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विश्व की विभिन्न संस्कृतियों में भोजन और रीति-रिवाजों के अनूठे वर्गीकरण के साथ, पूर्ण
भोजन का आनंद लिया जाता हैं। पूर्ण भोजन का कई क्षेत्रों में एक समृद्ध व विविध इतिहास है,
जो समय के साथ, जन्मी खाद्य प्रवृत्तियों के विकास का परिणाम है। आपने कई बार, पश्चिमी
देशों के ‘फुल कोर्स भोजन(Full course meal) या ‘तीन कोर्स भोजन’ के बारे में सुना या पढ़ा
होगा। दरअसल, यही पूर्ण भोजन होता है। यह एक ऐसा भोजन होता है, जिसमें कई क्रम
शामिल होते हैं। क्या आप जानते हैं कि, किसी विशेष पूर्ण भोजन में कभी–कभी 20 से 21 क्रम
भी शामिल होते हैं और इसे एक विस्तारित अवधि में परोसा जाता है।
यहां क्रम से तात्पर्य क्रमवार खाद्य पदार्थ परोसने से है। भोजन क्रम, एक एकल खाद्य पदार्थ
या एक समय में परोसे जाने वाले खाद्य पदार्थों का एक प्रकार होता है। उदाहरण के लिए,
शुरुआती पदार्थों में, सूप(Soup), सैंडविच(Sandwich) तथा भोजन के आखिर में परोसे जाने
वाली मिठाइयां भोजन के क्रम को संबोधित करते हैं। एक साधारण भोजन में, एक या अधिक
भोजन क्रम शामिल होते हैं। जबकि, एक साधारण पूर्ण भोजन में, तीन या चार क्रम होते हैं।
आम तौर पर वे एक मुख्य व्यंजन या पदार्थ के पहले परोसे गए, क्षुधावर्धक अथवा शुरुआती
पदार्थों से शुरू होते हैं। इसके बाद मुख्य पदार्थ परोसा जाता है और फिर ऐसे भोजन को मिठाई,
कॉफी अथवा चाय के साथ समाप्त किया जाता हैं।
अक्सर किसी के घर, किसी आयोजन स्थल या किसी होटल अथवा रेस्तरां में पूर्ण भोजन होता
है। किसी विशेष अवसर पर, दोपहर या शाम के भोजन के समय भी इनका आनंद लिया जाता
है। रेस्तरां या होटल और भोजनालयों में भी, मेहमान कई व्यंजनों की अलग–अलग मांग करके,
पूर्ण भोजन का विकल्प चुन सकते हैं।
हमारे रोजमर्रा के भोजन पद्धतियों का यह उपरोक्त वर्णित स्वरूप, एक आश्चर्यजनक पृष्ठभूमि
में अपना जन्म पाता है। उदाहरण के लिए, तीन क्रम वाला भोजन(जिसमें सूप, मुख्य व्यंजन
और मिठाई शामिल होती हैं) परोसने का विचार वास्तव में एक मुस्लिम फ़ारसी व्यक्ति ने दिया
हैं। इस व्यक्ति का नाम ज़िरयाब है। ज़िरयाब 9वीं शताब्दी में इराक(Iraq) से स्पेन(Spain) के
कॉर्डोबा(Cordoba) शहर में आया था। स्पेन के तत्कालीन इस्लामिक लोगों को भोजन के
शिष्टाचार एवं सजावट से परिचित करवाने का श्रेय इन्हें ही दिया गया है। वह यूरोपीय इतिहास
में बहुत कम ज्ञात हैं, जबकि इस्लामी संस्कृति में वह एक महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं।
ज़िरयाब अलग-अलग व्यंजनों को अलग–अलग परोसने के पक्ष में थे एवं उन्होंने एक ही थाली में
रखे पूर्ण भोजन को अस्वीकार किया था। पारंपरिक तीन कोर्स भोजन का आविष्कार करने का
श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। उनके अनुसार, भोजन– सूप, उसके बाद मछली या मांस और फिर
अंत में एक मिठाई जिसमें फल या मेवा शामिल होता था, के क्रम में होना उचित था।
ज़िरयाब द्वारा दी गई, तीन कोर्स भोजन की यह अवधारणा उस समय एक नवाचार था जो
सुविज्ञ बगदाद(Baghdad) में भी अज्ञात था। भोजन का यह स्वरूप अंततः यूरोप के बाकी
हिस्सों में भी फैल गया, और इस प्रकार यह हमारे आधुनिक बहु–क्रम भोजन का अग्रगामी है।
पश्चिमी संस्कृति के विपरीत, जब हमारे देश भारत में भोजन परोसने की बात आती है, तो हम
किसी विशेष क्रम के साथ नहीं जाते हैं। हम पूर्ण भोजन एक ही बार में परोस देते हैं। हालांकि,
देश की क्षेत्रीय संस्कृतियों और विभिन्न व्यंजनों के आधार पर हमें अलग-अलग प्रकार से भोजन
परोसने की पद्धतियां देखने मिलती हैं। साथ ही, हमारे देश में पदार्थ अलग-अलग हिस्सों में
