मैदानों के ऊपर स्थित होते हैं और खादर मैदान की तुलना में कम उपजाऊ होते हैं। इन क्षेत्रों में जल निकासी अच्छी होती है। बांगर क्षेत्र कृषि के लिए भी उपयुक्त होता है। खनिज और ह्यूमस (Humus) की प्रचुर मात्रा होने के कारण यहां की मिट्टी उपजाऊ होती है।
• खादर-
यह नवीन जलोढ़ मृदा से निर्मित मैदान है। इस मैदान की ऊँचाई बांगर मैदान से कम होती है। प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ के द्वारा लाए जाने वाले जलोढ़ अवसादों के निक्षेपण से इसका नवीनीकरण होता रहता है। इसीलिए यह सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र होता है। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल खादर क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। खादर भूमि में गाद, मिट्टी और रेत प्रचुरता से होते हैं। यह भूमि गन्ना, चावल, गेहूं, मक्का और तिलहन की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2snu8t4z
https://tinyurl.com/4dxyd3n9
https://tinyurl.com/m63wxun2
https://tinyurl.com/2nn2bpjc
चित्र संदर्भ
1. रामपुर शहर को दर्शाता चित्रण (prarang)
2. रामपुर की मस्जिद को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. घने जंगल को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. उत्तर प्रदेश के मंडलों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)