समय - सीमा 267
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1051
मानव और उनके आविष्कार 814
भूगोल 260
जीव-जंतु 315
| Post Viewership from Post Date to 02- Sep-2023 (31st Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2326 | 550 | 0 | 2876 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
क्या आप जानते हैं कि रामपुर में जश्न-ए-रामपुर के जरिए उन सभी व्यंजनों के बारे में जानकारी दी जाती थी जिनके बारे में लोग भूल चुके थे?
शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय (Sheffield University) के नेतृत्व में "फॉरगॉटन फ़ूड प्रोजेक्ट" (Forgotten Food Project) के हिस्से के रूप में, तराना हुसैन खान ने 19वीं सदी के रामपुरी व्यंजनों वाली पांडुलिपियों का अनुवाद किया, जो रज़ा लाइब्रेरी में रखी गई हैं। “जश्न-ए-रामपुर”, जिसे टीम फॉरगॉटेन फ़ूड (Team Forgotten Food) द्वारा दिल्ली में आयोजित किया गया था, में उन व्यंजनों का चयन किया गया था, जिन्हें रामपुर फ़ूड फेस्टिवल (Rampur Food Festival) में प्रचारित किया गया था।
जश्न-ए-रामपुर, ब्रिटेन (Britain) में कला और मानविकी अनुसंधान परिषद के माध्यम से वैश्विक चुनौतियां अनुसंधान निधि द्वारा वित्त पोषित और शेफील्ड विश्वविद्यालय के तत्वावधान में क्रियान्वित परियोजना 'भूले हुए भोजन: पाक स्मृति, स्थानीय विरासत और भारत में लुप्त कृषि विविधताएं' (Forgotten Food: Culinary Memory, Local Heritage and Lost Agricultural Varieties in India) की परिणति का प्रतीक है। दिन भर चलने वाला यह उत्सव बातचीत, चर्चा, फिल्म स्क्रीनिंग (Film Screening) और प्रदर्शन के साथ रामपुर की पाक विरासत पर केंद्रित है।
ब्रिटिश शासन के अधीन स्थापित रोहिल्ला पठान रियासत रामपुर, 19वीं सदी में उत्तर भारतीय मुस्लिम संस्कृति का सांस्कृतिक केंद्र या मरकज़ बन गया था। रामपुर के नवाब सभी प्रकार की कला और संस्कृति के संरक्षक बन गये थे। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत के आसपास,रामपुर के नवाबों द्वारा रामपुर के व्यंजनों को लिखित रूप देने और इस प्रकार के व्यंजन बनाने तथा उनमें नवीनता लाने के लिए एक सचेत प्रयास किया गया था। इस प्रकार, आज भी रामपुर, दिल्ली और अवध के शेफ (Chef) और सू-शेफ (Sous-Chef) ने रामपुर का एक विस्तृत और नया 'हाउते व्यंजन' (Haute Cuisine) बनाने और पेश करने के लिए सहयोग किया है ।
एक पीढ़ी पहले तक रामपुरी व्यंजनों में ऐसे व्यंजनों का भंडार था, जो मुगल बादशाहों के मशहूर दस्तरख्वान की बराबरी कर सकते थे। रामपुर के नवाबों द्वारा आयोजित भोजों का सजीव वर्णन, उस समय के लिखित इतिहास में मिलता है। रामपुर का खाना अवध से अलग है, हालांकि इसे अकसर अवधी खाना समझ लिया जाता है। खाद्य उत्सवों के क्यूरेटर (Curator), रामपुर के शेफ सुरूर खान बताते हैं कि, “इसमें विशेष अंतर यह है कि, अवधी व्यंजनों के विपरीत, रामपुरी व्यंजनों में केवड़ा, इत्र या गुलाब जल जैसी सामग्री की सुगंध नहीं होती है। जबकि, केसर और जायफल जैसे समृद्ध मसालों का उपयोग होता है।
एक अन्य कारक जो इसकी नवीनता को बढ़ाता है, वह है साबुत मसालों या खड़ा मसाला का प्रमुख उपयोग। भोजन को काली और सफेद मिर्च, लौंग, दालचीनी, जावित्री, काली और हरी इलायची, तेजपत्ता, जीरा और धनिया से स्वादिष्ट बनाया जाता है।“ आगे वह कहते हैं कि, “रामपुर में उगाई जाने वाली पीली मिर्च, केसर की जड़ों और चुंगेजी मसाला, 21-विषम मसालों और जड़ी-बूटियों के मिश्रण के साथ, भोजन को विशिष्ट स्वाद देता है। पुराने उस्तादों द्वारा प्रशिक्षित रामपुर के खानसामा के साथ काम कर चुकीं तराना हुसैन खान कहतीं हैं कि, “मसालों के विशिष्ट मिश्रण और संतुलन के साथ-साथ तले हुए प्याज का उपयोग अधिकांश रामपुर व्यंजनों में अभिन्न अंग है।“
