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आप सभी ने गुप्त साम्राज्य के विषय में तो अवश्य ही पढ़ा या सुना होगा, किंतु क्या आप गुप्त साम्राज्य के ही समकालीन “वाकाटक” राजवंश के बारे में जानते हैं? प्राचीन भारत में “वाकाटक” नामक एक भारतीय राजवंश हुआ करता था, जिसकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दी के मध्य में दक्कन क्षेत्र में हुई थी। इस राजवंश की स्थापना 255 ईसवी में विन्ध्यशक्ति (Vindhyashakti) द्वारा की गई थी। माना जाता है कि इस साम्राज्य का विस्तार उत्तर में मालवा और गुजरात के दक्षिणी किनारों से लेकर, दक्षिण में तुंगभद्रा नदी और पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में छत्तीसगढ़ के किनारों तक फैला हुआ था। इस राजवंश को गुप्त साम्राज्य का समकालीन माना जाता है।
इस साम्राज्य के संस्थापक माने जाने वाले विंध्यशक्ति (250 ईसवी - 270 ईसवी) के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। विंध्यशक्ति के शासनकाल से संबंधित कोई भी शिलालेख या अभिलेख अब तक खोजा नहीं गया है। माना जाता है कि इस साम्राज्य के क्षेत्रों का विस्तार विंध्यशक्ति के पुत्र ‘प्रवरसेन प्रथम’ (Pravarasena I) के शासनकाल में ही शुरू हो गया था। लेकिन आमतौर पर यह माना जाता है कि प्रवरसेन प्रथम के बाद वाकाटक राजवंश चार शाखाओं में विभाजित हो गया, जिनमें से दो शाखाएँ ज्ञात (प्रवरपुर नन्दिवर्धन शाखा और वत्सगुल्म शाखा) हैं जबकि अन्य दो शाखाएं अज्ञात हैं।
चंद्रगुप्त द्वितीय की बेटी की शादी वाकाटक शाही परिवार में हुई और उनकी मदद से, उन्होंने शक क्षत्रपों से गुजरात पर नियंत्रण कर लिया था।पुराणों में वाकाटकों को विन्ध्यक नाम से संबोधित किया गया है। वाकाटकों द्वारा ब्राह्मणों को बड़ी संख्या में दिए किए गए ताम्रपत्रों और भूमि अनुदान घोषणापत्रों के माध्यम सेउनके इतिहासके बारे मेंकाफी कुछ समझा जा सकता है । वाकाटक साम्राज्य के लोग ब्राह्मणों के “विष्णुवृद्ध गोत्र” के माने जाते थे। हालांकि उन्होंने बौद्ध धर्म का भी संरक्षण किया था।
वाकाटक शासकों को कला, वास्तुकला और साहित्य के संरक्षक के रूप में भी पहचाना जाता है। सार्वजनिक कार्यों और स्मारकों के संदर्भ में उनकी विरासत ने भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) ‘अजंता गुफाओं’ (की चट्टानों को काटकर बनाए गए बौद्ध विहार और चैत्य, “वाकाटक सम्राट हरिसेन” के संरक्षण में ही बनवाए गए थे। अजंता में गुफा संख्या 16, 17 और 19 चित्रकला के क्षेत्र में वाकाटक उत्कृष्टता के सर्वोत्तम उदाहरण माने जाते हैं। इन सभी में महाभिनिष्क्रमण नामक चित्रकला विशेषतौर पर दर्शनीय है। अजंता गुफाओं की गुफा संख्या 1, गौतम बुद्ध के जीवन की कुछ सबसे विस्तृत नक्काशी और मूर्तियों के लिए जानी जाती है।
अजंता के गुफा चित्र टेम्परा (Tempera) नामक तकनीक का उपयोग करके बनाए गए थे। इनमे से अधिकांश चित्रकलाएं जातक कथाओं और बुद्ध के जीवन दर्शन के साथ-साथ सिद्धार्थ के जीवन के बुद्ध में विकसित होने के चरणों को दर्शाती हैं।वाकाटकों ने अपने अभिलेखों में प्राकृत भाषा का प्रयोग किया। वाकाटक राजा, प्रवरसेन Ⅱ (सेतुबंधकाव्य के लेखक) और सर्वसेन (हरिविजय के लेखक) प्राकृत भाषा के अनुकरणीय कवि माने जाते थे। उनके शासनकाल के दौरान, संस्कृत में वैदर्भारती नामक एक विकसित शैली प्रचलित थी, जिसकी प्रशंसा कालिदास, दंडिन और बाणभट्ट जैसे महान कवियों ने भी की थी।
