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संगीत श्रवण एवं मौखिक स्वरों की एक कला है। संगीत वाद्ययंत्र इसका मूर्त और भौतिक प्रतिनिधित्व करते हैं। इन वाद्ययंत्रों का अध्ययन हमें अपने शास्त्रीय संगीत को बेहतर समझने और अनुभव करने में मदद करता है। साथ ही, यह अध्ययन उन लोगों की भौतिक संस्कृति के कई पहलुओं की भी व्याख्या करता है, जिनसे ये वाद्ययंत्र संबंधित होते हैं।
हमारे देश भारत में अलग-अलग समय और स्थानों के प्रचारकों द्वारा सभी प्रकार एवं श्रेणीयों के संगीत वाद्ययंत्रों का आविष्कार किया गया हैं। फिर, इन वाद्य यंत्रों का वर्गीकरण भी हुआ, जिसका पहला उल्लेख भरत मुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में मिलता है। नाट्यशास्त्र भरत मुनि द्वारा संकलित प्रदर्शन कलाओं का एक प्राचीन ग्रंथ है, जो 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के बीच लिखा गया था। उन्होंने वाद्ययंत्रों को ‘घन वाद्य’, ‘अवनद्ध वाद्य’, ‘सुषिर वाद्य’ और ‘तत् वाद्य’ के रूप में वर्गीकृत किया हैं। यह वर्गीकरण वाद्ययंत्रों द्वारा उत्पन्न ध्वनि के आधार पर किया गया है।
क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि, तत् वाद्य किस प्रकार के वाद्य होते हैं? आइए जानते हैं। तत् वाद्य तार वाले वाद्ययंत्र होते हैं। इनमें दो बिंदुओं के बीच बंधे तारों में होने वाले कंपन के माध्यम से ध्वनि उत्पन्न होती है। यह ध्वनि बंधे एवं तने हुए तार को खींचकर या झुकाकर कंपन निर्मित करके उत्पन्न की जाती है। तार की लंबाई और उसमें मौजूद तनाव, स्वर की स्वरमान या पिच(Pitch) और ध्वनि की अवधि निर्धारित करता है।वीणा, सितार और तंबूरे, तत् वाद्ययंत्रों के कुछ उदाहरण हैं।
इन वाद्ययंत्रों को उनको बजाने के तरीकों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है:
1.किसी चाप के आकार की लकड़ी के साथ घर्षण द्वारा निर्मित ध्वनि के आधार पर: उदाहरण के तौर पर– सारंगी, दिलरुबा, एसराज आदि। रावनास्त्रम सबसे पह ला ज्ञात चाप वाद्ययंत्रों में से एक है।
2.तार छेड़कर निर्मित ध्वनि के आधार पर: उदाहरण के तौर पर– सरस्वती वीणा, रूद्र वीणा आदि।या
3.हथौड़े या लकड़ियों से प्रहार करके निर्मित ध्वनि के आधार पर: उदाहरण के तौर पर– गेट्टुवाद्यम, स्वरमंडल आदि।
चाप वाद्ययंत्रों का उपयोग आमतौर पर, स्वर संगीत के दौरान किया जाता है। इन्हें “गीतानुगा” भी कहा जाता है।चाप वाद्ययंत्रों को दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया गया है- सीधे वाद्ययंत्र एवं उल्टे वाद्ययंत्र:
सीधे वाद्ययंत्र की श्रेणी में, फ़िंगरबोर्ड(Fingerboard) को सीधा रखा जाता है। सारंगी इसका एक उदाहरण है।
उल्टे वाद्ययंत्र की श्रेणी में, संगीतकार, बोर्ड(Board) या रेज़ोनेटर(Resonator) को अपने कंधे के पास रखता है और फिंगरबोर्ड यानी, दांडी को बांह के पार रखता है। रावणहस्तवीणा, बाणम, वायलिन(Violin) आदि वाद्ययंत्र इसके कुछ प्रमुख प्रकार हैं।
