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जल निकासी प्रणाली, तरल तत्व को निपटान के लिए दूर ले जाने की एक व्यवस्था है । जल निकासी प्रणाली का उद्देश्य, गंदे पानी, बारिश, तूफान के पानी को शहरों में भरने से रोकना है।इस प्रणाली में घरों से निकलने वाली नाली से लेकर सड़क के गटर (Gutter) शामिल होते हैं जो की बारिश के पानी को सड़क के किनारे से नाली द्वारा निकालते है।जल निकास प्रणाली दो तरह की होती हैं: खुली जल निकास प्रणाली और बंद जल निकासी प्रणाली। बंद नाली ज़मीन के नीचे बनी होती है। एक खराब जल निकासी प्रणाली की वजह से जगह-जगह बारिश के मौसम में गंदा पानी नालियों से ऊपर आ जाता है, जिससे लोगो को अपने दिनचर्या में दिक्कत तो होती ही है, और साथ में बिमारियां भी फैलती हैं हैं।
गंदे पानी और बारिश के पानी की जल निकासी अलग अलग की जा सकती है लेकिन कभी कभी दोनो की जल निकल प्रणाली एक ही होती है।जल निकास प्रणाली के अलग होने का फायदा ये है की बारिश का पानी प्रदूषित नहीं होता है और उसको नदी में सीधे निकाला जा सकता है,लेकिन सीवर और उद्योगों के गंदे पानी को साफ करने की जरूरत पड़ती है, उसको सीधे नदी में नहीं निकाला जा सकता है। अलग अलग जगहों से इस जल को एक जगह इकट्ठा किया जाता है और फिर मुख्य नाली पर भेजा जाता है, जो की सबसे आखिर में उपचार संयत्र में जाता है। खुली नाली अधिकतर अपशिष्ट जल को इकट्ठा करने के इस्तेमाल में आती है, और अन्य कचरे को खुली नाली में नही डालना चाहिए ,यह पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है और इससे बीमारियां भी संक्रमित होती है।केवल कुछ ही हद तक खुली नाली का उपयोग किया जा सकता है। भले ही सेप्टिक या इंटरसेप्टर टैंक के उपयोग से ठोस कचरा हटा दिया गया हों, इसके बाद भी, अपशिष्ट जल ले जाने के लिए खुली नालियों का उपयोग एक अच्छा उपाय नहीं है, क्योंकि लोग आसानी से इसके संपर्क में आ सकते हैं और बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा, खुली नाली में अधिक जल आने से बाढ़ भी आ सकती है। दूसरी ओर, खुली नाली का एक फायदा है की समय समय पर इसको यदि रखरखाव की जरूरत पड़ी तो यह आराम से किया जा सकता है।गांव जैसे इलाकों में खुली नालियां पाई जाती हैं और शहरों में अक्सर बंद नालियां ही होती हैं।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जल निगम और कंस्ट्रक्शन एंड डिजाइनिंग (Construction and Design, C & D) के अंतर्गत आता है।गलत योजना और धन की कमी के कारण रामपुर के सीवेज प्रणाली की स्थिति काफी खराब है। रामपुर में लगी सीवर लाइन की लागत 105 करोड़ रुपए थी, जो की अब टूटी हुई हैं। नागरिक प्राधिकरण का कहना है कि सीवर पाइप्स नींव के आधार पर नहीं डाले गए थे । और तो और हमारे शहर में सीवर लाइन के बाद सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाए गए थे जो की अब इस्तेमाल करने की अवस्था में नहीं है।
इसका परिणाम ये निकलता है कि सीवेज या तो ऊपर सड़कों पर आ जाता है या फिर बिना साफ हुए आगे कोसी नदी में चला जाता है । रामपुर में सीवेज योजना 2006 मैं शुरू की गई थी; परियोजना के अंतर्गत शहर को चार जोन में बांटा गया है। 2 जोन का काम 2015 में हुआ ।जोन 1 में 54 करोड़ रुपए लगे और जोन 2 में 51 करोड़ रुपए लगे।दोनों जोन में मिलाकर 46,661 घर हैं और सारे घरों में सीवर लाइन पड़नी थी, लेकिन केवल 600 घरों में ही कनेक्शन किया गया है। वहाँ के निवासियों और कर्मचारियों का कहना है की धन की कमी के कारण काम पूरा नहीं हुआ। 2006 में बिछाई गई सीवर लाइन टूट गई हैं जिसकी वजह से गंदा पानी बारिश के मौसम में ऊपर सड़कों पर आ जाता है,इसीलिए इनको सही कराना बहुत जरूरी है।नदी जल का प्रदूषण केवल एक सौंदर्य की समस्या नहीं है,बल्कि एक आर्थिक समस्या भी है।इसीलिए नदी के पानी की जांच करना अनिवार्य है ताकि पता लगाया जा सके की पानी उपयोग के लिए ठीक है या नहीं।नदी की जांच करने से हम नदी को और प्रदूषित होने से बचा सकते हैं।
जब जल निकास का पानी बिना साफ किए कोसी नदी में जाता है तो वह पानी फिर कृषि और मछली पालन में इस्तेमाल किया जाता है। जिस वजह से बीमारियां होती हैं।उसके बाद यह नदी काशीपुर के प्रसिद्ध चावल बेल्ट क्षेत्र से होकर बहती है,जिसमे कई उद्योगों का गंदा पानी इसमें बहता है। इसके अलावा कृषि मैं उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है जो कि बारिश के मौसम में बह कर नदी में चला जाता है।
संदर्भ:
https://byjus.com/chemistry/drainage-systems/
https://tinyurl.com/Rampur-1
https://tinyurl.com/Newsrampur1
https://tinyurl.com/Swacch-2
https://www.hindawi.com/journals/jchem/2013/618612/
चित्र संदर्भ
1. बारिश के बाद जलभराव को दर्शाता चित्रण (PixaHive)
2. सीवर सिस्टम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. सीवेज में लीकेज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मानसून के दौरान सड़कों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. प्रदूषित जल निकासी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)