वाकाटक वंश के शासकों की सूची संक्षेप में इस प्रकार है::
-विंध्यशक्ति (शासनकाल: 250 – 270 ईसवी): विंध्यशक्ति को कई वैदिक यज्ञ कराने और इस प्रकार ब्राह्मणवादी अनुष्ठानों को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है। हरिसेन के समय के अजंता शिलालेखों में उन्हें द्विज के रूप में वर्णित किया गया है और उनकी सैन्य उपलब्धियों के लिए उनकी प्रशंसा की गई है।
-प्रवरसेन प्रथम (शासनकाल: 270 - 330 ईसवी): प्रवरसेन विंध्यशक्ति के पुत्र और उत्तराधिकारी थे। उन्हें वाकाटकों की वास्तविक शक्ति माना जाता है, और उन्हें सम्राट, धर्म महाराजा और हरितिपुत्र की उपाधि भी प्राप्त थी। उन्होंने अश्वमेध, वाजपेय आदि वैदिक अनुष्ठान भी किये। उनकी राजधानी कंचनका (आधुनिक नचना) थी। उन्होंने अपने साम्राज्य को दक्षिण की ओर विदर्भ और दक्कन के आसपास के क्षेत्रों तक विस्तारित किया। प्रवरसेन की मृत्यु के बाद, उनका साम्राज्य उनके चार बेटों के बीच विभाजित हो गया, जिनमें से प्रत्येक ने अलग-अलग प्रांतों पर स्वतंत्र रूप से शासन किया।
उनकी (प्रवरसेन प्रथम की) मृत्यु के बाद वाकाटक राजवंश को दो शाखाओं में विभाजित कर दिया गया-
1.प्रवरपुर नन्दिवर्धन शाखा (नंदिवर्धन - आधुनिक नागपुर): प्रवरपुर नन्दिवर्धन शाखा के शासकों ने नर्मदा नदी और गोदावरी नदी के बीच के क्षेत्र पर शासन किया। उनकी राजधानी प्रवरपुर थी, जो अब महाराष्ट्र का पवनार शहर है। इस शाखा के सबसे महत्वपूर्ण शासक रुद्रसेन प्रथम, पृथ्वीसेन प्रथम, रुद्रसेन द्वितीय, प्रवरसेन द्वितीय, नरेंद्र सेन और पृथ्वीसेन द्वितीय थे।
2.वत्सगुल्म शाखा (आधुनिक वाशिम, अकोला जिला, महाराष्ट्र): वत्सगुल्म शाखा के शासकों ने सह्याद्रि पर्वतमाला और गोदावरी नदी के बीच के क्षेत्र पर शासन किया। उनकी राजधानी वत्सगुल्म थी, जो अब महाराष्ट्र का वाशिम शहर है। इस शाखा के सबसे महत्वपूर्ण शासक सर्वसेन, विन्ध्यशक्ति द्वितीय/विंध्य सेन, प्रवरसेन द्वितीय, देवसेना और हरिसेन थे।
हरिसेन वाकाटक वंश के सबसे महान शासक माने जाते थे। उन्होंने राजवंश की दो शाखाओं को एकजुट किया और उनके क्षेत्रों का विस्तार किया। वह कला और विज्ञान के संरक्षक भी थे और उनके शासनकाल के दौरान कई अजंता गुफाओं का निर्माण किया गया था। हरिसेन की मृत्यु के बाद वाकाटक राजवंश का पतन हो गया। उनके द्वारा शासित क्षेत्र पर अंततः 550 ईसवी तक चालुक्यों ने कब्जा कर लिया। हालांकि, उनके पतन के कारण पूरी तरह से ज्ञात नहीं हैं, लेकिन ऐसा हो सकता है कि यह सब उनके आंतरिक संघर्ष या बाहरी खतरों के कारण हुआ हो।
संदर्भ
https://tinyurl.com/m7udjfcu
https://tinyurl.com/ytb9wdxv
https://tinyurl.com/4bc3tdbw
चित्र संदर्भ
1. नंदीवर्धन किले के खंडहर और अजंता गुफा चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. वाकाटक साम्राज्य के विस्कोतार मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बोधिसत्व पद्मपाणि गुफा चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मानसर में प्रवरसेन द्वितीय द्वारा निर्मित प्रवरेश्वर शिव मंदिर के अवशेष को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. अजंता गुफाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)