हमारे देश भारत में,तार अथवा तत् वाद्ययंत्रों का सबसे पुराना साक्ष्य, शिकारियों के धनुष के आकार वाली वीणा है। इसमें आंत या फाइबर (Fibre) से बने कई समानांतर तार बंधे हुए होते थे। प्रत्येक स्वर के लिए एक–एक विशेष तार होती थी। इस तार को उंगलियों से या ‘कोना’ नाम से प्रसिद्ध प्लेक्ट्रम (Plectrum) से छेड़ा जाता था।
वीणा, प्राचीन ग्रंथों में वर्णित तार वाद्ययंत्रों का सामान्य नाम था। इसके साथ ही,एकतंत्री, सत-तंत्री वीणा आदि वाद्ययंत्र भी प्राचीन ग्रंथों में वर्णित हैं।चित्र वीणा में सात तार होते थे और इसे उंगलियों से बजाया जाता था। जबकि, 9 तारों वाली विपंची को प्लेक्ट्रम के माध्यम से बजाया जाता था। इन वाद्ययंत्रों को प्राचीन भारत के कई भित्तिचित्रों और मूर्तियों में दर्शाया गया है। हमें इसके कुछ सबूत सांची स्तूप, अमरावती स्तूप की नक्काशी और भरहुत स्तूप के शिलालेखों इत्यादि में मिलते हैं। सांची के स्तूप में, तत् वाद्य यंत्रों के उपयोग के कुछ शुरुआती चित्रण देखे जा सकते हैं।
यहां स्पष्ट रूप से एक वीणा दिखाई देती है। गांधार की कुछ प्रारंभिक मूर्तियों में भी, इंद्र देव द्वारा की गई एक यात्रा की नक्काशी में वीणा दिखाई देती है। दूसरी ओर, इंद्रशाला गुफा में बने सिकरी यूसुफजई स्तूप में भी इंद्र देव और उनके वीणावादक को गौतम बुद्ध के दर्शन करते हुए दिखाया गया है।
दूसरी शताब्दी के बाद लिखे गए कुछ तमिल ग्रंथों में भी यज़ का उल्लेख है। इस वाद्ययंत्र को बजाना विशेष समारोहों और अनुष्ठानों का एक प्रमुख हिस्सा था। जब पुजारी और संगीतकार गाते थे, उनकी पत्नियां यह वाद्ययंत्र बजाती थीं।
इन यंत्रों का एक अन्य प्रकार, डलसीमर(Dulcimer) है, जहां एक लकड़ी के खंड पर कई तार खींचकर बंधे होते हैं। डलसीमर प्रकार का सबसे प्रसिद्ध वाद्य यंत्र सत-तंत्री वीणा है, जो सौ तार वाली वीणा होती है। सत-तंत्री वीणा से मिलता–जुलता एक अन्य वाद्ययंत्र संतूर है। आज भी कश्मीर और देश के कुछ अन्य हिस्सों में संतूर बजाया जाता है।
फ़िंगरबोर्ड श्रेणी के तार यंत्र, भारत में कुछ समय बाद विकसित हुए। यह श्रेणी राग संगीत के लिए सबसे उपयुक्त थी।कॉन्सर्ट मंच(Concert platform) के कई समकालीन वाद्ययंत्र भी इस श्रेणी में आते हैं। ये वाद्ययंत्र एक समृद्ध स्वर उत्पन्न करते हैं और ध्वनि में निरंतरता प्रदान करते हैं। इस प्रकार में, तार की लंबाई बदलकर, सभी स्वरों को एक ही तार पर बनाया जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5n767vws
https://tinyurl.com/ykh8ue2j
https://tinyurl.com/2ek8esy7
https://tinyurl.com/f67pfscm
https://tinyurl.com/rue29pz6
https://tinyurl.com/3n7r7rek
चित्र संदर्भ
1. वीणा बजाते संगीतकार को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. तत् वाद्ययंत्रों को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)
3. वीणा को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)
4. सीकरी यूसुफजई स्तूप से में धनुषाकार वीणा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)