परोसे जाने के बजाय, हमारी पसंद एवं आवश्यकता के अनुसार परोसे जाते हैं।
भारत के अधिकांश क्षेत्रों में हमें हालांकि कोई विशेष एवं स्थानीय थाली परोसी जा सकती है।
इस थाली में उस क्षेत्र के विशिष्ट एवं सर्वोत्तम व्यंजन पेश किए जाते है, और आमतौर पर वे
एक ही बार में पूर्ण रूप से परोसे जाते है। यह थाली हमारे त्योहारों, उत्सवों और रोजमर्रा के
खाने का एक अभिन्न अंग भी होती है।
हमारे देश में भोजन थाली प्रत्येक स्थान के आधार पर अलग–अलग होती हैं। हमारे देश में
गुजराती थाली, सबसे विस्तृत थालियों में से एक है। इसमें कई तले हुए व्यंजन, रोटियां, घी में
पकाई गई विभिन्न प्रकार की सब्जियां और मिठाइयाँ शामिल होती हैं। जबकि, हम मांसाहारी
थाली के भी कुछ प्रकार देश में पाते हैं। भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में, हमें मछली और समुद्री
भोजन से बनी थाली मिलती हैं। महाराष्ट्र में कोल्हापुर थाली, मसालेदार मटन और स्वादिष्ट
शोरबा के लिए प्रसिद्ध है।
किसी उत्सव के अवसर पर, जैसे कि शादियों में, थालियों का यह भोजन अधिक भव्य और
समृद्ध हो जाता है। उत्सव के अलावा, हमारे उत्तर प्रदेश राज्य में भोजन थाली अंतिम संस्कार
की रस्मों का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह अनुष्ठान थाली किसी की मृत्यु की शोक अवधि
के 13वें दिन हिंदू ब्राह्मण पुजारियों को परोसी जाती है। इसमें आलू की सब्जी, सूखे कद्दू,
रायता, पूरी, अचार और पापड़ शामिल होते हैं। इसके साथ ही, चावल की खीर भी इस थाली में
परोसी जाती है।
यह पूर्ण भारतीय भोजन छह मुख्य स्वादों से परिपूर्ण होता है। छह स्वादों या ‘षड रस’ की यह
अवधारणा, आयुर्वेद का केंद्र है। आयुर्वेद के अनुसार, पौष्टिक आहार के लिए इन सभी छह
स्वादों की उपस्थिति महत्वपूर्ण है। जब एक विशेष क्रम में प्रत्येक स्वाद लिया जाता है, तो यह
पाचन प्रक्रिया में सहायता करता है।
इन स्वादों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है।
1. मधुरा: मीठा (अनाज, फल, खजूर, प्राकृतिक चीनी एवं गुड़)
2. आमला: नमकीन (समुद्री नमक, सेंधा नमक, समुद्री भोजन, समुद्री शैवाल, पत्तेदार
सब्जियां जैसे पालक)
3. लवण: खट्टा (खट्टे फल, उफने हुए खाद्य पदार्थ, अचार, कच्चा आम)
4. कटु: तेज़ (मिर्च, प्याज, लहसुन, अदरक)
5. तिक्त: कड़वा (करेला, नीम, कॉफी, चॉकलेट, मेथी)
6. कषाय: कसैला (ज्यादातर सब्जियां, एवं कुछ फल)
अतः यह महत्त्वपूर्ण है कि, पश्चिमी दुनिया में प्रसिद्ध पूर्ण भोजन की अवधारणा के बजाय,
हमारे आयुर्वेद द्वारा परिभाषित पूर्ण भोजन का ही हमें आस्वाद लेना चाहिए।
अगर आप चाहें, तो रचनात्मक या पारंपरिक रूप से भी भोजन परोस सकते हैं। साथ ही आप
इसमें मनचाहे क्रम भी इसमें शामिल कर सकते हैं। पूर्ण क्रम भोजन मेज़बानों, रसोइयों और
रेस्तरां या होटलों को अपनी प्रतिभा और सर्वोत्तम स्वाद पेश करने का अवसर प्रदान करता है।
जबकि एक सुखद, शांतिपूर्ण एवं शानदार भोजन के लिए हम किसी क्रम के विचार को परे रखते
हुए, पारंपरिक तरीके से ही, भोजन करना पसंद करते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3s6be44s
https://tinyurl.com/mry4nfmf
https://tinyurl.com/yc3armjc
https://tinyurl.com/2p9bmaxp
चित्र संदर्भ
1. दक्षिण भारतीय शैली में भोजन करते लोगों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. एक भारतीय शाकाहारी थाल को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
3. भोजन करते युवा को दर्शाता चित्रण (PixaHive)
4. एक साथ रखे गए अलग-अलग व्यंजनों को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
5. तेलंगाना की थाली को दर्शाता चित्रण (wikipedia)