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब अवध साम्राज्य बिखर गया, तब रामपुर ने अंग्रेजों का साथ दिया। चूंकि, इस क्षेत्र ने सुरक्षा प्रदान की थी, इसलिए आसपास के क्षेत्रों से रसोइये रामपुर में स्थानांतरित हो गए। इसका परिणाम यह था कि मुगल, अफगान, लखनवी, कश्मीरी और अवधी व्यंजनों से प्रभावित, हमारी विशिष्ट रामपुरी पाक कला का जन्म हुआ ।
हालांकि, अन्य व्यंजनों के विपरीत, ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से रामपुर का भोजन अपने जन्मस्थान तक ही सीमित रह गया। । 'दीग टू दस्तरख्वान: किस्सास एंड रेसिपीज फ्रॉम रामपुर' (Degh to Dastarkhwan: Qissas and Recipes from Rampur) की लेखक, सांस्कृतिक इतिहासकार तराना हुसैन खान का मानना है कि आजादी के बाद रियासत की आर्थिक गिरावट ने व्यंजनोंके व्यापक प्रसार पर रोक लगायी। “नवाबों द्वारा स्थापित उद्योग बंद हो गए। बेरोजगारी फैल गयी। रसोइयों को शाही रसोई छोड़ने के लिए कहा गया। उनका कोई प्रायोजक नहीं था,राजघराने के पास शाही खानसामा का समर्थन करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे । इसलिए, धीरे-धीरेरामपुर के व्यंजनों और रहस्यों को भुला दिया गया और वे खो गए।
हालांकि, रामपुर के राजघराने के नवेदमियां इस बात पर ज़ोर देते हैं कि,रामपुर के नवाब नहीं चाहते थे कि, व्यंजनों को सार्वजनिक किया जाए। और इसके अलावा, वह कहते हैं, आज बहुत कम रसोइये हैं, जो रामपुर शैली में कलछी चलाना जानते हैं।
नवेद मियां बताते हैं कि अदरक, अंडा, आलू और मछली से लेकर प्याज और मिर्च जैसी अप्रत्याशित सामग्रियों से तैयार किए गए कई हलवे रामपुर में उत्पन्न हुए। मुतंजन नामक एक मीठा व्यंजन भी है, जो मांस से तैयार किया जाता है। उन्हें अफसोस है कि अब बहुत कम लोग जानते हैं कि,लोज़-ए-जहाँगीरी, बादाम, घी, खोया और चीनी की एक कुरकुरी हीरे के आकार की मिठाई, जिस पर पीसे हुए पिस्ते की परत लगाई जाती है, कैसे पकाई जाती है?
किंवदंती है कि वर्क - भोजन पर रखी जाने वाली एक बढ़िया चांदी या सोने की पत्ती या परत - रामपुरी रसोई में विकसित की गई थी। नवेद मियां का कहना है कि वर्क ने दो उद्देश्यों को पूरा किया,यह भोजन को गर्म रखता था और यह सुनिश्चित करता था कि, भोजन से कुछ भी छेड़छाड़ नहीं की गई थी। वर्क इतना नाज़ुक था कि हल्का सा स्पर्श भी यह संकेत दे देता था कि भोजन में गड़बड़ी की गई है और इसे तुरंत अस्वीकार कर दिया जाता था।
रामपुर के राजघराने शिकार के मांस के शौकीन थे, और पहले के समय में, कच्चे गोश्त की टिक्किया या कबाब, घर के बने मसालों के साथ तैयार की जाती थी। नवाब इसे विभिन्न मसाले का उपयोग करके स्वयं पकाते थे।
इनमें से अधिकांश व्यंजन पीढ़ी-दर-पीढ़ी भोजन की यादें बन गए हैं - जिनके बारे में आज केवल बात की जा रही है, लेकिन कभी अनुभव नहीं किया गया है। इस प्रकार, दार-ए-बहिश्त, कुन्दन कालिया, हुबाबी, बिरयानी, कोरमा और कबाब का विशाल भंडार, ऐतिहासिक खाद्य विषाद का विषय बन गए। चूंकि, स्वतंत्रता के बाद के दौर में शाही रसोइयों में खानसामाओं की संख्या कम हो गई थी, खानसामा उस दौर के सावधानी से बनाए गए व्यंजनों के कौशल को अपने साथ ही ले गए!
संदर्भ:
https://shorturl.at/gtwxG
https://shorturl.at/bgxX1
https://shorturl.at/dopK4
चित्र संदर्भ
1. भारतीय व्यंजनों और तराना हुसैन खान जी की पुस्तक को दर्शाता चित्रण (Youtube,
Pexels)
2. व्यंजनों के शौक़ीन रामपुर के नवाब हामिद अली खान को दर्शाता चित्रण (prarang )
3. भारतीय व्यंजनों की थाल को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
4. रामपुर के सांस्कृतिक और पाक इतिहास पर आधारित वेबसाइट से लिया गया डॉ तराना हुसैन खान का एक चित्रण (taranakhanauthor.com)
5. लूला कबाब को दर्शाता चित्रण (wikimedia)